Monthly Archives: June 2010

कुछ खरीदारी मैगी मसाला पास्ता, सी.एफ़.एल., पेस्ट्री, पढ़ने के लिये बच्चों को रिश्वत ? [एक सवाल]

   कल ऐसे ही घर से दोपहर के वक्त सामान लेने के लिये निकला अब हँसिये मत घर के लिये समान तो सब ही लाते हैं, बस एक दूसरे को बताते हुए शर्म खाते हैं, नहीं लाओ तो वीकेंड बर्बाद और पूरा वीक भी वीकेंड जैसा ही रहता है।

    सबसे पहले गये किराना दुकान पर, हमें बोला गया था कि मैगी का पास्ता मसाला मैनिया लाना है, हमने दुकानदार को वही बोला तो जबाब मिला कि मसाला मैनिया कुछ नहीं आता, मसाला  और कुछ अजीब सा नाम बोला तो हमने कहा कि यही दे दो २ पैकिट, ऐसा लग रहा था कि हमें ये सब चीजें पता न होने से यह लग रहा है कि हम आऊटडेटेड होते जा रहे हैं। फ़िर जेब से एकॉर के फ़ूड कूपन निकाले और कुछ चिल्लर निकालकर पेमेन्ट किया। वैसे तो और भी किराना स्टोर हैं परंतु यह सुपरबाजार जैसा है और अपने कस्बे के जैसा भी है, अगर ऑर्डर दो तो समान निकाल भी देता है, नहीं तो खुद नये जमाने के हिसाब से शॉपिंग कर लो अपनी बास्केट उठाकर।

    वहाँ से निकले तो हमें सी.एफ़.एल. लेनी थी, किराना पर पूछा तो बोला नहीं पास की दुकान पर मिलेगी, हम चल दिये अपना झोला उठाये, जी हाँ अपना झोला क्योंकि मुंबई में प्लास्टिक की पोलिथीन को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

————— सी.एफ़.एल. के लिये हार्डवेयर की दुकान पर ———————————–

भैया, एक सी.एफ़.एल. देना,

“कितने वोल्ट की दूँ ?”,

हम बोले दे दो १२ वोल्ट की, पर ये बताईये कि इस पर कितनी गारंटी है,

“छ: महीने की”,

फ़िर हम बोले ओह मतलब जो फ़्यूज हुई है हम उसका आलरेडी ९ महीने ज्यादा इस्तेमाल कर चुके थे, मतलब १५०% का फ़ायदा।

“नहीं सा..ब वैसे तो यह ३००० घंटे चलती है और कई बार ३-४ साल भी चल जाती है, पर गारंटी छ: महीने की ही है”

ओह, अब हम याद करने लगे कि ये ३००० घंटे क्या हमारा परिवार पिछले १५ महीने में नहाता ही रहा होगा क्या ?

“वैसे आपको बाथरुम में लगानी है तो १२ वोल्ट की जगह ८ वोल्ट की लीजिये, लोग तो ५ वोल्ट की भी लगाते हैं”

हमने कहा चलो ८ वोल्ट की ही दे दो।

“टेस्ट कर देता हूँ”

फ़िर उसने सी.एफ़.एल. के ऊपर ही आज की तिथि और गारंटी खत्म होने की तिथि दोनों ही अंकित कर दीं।

——————————— मोजिनीज पर ———————————————-

    वहाँ से निकले किसी ओर दुकान के लिये परंतु वहीं मोजिनीज पेस्ट्री की दुकान दिख गई तो सोचा चलो कोई चॉकलेट वाली पेस्ट्री बेटेलाल के लिये ले लेता हूँ, क्योंकि कई दिनों से हमने पेस्ट्री नहीं खिलाई है, एक चॉकलेट फ़ुल्ली लोडेड वाली पेस्ट्री घर के लिये पैक करवा ली।

——————————स्टेशनरी की दुकान पर —————————————–

    मुंबई में लगभग सभी दुकानें मल्टी टास्किंग करती हैं, अपने नाम के अन्रुरुप तो समान मिलता ही है परंतु और भी समान मिल जायेगा, मसलन स्टेशनरी की दुकान पर प्लास्टिक का समान, फ़ोटोकॉपी, गेम्स सीडी और भी बहुत कुछ…

    हमारे बेटेलाल के एग्जामस शुरु होने वाले हैं सोमवार से और स्कूल में फ़ाईल को फ़्लोरोसेंट रेड कलर में कवर करके मंगाया गया है, तो कवर लेना था, खुद के लिये एक फ़ाईल लेनी थी, और जिलेटिन लेनी थी बेटेलाल की किताबों के लिये, स्कोर शीट में किताबें मैंटेन करने के भी ५ नंबर जो हैं।

