Monthly Archives: August 2009

नारी के आभूषण

नारियाँ वस्तुत: आभूषणों से बहुत प्रेम करती हैं। हमारे शास्त्रों ने भी नारियों के लिये विविध प्रकार के रत़्नाभूषणों आदि की व्यवस्था की है, पर प्रत्येक आभूषण के अन्तर्गत एक गुण, सन्देश छिपा है। प्रत्येक भारतीय नारी को चाहिये कि आभूषण धारण करने के साथ – साथ आभूषण के अन्तर्गत निहित अर्थ संदेश को भी ह्र्दयंगम करे, ताकि उस आभूषण का नाम सार्थक हो सके –

मिस्सी – मिस अर्थात बहाना बनाना छोड़ दें। पान या मेंहदी – लाज की लाली बनायें रखें।

काजल – शील का जल नयनों में रखें।

नथ – मन को नाथे अर्थात नियन्त्रित रखें, जिससे नाक ऊँची रहे।

बेंदी – बदी (बुराई) छोड़ दें।

टीका – ध्यान रखें यश का टीका लगे – कलंक का नहीं।

वंदनी – पति एवं गुरुजनों की वन्दना करें।

पत्ती – अपनी तथा परिवार की पत (लाज) रखें।

कर्णफ़ूल – कानों से दूसरों की प्रशंसा सुनें।

हँसली – हमेशा हँसमुख रहें।

मोहनमाला – सद़्गुणों से सबका मन मोह लें।

कण्ठहार – पति के कण्ठ का हार बनें।

कड़े – किसी से कड़ी बात न बोलें।

छल्ले – किसी से छल न करें।

करघनी या कमरबंद – सत्कर्मों के लिये हमेशा कमर बाँध कर तैयार रहें।

पायल – सभी बड़ी बूढ़ी औरतों के पाँव (चरण) स्पर्श करें।

सन्तान के कर्तव्य जो सन्तान को निभाने चाहिये..

मातृ देवो भव: ! पितृ देवो भव: !

आचार्य देवो भव: ! अतिथि देवो भव: !

माता पिता, गुरु और अतिथि – संसार में ये चार प्रत्यक्ष देव हैं । इनकी सेवा करनी चाहिये। इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दूसरा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है। माता – पिता में परमात्मा प्रत्यक्ष स्वरुप है। माता साक्षात लक्ष्मी होती है तो पिता नारायण। जिनको माता पिता में भगवद्भाव नहीं होते उनको मन्दिर या मूर्ति में भी कभी भगवान के दर्श्न नहीं होते।

माता – पिता में भी माँ का दर्जा अधिक ऊँचा है। शास्त्रों में भी माँ का दर्जा पिता से सौ गुणा अधिक ऊँचा बताया गया है। पिता तो धन – सम्पत्ति आदि से पुत्र का पालन पोषण करता है, पर माँ अपना शरीर देकर पुत्र का पालन पोषण करती है। बच्चे को गर्भ में नौ माह तक धारण करती है, जन्म देते समय प्रसव पीड़ा सहती है, अपना दूध पिलाती है एवं अपनी ममता की छाँव में उसका पालन पोषण करती है। ऐसी ममतामयी जननी का ऋण पुत्र नहीं चुका सकता। ऐसे ही पिता बिना कहे ही पुत्र का भरण पोषण का पूरा प्रबन्ध करता है, विद्याध्ययन करवाकर योग्य बनाता है, उसकी जीविका का प्रबन्ध करता है एवं विवाह कराता है। ऐसे पिता से भी उऋण होना बहुत कठिन है। रामायण में कहा गया है – “बड़े भाग मानुष तन पावा”। इस शरीर के मिलने में प्रारब्ध (कर्म) और भगवत़्कृपा तो निमित्त कारण है और माता पिता उपादान कारण हैं। उनके कारण ही हम इस संसार में आते हैं। इसलिये जीते जी उनकी आज्ञा का पालन करना, उनकी सेवा करना, उनको प्रसन्न रखकर उनका आशीर्वाद लेना और मरने के बाद उनके मोक्ष हेतु पिण्ड दान, श्राद्ध – तर्पण करना आदि पुत्र का विशेष कर्तव्य है। माता पिता की दुआ में दवा से भी हजार गुणा ज्यादा शक्ति होती है।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जब देवराओं में यह होड़ लगी कि सबसे बड़ा कौन ? जो सबसे बड़ा होगा वही प्रथम पूज्य होगा। तब सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि जो तीनों लोकों का तीन चक्कर लगा कर सबसे पहले आ जायेगा वही प्रथम पूज्य होगा। सभी देवता अपने अपने वाहनों पर चढ़ कर दौड़ पड़े तब गणेश जी बड़े चक्कर में पड़े कि मेरा वाहन चूहा सबसे छोटा है इस पर चढ़कर में कैसे सबसे पहले पहुंच सकता हूँ। अत: उन्होंने समाधिस्थ पिता शंकर के बगल में माँ पार्वती को बैठा दिया तथा स्वयं अपने वाहन पर चढ़ कर दोनों की तीन बार परिक्रमा की । माता पिता की परिक्रमा करते ही तीनों लोकों की परिक्रमा पूरी हो गई और वे प्रथम पूज्य घोषित हुए। आज भी बुद्धि के देवता के रुप में सर्वत्र प्रथम पूज्य हैं।

