Monthly Archives: September 2009

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३३

भावगम्यम़् – यक्षिणी पत्नी-विरह से युक्त अपने पति की कृशता देख तो नहीं सकती थी, परन्तु अनुमान के द्वारा ही चित्र खींचा करती थी। संस्कृत साहित्य में विरह से पीड़ित के लिए विनोद के चार साधन वर्णित किये गये हैं – १. सदृश वस्तु का अनुभव, २. चित्रकर्म ३. स्वप्न

दर्शन, ४.प्रिय के अंग से स्पृष्ट पदार्थों का स्पर्श करना।


सारिका – प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं के यहाँ तथा कुलीन परिवारों में मनोरञ्ज्न आदि के लिये तोता, मैना, हंस आदि पक्षी पाले जाते थे और उनसे विरह काल में मनोरञ्जन होता था। यक्ष के यहाँ भी पालतू पक्षी थे और यक्ष विचार करता है कि उसकी प्रिया सारिका आदि के साथ बातें करके अपना समय व्यतीत करती होगी।

उद्रातुकामा – क्योंकि यक्ष-पत्नी देवयोनि की थी, इसलिये गान्धार ग्राम में गाने की इच्छा रखती थी, जबकि मनुष्य षड्ज या मध्यम ग्राम में गाते हैं। जैसा कि कहा है –
षड्जमध्यमनामानौ ग्रामौ गायन्ति मानवा:।
न तु गान्धारनामानं स लभ्यो देवयोनिभि:॥
स्वर भेद को ग्राम कहते हैं। ग्राम तीन प्रकार के होते हैं – षड्ज, मध्यम, गान्धार।

तन्त्रीमार्द्राम़् – यक्ष पत्नी कभी-कभी अपने प्रिय के नाम के चिह्नों से युक्त रचे हुए पदों के गाने की इच्छा करती होगी तथा वीणा बजाने के साथ उसे प्रियतम की स्मृति होती होगी जिस कारण आँसू आने से उसके तार भीग जाते होंगे।

मूर्च्छना – स्वरों के आरोह-अवरोह क्रम को मूर्च्छना कहते हैं। संगीतशास्त्र में सात स्वर माने गये हैं – षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत और निषाद। इन स्वरों तथा तीन ग्रामों के मेल से ये मूर्च्छना २१ प्रकार की होती है।

देहलीदत्तपुष्पै: – जिस दिन प्रियतम विदेश जाता है, उसी दिन नायिका देहली की पूजा करती है और वहाँ पुष्प रखती है कि मेरा प्रियतम इतने महीनों के लिये गया है। अत: मास बीतने पर एक पुष्प उठाकर दूसरी ओर रख देती है। उत्कण्ठा के क्षणों में वह पुष्पों को गिनती है कि अब आने के कितने महीने शेष रह गये हैं। यह वियोग के क्षणों में मन बहलाने का साधन है।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३२

गाढोत्कण्ठाम़् – विरह वेदना से उत्पन्न प्रिय या प्रिया से मिलन की उत्कट इच्छा ही उत्कण्ठा कहलाती है। उत्कण्ठा का लक्षण इस प्रकार है –
रागेष्वलब्धविषयेषु वेदना महती तु या।
संशोषणी तु गात्राणां तामुत्कण्ठां विदुर्बुधा:॥
अर्थात जिससे प्रेम हो उसके न मिलने पर मन में ऐसी वेदना होने लगती है कि जिससे शरीर सूखता जाता है, उसे उत्कण्ठा कहते हैं।

बालाम़् –  षोडशी नवयुवती को कहते हैं। स्त्रियाँ १६ वर्ष तक बाला, ३० वर्ष तक

तरुणी, ५० वर्ष तक प्रौढ़ा तथा उससे ऊपर वृद्धा कहलाती है।


शिशिरमथिताम़् – आचार्य मल्लिनाथ ने शिशिर का अर्थ शीत ऋतु लिया है। विश्व कोश में शिशिर का अर्थ पाला भी है जो कि अधिक उपयुक्त जान पड़ता है, क्योंकि पाला कमलिनी को मार देता है।

अन्यरुपाम़् – यक्ष मेघ को बताता है कि उसकी प्रिया वियोग में इतनी दुर्बल हो गयी होगी कि उसका रुप जो कि पूर्व वर्णित (तन्वी श्यामा आदि) से अत्यन्त बदल गया होगा इसलिए उसे ध्यानपूर्वक देखकर पहिचानना।

