Monthly Archives: July 2009

हरिओम पँवार की कविताएँ

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आज भी वो दिन याद है जब हम रात रात भर कवि सम्मेलन में हरिओम पँवार को सुनने के लिये बैठा करते थे और उस जमाने में अपना टेपरिकार्डर और ३-४ खाली कैसेट, और ४-६ बैटरी लेकर बिल्कुल मंच के सामने आसन जमा लेते थे।

 

हरिओम पँवार जब कविता पाठन करने मंच पर आते तो सबसे पहले वो कहते कि अगर किसी को उठ कर जाना है तो पहले ही निकल जाये और अगर कोई बीच में से उठा तो उसे गद्दार घोषित कर दिया जायेगा और वाकई अगर कोई उनके कविता पाठन के  बीच में से उठता तो उसे वो हाथों हाथ सीधा कर देते थे। पेशे से वकील हैं पर वीर रस के कवि हैं मेरठ के रहने वाले हैं, मतलब हमारे पैतृक शहर के।

 

जब हरिओम जी मंच पर कविता पाठन के लिये खड़े हो जाते तो खून में जोश आ जाता था और लगता था कि बस अब पाकिस्तान सामने हो तो हम उसे ध्वस्त कर दें।

 

अब वो हमारी कैसेट सब खराब हो गई हैं हमारा संग्रह खत्म हो गया है, गूगल पर बहुत ढूंढने की कोशिश की पर एमपी३ भी नहीं मिली और न ही कोई छपी हुई अगर मिली भी तो इक्का दुक्का।

अगर किसी के पास एमपी३ में हो तो कृप्या हमसे शेयर करें।

१-२ कविता यूट्यूब पर मिली। यहां चटका लगाइये  उनकी एक कविता “घायल घाटी का दर्द सुनाने निकला हूँ, कश्मीर का दर्द”  देखने के लिये और वीर रस के जोश से अपने आप को सारोबार कीजिये।

चलो टल्ले खाकर आते हैं।

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हमारे एक मित्र इन्दौर में थे एक शाम छुट्टी के दिन बोर हो रहे थे तो बोले कि चलो टल्ले खाकर आते हैं जेल रोड तक। तो उनकी छोटी बिटिया उनके पीछे पड़ गई कि मुझे भी टल्ले खाना है मैंने आज तक टल्ले नहीं खाये हैं आप तो रोज अकेले अकेले ही टल्ले खाकर आ जाते हो। हमारे मित्र मुस्कराकर रह गये और अपनी छोटी बिटिया को साथ में लेकर निकल पड़े टल्ले खाने। एक घंटे बाद वापिस घर पर आये तो बिटिया ने अपनी मम्मी से शिकायत की, कि पापा ने मुझे टल्ले नहीं खिलवाये खुद तो रोज अकेले अकेले खाकर आ जाते हैं, तब उनकी मम्मी ने समझाया कि बेटी इसे ही टल्ले खाना कहते हैं उसने सोचा था कि पानी पुरी या भेल चाट से तो कुछ ज्यादा ही लाजबाब स्वाद होता होगा इस टल्ले का, तभी तो पापा अकेले याद दोस्तों के साथ टल्ले खाने जाते हैं।

 

मालवा में आमतौर पार टाइमपास के लिये घूमने को टल्ले खाना कहते हैं।

खोया हुआ मोबाईल वापिस मिला, मुम्बई की ईमानदारी की “जय हो”

दो दिन पहले हमारा खोया हुआ मोबाईल वापिस मिल गया। हमारे  सेमसंग मोबाईल में हमने ट्रेकर चालू किया हुआ था और जैसे उसमें नई सिम डाली गई हमारे पास उस नये नंबर से एस.एम.एस. आ गया। हमने फ़ोन करके उससे कहा कि ये तो हमारा मोबाईल है जो थोड़े दिनों पहले लापता हो गया था। तो उसने हमसे टाईम और जगह फ़िक्स कर हमारा मोबाईल वापिस कर दिया। बस हमें हमारा १जीबी का मेमोरी कार्ड नहीं मिला और मोबाईल में एक भी नंबर नहीं मिला, बस मोबाईल मिल गया वही बड़ी बात है। एस.एम.एस. और फ़ोटो वह देख/पढ़ नहीं पाया क्योंकि हम ये हमेशा पासवर्ड के जरिये सुरक्षित रखते हैं। क्योंकि हमारा यह मानना है कि ये दो चीजें मोबाईल में निजी होती हैं और इन्हें सुरक्षित रखना चाहिये तो ये दोनों चीजें हमें सुरक्षित मिलीं।

 

वह एक आटो वाला था जिसे मेरा मोबाईल उसके आटो में पड़ा मिला जो किन्हीं अज्ञात लोगों द्वारा फ़ेंका गया था। उसमें न सिम थी और न ही कोई मोबाईल नंबर।

 

