Monthly Archives: February 2010

होली अपने बेटे के साथ -[ कुछ मेरे बारे में ]- यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ – मेरी कविता …. विवेक रस्तोगी

यह होली मेरी दूसरी होली होगी जो मै अपने बेटे के साथ मनाऊँगा| इसके पहले होली हमने मनाई थी साथ में ३ साल पहले आज मेरा बेटा ५ साल का हो चुका है| इस वर्ष पता नहीं कि वह होली खेल भी पायेगा कि नहीं क्योंकि अभी अभी बुखार से उठा है पिछले २०-२५ दिनों से उसकी तबियत ज्यादा ही खराब थी| अभी भी उसकी तबियत ठीक नहीं है और मुझे उसकी बहुत ही चिंता हो रही थी| पर मैं इधर चेन्नई मैं था और मजबूरी का मारा इधर ही काम कर रहा था, सोच रहा हूँ कि ऐसा कब तक चलेगा, कब तक नौकरी करता रहूँगा और इस तरह घूमता रहूँगा |

बस अब मैं सेवानिवृत्ति चाहता हूँ, और अपना जीवन आध्यात्मिक गतिविधियों में समर्पित करना चाहता हूँ | अपने खुद के लिए कुछ करना चाहता हूँ कब तक इन सांसारिक मोह माया के पीछे भागता रहूँगा|

यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ
आओ देखो अभी तक कैसे
मैं जी रहा हूँ
मेरे जीने के लिये
और भी मकसद हैं
केवल भूख मारना ही नहीं
और भी बहुत कुछ जो
मैं पाना चाहता हूँ
देना चाहता हूँ |

खैर अभी तक जो सोचा वो नहीं हुआ अब देखते हैं शायद हो जाये और हर वर्ष होली अपने बेटे के साथ खेल पायें| बाबा महाकाल के साथ होली खेल पायें और मन में बड़ी इच्छा है कि बांके बिहारी जी के यहाँ खेल पायें होली |

तो ये था अभी का चिट्ठा, अब शुरू होगा धमाल “होली” का |

तुम्हारा इंतजार है …. कि तुम आओगे….मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

तुम्हारा इंतजार है

अभी भी,

कि

कहीं से तुम आओगे,

और मुझसे मेरा सब कुछ,

चुरा कर ले जाओगे,

मेरी नींद,

मेरा चैन,

मेरा जीवन,

मुझे सुख दोगे,

मुझे ज्ञान दोगे,

मुझे प्यार दोगे,

मुझे अपने में समा लोगे,

अपने आगोश में,

ले लोगे,

हे बांके बिहारी !!,

इंतजार हे उस “क्षण” का,

जब तुम मुझे अपने यहाँ,

“फ़ाग” का मौका दोगे ।

हिन्दी ब्लॉगजगत की सदाबहार टिप्पणियां बतायें और कुछ यहाँ पायें।

आज ज्ञानदत्तजी का बज्ज आया तो कुछ अच्छा मसाला मिल गया पोस्ट बनाने के लिये।
कृप्या जिन लोगों की टिप्पणियों को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है, वे बुरा न माने कि हमारी टीपणी को सदाबहार करार क्यों दिया जा रहा है।
और कोई भी सज्जन यहाँ से टीपणी को कॉपी पेस्ट करने की धृष्टता न करे, कोई नई टीपणी टीपे जो कि यहाँ पर उपलब्ध न हो। 🙂
बहरहाल हम ज्ञानदा की बज्ज ऐसी ही पेस्टिया रहे हैं, बिना उनकी इजाजत के पब्लिक कन्टेन्ट मानते हुए –
Gyan Dutt Pandey – Buzz – Public

हिन्दी ब्लॉगजगत की सदाबहार टिप्पणियां बतायें। कुछ मैं बताता हूं –
बधाई!
Nice
आपका लेखन अनुकरणीय है।
बहुत बढ़िया पोस्ट; धन्यवाद।
… !!!

