हम स्वभाव से ही तामसी होते जा रहे हैं..

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् ।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥ १० ॥ अध्याय १७

    अर्थात – खाने से तीन घंटे पूर्व पकाया गया, स्वादहीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है, जो तामसी होते हैं ।

    आहार का उद्देश्य आयु को बढ़ाना, मस्तिष्क को शुद्ध करना तथा शरीर को शक्ति पहुँचाना है, प्राचीन काल में विद्वान पुरुष ऐसा भोजन चुनते थे, जो स्वास्थ्य तथा आयु को बढ़ाने वाला हो, यथा दूध के व्यंजन, चीनी, चावल, गेंहूँ, फ़ल तथा तरकारियाँ । ये भोजन सतोगुणी व्यक्तियों को अत्यन्त प्रिय होते हैं। ये सारे भोजन स्वभाव से ही शुद्ध हैं ।

    आजकल हम दोपहर का टिफ़िन ले जाते हैं, जो कि वाकई तीन घंटे से ज्यादा हमें रखना पड़ता है और वह बासी हो गया होता है, सब्जी का रस सूख गया होता है, दाल बासी हो गई होती है । अब हम स्वभाव से ही तामसी होते जा रहे हैं, कहने को भले ही मजबूरी हो परंतु सत्य तो यही है।

    हमारा जीवन जीने का स्तर अब तामसी हो चला है, जहाँ हमें अपना समय चुनने की आजादी नहीं है और वैसे ही बच्चों को भी हम आदत डाल रहे हैं, जैसे बच्चों को सुबह आठ बजे स्कूल जाना होता है और उनका भोजन का समय १२ बजे दोपहर का होता है तो वे कम से कम ४-५ घंटे  बासी खाना खाते हैं, यह बचपन से ही तामसी प्रवृत्ति की और धकेलने की कवायद है। बच्चों को स्कूल में ही ताजा खाना पका पकाया दिया जाना चाहिये। जिस प्रकार पूर्व में आश्रम में शिष्यों को ताजा आहार मिलता था।

    अगर हमारे पुरातन ग्रंथों में कोई बात लिखी गई है तो उसके पीछे जरूर कोई ना कोई वैज्ञानिक मत है, बस जरूरत है हमें समझने की ।

6 thoughts on “हम स्वभाव से ही तामसी होते जा रहे हैं..

  1. so nicely expressed .. indeed … purani baaton ke reasoning ko bina jaane hum unko maa ne se inkar karte hain .. thinking we are the most brainy lot and that our ancestors were bunch of illogical brains whereas times have proved again and again that our ancestors had made laws as per scientific reasons !

  2. विवेकजी, एक प्रश्न मन में आता है ये पढकर. जब ये पंक्तियाँ लिखी गयी होंगी तब खाने को preserve करने के उपाय कम रहे होंगे. ऐसे में ३ घंटे से पहले पकाई गयी चीज़ें खाना हितकर नहीं माना जाता होगा. पर अब जब तकनीक ने उन्नति कर ली है तब कहाँ तक पुरानी बातों को मानना सही होगा? मैं अपनी किताबों के ज्ञान के विरुद्ध नहीं जा रहा बस एक सवाल कर रहा हूँ कि क्या समय के साथ ज्ञान भी revise नहीं करना चाहिए?

  3. आज जीवन प्रक्रिया ऐसी हो गयी है जिसके कारण ऐसा करना मजबूरी है.कामकाजी महिलाएं सुबह खाना बना कर न दें,तो बच्चे क्या व कैसे खायेंगे?स्कूलों की घर से दुरी,भी कारण बन जाती हैं.और भी बहुत से कारण हैं,इसलिए अब चाह कर भी इन बातों से बचा नहीं जा सकता.पोस्ट के लिए आभार.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *