Monthly Archives: March 2010

टकलापुराण और टकले होने के फ़ायदे रोज ४० मिनिट की बचत

    पिछले महीने हम तिरुपति बालाजी दर्शन करके आये थे तो बालाजी को अपने बाल दे आये थे, और तब से हमने सोचा कि अब बस ऐसे ही रहेंगे मतलब गंजे याने कि टकले। पहले कुछ अजीब सा लगा पर अब सब साधारण सा लगने लगा है।



    जब हम वापिस मुंबई आये और अपने पास वाले ए.सी. सैलून में गये और बोले कि जरा हेड क्लीन शेव कर दीजिये पहले तो सैलून वाला हमें प्रश्न भरी दृष्टि से देखता रहा फ़िर वापिस से उसने पूछा कि क्या करना है तो हम शुद्ध हिन्दी में बोले टकली करनी है, याने कि हेड क्लीन शेव

    वो अपना सिर खुजाते हुए अपने सैलून के मालिक से मुखतिब हुआ और आँखों में ही उससे पूछा कि क्या अजीब ग्राहक है और कैसे इन भाईसाहब की टकली करुँ। तो वह खुद आ गया और फ़िर हमारे सिर पर पहले तो पानी का स्प्रे किया और फ़िर जिलेट का फ़ोम हाथ में लेकर पूरे सिर पर लगा दिया और फ़िर उस्तरे में नया आधा ब्लेड लगाकर पूरे सिर की शेव करना शुरु कर दिया, एक बार और यही प्रक्रिया दोहराई गई, फ़िर आफ़्टर शेव लगाया तो थोड़ी से जलन हुई पर अच्छा लगा। उसी समय हमारी ही बगल में एक मोटे से थुलथुल से नौजवान जो कि लगभग ४० वर्ष के होंगे, हमारे टकलापुराण को देख रहे थे और अपनी भैया वाली भाषा में बोले भाई साहब आपको देखकर हमें भी इन्सपीरेशन मिल रही है कि कम बाल होने पर बालों को सँवारने से अच्छा है कि उन्हें गायब ही कर दिया जाये।

    कोई जान पहचान वाला मिले तो वो पूछते ही रह जायें आल इज वेल, तो हम कहते कि जी हाँ आल इज वेल, यह तो हमारी नयी हेयर स्टाईल है। तो अब तक हम तीन बार सैलून पर टकलापुराण करवा चुके हैं और गंजे होने के फ़ायदे पर विश्लेषण बता रहे हैं –

  1. १.  १.  रोज सुबह उठने के बाद १० मिनिट की बचत, क्योंकि जब सोकर उठते हैं तो हमेशा बाल बेतरतीब ही रहते थे और सुबह की सैर पर जाने के पहले बाल धोकर फ़िर सुखाकर अच्छे से कंघी करना पड़ते थे।
२. 

  1. २.  २. नहाते समय शैम्पू की बचत और नहाने के बाद बाल सुखाने का समय, तेल की बचत और कंघी न करना। इन सबका समय हुआ लगभग १५ मिनिट।

  1. .३ ३. फ़िर दिनभर २-४ बार कंघी करना और बालों के प्रति चिंतित रहना कि कैसे हो रहे हैं, लगभग १० मिनिट की बचत।

  1. ४. ४.  शाम को घर पहुँचकर वापिस से बालों को सँवारने का समय लगभग ५ मिनिट।

  1. ५. ५.  हर १५-२० दिन में बालों को रंग करना क्योंकि बाल सफ़ेद हो गये हैं, बचत लगभग १ घंटा ।

तो तो आप ही बताईये कुल मिलाकर अगर टकले रहकर ४० मिनिट की बचत होती है तो कैसा है, आप भी इस बात पर ध्यान दीजिये और अपने अनुभव बताईये।

जॉगर्स पार्क में सैर वाले सड़क पर आ गये और दयाल प्रभू का लेक्चर “Developing The Culture Of Blessings”