2 people liked this – shreesh pathak and Arvind k Pandey

Vivek Rastogi – बहुत सुंदर पंक्तियाँ…..
बहुत बढ़िया उम्दा रचना …
बढ़िया जानकारी.
आभार..
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha…..
रोचक संस्मरण।
आभार जानकारी का
अच्छी जानकारी!!
जानकारी के लिए धन्यवाद।
बहुत सुंदर जानकारी
abhi to itni hi mili hai, ab baaki baad me batate hai..Edit4:38 pm

Sanjeet Tripathi – sehmat
;)4:50 pm

sanjay bengani – यह तो कुछ भी नहीं….अगले की लिखी कविता मत पढ़ो और आँखे मूँद कर दो एक लाइन कॉपी-पेस्ट कर दो….हो गई टिप्पणी :)5:06 pm
Prashant Priyadarshi – “Very nice” :P5:23 pm

Pankaj Upadhyay – meri fav – ‘nice’ aapke blog par kaafi time dekhi hai…aur kavitayon mein Sanjay Bengani ji se agree…
‘aap bahut achha likhte hain..mere blog
http://pupadhyay.blogspot.com par bhi padharen ;)10:18 pm

Sanjeeva Tiwari – मित्रों और वाक्य देंवें, मुझे सेव कर उपयोग करना है, प्यासे ब्लागरों के लिये टिप्पणियॉं गंगाजल है इसका एक बून्द भी बुझते ब्लागरी पोस्टों मे जान डाल देती है. :)10:25 pm
Pankaj Upadhyay – ’महाराज आपका जवाब नही’…’क्या कह दिये गुरु’…,’ओह! अच्छा’…और एवरग्रीन ’बधाई’ :P10:32 pm

व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन में “पापा कहते हैं” की समस्या (“Papa Kehte Hain” problem in Personal Finance)

    तो मैं एक पाठक से बात कर रहा था और मुझे पता चला कि उसके पति की कमाई का निवेश उनके पापा द्वारा किया जाता है। इसका कारण जानने के लिये मैं बहुत उत्सुक था और जो सबसे बड़ा कारण मुझे पता चला वह यह कि उसके पति को निवेश और और व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन में कोई रुचि नहीं है, और इसके लिये उसने अपने पापा को निवेश का निर्णय करने के लिये दे दिया है। तो इनके लिये इनके पापा म्यूचुअल फ़ंड, एलाआईसी, पीपीएफ़ और अन्य आयकर के लिये बचत वाले उत्पाद, साथ ही वह बचत भी जो आयकर बचत का हिस्सा नहीं है, ध्यान रखते हैं। उन्होंने कोई चाईल्ड यूलिप योजना भी ली है अपने पोते के भविष्य की “सुरक्षा” के लिये। हम देखते हैं ये बात कितनी गंभीर है और हमारे देश में कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है।

“पापा कहते हैं” के कारण उत्पन्न होने वाली समस्यायें

  • अनुपयुक्त मनोविज्ञान: जैसे कि हमने पहले चर्चा की, आज की दुनिया में निवेश के निर्णय बेहतर तरीके से लें और उसके लिये बेहतर सोच बनानी होगी। पापा के तरीकों के दिनों की तुलना में, आप को ज्यादा बेहतर तरीके से नये वित्तीय उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिये। तो आजकल पापा साधारणतया: अच्छे से पैसे का प्रबंधन सही तरीके से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें आजकल के बेहतर वित्तीय उत्पादों का पता नहीं होता है, और उनका निवेश का दृष्टिकोण वही पुराना होगा।

 

  • निवेश और दस्तावेजों के बारे में जानकारी न होना: शायद यह आपको भी पता नहीं होता होगा कि आपके माता पिता आपके लिये कहाँ निवेश कर रहे हैं, और वे आपको इस बारे में बता नहीं रहे हों, या आपको बताना भूल गये हों कि निवेश के दस्तावेज कहाँ रखे हैं, जब किसी वित्तीय उत्पाद की परिपक्वता होती है, और ये सब होता है, दिखने में तो छोटी सी समस्या लगती है लेकिन यही बहुत बड़ी समस्या हो सकती है जब कुछ बुरा होता है।

 

  • स्वनिर्भरता न होना और इसलिए निवेश की जानकारी का अभाव होना: यह शब्द बहुत अच्छे नहीं लगेंगे परंतु मेरा विश्वास कीजिये, आपके माता पिता एक दिन चले जायेंगे और एक दिन सब कुछ आपको ही देखना पड़ेगा और उस समय आपके पास कोई जानकारी नहीं होगी, आपके लिये वह बहुत ही भयानक स्थिती होगी। आपको पता ही नहीं होगा कि निवेश कैसे करना है, आपको केवल यह पता है कि निवेश किया है पर यह नहीं कि बीमा कहाँ से खरीदा है, और वह कब परिपक्व हो रहा है इत्यादि। आपके लिये एक तरह से नयी शुरुआत होगी। तब आपको बहुत दुख होगा कि आप क्यों हमेशा अपने मातापिता के ऊपर निर्भर रहे। यह अच्छी बात नहीं है।

एक महत्वपूर्ण सवाल जो आपको पूछना है

    आज की दुनिया में ज्यादातर पापाओं या बुजुर्गों को निवेश कैसे किया जाये कहाँ किया जाये, इसका निर्णय करना ही नहीं आता है। उनके दौर की तुलना में अब ये बिल्कुल नई वित्तीय उत्पादों की दुनिया है। उन्हें बहुत ज्यादा कुछ पता नहीं होता है कि कौन सा वित्तीय उत्पाद का उपयोग करना चाहिये। हमारे पापा, दादा और बुजुर्ग के समय वित्तीय बाजार बिल्कुल अलग था, उस समय उन लोगों के पास एलआईसी पोलिसी और सावधि जमा (FD) के अलावा ओर कोई विकल्प ही नहीं था। शिक्षा बहुत ही सस्ती थी, और हमारी इच्छाएँ भी सीमित थीं, और लोग अपनी सीमित दुनिया में खुश रहते थे। अब सब बदल गया है और हम आज बिल्कुल ही अलग दुनिया में हैं जिससे हम पर दबाब बड़ता जा रहा है, जिंदगी से अधिक उम्मीदें हैं, शिक्षा के लिये लाखों चाहिये, सबसे महँगा है बच्चे की शिक्षा, बड़ों को तो भूल ही जाइये। लोग अब बाहर होटल में ज्यादा खा रहे हैं, लोग ज्यादा खर्च कर रहे हैं, और ज्यादा चीजें चाहिये और यह सब प्राप्त करने के लिये हमें बहुत ही बुद्धिमानी से काम लेने की जरुरत है। सावधि जमा और एन्डोमेन्ट पोलिसी एक दिन आपको वित्तीय रुप से धोखा देंगी और आपको पता भी नहीं चलेगा।

    ज्यादातर अभिभावकों को आजकल समझ में ही नहीं आता है कि इस नई वित्तीय दुनिया में कहाँ निवेश करें, उनके लिये यह निर्णय लेना बहुत ही दुश्कर हो गया है। उनके निर्णय के ऊपर निवेश करना आज की वित्तीय दुनिया में बहुत महँगा पड़ सकता है। स्पष्टत: वे जो भी निवेश कर रहे हैं, उनसे पूछ लेना चाहिये और उसका मूल्यांकन कर लेना चाहिये।

    वैसे आप अपने निवेश का निर्णय लेने का अधिकार पापा को क्यों दे रहे हैं ? इसका क्या कारण है ? केवल इसलिये कि आप उनका सम्मान करते हैं और क्योंकि वह आपके परिवार में वे सबसे बड़े हैं और उन्होंने आप से ज्यादा दुनिया देखी है ? तो आप क्या सोचते हैं कि इससे वे आपसे या किसी ओर से ज्यादा अच्छे से निवेश के निर्णय ले सकते हैं ? यह सही है न !! हो सकता है कि यह पूरी तरह से उचित नहीं हो, सम्मान और अनुभव अपनी जगह है, लेकिन केवल इन दो मानदंडों के कारण उनको अपने निवेशों का निर्णय करने का अधिकार देना बिल्कुल ठीक नहीं है । यह खतरनाक भी हो सकता है।

आखिरी परिदृश्य

   दूसरी ओर, हम में से कई के पापा और बुजुर्ग रिश्तेदार वास्तव में बहुत ही अच्छे हैं, जो कि सीधे शेयर निवेश के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं, वित्तीय योजनाओं को आज के परिवेश के मुताबिक समझते हैं, जानते हैं और आज के परिवेश के मुताबिक काफ़ी अच्छा अनुभव भी है, हमेशा उचित यही है कि निवेश के पहले उनकी मदद लें या कम से कम उनका मार्गदर्शन तो ले ही लें। अंत में आपको निर्णय लेना है कि आपके अभिभावक आपके निवेश के लिये सही निर्णय ले रहे हैं या नहीं ? इसक व्यक्तिगत तौर से मूल्यांकन करना ही चाहिये।

क्या आपके साथ ऐसा हुआ है ? क्या आपके पास ऐसा कोई है जो इस तरह की समस्याओं से गुजर रहा हो, कृपया अपने व्यक्तिगत अनुभव और विचारों को बतायें।

यह आलेख मूलत: http://www.jagoinvestor.com पर मनीष चौहान द्वारा लिखा गया है, और यह इस आलेख का हिन्दी में अनुवाद है।

उलझनें जिंदगी की बढ़ती जा रही हैं …. मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