असकलव्यक्ति – जैसा कि पीछे बताया गया है कि प्रेषितभर्तृका नायिका श्रृंगार नहीं करती है। अत: यक्षिणी ने भी श्रृंगार नहीं किया होगा तथा बालों को नहीं सँवारा होगा। इस कारण लटकते हुए बालों ने उसके मुख को ढक लिया होगा, जिससे वह पूर्ण रुप से दिखाई नहीं देगा।

बलिव्याकुला – बलि का अर्थ होता है – देवताओं की आरधाना; क्योंकि यक्षिणी का पति शाप के कारण बाहर गया था इसलिए सकुशल लौट आने के लिये सम्भवत: यक्षिणी बलि कार्य करती हो।

ब्लॉगवाणी वापिस शुरु हिन्दी ब्लॉगरों को शुक्रिया अदा करना चाहिये…. धन्यवाद मैथिलीजी

आज सुबह मैं अपने ब्लॉग पर ही विचरण कर रहा था कि एकाएक ब्लॉगवाणी का कोड वापिस से नजर आ गया और फ़िर ब्लॉगवाणी साईट खोली तो वापिस से वह अपनी जगह पर अपनी नई पोस्टों के साथ हमारा मुस्कराकर अभिवादन कर रही थी।

बधाई हो ब्लॉगवाणी के संचालको आपको कि आपने हिन्दी के प्रति प्रेम और सम्मान प्रदर्शित किया और हिन्दी ब्लॉगजगत के आव्हान पर आप वापिस से ब्लॉगवाणी को ले आये। आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
एक विनम्र निवेदन है कि ऐसे बुरा न मानें यह तो समाज है और इसमें हरेक तरह के लोग होते हैं अगर गुण्डे न होंगे तो पुलिस की जरुरत ही न होगी उससे पता नहीं कितने लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ेगा। कृप्या अपना बड़्प्पन बनाये रखें।

ब्लोगवाणी का ब्लॉग पढ़ें।


कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३१

कलबतनुताम़् – यहाँ कलभ को उपमान बनाया गया है; क्योंकि कलभ और मेघ दोनों में ऊँचाई तथा वर्ण की समानता है तथा मेघ इच्छानुसार रुप धारण करने वाला है। यहाँ तनु का अर्थ शरीर न लेकर छोटा लिया गया है। बत्तीस साल की उम्र वाले हाथी के बच्चे को कलभ



कहा जाता है।

तन्वी – संस्कृत काव्यों में तनुता को सौन्दर्य माना गया है। कोमलांगी, कृशांगी आदि के लिये भी तन्वी पद प्रयुक्त होता है।

निम्ननाभि: – कामसूत्र के अनुसार गहरी नाभिवाली स्त्री में कामवासना का आधिक्य होता है।

चकितहरिणीप्रेक्षणा – मुग्धा नायिका की आँखें डरी हुई हरिणी के समान होती हैं। आचार्य मल्लिनाथ ने इस पर टीका करते हुए लिखा है कि एतेनास्या: पद्मिनीत्व व्यज्यते। पद्मिनी का लक्षण इस प्रकार है –
भवति कमलनेत्रा नासिका क्षुद्ररन्ध्रा अविरलकुचयुग्मा चारुकेशी कृशाड़्गी।
मृदुवचनसुशीला गीतवाद्यानुरक्ता सकलतनुसुवेशा पद्मिनी पद्मगन्धा॥
स्त्रियों के चार भेद माने गये हैम – पद्मिनी, हस्तिनी, शड़्खिनी और चित्रिणी।

परिमितकथाम़् – पतिव्रता स्त्री पति के दूर चले जाने पर श्रृंगार आदि छोड़ देती है तथा आकर्षित करने वाले वस्त्रों का भी त्याग कर देती है और कम बोलती है। कालिदास की यह नायिका भी पतिव्रता हैं और इसको प्रेषितपतिका नायिका कहा है। याज्ञवल्क्य स्मृति में इस प्रकार की नायिका के लिए क्रीड़ा, हास्य आदि का निषेध किया है –
क्रीड़ां शरीरसंस्कारं स्माजोत्सवदर्शनम़्।
हास्यं परगृहे यानं त्यज्येत़् प्रोषितभर्तृका॥
चक्रवाकीम़् इव – यह प्रसिद्ध है कि चकवा – चकवी दिन के समय साथ साथ रहते हैं, परन्तु रात्रि में एक – दूसरे से बिछुड़ जाते हैं। रात्रि वियोग का कारण किसी मुनि का शाप बताया गया है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वियोग का कारण है – इन्होंने सीता जी के वियोग में रोते हुए रामचन्द्र जी का उपहास किया था। संस्कृत साहित्य में इनका दाम्पत्य प्रेम आदर्श माना जाता है।

ओहो ब्लॉगवाणी बंद हो गया पर हमारी क्या गलती थी….