    हम सुबह की सैर करने वाले जो कि बगीचे में जाते थे, और बगीचे का नाम है जागर्स पार्क। रोज सुबह सुबह प्राकृतिक आनंद लेते हुए सैर किया करते थे पर अब बगीचा १० दिनों के लिये साज-सँभाल के लिये बंद है, अभी हाल ही में बगीचे में आजीबाबा पार्क बनाया गया है, मतलब केवल वृद्ध लोगों के लिये जिसमें बहुत ही अच्छा रंग वगैरह किया गया है, अब यहाँ मुंबई में पास में कोई बीच तो है नहीं कि सुबह या शाम की सैर में समुंदर किनारे बीच पर जाकर मटक आयें। वैसे यहाँ बीच जो हैं पास में वो हैं अक्सा बीच मलाड, गोराई बीच गोराई बोरिवली और जुहू बीच मुंबई।
    आज जब सुबह घूमने को निकले तो अपने स्पोर्ट शूज में मरीना बीच की रेत झाड़ी तो अनायास ही ऐसा लगा कि काश हम हमारे अतीत की रेत भी ऐसे ही झाड़ कर निकाल पाते और फ़िर से वापिस कुछ नया सा शुरु कर पाते पर वास्तविकता में ऐसा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
    आज सुबह जब हम घूमने निकले तो सब हमें घूर घूर कर देख रहे थे हमारे हेयर स्टाईल के कारण, हम फ़िर से गंजी करवा लिये हैं, और सोच रहे हैं कि यही हेयर स्टाईल रखी जाये। और साथ में सुन रहे थे दयाल प्रभू का लेक्चर “Developing The Culture Of Blessings” हालांकि पूरा नहीं हो पाया, पर जो ज्ञान मिला वह है – “श्रीमद्भागवद गीता को केवल वही समझ सकता है जिसने अपने आप को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया हो, जिसने खुद को सर्वाकर्षक कृष्ण को अर्पित नहीं किया वह गीता के ज्ञान से वंचित है।” भगवान श्रीकृष्ण को कैसे अर्पित किया जाये वह भी बताया है, श्रवण, कीर्तन, अर्पण, आत्मनिवेदन। पहली तीन श्रवण, कीर्तन, अर्पण तो सबके लिये संभव है पर आत्मनिवेदन मतलब खुद को और खुद की सारी वस्तुओं को सर्वाकर्षक कृष्ण को समर्पित कर देना बहुत ही कठिन है इस भौतिकवादी युग में, अगर जिसने यह भी कर दिया तो वह गीता का ज्ञान निश्चय ही प्राप्त कर सकता है।
    फ़िर सड़क पर सैर पूरी करने के बाद मन में यही विचार आया कि देखो सब बगीचे में घूमने वाले सड़क पर आ गये। सुबह हम यहाँ पहली बार सड़क पर घूमने निकले थे तो बहुत सारी नयी चीजें देखने को मिलीं। जैसे एक दो अखबार वाले नहीं थे बल्कि लगभग हर दूसरी बंद दुकान के ओटले पर अखबार वाले बैठे थे और अखबारों को शायद बिल्डिंग के हिसाब से जमा रहे थे। पाव वाले अपनी साईकलों पर पाव की डिलेवरी दे रहे थे, स्कूल जाते बच्चे कौतुहल से अचानक आई सुबह के सैर करनेवालों की भीड़ को देखकर आश्चर्यचकित थे। तब हमें लगा कि केवल सुबह की सैर करने वाले ही नहीं जल्दी उठते हैं बल्कि स्कूल जाने वाले और कुछ लोग जिन्हें जल्दी अपने कार्यालय जाना होता है वे भी उठते हैं। सैर पूरी करने के बाद जल्दी ही घर आ गये क्योंकि सड़कों पर स्कूल बसों का और वाहनों का ट्राफ़िक बढ़ने लगा था।
    घर पर आकर अपना मेल देखा तो डॉ मनोज मिश्र जी का एक ईमेल मुस्कराता हुआ हमारा इंतजार कर रहा था, फ़िर आदरणीय मिश्रजी का फ़ोन आया और कुछ बातें भी हुई, धन्य हुए इस ब्लॉगरी से हम जिससे हम एक अलग ही विचारों की दुनिया के लोगों से रुबरु हुए हैं।

विद्रोह मेरे मन का, भड़क रहा है….. मेरी कविता….विवेक रस्तोगी

विद्रोह मेरे मन का,

भड़क रहा है,

चिंगारियों से,

आग निकल रही है,

मेरे मन के,

मेरे दिल के,

कुछ जज्बात हैं,

जो दबे हुए हैं,

कहीं किसी चिंगारी में,

और जो,

हवा के रुख का,

इंतजार कर रहे हैं,

और वहीं कहीं,

रुख हवा का,

हमसे बेरुखी कर चुका है,

पर…

विद्रोह मेरे मन का,

भड़क रहा है.. !!