इन उलझनों से निकलना चाहता हूँ,

तुम्हारे पास आकर तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ,

उलझनें जिंदगी की बढ़ती जा रही हैं,

उलझनों में जिंदगी फ़ँसती जा रही है,

ये तो बिल्कुल मकड़जालों सी हैं,

जितना निकलने की कोशिश करो,

उतने ही जाल कसते जा रहा हैं,

जहर की तासीर बढ़ती जा रही है,

जलन महसूस कर रहा हूँ,

पर इससे निकलने की राह,

कठिन नजर आ रही है,

ऐसे दौर जीवन में आयेंगे ही,

और आते ही रहेंगे,

इन दौरों से सब अपने अपने तरीके से,

निपटते ही रहेंगे,

पर उलझनें कभी कम न होंगी,

जहर की तासीर कम न होगी,

बड़ती हुई तपन कम न होगी,

जीवन की कठिनाई कम न होगी,

उलझनों से उलझ कर ही सुलझा जा सकता है,

जहर के तासीर को कम किया जा सकता है,

तपन को शीतलता में बदला जा सकता है,

कठिनाईयाँ जीवन की सरल हो सकती हैं,

बस अगर तुम पास हो तो,

ये सब अपने आप सुलझ सकता है।

वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

    ऋण या गृह ऋण के साथ क्या कभी आपको किसी ने यूलिप खरीदने पर मजबूर किया है ? आजकल भारत के वित्तीय बाजार में यह अनैतिक बिक्री जोरों पर है। आजकल बहुत सारे लोग ये शिकायत करते हैं कि कई कंपनियाँ बड़े ऋण के साथ या कुछ और बड़ा ऋण लेने पर उनके कबाड़ा उत्पाद जैसे कि एन्डोमेन्ट योजना या यूलिप (जिसमें ज्यादा कमीशन मिलता है) बेचती हैं, जहाँ यूलिप की छोटी सी रकम के लिये कहा जाता है “ठीक है, इतनी बड़ा ऋण लिया है फ़िर छोटी सी चीज के लिये क्यों सोच रहे हैं”। पर यह सही नहीं है, इससे आम आदमी का विश्वास टूट रहा है, और यह सब नियमों के खिलाफ़ हो रहा है। चलो कुछ वास्तविक जीवन के मामले देखते हैं –

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को ऋण स्वीकृति के साथ बेचना
    मुझे एक योजना लेनी थी, वो भी बिना जानकारी के, कि उस योजना में क्या है और वह क्या योजना है, जैसा कि बार्कलेज फ़ायनेंस कंपनी ने कहा कि कर्ज के अनुमोदन के लिये यह योजना लेना अनिवार्य है, पता नहीं कि यह सब कितना सही है। लेकिन मेरे पास समय नहीं था, मैं पहले ही काफ़ी देरी कर चुका था, इसलिये मैंने चुपचाप ले लिया।

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को गृह ऋण के साथ बेचना
    मैंने सोचा कि भारतीय स्टेट बैंक जैसे बैंक अपने नियमों पर सीधे अमल करेंगे। पर यहाँ से ऋण लेने पर मुझे बहुत ही मुश्किलात का अनुभव हुआ।

ऋण अनुमोदन करने के पहले के सपने –
    लोन दिलाने वाला एजेंट (हिन्दी में दलाल, शायद सुनने में अच्छा न लगता हो) जो मेरे कार्यालय में ही कार्य करता है, उसे ऋण के नियम और शर्तों के बारे में कुछ पता ही नहीं है। वह एसबीआई का सेवानिवृत्त अधिकारी है और अपनी पहचान का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए ऋण दिलवा देता है। एक दिन वह मुझसे बोला कि मैंने जो ऋण दिलाने के लिये सेवाएँ दी मुझे उसका भुगतान(Service Charges) तो कीजिये (मैं तो स्तब्ध रह गया)| शायद उसके द्वारा मेरे ऋण लेने पर बैंक ने कुछ न कुछ फ़ीस का भुगतान किया ही होगा। मैंने उसे कुछ जरुरी जमानती (Gurantor) संबंधी कागजात दिये थे, जो कि फ़ाईल में नहीं थे। शायद उसने खो दिये थे, जितनी राशि के लिये मैंने ऋण का आवेदन किया था, ऋण अनुमोदन के दौरान ही मैंने अपनी ऋण राशि कम कर दी। जब मेरा ऋण अनुमोदित हुआ तो मैंने पाया कि १.९ लाख का अतिरिक्त ऋण मुझे मंजूर किया गया है और ऋण राशि बड़ा दी गई है। मैंने उनके द्वारा प्रस्तावित बीमा सुरक्षा ऋण के लिये लेने से मना कर दिया क्योंकि मैंने प्रतिवर्ष के आधार पर कवर करने की योजना बनाई थी। मैंने इसके लिये प्रबंधक से चर्चा की और वह इसको हटाने पर राजी भी हो गये।
    जरुरी बात, जब आप ऋण के कागज पर हस्ताक्षर कर रहे हों तो जमानती को हमेशा वहाँ होना चाहिये। मैंने अपने जमानती को सुबह के समय में अपने साथ लेकर यह कार्य सफ़लतापूर्वक किया।