    सड़क से ही एक लड़के ने दुकानदार से कुछ पूछा, दुकानदार ने कहा “है आ जाओ”, तो लड़के की मम्मी ने वहीं से कहा कि बेटा नहीं मिलेगा चलो कल देखेंगे । लड़का बोला नहीं मम्मी है चलो …. और वो जबरदस्ती खींचता हुआ मम्मी को दुकान में ले आया । लड़्के को गेम्स की सीडी चाहिये थी।

    दुकानदार ने ४-५ सीडी निकालकर दे दी और बोला कि सील मत खोलना, अगर सील खुल गई तो आपने खरीद ली है यह मान लिया जायेगा, हमने सोचा वाकई यहाँ पर सभी लोग कितने प्रोफ़ेशनल हैं, नहीं तो खरीददार का क्या है वो तो खोलकर देख ही लेगा । साथ में दुकानदार चेता भी रहा था, एक एक सीडी महँगी है, जिस गेम की लेनी हो वही लेना, ऐसा नहीं हो कि दूसरे गेम की ले जाओ और आपके पैसे फ़ालतू में खर्च हो जायें।

बात तो एकदम सही कह रहा था।

एक गेम की सीडी खरीद ली गई, और दुकानदार ने ३८० रुपये दाम बताया तो वे बोलीं कि इस पर तो ३९० लिखा है आपने बस इतना ही कम किया।

“नहीं मैंने कुछ कम नहीं किया है, देखिये ३८० रुपये ही लिखा है”

कुछ तो कम कीजिये ना अपनी तरफ़ से कुछ तो डिस्काऊँट दीजिये ??

“मैडम ये डिस्काऊँटेड प्राईस ही है”

तो वे अपने पर्स में खुल्ले तलाशने लगीं।

“५०० का नोट दे दीजिये मैं पूरी ईमानदारी से बाकी पैसे लौटाता हूँ”

उसका इतना बोलते ही हमें भी हँसी छूट गई।

    साथ में वे बोलती भी जा रही थीं – आज इसने पूरे ४ घंटे पढ़ाई की है, परसों से एग्जाम है, फ़िर अपने बेटे से भाव कर रही थीं कि यू गेट वन गेम सी.डी. एस आई प्रामिस्ड, नाऊ यू हैव टू रीड २ होवर्स मोर, ओनली ऑफ़्टर देट यू विल प्ले गेम  ओन कम्पयूटर ।

बेटा भी कुछ आरग्यूमेंट करता जा रहा था।

और वे माँ बेटे चले गये।

    फ़िर मैं दुकानदार से मुखतिब हुआ कि बताओ आजकल बच्चों को पढ़ाने के लिये भी रिश्वत देना पड़ती है, और हमारे जमाने में पूरा पढ़ लो तब भी जूते ही पढ़ते थे, ऐसे पढ़ाई करते हैं, याद तो पूरा है नहीं, ये सब करने से क्या फ़र्क पड़्ता है और भी बहुत कुछ [ मैं याद नहीं करना चाहता ..]

और आजकल बस कैसे भी करके पढ़ लें सिलेबस पूरा कर लें, याद है या नहीं, क्वालिटी है या नहीं उससे किसी को कोई मतलब नहीं है।

हमने भी अपना पेमेन्ट किया और घर चल दिये।

    सोच रहे थे कि हमारे बेटे ने भी तो आज जितना पढ़ाया उतना पढ़ लिया और ये पेस्ट्री कहीं हम भी रिश्वत के लिये ही तो नहीं ले जा रहे हैं, या फ़िर ये केवल पिता का प्यार है कि बेटेलाल ने बहुत दिनों से पेस्ट्री नहीं खाई है, पेस्ट्री देखकर ही खुश हो जायेगा, और बोलेगा –

“अरे वा डैडी, आप तो बहुत ही प्यारे हो, मैंने तो बहुत दिनों से पेस्ट्री नहीं खाई थी, मजा आ गया डैडी…”

सोच रहा हूँ…

शीघ्र सेवानिवृत्ति कैसे ? भाग ४ [सेवानिवृत्ति से प्राप्त होने वाले धन का कैसे प्रयोग करें] [Early Retirement How ? Part 4]