पहले की कुछ ओर कड़ियाँ परिवार के संदर्भ में –

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Financial Planning वित्तीय आयोजना बहुत जरुरी है हर एक आदमी के लिये .. क्यों देखें

     आजकल हरेक आदमी के लिये Financial Planning यानि कि वित्तीय आयोजना बहुत जरुरी है । हर आदमी आज केवल पैसा कमाने के लिये दौड़ रहा है पर उस पैसे को कैसे भविष्य के लिये बचायें या कहां पर निवेश करें उसके बारे में इस आम आदमी को बिल्कुल जानकारी नहीं होती है और अगर होती भी है तो अधकचरा, जो किसी दोस्त ने बता दिया या कहीं टीवी चैनल पर देख लिया। आम आदमी को अच्छे वित्तीय उत्पाद के बारे में पता ही नहीं होता है या उसे कौन सा उत्पाद उपयोग करना चाहिये उसका पता नहीं होता है। बस वह तो जैसे तैसे कहीं पर भी पैसे जोड़कर खुश होता रहता है। परंतु अपने भविष्य की आवश्यकताओं के बारे में उसकी कोई योजना नहीं होती।

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      भविष्य की योजना बनाना बहुत जरुरी है हरेक आदमी को, क्योंकि सभी के जीवन में भविष्य के कुछ समान लक्ष्य होते हैं जैसे बच्चों का पढाई खर्च, शादी का खर्च, अपने लिये घर, कार इत्यादि। पर ये सब खर्च भी एक साथ नहीं आते हैं सभी खर्चों का समय अलग अलग होता है इसलिये जो खर्चा याने कि पहला लक्ष्य के लिये आपको अभी से ज्यादा बचत करना होगी और उसके बाद के लक्ष्यों के लिये उससे कम बचत करना होगी क्योंकि समय ज्यादा मिलेगा बचत के लिये।

        बचत के समय यह भी देखना चाहिये कि ज्यादा लाभ किस वित्तीय उत्पाद में निवेश करने से होगा और किस वित्तीय उत्पाद  मॆं लंबी अवधि के लिये निवेश करना होगा। कितना बीमा होना चाहिये कितना दुर्घटना बीमा होना चाहिये। ऐसी बहुत सी बातें हैं जो आम आदमी के हित में है और अगर वह अनुशासन बना ले बचत करने का तो इन लक्ष्यों की प्राप्ति बहुत ही आसान है।

         अगर आपके शहर में बजाज कैपिटल की शाखा है तो ये लोग बिना किसी शुल्क के Financial Planning वित्तीय आयोजना करते हैं, आप इनकी सेवा ले सकते हैं और साथ में वित्तीय उत्पादों के बारे में गाईड भी करते हैं। बहुत सारे ओनलाईन टूल्स online tools मिल जायेंगे, और नहीं तो किसी प्रमाणित वित्तीय आयोजक की सहायता लें।