जबरन भारतीय स्टेट बैंक का ऋण के साथ बीमा बेचना
    मैंने देखा कि बीमा सुरक्षा को हटाया नहीं गया है और एसबीआई अधिकारी उसे हटाने को सहमत भी नहीं थे जबकि मैंने उनसे यह भी कहा कि मैं एसबीआई का बीमा खरीद लूँगा। मुझे बताया गया कि फ़िर मुझे वापस से उसी शाखा में जाना पड़ेगा जहाँ ऋण का अनुमोदन किया गया था और फ़िर बैंक प्रबंधक से स्वीकृत करवाना पड़ेगा और फ़िर स्वीकृति के लिये वापिस से बैंक के ऋण प्रोसेसिंग केन्द्र पर जाना होगा। और मैंने स्वीकृत करने वाले अधिकारी और मुख्य प्रबंधक को बहुत मनाया, और केवल एक साल का बीमा सुरक्षा तभी उसी समय खरीदने को तैयार हो जाने पर मैं उनको मनाने में कामयाब हो गया।
    इसके अलावा, मुझे बताया गया था कि इस वर्ष मेरे ऋण का ब्याज ८ प्रतिशत रहेगा (मैं खुश था कि मैंने भारतीय स्टेट बैंक से ऋण लिया था), लेकिन बाद में मुझे बताया गया कि मेरा ऋण अगले ४ वर्षों के लिये ९.७५ प्रतिशत की दर से स्वीकृत हुआ है। किसी ने मुझे इस नियम के बारे में बताया तक नहीं था कि ८ प्रतिशत वाली योजना के लिये मुझे अलग से अनुमोदन करना होगा। मैंने इस बारे में क्लर्क से लेकर प्रबंधक तक सबसे पूछा पर किसी को इस नियम के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं थी कि इसके लिये अलग से अनुमोदन कर स्वीकृति लेनी थी, पर अब मेरे पास हस्ताक्षर करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं था। इन विषम परिस्थितियों में, मैंने सोचा कि ब्याजदर कुछ ज्यादा है पर फ़िर भी मैं अगले ४ वर्ष के लिये ९.७५ प्रतिशत ब्याज दर पर फ़ँस चुका था।
    खैर, मुझे बैंक अधिकारियों की कार्य करने की गति और अपने पेशे के प्रति जानकारी से संतुष्टि तो थी, पर फ़िर भी मुझे महसूस हो रहा था कि ऋण के नियम और शर्तों में और पारदर्शिता लानी चाहिये।
    क्या शिक्षा मिलती है इस घटनाक्रम से – ऋण के कागजात पर हस्ताक्षर करने के पहले सभी नियमों और शर्तों को ध्यान से पढ़ लो और अगर किसी भी नियम या शर्त समझ में नहीं आ रहा तो वहीं अधिकारी से उसके बारे में पूछ लें और अगर जब तक जबाब नहीं मिलता तब तक संतुष्ट भी नहीं होना चाहिये। निजी एवं सरकारी बैंकें सभी के अपने अपने नियम और शर्तें होती हैं, और वहाँ उनको बताने वाला कोई नहीं होता है।

एक और मामला जबरन अपने वित्तीय उत्पाद बेचने का, ऋण हस्तांतरण के साथ
    मैंने एक और मामला देखा है जिसमें एक आदमी अपना गृहऋण (आईसीआईसी बैंक) पूना से दिल्ली स्थानान्तरित करवाना चाहता था, और केवल इसके लिये उसे जबरदस्ती बैंक के अधिकारियों द्वारा यूलिप योजना लेने को मजबूर किया जा रहा था, जिससे उसके कागजी कार्यवाही में मदद मिलती मतलब जल्दी कर दिया जाता, नहीं तो उसका काम अटक जाता। आखिरकार, उसने दिल्ली ब्रांच में आग्रह किया, तो उसका काम आसानी से हो गया। तो इस मामले में बैंक अधिकारी ऋणी पर अनुपयुक्त वित्तीय उत्पाद लेने के लिये दबाब डाल रहे थे।

