आदमी की धूर्तता

    कल बेटे की स्कूलबस के स्टॉप पर लेने के लिये खड़ा था, वहीं ऑटो स्टैंड भी है। बस आने में समय था तो मैं अपने मोबाईल पर ही चैटिंग करने लग गया और साथ ही ऑटो भी देख रहा था, बिल्कुल नया चकाचक ऑटो था, और चालक शकल से ही घाघ लग रहा था, वह ऑटो में बैठे बैठे अंगड़ाईयाँ ले रहा था, उसका काम करने का कोई मूड लग ही नहीं रहा था, ऐसा लग रहा था कि वह खुद को ही वहाँ खड़ा कर अपने आप को बेबकूफ़ बना रहा है कि सवारी का इंतजार कर रहा हूँ, पर जाने क्यों मुझे लगा कि यह सवारी लेकर नहीं जायेगा।
अब चूँकि बहुत देर तक वहीं खड़ा था तो मन में बहुत सारे विचार आये और लीन भी हो गये।

थोड़ी देर बाद ही एक महिला अपने बच्चे के साथ बात करती हुई तेजी से आई और ऑटो वाले से किसी जगह का नाम लेकर पूछा भैया चलोगे, ऑटो वाले ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई और महिला ऑटो में बैठने लगी तो उसी समय हिकारत वाली नजरों से ऑटो वाले ने देखते हुए कहा कि १७० रुपये लगेंगे, महिला तेजी से उतरी और बिना बोले अपने बच्चे के साथ वहाँ से मुख्य सड़क की ओर चली गई। शायद वह महिला इन ऑटो वालों के नाज नखरों से अभ्यस्त होगी।
जब वह महिला वहाँ से चली गई, तो ऑटो वाला मुझसे मुखतिब हुआ बोला “मीटर से १४०-१५० रुपये किराया बनता और मैंने १७० रुपये ही तो मांगे थे, जान निकल गई”। मैं कुछ बोला नहीं क्योंकि मेरा मन भी खिन्न हो चुका था और अगर मैं कुछ बोलता तो यह तो तय था कि मैं जबरदस्त तरीके से झगड़ा करता, और मैं झगड़ा करना नहीं चाहता था।
मन ही मन सोच रहा था कि अगर इसी व्यक्ति को आज से हरेक चीज १०-१५ प्रतिशत महँगी दी जाने लगे जो कि उसके तय दामों से ज्यादा होगी तो क्या यह ऐसे ही आराम से दे देगा, क्या इसकी “जान नहीं निकलेगी” ? क्या केवल वही मेहनत से पैसा कमाता है और सब लोग आराम से या बेईमानी से कमाते हैं ? ऐसे लोगों के लिये, ऐसी मानसिकतावालों के लिये कठोर कानून होना चाहिये, एक तो महँगाई और ऊपर से ऐसे लूटने वाले…. सरकार तो लूट ही रही है… और सरकार ने ऐसी सेवा देने वालों को भी खुली छूट दे रखी है।

क्या वाकई ऐसा कोई कानून बन सकता है और उसे अमली जामा पहनाया जा सकता है जिससे जनता की मदद हो… ?

13 thoughts on “आदमी की धूर्तता

  1. विवेक भाई ,
    जब डीजल पेट्रोल के दाम बढते हैं तब जरा इनकी दलीलें सुना करिए । सच तो यही है कि लूट हर स्तर पर और हर तबके द्वारा जारी है तरीका और हिस्सा कम बेसी है

  2. महाराज बैंगलोरिया रिक्सा का ई हाल त हम भी झेल गये थे… कभी पूने जा के देखिए…..
    ई मामलें में मुम्बई का ज़वाब नहीं…….

    बडी खराब हालत है भाई…

  3. अरे सर आप कभी नवी-मुंबई जा कर देखिये, वहाँ मीटर से तो चलते ही नहीं और यदि २ बैग हो आपके पास तब तो सामान के भी पैसे मांगते हैं

  4. जब पुलिसवाले कानून की जगह अपनी जेब की रक्षा करने पर ही तुले हों तब यह सब तो होने ही वाला है।

  5. अरे अरे इस आटो वाले का क्या कसूर जी… भारत मे तो ९०% लोग लुट रहे हे एक दुसरे को, अगर हमी सुधर जाये ओर ना लुटने ओर दुसरो को ना लूटने की कसम खा ले तो ७०% भारतिया सुधर जाये, ओर इन ७०% को देख कर बाकी भी सुधर जाये, लेकिन हम ऎसा केसे कर सकते हे, अजी घर का खर्च केसे चलेगा, फ़िर मेरे अकेले के सुधरने से क्या होगा? सब यही सोचते हे… लेकिन होगा जरुर होगा…. पहले हम सुधरे फ़िर बाकियो को हम सुधार ही लेगे.
    बहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद

  6. मैं भी कितनी बार परेसान हो चूका हूँ बैंगलोर के ऑटो वालों से 🙁

  7. एक तरीका है ऐसे लोगो को सबक सिखाने का. अपने घर का कहकर किसी मित्र के घर तक इन्हें ले जाओ जो की किसी अपार्टमेंट में हो और खुल्ले पैसे या पैसे के बहाने से वहां से पीछे के दरवाजे से खिसक लो. और फिर इन जैसे हरामखोरों को करने दो मेहनत. भोपाल में तो कलेक्टर महोदय भी इनको नियंत्रित नहीं कर पा रहे.

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