         वैसे मैं भी बहुत सारे वित्तीय उत्पादों के बारे में बहुत अच्छे से जानता हूँ अगर किसी को कठिनाई हो तो टिप्पणी देकर सवाल पूछ सकते हैं, मैं जल्दी ही उत्तर देने की कोशिश करुँगा। आगे के चिट्ठों में मैं वित्तीय उत्पादों की जानकारी देने का प्रयास करुँगा।

पत़्नी के कर्तव्य जो पत़्नी को निभाने चाहिये

पति की तरह ही पत़्नी के भी कुछ कर्तव्य होते हैं, जिनका पालन कर गृहस्थाश्रम का पूर्ण आनन्द लिया जा सकता है। किसी ने ठीक कहा है – ईंट और गारे से मकान बनाये जा सकते हैं, घर नहीं। मकान को घर बनाने में गृहिणी का ही पूरा हाथ होता है। वैसे भी इतिहास साक्षी है कि बहुत से महापुरुषों जैसे तुलसीदास, कालिदास, शिवाजी आदि के उत्थान पतन में स्त्री की ही मुख्य भूमिका रही है। मधुर भाषी स्त्री घर को स्वर्ग बना सकती है तो कर्कशा व जिद्दी स्त्री घर को नर्क बना देती है। पत़्नी को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये –

  • पति के माता – पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों का आदर करे तथा उनकी सुविधा का हमेशा ध्यान रखे।
  • कभी भी अपने पीहर में ससुराल वालों की निंदा या बुराई न करे।
  • कभी भी पति पर कटु, तीखे एवं व्यंग्यात्मक शब्दों का प्रयोग न करें। सब समय ध्यान रहे कि तलवार का घाव भर जाता है, बात का नहीं।
  • पति के सामने कभी भी ऐसी मांग न करे जो पति की सामर्थ्य के बाहर हो।
  • कभी भी झूठी शान शौकत के चक्कर में पैसे का अपव्यय न करे। पति से सलाह मशविरा करके ही संतुलित एवं आय के अनुसार ही व्यय की व्यवस्था करें। पति के साथ रिश्ते को पैसे का आधार नहीं बनाकर सहयोग की भावना से गृहस्थी चलानी चाहिये।

सर्वोपरि पति – पत़्नी में एक दूसरे के प्रति दृढ़ निष्ठा एवं विश्वास भी होना चाहिये। दोनों का चरित्र संदेह से ऊपर होना चाहिये। कभी – कभी छोटी – छोटी बातें भी वैवाहिक जीवन में आग लगा देती हैं, हरे भरे गृहस्थ जीवन को वीरान बना देती है। आपसी सामंजस्य, एक दूसरे को समझना, किसी के बहकावे में न आना, बल्कि अपनी बुद्धि से काम लेना ही वैवाहिक जीवन को सुन्दर, प्रेममय व महान बनाता है।

पहले की कुछ ओर कड़ियाँ परिवार के संदर्भ में –

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“93.5 FM एफ़.एम. बजाते रहो” वाली मलिश्का के कारनामे

कल मैं बहुत दिनों के बाद सडक के रास्ते मुँबई फ़ोर्ट गया था। तो रास्तेभर ९३.५ एफ़ एम वाली मलिश्का के बडे बडे होर्डिंग्स लगे हुये थे। किसी में नौकरानी पोंछा लगा रही है और मालिक अखबार पढ़्ते हुये कनखियों से उसके बाहर झूलते हुये वक्षस्थलों को कामुक निगाहों से देख रहा है, और नीचे मलिश्का का प्रतीकात्मक फ़ोटो लगा था व साथ में लिखा था फ़ोन लगाईये और अपने मन की बात मलिष्का को बताईये जो आपने आज तक किसी से नहीं कही वो मलिश्का को बतायें।

दूसरे होर्डिंग मै एक सभ्य व्यक्ति कार् चला रहा है और् एक लेडी अपने कुत्ते को लेकर घूमने निकली है और अचानक कुत्ता अपनी टाँग उठाकर सूसू कर देता है उस कार के पिछले दरवाजे पर, और कार वाले को बहुत खिन्न मुद्रा में दिखाया है। फ़िर वही मलिष्का नीचे और लिखा था अपने मन की बात बतायें।

