मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है

मरना क्या होता है, अजीब सा प्रश्न है, परंतु बहुत खोज करने वाला विषय भी है क्योकि सबको केवल जीवन का अनुभव होता है, मरने का नहीं। सोचता हूँ कि काश मरने का अनुभव रखने वाले भी इस दुनिया में बहुत से लोग होते तो पता रहता कि क्या क्या तकलीफें होती हैं, जीवन से मरने के दौरान किन पायदानों से गुजरना पड़ता है। जैसे जीवन के दर्द होते हैं, शायद मरने के भी कई दर्द होते होंगे, जैसे हम कहते हैं कि वह तो अपनी किस्मत पैदा होने के साथ ही लिखवा कर लाया है, तो वैसे ही शायद मरने के बाद के भी कुछ वाक्य होते होंगे, कि मरने के समय ही अपनी किस्मत लिखवा कर लाया है।

वैसे यह सवाल मेरे मन मैं ऐसे ही नहीं उपजा, यह सवाल मैंने आज सुबह बेटेलाल को दो कहानियाँ सुनाने के बाद औचक ही पूछ लिया। बेटेलाल को कहानी पढ़ना पसंद नहीं है, कहते हैं कि आप जिस अंदाज में कहानियाँ सुनाते हो, उससे सुनने में मजा आता है। ऐसा लगता है कि पूरी कहानी जीवंत हो गई है और कहानी की एक एक बात समझ में आती है। हाँ मुझे भी पता है कि जब मैं कहानी पढ़ता हूँ तो मैं खुद को ही कहानी के किसी पात्र के रूप में गड़ लेता हूँ। और कहानी के पात्र बनने के बाद कहानी को समझना बहुत मुश्किल नहीं होता है।

दो कहानियाँ जो सुनाई थीं, उसमें से पहली कहानी माँ बेटे के विचारों और उनकी एक दूसरे से बात करने या बात न करने के बहाने पर थी, जिसमें बताया गया कि कैसे हम किसी ऐसी बातों को कहने से बचते रहते हैं जिससे हमें तकलीफ होती है, हम उन सब बातों को करने से बचते हैं जो हमें तकलीफ देती है, माँ की आदतों को और अपनी आदतों को बहुत ही विस्तार से जोड़कर बताया गया, जिससे बेटेलाल भी कई बार अपने आप को जोड़ पा रहे थे। दूसरी कहानी जो कि एक ऐसे युगल की कहानी थी जो केवल वैवाहिक बंधन में नहीं बँधे थे पर घर में उसी लिहाज से रह रहे थे, क्योंकि आजकल के हर बुद्धिजीवी की यही कहानी है, जो बंधनों को नहीं मानते। कहानीकार ने जिस अंदाज में कहानी को पिरोया है, वह पठनीय है। कैसे हम अपने आप को और जो अपने ह्दय के निकट होता है उसको जख्म देते हैं और फिर कैसे वह छोटी सी बात जख्म से बिना हमें पता लगे ही नासूर का रूप धारण कर लेती है।

जब अचानक ही मैंने बेटेलाल से प्रश्न किया कि मरना क्या होता है, तो वह भी अचकचा गये, मैंने कहा कि जैसे तुम बात बात में कहते हो न कि “अरे मर गये”। कहने लगे अरे वो तो मैं ऐसे ही कह देता हूँ, मैंने फिर से अपनी प्रश्न दोहरा दिया मरना क्या होता है.. तो बोलो कि मरना मतलब कि हम देख, सुन नहीं सकते औऱ हमारी साँसे बंद हो जाती हैं हमारा शरीर कोई हरकत नहीं करता है। मैंने कहा फिर क्या होता है तो बेटेलाल बोले फिर श्माशान घाट से जाते हैं औऱ बस, और क्या होता है, फिर अस्थियों को इकठ्ठा करके नहीं में बहा देते हैं। और घर आ जाते हैं, हाँ बस एक बात है कि जाने वाली की याद बहुत आती होगी, इस बात पर शायद ये कहते यो वो कहते, पर वो आवाज फिर कभी सुनने को नहीं मिलती।

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