    सेवानिवृत्ति धन को कैसे निवेश करें, यह सबसे बड़ी सरदर्दी है, और इस बारें में कोई भी खुलकर बात नहीं करना चाहता है।
    यह तो तय है कि इस धन को जोखिम वाले वित्तीय उत्पादों में नहीं लगा सकते हैं जैसे कि शेयर बाजार।
    मुद्रास्फ़ीति से मुकाबले के लिये सबसे अच्छा वित्तीय उत्पाद है, स्विप (SWP – Systematic Withdraw plan), सिप का बिल्कुल उल्टा जैसे सिप में हम पैसे जमा करते हैं, वैसे ही स्विप में जमा रकम से कुछ निर्धारित रकम हम निकालते हैं। इस वित्तीय उत्पाद को कम ही लोग उपयोग करते हैं, क्योंकि लोगों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है, इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है।
    आप अपने स्विप विभिन्न म्यूचयल फ़ंड में लगा सकते हैं, जिससे अगर कोई एक फ़ंड अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा हो तो आप उसे किसी दूसरे फ़ंड में स्विच कर सकें।
स्विप के फ़ायदे –
स्विप में आप निर्धारित रकम तो निकालते ही हैं तथा साथ ही यह रकम बाजार के प्रदर्शन के आधार पर बदलती रहती है, लंबी अवधि के लिये देखेंगे तो शायद ही इससे अच्छा किसी और वित्तीय उत्पाद का प्रदर्शन होगा।
कितना निकालें –
अपने निवेश का १ % निकालें यह मानक के अनुरुप है। अगर ज्यादा निकालेंगे तो ठीक नहीं रहेगा।
उदाहरण – अगर ५ लाख रुपये जमा कर रहे हैं तो मासिक ५,००० रुपये निकालना चाहिये।
लंबी अवधि के लिये स्विप का परिणाम देखें –
    ५ लाख रुपये १७ जून २००४ को रिलायंस ग्रोथ ग्रोथ में स्विप के लिये निवेश किया और ५,००० रुपये मासिक निकासी किये। तो उसने ६ वर्षों में ३,६०,००० रुपये तो निकासी किये ही और साथ में मूलराशि २४,७१,६१० रुपये हो गई। जी हाँ यह असल के आँकड़े हैं, इसके लिये आप गूगल पर SWP calculator search कर गणना कर सकते हैं।
    ५ लाख रुपये १७ जून २००९ को रिलायंस ग्रोथ ग्रोथ में स्विप के लिये निवेश किये और ५००० रुपये मासिक निकास किये।  तो इन १२ महीनों में निकासी रकम हुई ६०,००० रुपये और साथ में मूलराशि हो गई ६,११,९१५ रुपये।
    इस तरह से अपने रुपयों को ४-५ म्यूचयल फ़ंडों में निवेश करें और बाकी का ५ लाख रुपये जो कि आपने अपने बच्चे की पढ़ाई के लिये रखा है उसे लंबी अवधि के लिये अच्छे म्यूचयल फ़ंडों में निवेश करें। जिससे जरुरत के समय आपके पास जरुरत से कहीं ज्यादा रकम होगी।
आपको भविष्य में कभी भी धन के लिये किसी को देखना ही नहीं पड़ेगा।
    मैं तो अपनी शीघ्र सेवानिवृत्ति की योजना बना चुका हूँ, अगर आप भी बना रहे हैं और कोई सवाल हो तो जरुर पूछिये, टिप्पणी में नहीं तो ईमेल में कैसे भी। मैं आपके सवालों का उत्तर जल्दी से जल्दी देने की कोशिश करूँगा।

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शीघ्र सेवानिवृत्ति कैसे ? भाग ३ [वित्तीय लक्ष्य को कैसे प्राप्त करें, १५ लाख या १५ करोड़ ?] [Early Retirement How ? Part 3]