इस प्रकार के कई सारे होर्डींग्स वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर और फ़िर एस.वी. रोड सब जगह पटे पड़े हैं। अब आखिर ये मलिश्का सुनना क्या चाहती है अगर आप भी देखेंगे तो इस भौंडेपन और नंगाई को देखकर शायद आपकी भी नजरें झुक जायेंगी। क्या मुँबई वाकई इतनी एडवांस हो गई है, कि ये सब आम बात हो गई है। वैसे तो यहाँ के राजनीतिज्ञ बहुत कुछ बोलते रहते हैं पर इस बात को लेकर कोई बबाल नहीं, आखिर क्यों ?? क्या हमारे समाज में मर्यादा खत्म हो गई है ??

पति के कर्तव्य जो पति को निभाने चाहिये ..

उस माँ की ममता को याद रखना जिसने पाल पोस कर तुम्हें इतना बड़ा किया है ।

पति को पत्नी के सामने कभी भी उसके पीहर वालों की बुराई नहीं करनी चाहिये। यह स्त्री स्वाभाव है कि वह सब कुछ सहन कर सकती है, लेकिन अपने माँ – बाप, भाई – बहन की बुराई नहीं सहन कर सकती। क्या पति अपने परिवार वालों की बुराई सुन सकता है? यदि नहीं तो पत्नी से कैसे अपेक्षा करे कि वह अपने सामने अपने परिवार वालों की बुराई सुन सके। वैसे विवाह के बाद पत्नी अपने पति की बुराई भी नहीं सुन सकती।

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पति अगर पत्नी की किसी आवश्यकता को पूरी नहीं कर सकता तो पत्नी को अपनी मजबूरी एवं कारण प्रेमपूर्वक  मीठे शब्दों द्वारा समझाना चाहिये।

पति को कभी भी अपने पुरुष होने का झूठा अभिमान नहीं करना चाहिये। स्त्री के साथ सब समय सहयोग की भावना रखनी चाहिये एवं उसे अर्धांगिनी का दर्जा देकर सम्मान देना चाहिये।

Gametop.com गेमटॉप.कॉम गेम खरीदना बंद करिये Stop paying for games

अभी थोड़े दिनों से हमारे बेटेलाल को कम्प्य़ूटर गेम खेलने में आनंद की आने लगा है, तो उन्होंने हमारे लेपटॉप पर कब्जा कर लिया था और बस हम ब्लॉगिंग के लिये बैठे रह जाते वो मजे में अपना गेम खेलते रहते। अब हमने उन्हें अपना डेस्कटॉप घर से लाकर दे दिया कि अब तुम मजे में गेम खेलते रहो, वो भी होमवर्क करने के बाद में। और उसमें बहुत सारे गेम हमने DOS वाले दे दिये मगर बेटेलाल बोले कि ये बहुत धीमे चलते हैं और ग्राफ़िक्स में मजा नहीं आता है कुछ अच्छे गेम्स दे दीजिये खेलने के लिये। तो हमने दुकानों पर जाकर सीडी छानीं मगर सब बड़े गेम्स थे किसी के भी पास गेम्स का कलेक्शन नहीं था।

 

फ़िर नेट पर सर्च किया गूगल महाराज में तो हमें एक साईट मिली गेमटॉप.कॉम जिसमें बहुत सारे गेम फ़्री डाउनलोड के लिये उपलब्ध हैं और बहुत सारे गेम्स ओनलाईन भी खेल सकते हैं, यहाँ पर गेम्स श्रेणियों में विभक्त हैं जिससे आप को जिस तरह का गेम चाहिये केवल वही मिलेंगे। हमने अभी तक कुल ५-६ गेम डाउनलोड किये हैं सब ठीक चल रहे हैं।

तो गेम खरीदने के लिये अब पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं।

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महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को और महाकवि कालिदास का मेघदूतम में महाकाल वर्णन..