                   आज सुबह उठकर ब्लॉगवाणी साईट खोली, नये हिन्दी चिट्ठे पढ़ने के लिये पर ये क्या ये तो अलविदा का सन्देश ब्लॉगवाणी के तंत्रजाल पर। कल ही किसी महाशय की पोस्ट पढ़ी थी जिसमें ब्लॉगवाणी  की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाये गये थे, पोस्ट पढ़कर बुरा तो लगा कि इन महाशय को शायद ब्लॉगवाणी का हिन्दी चिट्ठों के प्रति योगदान पता नहीं होगा इसलिए यह उसके और उसके पीछे जुड़ी टीम की मेहनत को नजर अंदाज कर रहे हैं। ब्लॉगवाणी साईट के मालिकों ने कभी भी इसका उपयोग अपने व्यावसायिक गतिविधियों के लिये नहीं किया, केवल हिन्दी के प्रति प्रेम और हिन्दी के प्रति सम्मान और जन जन ब्लॉगरों के बीच में से एक लेखक का निकालना ही उनका यह हिन्दी एग्रीगेटर चलाने का उद्देश्य था। पर कुछ नासमझ हमारे ही भाई बंद लोग उनकी गतिविधियों के पीछे पड़ गये जैसे वे उनके घर की मुर्गी हो जिसे कुछ भी बोल सकते हों या उनका चिट्ठे को कुछ व्यावसायिक नुकसान हो रहा हो।
                अब इन नासमझ लोगों को क्या कहें कि वाणी से कुछ भी किया जा सकता है अगर मीठी होगी तो सब आपके पास आयेंगे और बुरी होगी तो सब दूर भागेंगे। केवल शब्द की जादूगरी से बनती हुई बात को बनाया जा सकता है और बिगाड़ा भी जा सकता है। मेरा ब्लॉगवाणी के संचालकों से विनम्र निवेदन है कि इन जैसे ब्लॉगरों को नजरअंदाज कर अपने हिन्दी के प्रति प्रेम और सम्मान को बनाये रखें और इस बेहतरीन हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटर को शुरु कर इसे इतिहास का पन्ना न बनने दें।

alvidablogvaani

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३०

रक्ताशोक: – अशोक दो प्रकार का होता है – (१) श्वेत पुष्पों वाला, (२) लाल पुष्पों वाला। रक्ताशोक का प्रयोग यहाँ साभिप्राय है; क्योंकि रक्ताशोक कामोद्दीपक होता है; अत: प्रेमी लोग अपने घरों में रक्ताशोक को लगाते हैं। कवि प्रसिद्धि के अनुसार किसी सुन्दर युवती के बायें पैर के प्रहार से अशोक वृक्ष में पुष्प निकलते हैं।

केसर: – अशोक वृक्ष की तरह केसर वृक्ष को भी कामोद्दीपक
बताया गया है। यह देखने में सुन्दर होता है तथा इसकी गन्ध भी अच्छी होती है। कवि प्रसिद्धि के अनुसार यह केसर का वृक्ष जब युवतियाँ अपने मुख में मदिरा भरकर इसके ऊपर कुल्ला करती हैं तभी विकसित होता है।

कुरबक – कुरबक वसन्त ऋतु में खिलने वाला गुलाबी रंग का पुष्प है। कवि प्रसिद्धि के अनुसार यह सुन्दर युवती के आलिंगन से विकसित होता है।

दोहद – दोहद का अर्थ गर्भिणी स्त्री की अभिलाषा या उसका इच्छित पदार्थ होता है। गौण रुप से उन वस्तुओं को भी दोहद कहा जाता है जिनसे वृक्ष आदि पर पुष्पादि आते हैं। कुछ स्थलों पर दोहद के स्थान पर दौर्ह्र्द अथवा दौह्र्द (द्वि+ह्रदय)  का प्राकृत रुप है, जो संस्कृत काव्यों में अपना लिया गया है।