निष्कर्ष
    इन दिनों वित्तीय संस्थाओं में यह कृत्य हो रहे हैं, ये सब भ्रष्टाचार का ही एक रुप है। ॠण देने वाले सोच रहे हैं कि ऋण एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संकट की बात होती है आम आदमी के लिये, इसको आसानी से देने के लिये वे लोग अपने घटिया वित्तीय उत्पाद जबरन लेने को मजबूर करते हैं, वैसे भी बैंक वाले ये सोचते हैं कि भारत में लोग अन्य बातों से पहले ही बहुत दुखी और परेशान हैं, उसमें वे कुछ नहीं कर सकते हैं। आमजन पहले थोड़ा बहुत पूछेगा फ़िर आखिरी में अपना सब्र खोकर उनका घटिया वित्तीय उत्पाद जो कि जबरन ॠण के साथ बेचा जा रहा है ले लेगा, और यही होता भी है। लेकिन अपने साथ ऐसा मत होने दीजिये । अपनी आवाज उठाईये, सफ़ाई मांगिये, नियम में ऐसा कहाँ लिखा है देखिये, उन्हें शिकायत करने की धमकी देकर डराईये और अपनी आवाज को बैंकिग ओम्बड्समैन एवं उपभोक्ता अदालत तक ले जाईये, और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि थोड़े समय के पश्चात जो जतन आपने किये हैं उससे सुधर जायेंगे ।
    यहाँ तक कि भारतीय स्टेट बैंक में या किसी और बैंक में पीपीएफ़ खाता खोलने के लिये अगर आप जायेंगे तो पायेंगे कि वो जबरन में आपका बचत खाता खोलने की कोशिश करेंगे । यह भी अपने वित्तीय उत्पाद जबरदस्ती बेचने की श्रेणी में आता है।

टिप्पणी – ऐसे ही कुछ उदाहरण जो आप जानते हों, आपके साथ हुए हों या किसी ओर के साथ और इन मामलों को कैसे हल किया जा सकता है। आईये एकजुट होकर आप अपने विचार साझा कीजिये। हम ये सब बदल सकते हैं !! 
यह आलेख मूलत: http://www.jagoinvestor.com पर मनीष चौहान द्वारा लिखा गया है, और
यह इस आलेख का हिन्दी में अनुवाद है।

१४११ बाघ बचाने की मुहीम – @ सभी ब्लॉगर्स, नायक, नायिकाएँ, खिलाड़ी और विशिष्ट लोग ओह माफ़ कीजियेगा अतिविशिष्ट लोग सभी को संबोधित (1411 Save Tigers Mission A message to all…)

    @ सभी ब्लॉगर्स (जिन्होंने टिप्पणी दी है और नहीं भी दी है, जिन्होंने पिछले पोस्ट  के शेर के फ़ोटो देखे हैं या नहीं देखे हैं ) , नायक, नायिकाएँ, खिलाड़ी और विशिष्ट लोग ओह माफ़ कीजियेगा अतिविशिष्ट लोग  – ये तो सब मीडिया का पब्लिसिटी स्टंट है। कुछ नहीं होने वाला है, जो मार रहा है उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है और जो मर रहा है वो तो मर ही रहा है। हम और आप केवल शीर्षक में १४११ जोड़कर उनका मजाक ही उड़ा रहे हैं, और मीडिया पब्लिसिटी के बहकावे में आ जाते हैं। क्या है हमारी जिम्मेदारी, जिनकी जिम्मेदारी है वो लोग बाघ को बचाने के लिये कितनी जिम्मेदारी से कार्य कर रहे हैं मतलब सरकार और उसके मुलाजिम।

    हम और आप लोग कैसे इस १४११ पर लेख, आलेख, निबंध लिखकर बाघों को बचा लेंगे, क्या बाघ इन आलेखों को पढ़ने आयेगा, नहीं भई बाघ नहीं आने वाला है, ये तो सरेआम केवल एक शोशेबाजी हो रही है, कि किसी भी चीज को कैसे हाईप दिया जाता है, जबरदस्त तरीके से कैम्पेनिंग कैसे किया जाता है ये तो इन मीडिया और राजनीतिक पार्टियों से पूछें।

    बेचारे स्कूल वाले तो १४११ बाघ को बचाओ के नाम पर बच्चों से क्या क्या नहीं करवायेंगे। परंतु वो बच्चे और वे स्कूल वालों का क्या कोई संबंध है, इन बाघों को बचाने में, नहीं, बिल्कुल भी नहीं।

    जब कोई भी चीज खत्म होने की अग्रसर होती है तब किसी को कोई चिंता नहीं होती है, सब बहुत ही लापरवाही से लेते हैं, और जब खत्म होने को आ जाती है जैसे कि ताजा उदाहरण १४११ बाघ बचे हैं, तब सब लोग चिल्लाते हैं, जैसे जनता जिम्मेदार है इस सबके लिये, अरे हर पाँच साल में जो हमारे दरवाजे पर वोट की भीख माँगने आता है, उसको हम क्यों भीख देने के लिये उदार हो जाते हैं, जब वो सरकार में रहकर अच्छे से काम ही नहीं कर रहा है। ये लोग कभी खत्म नहीं होंगे ये तो अमरबेल जैसे बड़ते ही चले जायेगे इन लोगों की संख्या हरपल १४११ बड़ती रहेगी। पर इन बाघों का क्या..