श्रावण मास के हर सोमवार और भाद्रपद की अमावस्या तक के सोमवार को महाकाल बाबा की सवारी उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलती है, कहते हैं कि साक्षात महाकाल उज्जैन में अपनी जनता का हाल जानने के लिये निकलते हैं, क्योंकि महाकाल उज्जैन के राजा हैं। इस बार महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को निकल रही है, राजा महाकाल उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलेंगे। अभी विगत कुछ वर्षों से, पिछले सिंहस्थ के बाद से अटाटूट श्रद्धालु उज्जैन में आने लगे हैं। अब तो शाही सवारी पर उज्जैन में यह हाल होता है कि सवारी मार्ग में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है।

महाकाल बाबा की सवारी पालकी में निकलती है, सवारी के आगे हाथी, घोड़े, पुलिस बैंण्ड, अखाड़े, गणमान्य व्यक्ति, झाँकियां होती हैं। महाकाल बाबा की सवारी लगभग शाम को चार बजे मंदिर से निकलती है, और रात को १२ बजे के पहले वापस मंदिर पहुँच जाती है। महाकाल बाबा के पालकी में दर्शन कर आँखें अनजाने सुख से भर जाती हैं।

हम इस बार ३ दिन की छुट्टियों पर उज्जैन जा रहे थे और १७ को वापिस आना था, फ़िर बाद में पता चला कि १७ अगस्त की महाकाल बाबा की शाही सवारी है तो सवारी के दौरान महाकाल बाबा के दर्शन करने का आनन्द का मोह हम त्याग नहीं पाये और २ दिन की छुट्टियाँ बड़ाकर उज्जैन जा रहे हैं।

महाकवि कालिदास ने “मेघदूतम” के खण्डकाव्य “पूर्वमेघ” में महाकाल के लिये लिखा है –

यक्ष मेघ से निवेदन करता है कि तुम वहाँ उज्जयिनी के महाकाल मन्दिर में सन्धयाकालीन पूजा में सम्मिलित होकर गर्जन करके पुण्यफ़ल प्राप्त करना

अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले

स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु: ।

कुर्वन्सन्ध्याबलिपटहतां शूलिन: श्लाघनीया-

माम्न्द्राणां फ़लमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम ॥३७॥

अर्थात –

“हे मेघ ! महाकाल मन्दिर में अन्य समय में भी पहुँचकर जब तक सूर्य नेत्रों के विषय को पार करता है (अस्त होता है) तब तक ठहरना चाहिये। शुलधारी शिव की स्न्ध्याकालीन प्रशंसनीय पूजा में नगाड़े का काम करते हुए गम्भीर गर्जनों के पूर्ण फ़ल को प्राप्त करोगे।”

महाकाल बाबा की तस्वीरें देखने के लिये यहाँ चटका लगायें।

जय महाकाल बाबा, राजा महाकाल की जय हो।

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पति – पत्नि का संबंध

       पति – पत्नि जीवन रथ के दो पहिये हैं। गृहस्थी की गाड़ी सुचारु रुप से चलाने हेतु दोनों पहियों का ठीक – ठाक रहना बहुत जरुरी है। वे एक दूसरे के पूरक हैं। पति – पत्नि को आपस में सम्बन्धों को सहज एवं सुलभ बनाने के लिये एक दूसरे की भावनाओं को समुचित आदर देना जरुरी है। यदि पति – पत्नि अग्नि को साक्षी मानकर विवाह के समय की गई अपनी प्रतिज्ञाओं को याद रखें एवं उनका पालन करें तो जीवन में आनन्द ही आनन्द होगा।

            पति – पत्नि में आपस में समझबूझ तब और ज्यादा विकसित पाई जाती है जब दोनों जीवन के कठिन मार्ग से साथ में गुजरे हों, फ़िर भले ही वह कुछ भी कठिनता हो चाहे वह पारिवारिक हो या धन की। कठिन समय में एक दूसरे का हौसला बढ़ाकर वे एक दूसरे को बहुत करीब से जानने लगते हैं। कई दंपत्तियों में इस समझबूझ की कमी पाई जाती है क्योंकि उनके पास शुरु से ही सारे सुख होते हैं, जिससे वे एक दूसरे को समझ ही नहीं पाते और हमेशा एक दूसरे से दूरी बनी रहती है।

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