वासयष्टि: – घरों में पक्षियों के बैठने के लिए एक लम्बा डण्डा तथा उसके ऊपर कुछ फ़ैली हुई छतरी सी होती है, उसे वासयष्टि कहते हैं। यक्ष के घर में यह वासयष्टि स्वर्णनिर्मित थी। उसको मजबूती प्रदान करने के लिए उसकी जड़ों में चारों ओर मरकत मणियों का चबूतरा बनाया गया था।

लिखितवपुषौ – शड़्ख और पद्य दोनों ही मांगलिक माने जाते हैं, इस कारण प्राय: लोग अपने घर के दरवाजे पर इन्हें बना लेते हैं। यक्ष के घर के द्वार के दोनों ओर शड़्ख और पद्य के पुरुषाकार चित्र बने हुए थे।

शड्खपद्यौ – आचार्य मल्लिनाथ ने शड़्ख और पद्य को कुबेर की निधियों के नाम माने हैं। ये निधियाँ नौ मानी जाती हैं – महापद्य, पद्य, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व। परन्तु यहाँ शड़्ख और पद्य का अभिप्राय शंख और कमल से भी हो सकता है। यद्यपि कमल अर्थ में पद्य शब्द का प्रयोग नपुंसकलिड़्ग में होता है, लेकिन यह पुंल्लिड़्ग में भी होता है।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – २९

दिनकरहयस्पर्धिन: – (सूर्य के घोड़ों से प्रतिस्पर्धा करने वाले) अलकापुरी के घोड़े पत्तों के समान हरे वर्ण वाले हैं। क्योंकि सूर्य के घोड़े भी हरे वर्ण के माने जाते हैं, अत: अलकापुरी के घोड़े रंग में भी तथा वेग में भी सूर्य के घोड़ों से स्पर्धा करते हैं।

प्रत्यदिष्टाभरणरुचय: – आभूषणों की अभिलाषा छोड़े हुए । वीर योद्धाओं का आभूषण शक्तिशाली शत्रु के प्रहार से हुए घाव के निशान होते हैं, स्वर्ण आदि के आभूषण नहीं। अलका के योद्धा रावण की तलवार
के प्रहार सह चुके हैं, इसलिए उनकी आभूषणों की इच्छा समाप्त हो गयी है। पौराणिक आख्यान के अनुसार कुबेर विश्रवा का इडविडा से उत्पन्न पुत्र था। इस तरह वह रावण का अनुज था। कहा जाता है कि एक बार रावण ने कुबेर पर आक्रमण करके उसका पुष्पक विमान तथा कोष छीन लिया था, अत: उस युद्ध में अलकापुरी के योद्धा रावण की तलवार के प्रहार सह चुके थे।

चन्द्रहास – चन्द्रहास रावण की तलवार का नाम था, क्योंकि वह तलवार चन्द्र का उपहास करती थी अर्थात चन्द्र से अधिक चमकने वाली थी, इसलिए उसे चन्द्राहास कहते थे।

भयात़् – शिव पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को अपने तृतीय नेत्र से भस्म कर दिया था। तभी से उसे अनड़्ग: कहते है और वह भगवान शिव से भयभीत रहता है तथा उनके समक्ष अपने धनुष आदि को धारण नहीं करता। इसलिए अलका में शिव की उपस्थिती से उसे भस्म होने का निरन्तर भय बना रहता है।

वापी – बावड़ी, जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हों । काव्यों में धनिकों के गृहों में एवं राजभवनों में इस प्रकार की वापी का प्राय: उल्लेख मिलता है।

इन्द्रनीलै: – यह नीले रंग का एक बहुमूल्य पत्थर होता है। इसे नीलम भी कहते हैं।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – २८

गत्युत्कम्पात़् – कमिनियाँ अपने प्रियतमों के पास अभिसार के लिये शीघ्रतापूर्वक जाती हैं, क्योंकि एक तो रात्रि का भय दूसरे किसी को उनके जाने का पता न चल जाये। इसलिये शरीर के हिलने-डुलने से उनके केशपाश में लगे अलंकरण आदि मार्ग में गिर जाते हैं, जिससे यह सूचित हो जाता है कि अभिसारिकाएँ इस मार्ग से गयी हैं।

पत्रच्छेदै: – पत्तों के टुकड़ों से – इससे सिद्ध होता है कि स्त्रियाँ प्राचीन काल में अपने श्रंगार प्रसाधन में फ़ूल-पत्तियों का उपयोग करती थीं।