वित्तीय लक्ष्य को कैसे प्राप्त करें –
    वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करने से कुछ नहीं होता, उन्हें प्राप्त करना भी एक चुनौती है। सबसे बड़ा प्रश्न है कि वित्तीय लक्ष्य कैसे प्राप्त करें ?
    इसके लिये हमें विभिन्न वित्तीय उत्पादों को समझना होगा, जो कि हमें वित्तीय लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करते हैं।
२. पोस्ट ऑफ़िस की सावधि जमा (Fixed Deposit) , आवर्ती जमा (Recurring Deposit), पी.पी. एफ़. इत्यादि
३. सीधे शेयर बाजार में निवेश करना
४. म्यूचयल फ़ंड के द्वारा बाजार में निवेश करना
    उपरोक्त दिये गये उत्पादों में १ और २ नंबर वाले उत्पाद हमारे परंपरागत उत्पाद हैं, और उनमें ब्याज कम मिलता है, पर निवेश सुरक्षित है।
    ३ और ४ नंबर के उत्पाद में वही निवेशित कर सकता है जो कि जोखिम लेने की क्षमता रखता हो। शीघ्र सेवानिवृत्ति के लिये उम्र कम होती है इसलिये जोखिम लिया जा सकता है। पर यह नहीं कहते कि पूरा पैसा आप बाजार में लगायें, उसका सूत्र होता है १०० में से अपनी उम्र घटा लें उतना आपको शेयर बाजार में निवेश करना चाहिये और जितनी उम्र है उतना १ व २ नंबर वाले उत्पादों में निवेश करना चाहिये।
उदाहरण के लिये – उम्र है ३० वर्ष तो १०० में से ३० कम किया, ७० प्रतिशत निवेश शेयर बाजार में और ३०% प्रतिशत सुरक्षित निवेश में होना चाहिये।
सावधि जमा (Fixed Deposit) , आवर्ती जमा (Recurring Deposit) में जमा करने पर एक तय ब्याज दर से ही परिपक्वता पर भुगतान होता है।
    जबकि शेयर बाजार में सीधे निवेश और म्यूचयल फ़ंड के द्वारा निवेश करने पर  जोखिम ज्यादा है पर लंबी अवधी में परिपक्वता पर भुगतान भी कई गुना ज्यादा होता है। इस विकल्प में थोड़े समय २-३ वर्ष के लिये निवेश की तो बिल्कुल ही नहीं सोचें।
    शेयर बाजार में निवेश करने के लिये अच्छी कंपनियों का चुनाव करें और बेहतर मार्गदर्शन के लिये अपने शेयर ब्रोकर या  वित्तीय योजनाकार (Certified Financial Planner) की सेवा ली जा सकती है।
    म्यूचयल फ़ंड में निवेश हमेशा सिप (Systematic Investment Plan) के द्वारा ही करें, और लंबी अवधि के लिये विविध क्षैत्र (Diversified Sector) में निवेश करने वाले फ़ंड का चुनाव बेहतर है। क्षैत्रिय फ़ंडों (Sector Funds)  का भी चुनाव कर सकते हैं जैसे कि फ़ार्मा फ़ंड, बैंकिंग सेक्टर फ़ंड इत्यादि। क्षैत्रिय फ़ंडों चुनाव करने के पहले अपने वित्तीय योजनाकार (Certified Financial Planner) से जरुर मशवरा कर लें।
    सिप (Systematic Investment Plan) में किये गये निवेश की वापसी पिछले १० वर्षों की लगभग १५-२० % है, और विगत ५ वर्षों की ३५%  तक वापसी है।
उदाहरण –
    अगर १८ जून २००० को २००० रुपये की सिप में आज तक निवेश किया जाता तो उसकी कितना निवेश होता याने कि १८ जून २०१० तक –
१८,२२,४०२ रुपये याने कि ६७९.४३ % तक वापसी
    यह गणना मैंने रिलायंस ग्रोथ ग्रोथ प्लान के लिये की है, आप भी यह गणना यहाँ पर चटका लगाकर कर सकते हैं
    लंबी अवधि में निवेश करने के लिये शेयर बाजार में सीधे निवेश और म्यूचयल फ़ंड सबसे अच्छी जगह हैं।

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एक मुलाकात अलबेला खत्री जी के साथ मुंबई में

Albela Khatri & Vivek Rastogi    यह चेहरा आपने बुद्धु बक्से पर कई बार देखा होगा अरे मेरा नहीं जो मेरे साथ हैं, ये हैं अलबेला खत्री जी, प्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि और हास्य इंटरटेन्मेन्ट व्यक्तित्व।

Albela Khatri & Vivek Rastogi Mumbai प्लेट की तरफ़ मत देखिये उसका माल तो हम हजम कर चुके हैं। 🙂

    अलबेला जी से बहुत सारी बातें हुईं, भाषा के उपयोग पर भी बहुत सी चर्चा हुई, अगर आज के साहित्यकार आज से ६० वर्ष पहले उपयोग होने वाली हिन्दी लिखेंगे तो शायद ही आज की पीढ़ी पढ़ना पसंद करेगी और अगर करेंगे भी तो कुछ चुनिंदा लोग।

    भाषा वह होनी चाहिये जो कि सबको आसानी से समझ में आ जाये । भाषा ज्यादा क्लिष्ट होने पर पाठक या श्रोता कम या गायब हो जाते हैं।

    वहीं पर हमारी मुलाकात हुई शंभू शिखर जी से भी वे भी हिन्दी ब्लॉगर हैं और लॉफ़्टर ३ में आ चुके हैं।

    जितनी देर हम अलबेला जी के साथ रहे मुंबई में बारिश पुरजोर बरस रही थी, बाहर मुंबईवासी बारिश से तरबतर हो रहे थे और हम ब्लॉगरस में। साथ ही फ़ोन पर हमारी बात हुई पाबला जी से, और वे भी हमारी मुलाकात का हिस्सा बने।

शीघ्र सेवानिवृत्ति कैसे ? भाग २ [कितना वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करें] [Early Retirement How ? Part 2]

    वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करते समय मुद्रास्फ़ीति का भी ध्यान रखें । लगभग ६% प्रतिवर्ष से मुद्रास्फ़ीति की गणना करें।
कितना वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करें –