डैडी जल्दी घर पर चाहिये तो भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान डैडी को जल्दी घर पर भेज दो..

    फ़िर चले अपने घर मुंबई, चैन्नई से वापिस शाम की फ़्लाईट है, सफ़र पर जाने के पहले पेट में जाने कैसा कैसा महसूस होता है, वह मैं अभी साफ़ साफ़ महसूस कर रहा हूँ, हाँ यात्रा रोमांचक होती है पर केवल तब जब आप कभी कभी यात्राएँ कर रहे होते हैं, परंतु अगर यात्राएँ जीवन का अंग बन जायें तो वह रोमांच खत्म ही हो जाता है, पूरा जीवन यायावर हो जाता है।

    बस अंतर केवल हममें और साधुओं में यही है कि वो नगरी नगरी बिना किसी लालच के ज्ञान बांटते हुए घूमते थे और हम घूमते हैं अपनी रोजी रोटी के लिये, बहुत पहले एक एस.एम.एस. आया था पहले जो लोग घर छोड़ कर दूर रहते थे अपने घरों से और कभी कभी घर आते थे, पहले उन्हें साधु कहते थे और अब उन्हें सॉफ़्टवेयर इंजीनियर कहते हैं।

    घर पर बता दिया है पर बेटे को नहीं बताने का बोला है, उसे बोला है कि डैडी जल्दी घर पर चाहिये तो भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान डैडी को जल्दी घर पर भेज दो, मैं उनके बिना नहीं रह पाता हूँ। कल तो भगवान से प्रार्थना करते हुए बहुत रो रहा था बोल रहा था “भगवान जी डैडी को जल्दी भेज दो मैं सबका कहना मानूँगा, कोई शैतानी नहीं करुँगा” तो मैंने बेटेलाल की मम्मी से पूछा कि अब क्या कर रहे हैं, पता चला कि कबका आँसू पोंछकर नीचे बगीचे में बच्चों की टोली में खेलने निकल गये हैं, सब नाटकबाजी है। हमें भी मन ही मन बहुत आनंद आया।

    बस इस सफ़र का आनंद अपने बेटे के पास जाकर ही खत्म होगा, हमेशा की तरह मैं जैसे ही घंटी बजाऊँगा, वो दरवाजा खोलेगा और बोलेगा अरे डैडी आ गये, और फ़िर एक पल के लिये शरमा जायेगा और फ़िर अपना समान भी ढंग से नहीं रख पाता हूँ कि मेरे ऊपर सवार हो जाता है, और प्यार करते हुए कहता है, तुतलाते हुए “डैडी, डैडी मैं आपके बिना नहीं रह पाता हूँ, मुझे आपकी बहुत याद आ रही थी, और मैं रोया भी था, आप मेरे लिये क्या लाये हो !!!” फ़िर “अच्छा नहीं लाये हो तो कोई बात नहीं, मुझे चाकलेट खानी है, आईसक्रीम खानी है !!” और इसी आनंद में अपनी सारी थकान उतर जाती है।

मैं कहाँ कौन से, चक्रव्यूह में हूँ .. हे गिरधारी… मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

मैं एक छोटा सा अदना सा इंसान,

मुझसे कितनी उम्मीदें हैं,

इस दुनिया को,

खुद को,

अपनों को,

जिनका संबल हूँ मैं,

और जो मेरे संबल हैं,

रेत के महल खड़े करने की,

रोज कोशिश करता हूँ,

पर पूरा होने के पहले ही,

भरभरा कर गिर जाता है,

कब यह मेरा महल पूरा होगा,

और कब मैं आजाद होऊँगा,

मुझे आजादी चाहिये,

अपने विचारों की,

आहत मन को,

सँवारने की,

आहत दिल को,

दिलासे की,

आओ समय देखो,

हे गिरधारी देखो,

मैं कहाँ कौन से,

चक्रव्यूह में हूँ,

मुझे भी देखो…

सरदार के किस्से हमारी जबानी (कृप्या कोई और सरदार बुरा न माने)

अगर सरदार को ९४४९४९४४९४ डायल करना है ..
..