कामिनीनाम़् – साधारणत: तरुणी और सुन्दर स्त्री को कामिनी कहते हैं। किन्तु यहाँ पर अतिशय काम से पीड़ित स्त्री अर्थ ग्राह्य है, क्योंकि कामश्चाष्टगुण: स्मृत: स्त्रियों का काम वेग पुरुषों की अपेक्षा आठ गुना होता है, चाणक्य की इस उक्ति के अनुसार स्त्रियों को कामिनी कहते हैं। इसलिए इसका अर्थ यहाँ अभिसारिकायें हैं। अभिसारिका दो प्रकार की होती हैं, अपने पास प्रियतम को बुलाने वाली और दूसरी स्वयं प्रियतम के पास जाने वाली, यहाँ पर दूसरी प्रकार की अभिसारिका दृष्टिगोचर होती है।

सकलमबलामण्डनम़् – (सम्पूर्ण स्त्रियों की प्रसाधन सामग्री को) भाव यह है कि अकेला कल्पवृक्ष ही वहाँ की स्त्रियों के लिये समस्त प्रसाधन सामग्री प्रस्तुत कर देता है। यह प्रसाधन सामग्री चार प्रकार की बतायी है। रसाकर के अनुसार –
कचधार्यं देहधार्यं परिधेयं विलेपनम़्।
चतुर्धा भूषणं प्राहु: स्त्रीणां मन्मथदैशिकम़्॥
अर्थात कचधार्य, देहधार्य, परिधेय और विलेपन – ये चार प्रकार की है। पुष्पोद़्भेदम़् (कचधार्य) [केशों में धारण करने योग्य], मधु तथा भूषणानां विकल्पान (देहधार्य) [शरीर पर धारण करने योग्य], चित्रं वास: (परिधेय) [पहने जाने वाला], लाक्षारागम़् (विलेपन) [लेप किया जाने वाला]। इस प्रकार ये स्त्रियों के काम के उपदेशक चार प्रकार के अलंकार होते हैं।

एक कार्टून – हाँ जी मैं एक साधारण सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हूँ ।

आज मुझे एक चेन ईमेल मिला जिसमें यह बहुत ही अच्छा कार्टून मिला है आप भी देखिये –

चित्र बड़ा करने के लिये चित्र पर क्लिक करें।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – २७

नीवीबन्धोच्छ्वसितशिथिलम़् – अधोवस्त्र की गांठ के खुल जाने के कारण ढीला। नीवी का अर्थ स्त्रियों के नीचे के वस्त्र की गांठ होता है तथा नीवी अधोवस्त्र को भी कहते हैं।

बिम्बाधराणाम़् – बिम्ब फ़ल के समान (लाल) ओष्ठ वाली स्त्री को बिम्बाधरा कहते हैं। अथवा प्रियतम के बार-बार चुम्बन
करने से अथवा दशनक्षत करने के काराण बिम्ब फ़ल के समान जिनके लाल ओष्टः हैं, वे बिम्बाऽधरा कहलाती हैं, अथवा शब्दार्णव के अनुसार स्त्री विशेष को बिम्बाऽधरा कहते हैं –
विशेषा: कामिनी कान्ता भीरुर्बिम्बाऽधराड़्गना।
विफ़लप्रेरणा – निष्फ़ल वेग वाली – अभिप्राय यह है कि जब रति क्रीड़ा के लिए प्रियतम अपनी प्रेमिकाओं के वस्त्र उतारते हैं तो वे प्रेमिकाएँ उनके सामने नग्नावस्था में लज्जा के मारे शर्म से गढ़ जाती हैं; अत: वे मणियों के प्रज्ज्वलित दीपकों को बुझाने का प्रयास करती हैं और उनके ऊपर मुट्ठी भरकर चूर्ण फ़ेंकती हैं, किन्तु वे दीपक नहीं बुझते; क्योंकि वे तेल के दीपक नहीं हैं वे तो मणिमय दीपक हैं। इस कारण उनका प्रयास निष्फ़ल रहता है। इस प्रकार यहाँ प्रेमिकाओं का मुग्धापन व्यञ्जित होता है, वे मुग्धा भोली-भाली नायिकाएँ हैं, जो प्रियतम के सहवास से लजाती हैं।

सततगतिना – निरन्तर गति करने वाली, वायु सदा संचरण करती रहती है; अत: निरन्तर गतिशील रहने के कारण वायु को सततगति कहते हैं।

विमानप्रभूमी – विमान – सात मंजिलों वाले ऊँचे भवनों को कहते हैं, अग्रभूमि ऊपर का भाग, छत, छज्जा, अटारी। यहाँ अग्रभूमि का अभिप्राय अटारी या सबसे ऊपर की मंजिल है।