१. बच्चे की शिक्षा – शीघ्र सेवानिवृत्ति लक्ष्य को प्राप्त करते समय यह माना गया है कि मासिक खर्चों में १२ वीं कक्षा तक का शिक्षा खर्च आपने जोड़ लिया है। उच्च शिक्षा के लिये अभी से निवेश करके रखें जैसे अगर अभी ५ लाख रुपये उच्चशिक्षा में लगते हैं तो ११ वर्ष बाद लगभग १५ लाख रुपये होने चाहिये।

२. सेवानिवृत्ति धन – सेवानिवृत्ति धन इतना होना चाहिये कि आपका मासिक खर्च भी चलता रहे और हो सके तो उसमें से कुछ बचत भी हो सके, अगर आप अपने मन माफ़िक कुछ ओर कार्य शुरु कर रहे हैं, जिससे आमदनी हो रही है तो फ़िर यह तो सोने पर सुहागा है। मूल प्रश्न कितना वित्तीय लक्ष्य होना चाहिये, यह आपको खुद ही गणना करना होगी, आज के जरुरी खर्चे और बच्चे की शिक्षा जोड़कर जो भी रकम आती हो, वह है आपकी पेन्शन तो उसका १०० गुना ज्यादा आपको सेवानिवृत्ति धन के मद में रखना होगा।

उदाहरण – आज के मासिक खर्च २०,००० रुपये होते हैं, तो २० लाख रुपये चाहिये सेवानिवृत्ति के लिये। आकस्मिक खर्च ६ महीने के मासिक खर्च के बराबर मतलब १,२०,००० रुपये।
तो सेवानिवृत्ति धन हो गया २१,२०,००० रुपये।
शिक्षा खर्च और शीघ्र सेवानिवृत्ति धन मिलाकर हो गया लगभग २६ लाख रुपये।

रिटायरमेंट केलकुलेटर के लिये गूगल में सर्च कर गणना कर सकते हैं।
    मेरा मानना है कि सेवानिवृत्ति संतुष्ट जीवन होता है और सेवानिवृत्ति वही ले सकता है जिसका मन संतुष्ट हो चुका हो, नहीं तो मरते दम तक कार्य करके पैसा कमाना ही व्यक्ति का एकमात्र उद्देश्य होता है, और वह पैसा ही उसके काम नहीं आता है और तो और साथ में भी ले जा नहीं सकते, सब यहीं पर छोड़कर जाना पड़ता है।
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छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन, हिन्दी भाषा के विकास पर चिन्तन

    मेरा पन्ना ब्लॉग के जितेन्द्र चौधरी जी कुवैत से मुंबई निजी यात्रा पर आये हुए हैं, तो उनसे थोड़ा सा समय लेकर आज १३ जून २०१० को  एक छोटा सा इंटरनेशनल मुंबई ब्लॉगर मिलन आयोजित किया गया । आयोजन का स्थान था, गोरेगांव पूर्व में फ़िल्म सिटी के सामने जावा ग्राईंड कैफ़े शॉप।

    ब्लॉगर मीट में आमंत्रण तो सभी ब्लॉगर्स को भेजा गया था परंतु अपने निजी कार्यों के चलते और मिलन अलसुबह ९.३० बजे रखने से कुछ ही ब्लॉगर्स आ पाये।

    सबसे पहले देवकुमार झा जी, फ़िर हम विवेक रस्तोगी, फ़िर शशि सिंह जी, फ़िर जीतू भाई (जितेन्द्र चौधरी), अनिल रघुराज जी और अभय तिवारी जी पहुंचे।

फ़ोटो एलबम देखने के लिये फ़ोटो पर क्लिक करें ।  

शशि सिंह जी और जीतू भाई की बहुत पहले की दोस्ती है, ये दोनों हिन्दी ब्लॉग जगत के शुरुआती योद्धा हैं। देवाशीष को भी याद किया गया जो कि उनके उसी दौर के मित्र थे, जब कि हिन्दी चिठ्ठा लिखने वाले कुछ ५० ब्लॉगर्स ही होंगे।

    जीतू भाई ने अपने अनुभव साझा किये, हिन्दी ब्लॉगजगत के शुरुआती दिनों के, जब तकनीकी रुप से किसी को भी ज्यादा महारत हासिल नहीं थी और लोगों को चैटिंग कर करके उनकी समस्याएँ हल करके हिन्दी ब्लॉगिंग के लिये उत्साहित किया जाता था, आज तो फ़िर भी ब्लॉगर्स तकनीकी रुप से काफ़ी सक्षम हैं और हिन्दी के लिये बहुत ही ज्यादा तकनीकी समर्थन उपलब्ध है।

बीच में अलबेला खत्री जी का फ़ोन आया, वे मुंबई आये हुए हैं और हमसे मिलने की इच्छा जाहिर की तो हमने बताया कि अभी एक छोटी सी हिन्दी ब्लॉगर मीट हो रही है, और अगर हमें पहले से पता होता तो हम आपको भी सूचित कर देते। जल्दी ही अलबेला खत्री जी से भी मुलाकात होगी।

हिन्दी भाषा और उसके अवरोधों पर विशेष चर्चा की गई, कि हिन्दी भाषा का विकास कैसे हो ?