   देखिये बुद्धूबक्से पर नायक, नायिकाएँ, खिलाड़ी और विशिष्ट लोग ओह माफ़ कीजियेगा अतिविशिष्ट लोग १४११ बाघ को बचाने के लिये टीशर्ट पहने कर डॉयलाग मार रहे हैं, कि मैं कितना महान प्रयास कर रहा हूँ, आप भी इस महान प्रयास में मेरा साथ दें, अरे इन लोगों ने कभी ये भी जानने की कोशिश की है कि ये १४११ बाघ रहते कहाँ हैं, और क्यों इनकी संख्या १४११ रह गई है।

    क्या हम इन १४११ बाघों के ऊपर लिखने से, बोलने से  इन १४११ बाघों को  बचाने में सफ़ल होंगे और इनकी संख्या बड़ा पायेंगे क्या गारंटी है कि हम इन १४११ बाघों को भी बचा पायेंगे, थोड़े सालों बाद फ़िर मीडिया केवल राग अलापेगा कि बाघ प्रजाति लुप्त हो गई और इन १४११ बाघों की कहानी बन जायेगी। कि आमजन ने क्या क्या नहीं किया था इन १४११ बाघों के लिये…

   सोचिये और बताईये क्या हम १४११ बाघों के लिये क्या वाकई कुछ ऐसा कर सकते हैं, जो इनकी रक्षा करे…?

उसे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि दुनिया के लिये तुम क्या हो.. १४११ (It does not matter Who you are…1411)

हो सकता है कि तुम दुनिया पर राज करते हो –
ATT00001
हो सकता है कि आप बहुत खतरनाक हों –
ATT00002
हो सकता है कि आप स्वतंत्र हों –
ATT00003
हो सकता है कि कुछ लोग आपका हुक्म मानते हों, या पूरी दुनिया भी मानती हो –
ATT00004
हो सकता है कि हर कोई तुम्हें प्यार करता हो –
ATT00005
भले ही तुम बहुत सज्जन हो –
ATT00006
या फ़िर दुनिया के सबसे खतरनाक शिकारी –
ATT00007
लेकिन सच्चाई तो यह है…

जब आप अपने घर पर होते हो….. तो….

बीबी तो बीबी ही होती है –
ATT00008


उसे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि दुनिया के लिये तुम क्या हो..

इसे भी देखिये –

१४११ बाघ बचाने की मुहीम – @ सभी ब्लॉगर्स, नायक, नायिकाएँ, खिलाड़ी और विशिष्ट लोग ओह माफ़ कीजियेगा अतिविशिष्ट लोग सभी को संबोधित (1411 Save Tigers Mission A message to all…)

जीवन बीमा को समझिये – कुछ सवाल खुद से पूछिये और खुद को जबाब दीजिये… (Simple questions for yourself on Life Insurance..)

    एलआईसी की एन्डोमेन्ट योजना और यहाँ तक की सारी योजनाएँ सचमुच बहुत अच्छी हैं ? और क्या वह सब कुछ आप पा रहे हैं जो आपको एक बीमा के रुप में किसी भी बीमा कंपनी से मिलना चाहिये ?

    सवाल है कि एलआईसी योजनाएँ जैसे कि जीवन आनंद जो कि जीवन का जोखिम प्रदान करती हैं जिंदगी भर और परिपक्वता के बाद एकमुश्त भुगतान मिलता है वह भी करमुक्त । क्या यह अच्छी योजना नहीं है ?

    क्या इस जीवन बीमा योजना को बीच में ही खत्म कर देना चाहिये और इसकी जगह सावधि जीवन बीमा योजना (Term Insurance) ले लेना चाहिये क्या यह समझदारी भरा निर्णय होगा ?

    इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि बीमा योजना का नाम क्या है, जीवन आनंद, जीवन मित्र, जीवन सुरभि, जीवन श्री, जीवन निधि, जीवन अमृत, जीवन साथी, जीवन तरंग, जीवन भारती या जीवन वर्षा। ये सब पारंपरिक जीवन बीमा योजनाएँ हैं, (चाहे वह एन्डोमेन्ट, मनीबैक, पूरी जिंदगी के लिये या इन सबको मिलाकर कोई ओर) ये सब सबसे खराब तरह की बीमा योजनाएँ हैं । जिनसे समाज और व्यक्ति को आर्थिक नुकसान ही हो रहा है।

फ़िर भी, इन प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें –

१. बीमा और निवेश में क्या अंतर है ?

२. जीवन बीमा का एकमात्र उद्देश्य क्या है ?

३.क्या आपको अपने बुढ़ापे के लिये वाकई बीमे की आवश्यकता है ?

४. आपके जीवन बीमा की राशि आपकी आमदनी और आपके रहन सहन के अनुरुप है ? जीवन बीमा की राशि आपके परिवार की जरुरतें पूरा करने में समर्थ है ?

५. अगर आपको दुर्भाग्य से कुछ हो गया तो ? तो क्या ये तथाकथित भ्रमपूर्ण जीवन बीमा योजनाएँ निकट भविष्य में आपके परिवार की वित्तीय जरुरतों को पूर्ण करने में सक्षम होंगी ? जो दावा भुगतान राशि इन योजनाओं से मिलेगी क्या वह आपके परिवार के लिये काफ़ी होगी ?

६. वार्षिक प्रीमियम जो कि आप बीमित राशि पर भरते हैं कितना अनुपात में भरते हैं ? क्या आपने कभी सोचा है कि आप जितनी राशि अपने इन एलआईसी की बीमा के लिये भरते हैं, उससे आपको कितनी सुरक्षा मिल रही है, अगर आप निकट भविष्य में प्रीमियम भरने में असमर्थ होंगे तो फ़िर क्या होगा ? सोचा है कभी ?

७. क्या आपने कभी खुद बैठकर गणना की है कि किस दर से हमें बीमा कंपनी परिपक्वता पर पैसा देने वाली है ?

    मुझे उम्मीद है कि जब तक आप इन सवालों के उत्तर देंगे, तब तक आप अच्छी तरह से जीवन बीमा को समझ चुके होंगे और यह भी जान चुके होंगे कि जीवन बीमा कितना जरुरी है और क्यों जरुरी है ?

    इसके अलावा, कंपनियों के स्लोगन “कर मुक्त वापसी”, मैं आपको एक और आश्चर्यजनक बात बताता हूँ – कि वास्तव में कर रियायत की वास्तविक लाभ बीमा कंपनियाँ उठाती हैं, बीमित व्यक्ति नहीं। यह कर के रुप में दिये जाने वाले प्रोत्साहन का सरासर मजाक है। लेकिन मैं जानता हूँ कि आपको यह समझ में नहीं आयेगा क्योंकि हम केवल वही सुनते हैं, जो हम सुनना चाहते हैं। जिस तरह से हम सोचते हैं, वह बीमा कंपनियों का काम और आसान कर देता है।

    मेरे पास कोई बीमा एजेन्ट आता है तो अपने सिर पर पैर रखकर वापिस भाग जाता है या फ़िर बोलता है कि कृपया हमें बीमा के बारे में और जानकारी दीजिये।  कोई बड़ी बात नहीं है आप भी इन बीमा एजेन्टों की खटिया खड़ी कर सकते हैं अगर सही बीमा उत्पाद के बारे में पता होगा तो ।

    क्या हुआ उलझ गये ? कुछ उलझन हो तो जरुर बताईये टिप्पणी करके और समझ गये तो सहमति दीजिये टिप्पणी करके।

आखिर मैं कब तक भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा..मेरी कविता…विवेक रस्तोगी

आखिर मैं कब तक

भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा

कभी एक पहलू को छूने की कोशिश में

दूसरा हाथ से निकल जाता है

और बस फ़िर दूसरे पहलू को

वापस अपने पास लाने की

जद्दोजहद उसके समीकरण

हमेशा चलते रहते हैं,

इसी तरह

कभी भी ये दो पहलू

मेरी पकड़ में ही न आ पायेंगे

और मेरी नियति कि मैं

भाग-भाग कर जिंदगी को पकड़ता रहूँगा

पर अंत में

केवल पकड़ में आयेगा एक तीसरा पहलू

सर्वोच्च सच्चाई,

जो इस तृष्णा जैसी नहीं होगी

फ़िर मुझे कहीं भागना भी न होगा

बस उसी सच्चाई में रहना होगा

उस पल का इंतजार करते हुए

तब तक

मुझे भाग-भागकर जिंदगी को पकड़ना होगा।