शौचालय नारी गरिमा के अनुरूप हों (Hygienic Toilets for Women and Family)

    भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जहाँ पर हम अधिकतर हमारे वेद पुराणों में लिखी बातों का अध्ययन कर उन पर विश्वास कर बंद आँखों से अनुगमन करते हैं, पर जहाँ हमारी सामाजिक आलस्यपन की बात आती है वहाँ ये सब बातें गौण हो जाती हैं । हम वहाँ पर किसी न किसी कारण को प्रमुख बनाकर हालात से भागने की कोशिश करते हैं, जैसे कि भारतीय संस्कृति में कहा जाता है नारी सर्वत्र पूज्यते, परंतु घर और बाहर दोनों जगह हम जानते हैं कि नारी के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।
    शौच और शौचालय भारत की प्राथमिक समस्याओं में से एक हैं, घर में चूल्हा करने के लिये रसोईघर जरूर होगा, किंतु अन्न पचाने के बाद अवशिष्टों को निकालने के लिये घर में शौचालय नहीं मिलते हैं, मूलत: यह समस्या गाँवों में बहुत ज्यादा है, परंतु शहरों में भी कम नहीं है। शौच करने के लिये नारी को एक सुरक्षित और साफ स्थान चाहिये होता है, जहाँ वह गरिमा के साथ शौच जा सके । आजकल समाचार पत्रों में इस तरह की कई खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि खुले में शौच करने कई युवती से अशोभनीय हरकत की गई, और यह समस्या खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड में बहुत ज्यादा है।
    जिस तरह पुरुष घर में नारी को पर्दे में रखना चाहता है, उसी तरह से क्यों नहीं नारी की गरिमा के अनुरूप घर में शौचालय बनवाने में कतराता है, शौचालय बनवाने के फायदे ज्यादा हैं और नुक्सान तो हालांकि है ही नहीं। शौचालय घर में होने से नारी गरिमा बची रहेगी, घर की शौचालय खुद ही साफ करने से तरह तरह के संक्रामक और डायरिया जैसे भयानक रोगों से बचाव होगा। इन रोगों के होने से भारत में दो लाख से भी ज्यादा 5 वर्ष से छोटे बच्चों का मौत हर वर्ष होती है, इन संक्रामक रोगों और बीमारियों पर भी पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है, तो बेहतर है कि खुले में शौच से होने वाले संक्रमण से बचाव के लिये वह पैसा शौचालय बनाने में खर्च किया जाये।
    शौचालय बनाते समय ध्यान रखें कि शौचालय पानी के स्त्रोत जैसे नदी, तालाब या कुएँ से कम से कम 20 मीटर दूर हों, जिससे शौच के अवशिष्ट जल से पीने के पानी दूषित न हो, जितनी बीमारियाँ खुले में शौच जाने पर होती हैं, उससे भी खतरनाक बीमारियाँ अवशिष्ट जल के पीने के पानी के दूषित होने पर होती हैं, शौचालय के अवशिष्ट को अगर सही तरह से उपयोग किया जाये तो इन अवशिष्टों से खाद बनाई जा सकती है, शौच के अवशिष्ट को खाद बनाने की प्रक्रिया में एक वर्ष तक का समय लगता है, जिससे हम इस प्राकृतिक खाद का उपयोग कृषि कार्यों में कर सकते हैं, यह खाद आजकल बाजार में आ रही रासायनिक खादों से बहुत अच्छी है।
    शौचालय बनवाना हमारे सामाजिक उन्नति और चेतना का भी परिचायक है, इससे न केवल नारी गरिमा को ठेस लगने से रोका जा सकेगा अपितु घर में शौचालय राष्ट्र के स्वच्छता के लिये भी एक बड़ा योगदान होगा।
    डोमेक्म ने महाराष्ट्र और उड़ीसा के गाँवों को खुले में शौच के लिये कदम उठाया है, और इसमें आप भी योगदान कर सकते हैं, आपके एक क्लिक से डोमेक्स 5 रू. का योगदान देगा, डोमेक्स की साईट पर जाकर “Contribute Tab” पर क्लिक करके ज्यादा से ज्यादा योगदान करवाने में मदद करें ।
    You can bring about the change in the lives of millions of kids, thereby showing your support for the Domex Initiative. All you need to do is “click” on the “Contribute Tab” on www.domex.in and Domex will contribute Rs.5 on your behalf to eradicate open defecation, thereby helping kids like Babli live a dignified life.

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