    हिन्दी के विकास के लिये क्षैत्रिय भाषाओं का विकास होना बहुत जरुरी है, अगर क्षैत्रिय भाषाओं का विकास होता है तो हिन्दी का विकास तो अपने आप ही हो जायेगा। नये शब्दों के लिये जो बोझ हिन्दी के कन्धे पर है वह भी बँट जायेगा, और विकास तीव्र गति से होगा।

    क्षैत्रिय भाषाएँ हिन्दी रुपी वृक्ष की टहनियाँ हैं। बोलियों और भाषाओं की बात की गई। अगर आजादी के समय प्रशासन की भाषा संस्कृत होती तो शायद आज हमारी सर्वमान्य भाषा अंग्रेजी की जगह संस्कृत होती। अंग्रेजी बोलना हमारा मजबूरी हो गया है। हिन्दी का सत्यानाश हिन्दी बोलने वालों ने ही किया है। अब जैसे फ़्रेंच लोगों को देखें तो उन्हें अंग्रेजी आती है परंतु वे फ़्रेंच में ही बात करते हैं, क्योंकि वे अपनी भाषा से प्यार करते हैं, भाषा का सम्मान करते हैं।

    आज अंग्रेजी के मामले में हम हिन्दुस्तानी अंग्रेजों को टक्कर दे रहे हैं, उनसे आगे निकल रहे हैं।

    जीतू भाई ने भाषा के संदर्भ में ही अपना एक यूरोप का मजेदार किस्सा सुनाया, वे अपने दोस्त के साथ ब्रिटिश म्यूजियम घूमने गये थे और एक स्टेच्यू के सामने खड़े होकर मजाक कर रहे थे और कुछ टिप्पणियाँ कर रहे थे, वहीं पास में एक वृद्ध अंग्रेज खड़ा हुआ था उसने अवधी में जबाब दिया, और अवधी के ऐसे शब्दों का उपयोग किया कि हम लोग भी चकरा गये कि अरे अवधी के ये शब्द कैसे बोल पा रहा है, जिन्हें हम भी अच्छॆ से नहीं जानते हैं। तो फ़िर उसने बताया कि मैं भारत में ही पैदा हुआ था और हिन्दी बहुत ही अच्छी भाषा है, हिन्दी बहुत ही मीठी भाषा है और मैं हिन्दी भाषा से बहुत प्रेम करता हूँ वह इतनी अच्छी तरह से हमारी भाषा में बात कर रहा था कि हम चकित थे क्योंकि इतनी अच्छी तरह से तो हमें भी अपनी भाषा पर अधिकार नहीं है। फ़िर तो उसे अंग्रेज से बहुत बातें हुईं।

    जीतू भाई ने एक और किस्सा बताया कि वे जर्मनी में थे और उनके एक मित्र फ़्रेंच और जर्मनी में ही बात करते थे, उन्हें अंग्रेजी भी अच्छी आती थी, पर वे हर जगह फ़्रेंच या जर्मनी में ही बात करते थे, उनसे पूछा तुम अंग्रेजी में बात क्यों नहीं करते हो, तो उसका जबाब सुनकर सन्न रह गया, कि यार ये मेरी भाषा है अगर मैं अपनी मातृभाषा की इज्जत नहीं करुँगा तो कौन करेगा।

    हमें यह महसूस हुआ कि हम लोग अपनी भाषा छोड़कर दूसरी भाषाएँ बोलना शुरु कर देते हैं, तो क्या हम लोग अपनी भाषा की इज्जत नहीं करते हैं। अगर विकल्प न हो तो ठीक है परंतु अगर विकल्प है तो हमें अपनी भाषा में ही बात करनी चाहिये।

    ज्यादा दूर जाने की जरुरत नहीं है, अगर चैन्नई में लोगों को देख लो वे अपनी तमिल भाषा में ही बात करते हैं, अगर आप हिन्दी या अंग्रेजी में बात करेंगे तो बोलेंगे नहीं आती है, परंतु अगर हिन्दी में गाली दे दो तो फ़िर जितनी अच्छी हिन्दी उन्हें आती है, उतनी हमें भी नहीं आती है। वे अपनी भाषा का सम्मान करते हैं।

   जीतू भाई ने मदुरै का अपना एक और किस्सा सुनाया, कि वहाँ ऑटो वाले सब रजनीकांत स्टाईल में गले में रुमाल बांधकर रहते हैं, और हिन्दी नहीं आती है ऐसा बताते हैं, उनकी बात कुछ पैसे को लेकर हुई, और झगड़ा बड़ता गया, पर जैसे ही इनके एक मित्र ने तैश में आकर गाली दी, तो उस ऑटो वाले की धाराप्रवाह हिन्दी सुनकर पसीने आ गये। बोला कि गाली दिया इसलिये हिन्दी में अब बोल रहे हैं, गाली क्यों दिया…।