आखिर क्या है यह सेमसंग मोबाईल ट्रेकर –

सेमसंग मोबाईल में मोबाईल ट्रेकर फ़ोन सिक्यूरिटीज में होता है जिसमें आप कोई भी दो मोबाईल नंबर फ़ीड कर सकते हैं, जब भी सिम बदलेगी तो हमेशा एक एस.एम.एस. इन दो मोबाईल नंबरों पर चला जायेगा और आपको पता चल जायेगा कि कौन आपके मोबाईल का उपयोग कर रहा है, अब वो भले ही कितने ही सिम बदल ले, आपको हर नंबर पता होगा क्योंकि आपके पास उतनी ही बार एस.एम.एस. आ जायेगा। है ना कमाल की सुविधा।

ज्यादा जानकारी के लिये यहां चटका लगा सकते हैं।

चिन्डोगु.कोम http://www.chindogu.com आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है।

इन अविष्कारों को करने वाले कोई बहुत बड़े वैज्ञानिक नहीं हैं परंतु रोजमर्रा की परेशानियों से निपटने के लिये लोगों ने कुछ उपाय करना शुरु किये और बिना कापीराईट के आपस में उसकी विधी बताना शुरु किया, और एक संस्था बनाई अंतर्राष्ट्रीय चिन्डोगु सोसायटी। ये लोग अभी तक ६०० से ज्यादा अविष्कार कर चुके हैं। कुछ अविष्कारों के चित्र देखिये।








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अगर मुख्यमंत्री का वरदहस्त है तो कोई क्या कर सकता है, न्याय की देवी भी अपनी आँख पर काली पट्टी बँधी होने का मातम मनायेगी|

आखिरकार सभरवाल सर के हत्यारे बेगुनाह साबित कर छुटवा लिये गये। भले ही उन्हें टी.वी. पर सर के साथ भद्दी भाषा में बात करते हुए दिखाया गया हो, जान से मारने की धमकी देते हुए दिखाया गया हो, हमारी पहुँच कहां तक है ये भी कहते हुए दिखाया गया हो। पर उनका कोई बाल भी बांका कर सकता है क्या, क्योंकि हमारे माननीय मुख्यमंत्री का वरदहस्त है उनके ऊपर।

टीस इसलिये उठी कि मैं भी उसी माधव महाविद्यालय में पढ़ा हूँ और इस गंदी राजनीति को बहुत पास से देखा है। जहां एक प्रोफ़ेसर दूसरे प्रोफ़ेसर के लिये षड़्यंत्र रचता है वो भी छात्र राजनीति के द्वारा। जिस दिन यह घटना हुई, ठीक उसके एक दिन पहले मैं रायपुर से भोपाल के लिये ट्रेन में था और अपने मित्रों को यही बता रहा था कि माधव महाविद्यालय में तो हरेक छात्र नेता है, और कोई भी कुछ भी कर सकता है, और अब चुनाव हैं कुछ भी हो सकता है। शायद किसी की जान भी जा सकती है शायद किसी प्रोफ़ेसर की भी क्योंकि वहां के छात्र बहुत ही उच्चश्रंखल हैं, उद्दंड हैं, जो कि वहीं के गुरुओं द्वारा अपना वर्चस्व बनाने के लिये बना दिये गये हैं। पर मुझे यह पता नहीं था कि जो मैं बोल रहा हूँ वही अगले सत्य होने वाला है। सभरवाल सर ऐसे नहीं थे और उन्हें चुनाव की देखरेख के लिये नियुक्त किया गया था और वे किसी के दबाब में नहीं आते थे, पहले तो छात्र नेताओं ने उन्हें हटवाने की बहुत कोशिश की परंतु कामयाब नहीं हो पाये तो उनकी हत्या कर डाली।

सारे सबूत होते हुए भी हत्यारे बेगुनाह छूट गये और कोई भी कुछ भी नहीं कर पाया। शायद उज्जैन की जनता ही इंसाफ़ करे, नहीं तो ये लोग अब भाजपा में किसी प्रतिष्ठित पद पर बैठा दिये जायेंगे और कोई भी कुछ भी नहीं कर पायेगा, और न्याय की देवी भी अपनी आँख पर काली पट्टी बँधी होने का मातम मनायेगी।

नया सोफ़्टवेयर एक दिन के लिये फ़्री – Giveaway of the day

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मेरा नया ब्लोग “बैंकों के बारे में जानकारी”

मैंने एक नया ब्लोग शुरु किया है “बैंकों के बारे में जानकारी”।

मेरी कोशिश है कि आम जनता को बैंकों के बारे में उनका ज्ञानवर्धन कर सकूँ।

ओम भैया (ओम व्यास ओम) अब स्कूटर पर नहीं देखेंगे।

अक्सर ओम भैया (ओम व्यास ओम) फ़्रीगंज में सुबह अपने दफ़्तर जाते वक्त मामा पान पर मिल जाते थे अपनी सफ़ेद स्कूटर पर, पर अब ओम भाई कभी स्कूटर पर नहीं दिखेंगे यह उज्जैन के लिये अपूरणीय क्षति है, उनके छोटे भाई संजय व्यास मेरे अच्छे मित्रों में से हैं। भगवान शोकसंतप्त परिवार को इस गहन वेदना को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।