तो वो क्या करेगा …..?

पहले वो डायल करेगा ९४४९४ और फिर रिडायल करेगा ……
……………………
एक सरदार के पिता का देहांत हो गया और वो जोर जोर से रो रहा था

थोड़ी देर बाद वो और जोर जोर से रोने लगा

दोस्त ने उससे पूछा कि "अब क्या हुआ ?"

सरदार बोला : अभी मेरी बहन का फोन आया था किस उसके भी पिताजी नहीं रहे ….
……………………
सरदार – मुझे फ़ोन पर धमकियाँ मिल रही हैं

पुलिस – कौन दे रहा है …?

सरदार – बी एस एन एल वाले, बोलते हैं कि अगर बिल नहीं भरा तो काट देंगे….
…………………….

नासा ने तीन  सरदारों को चाँद पर भेजा, रॉकेट उड़ा मगर आधे रास्ते से वापिस आया …

उनको पुछा गया तो बोले … : आज अमावस है चांद तो होगा ही नहीं ..
……………………
एक बार सरदार जंगल में घूम रहा था तभी उसे एक सांप पेड़ पर लटका हुआ दिखाई दिया ..

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सरदार उस पेड़ के थोड़ा पास गया और सांप के पास गया और बोला : "ऐसे लटकने से लम्बाई नहीं बढती है, मम्मी को बोलो कि कोम्प्लेंन पिलाए"
……………………..

वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट

आज सायंकालीन सैर के साथ हम सुन रहे थे गोविंद प्रभू का लेक्चर वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट। जिसमें उन्होंने क्षत्रिय और ब्राह्मण के गुण बताये हैं।

आज फ़िर सायंकालीन सैर के लिये हम निकल पड़े मरीना बीच की ओर, फ़िर वहाँ समुद्र के किनारे लहरों को देखते हुए घूम रहे थे और जहाँ जनता थोड़ी भी कम होती थी वहीं युगलों की जुगत जमी रहती थी और युगल समुन्दर के किनारे एक दूसरे के आगोश में, एक दूसरे की बाँहों में, और भी न जाने कैसे कैसे बैठे थे जिससे बस वह अपने साथी के ज्यादा से ज्यादा समीप आ सके। खैर यह तो सभी जगह होता है कोई नई बात नहीं है।

फ़िर जब वापिस आने को हुए तो लेक्चर खत्म हो चुका था और एफ़.एम. पर गाने सारे तमिल भाषा में आ रहे थे, जो कि अपनी समझ से बाहर थे तो अपनी एम.पी.३ लिस्ट पर नजर डाली तो गुलाल के गाने नजर आये, बस मन चहक उठा, “मन बोले चकमक ओये चकमक, चकमक चकमक”, “रानाजी मोरे गुस्से में आये ऐसे बलखाये आय हाय जैसे दूर देश के टॉवर में घुस जाये रे ऐरोप्लेन” ।

सुबह की सैर, श्रीमद्भागवदम और गीता जी का ज्ञान …

    आज की सैर के लिये हम निकले तो थोड़ा समय ज्यादा हो गया था और हम सुन रहे थे द्वारकाधीश प्रभू का लेक्चर “Sanyas Means Krishna Centered Love”। रोज सुबह एक लेक्चर सुन लेते हैं जिससे कृष्णजी के प्रति अनुराग और गहरा होता जाता है और श्रीमद्भागवदम और गीता जी से कुछ सीखने को मिल जाता है। अब वेद तो हम पढ़ने से रहे, क्योंकि वेद संस्कृत में लिखे हैं और संस्कृत संपूर्ण व्याकरण के साथ सीखने के लिये पूरे १२ वर्ष लगते हैं और फ़िर वैदिक खगोल और ज्योतिष का भी ज्ञान होना चाहिये इसलिये निर्मल भाषा में हम संदर्भ सुनकर इस तुच्छ जीवन का उद्धार करना चाहते हैं। और हर समय मन में महामंत्र रहता है..

“हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे”
    आज सुबह की सैर करने हम यहाँ के पॉश इलाके में गये जहाँ जयललिता, रजनीकांत, मुख्यमंत्री करुणानिधी रहते हैं, अच्छी खासी धूप निकल आने के बाद भी यहाँ सड़कों पर घनी छांव थी, फ़िर मुख्य सड़क पर अमेरिका का वीजा केन्द्र भी पड़ा क्या बड़ा और क्या छोटा सब लाईन में दीवार के किनारे खड़े थे अपने वीजा आवेदन के साथ, और सुरक्षाकर्मी मुस्तैद थे अपनी बंदूकों के साथ।
    सुबह घूमने जाने का एक नुकसान  भी है, कि लगने लगता है जब व्यक्ति मोटा होता है या उसे वजन घटाना होता है तभी वह मजबूरी में घूमता है, जगह जगह वजन की मशीन और फ़्री फ़ेट चैक अप के पोस्टर लिये लोग अपना व्यापार करने के लिये खड़े रहते हैं, और घूमने वालों को देखो तो ९८% केवल मोटे लोग ही दीखते हैं और केवल २% तंदरुस्त लोग घूमने वाले दीखते हैं।
कुछ और फ़ोटो चैन्नई के –
दीवारों पर सांस्कृतिक लोकनृत्यों के उकेरे हुए चित्र –
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चैन्नई मरीना बीच पर सुबह की तफ़री और समुद्र के कुछ फ़ोटो..

वैसे तो आजकल सुबह शाम घूमना बहुत जरुरी हो गया है, क्योंकि अब घूमना भी मजबूरी है, पसीना बहाओ, जितना हो सके और अपना वजन कम करो, अब चैन्नई में हैं तो आज सुबह का घूमना हमने मरीना बीच जाना तय किया और कुछ फ़ोटो भी निकाले। सुबह लोग समुद्र के पानी में लहरों के साथ मस्ती कर रहे थे, तो अनायास ही मुझे अपने बेटे की याद आ गयी, उसे भी ये अठखेलियाँ करना बहुत पसंद है, किनारे पर नावों का जमावाड़ा लगा था, वे नावें अपने नाविकों का इंतजार कर रहीं थीं।

देखिये और बाकी सुबह घूमने का आनंद और सुख केवल वही जान सकते हैं जो सुबह घूमने जाते हैं, सार्वजनिक करना ठीक नहीं है 🙂

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पहला दिन था अंदाजा ही नहीं लगा कि कितनी दूर आ गये हैं वहीं से पता लगाकर बस पकड़कर वापिस आ गये, तो उस बस के टिकट का भी फ़ोटो चस्पा दिये हैं, और साथ ही आजकल छावा पढ़ रहे हैं, जब भी जैसे भी समय मिल जाता है तो पढ़ते रहते हैं।

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“बाल टाक रे” बेवकूफ़ी है, पर फ़िर भी अच्छा है !!

आस्ट्रेलिया और भारत के बीच वानखेड़े स्टेडियम में क्रिकेट मैच चल रहा था, और वहीं बालकनी में बाल ठाकरे बैठ कर मैच का आनंद ले रहे थे और बहुत खुश थे कि यहाँ पर पाकिस्तानी खिलाड़ी नहीं खेल रहे हैं।
अचानक सचिन तेंदुलकर ने मैक्ग्राथ की गेंद पर छक्का मर दिया, और गेंद सीधी बाल ठ्करे के पास वाली सीट पर गिरी…
मैक्ग्राथ जोर से चिल्लाकर बोला हे ! गिव मी बोल
ठाकरे भी चिल्लाया ऐ… मराठी में बोल
मैक्ग्राथ को समझ में नहीं आया कि वह क्या बोला, फ़िर मैक्ग्राथ ने वापिस से वही बोला और ठाकरे की ओर से वही जबाब मिला।
तभी, बाऊँड्री के पास से एक सुरक्षा अधिकारी मैक्ग्राथ के पास गया और बोला,सर, यह बाल ठाकरे है
फ़िर मैक्ग्राथ विस्मित हो गया (क्योंकि उसने ठाकरे के बारे में सुन रखा था) और चिल्लाया ओ… बाल टाक रे
बाल ठाकरे खुश होकर गेंद मैक्ग्राथ की ओर फ़ेंक देता है।
जय महाराष्ट्र !!