    हिन्दीभाषी इलाका न होने पर भी इतनी अच्छी तरह से हिन्दी बोलना और समझना कैसे संभव है ? इसका सबसे बड़ा योगदान है, बॉलिवुड का, बॉलिवुड की हिन्दी फ़िल्मों के कारण सभी को हिन्दी अच्छॆ से आती है।

    दुबई में ही देख लीजिये वहाँ अरबी अल्पसंख्यक हैं, वहाँ का ट्रैफ़िक पुलिस वाला अगर गाड़ी को रोकेगा और अगर काला आदमी मिलेगा तो सीधे मलयाली में बात करना शुरु कर देगा, और अगर बोलो नहीं मलयाली नहीं तो हिन्दी में शुरु हो जायेगा, हिन्दी भी नहीं तो अंग्रेजी में बोलने लगेगा।

    हिन्दी भाषा बोलने के तरीके से ही पता चल जाता है कि उस व्यक्ति को कितनी हिन्दी बोलनी आती है, जैसे कोई “भाईसाहब” बोलेगा तो सबके बोलने का तरीका अलग अलग होगा, उससे ही पता चल जायेगा कि हिन्दी कितनी गहराई से आती है।

    सब अपनी मातृभाषा से प्रेम करते हैं और वही बोलना चाहते हैं, पर जहाँ पेट की बात आती है, मजबूरी में दूसरी भाषा सीखनी पड़ती है, केरल में ही देख लीजिये सबको हिन्दी बहुत अच्छे से समझ में आती है। पेट के लिये दूसरी भाषा सीखनी ही पढ़ती है क्योंकि वह मजबूरी है। अंग्रेजी भी हम यहाँ पेट भरने के लिये ही सीखते हैं, न कि अपने शौक से।

    जीतू भाई ने कुवैत का एक उदाहरण बताया कि एक डिपार्टमेंटल स्टोर में गये तो अरबी सबको आती है किसी को नहीं भी आती है, वहाँ पर दुकानदार होगा अरबी, खरीदने वाला होगा हिन्दी,  बीच में सेल्समैन होगा फ़िलिपिनो, तीनों बोलेंगे अपनी अपनी भाषा पर समझा देंगे। शारीरिक भाषा, अगर आप कुछ बोलना चाहो कुछ चाहिये तो आप आराम से समझा सकते हैं, और वो भी समझेगा क्योंकि पेट का सवाल है। और कई बार नहीं भी समझ में आता है तो वहाँ पर सफ़ाई करने वाले होते हैं, अधिकतर बंगाली होते हैं, और उनको अधिकतर सारी भाषाएँ आती हैं, वे समझा देते हैं। लेकिन जहाँ तक की शारीरिक भाषा का सवाल है, सब समझा सकते हैं।

    भाषा से कहीं भी अवरोध नहीं होता है, शारीरिक भाषा से भी इसकी पूर्ती की जा सकती है। हम हमारी भाषा का कितना सम्मान करते हैं, ये हम पर और हमारे समाज पर निर्भर करते हैं।

पुरानी मुंबई ब्लॉगर मिलन की रिपोर्टिंग के लिये यहाँ चटका लगायें।

शीघ्र सेवानिवृत्ति कैसे ? भाग १ [Early Retirement How ? Part 1]

    शीघ्र सेवानिवृत्ति के लिये वित्तीय लक्ष्यों को निर्धारित करना आवश्यक होता है, दो महत्वपूर्ण तत्व हैं शीघ्र सेवानिवृत्ति की योजना बनाने के लिये – भविष्य के वित्तीय लक्ष्य और जरुरी मासिक खर्चों का आकलन ।

भविष्य के लिये वित्तीय लक्ष्य कैसे निर्धारित करें –

१. घर – रहने के लिये घर, जो कि आपकी जरुरतों के अनुसार हो सकता है।

२. कार – आपकी जरुरतों के अनुसार।

३. बच्चे की शिक्षा – बच्चे की उच्च शिक्षा में लगभग आज ८-१० लाख रुपये लगते हैं, तो मुद्रास्फ़ीति को ध्यान में रखते हुए, अपने बच्चे की उम्र के हिसाब से कितना धन होगा, निर्धारित करें।

४. बच्चे की शादी – शादी में आज लगभग १० लाख रुपये खर्चे होते हैं, कम या ज्यादा हो सकते हैं। बच्चों की शादी साधारण तरीके से भी हो सकती है।

५. सेवानिवृत्ति धन – यह इतना होना चाहिये कि कम से कम आपके मासिक खर्चे आराम से हो जायें और वर्तमान स्तर का जीवन यापन कर पायें।

कौन से वित्तीय लक्ष्य जरुरी हैं ?

१. बच्चे की शिक्षा

२. सेवानिवृत्ति धन

ये दो लक्ष्य बहुत जरुरी हैं अगर अपना घर नहीं है तो घर भी बहुत जरुरी है। अगर पैतृक घर है तो इस लक्ष्य को हटाया जा सकता है।

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शीघ्र सेवानिवृत्ति की उम्र क्या होनी चाहिये ?आपको कितने चाहिये १५ लाख या १५ करोड़ [Early Retirement !! When ?]

शीघ्र सेवानिवृत्ति कब ? [Early Retirement !! When ?]

    आज के युग में पढ़ाई कम से कम २० वर्ष की हो गई है, और जब तक युवापीढ़ी बाजार में आती है, उसकी उम्र २३-२४ वर्ष हो गई होती है, बाजार में आते ही उसकी नौकरी शुरु हो जाती है, और वह अपने घर के बुजुर्ग के बराबर ही कमाने लगता है और खर्च उनके मुकाबले लगभग बिल्कुल भी नहीं होता है। तो वह अपने शौक पूरे करता है और जो भविष्य की योजना निर्धारित करके चलता है वह अच्छे से निवेशित भी करता है। इस प्रकार वह आराम से सैटल भी हो जाता है और १२-१७ वर्ष में ही अपने सारी योजनाओं को मूर्त रुप दे सकता है, तो उसे ३० वर्ष तक नौकरी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

    शीघ्र सेवानिवृत्ति की उम्र को निर्धारित नहीं किया जा सकता है, जब भी हमारे वित्तीय लक्ष्य पूर्ण हो जायें, तभी शीघ्र सेवानिवृत्ति की सही उम्र होती है। फ़िर भले ही वह ३० वर्ष ही क्यों न हो।

    जरुरी नहीं है कि जो कार्य आप कर रहे हैं वह अपनी इच्छा से कर रहे हों, हो सकता है कि अपनी इच्छा के विरुद्ध कर रहे हों, परंतु भविष्य की चिंता करते हुए और ज्यादा पैसा देखते हुए सोचते हैं कि अब तो यही करना होगा, अगर मन की करी तो लक्ष्य पूर्ण नहीं हो पायेगा।

    शीघ्र सेवानिवृत्ति के लिये वित्तीय लक्ष्यों का पता होना चाहिये और उन वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के बाद कैसे सही तरीके से निवेशित किया जाये यह भी पता होना चाहिये। जिससे खर्चे अच्छे से चलते रहें और आप अपने मनपसंदीदा कार्य में सही तरीके से ध्यान लगा पायें।

    वित्तीय लक्ष्य एक ऐसी विषय वस्तु है जो कि सबके लिये अलग अलग हो सकती है, किसी के लिये १५ लाख भी शीघ्र सेवानिवृत्ति के लिये बहुत होगा और किसी के लिये १५  करोड़ भी कम होगा । तो शीघ्र सेवानिवृत्ति की उम्र तो वित्तीय लक्ष्य साफ़ होने पर ही निर्धारित की जा सकती है।

बताइये क्या आप मेरे नजरिये से सहमत हैं।

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वो १ मिनिट का दृश्य और उसके चेहरे का संतोष…

    वह बहुत तेजी से चावल खा रहा था, जिसमें शायद दाल और कुछ सब्जी मिली हुई थी, पीले रंग की पीतल की तश्तरी से बड़ा सा बर्तन था, उसके बाँहें जो कि साँवली नहीं नहीं काली ही थीं.. उसमें से मसल्स दिख रहे थे… गंदी मैली बनियान या शायद गंदे रंग की बनियान पहने हुआ.. और लुंगी को डबल कर मद्रासी श्टाईल में लपेट कर पहना हुआ था… चेहरे पर गजब का संतोष था.. समय शाम का था लगभग ६.३० बजे का.. चेहरे पर संतोष से ऐसा लग रहा था कि उसने आज जो भी काम किया है उससे वो संतुष्ट है और खुश है कि वह आज का कार्य पूरा कर सका। और यह तो शायद सभी ने महसूस किया होगा जिस दिन कार्य बराबर होता है तो भूख कुछ ज्यादा ही लगती है। दिमाग की किसी ग्रंथी का संबंध जरुर पेट से रहता है।
    यह दृश्य अपने कार्यालय से घर लौटते समय ऑटो से १ मिनिट से भी कम समय में हमने किसी घर में देखा, जो कि सड़क किनारे ही था। केवल १ मिनिट के दृश्य के लिये भी कभी कभी इंसान कितने ही दिन सोचने पर मजबूर हो जाता है।