Monthly Archives: July 2010

गपोड़ी बेटेलाल की गप्प के किस्से ३१०७२०१०

    बेटेलाल को सुबह स्कूल के लिये बस पर छोड़ने जाते हैं तो कल उनकी एक मारक गप्प वहीं सुनी, लगभग ५ मिनिट मिलते हैं रोज जब मैं और मेरा बेटा बिल्कुल पास होते हैं, तो अभी दो दिन से स्कूल बस की जगह वीडियोकोच बस आ रही है, मैंने पूछा कि स्कूल बस कहाँ गई और ये वीडियोकोच बस क्यों आ रही है।
    तो बोले कि दो दिन पहले जब हम स्कूल से घर की ओर आ रहे थे तो हमारे स्कूल के ग्राऊँड में से अचानक धुआँ आने लगा तो पता चला कि बस जल गई, हमने कहा ऐसा क्या, चलो फ़िर तो बस अभी आयेगी तो पूछ लेंगे, तो बोलते हैं
“नहीं डैडी, मत पूछना प्लीज”
मैंने कहा “नहीं उससे पूछना पड़ेगा, कि कैसी बसें चलाते हो स्कूल के लिये”
बेटेलाल बोले “डैडी स्कूलबस नहीं जली थी, मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था” “उल्लू बनाया चरखा चलाया”
पर वीडियोकोच बस में बैठे हुए सारे बच्चे बहुत खुश नजर आते हैं।
 

इटेलियानो पास्ता सचित्र (Iteliano Pasta with Pictures)

    आज जाने कहाँ से ख्याल आया कि आज इटेलियानो पास्ता खाया जाये, पास्ता मसाला मेनिया नहीं,  पर पिज्जाहट और डोमिनो पिज्जा के पास्ते के भाव देखकर होश फ़ाख्ता हो लिये, हमने खुद ही बनाने का महत्वपूर्ण निर्णय ले लिया। और ले आये पास्ता और उसमें लगने वाला समान, सब्जियाँ।
  • समान –
  • पास्ता – २०० ग्राम
  • प्याज –  २
  • शिमला मिर्च – १
  • टमाटर – ४
  • हरी प्याज – १
  • बटर – ३ चम्मच
  • चीज – २ क्यूब

Vegetables Chopped Vegetables
Crushed chees Pasta
Pasta in Boiled Water Cooking Pasta
Iteliano Pasta ready
सारी सब्जियों को मनपसंद आकार में काटकर, बटर में १ मिनिट तक गुलाबी कर लें और फ़िर सब्जियों को भी डाल दें और नमक डाल दें।

पास्ता को पकाने के लिये पहले १-२ लीटर पानी में नमक और १ चम्मच तेल डालकर उबाल लीजिये और जब पानी उबल जाये तो उसमें पास्ता डालकर १०-१२ मिनिट तक पका लें फ़िर पानी नितार कर इस पास्ता को बनी हुई सब्जी में डाल दें और चीज को किसकर डाल दें, नमक स्वादानुसार डाल लें। अगर टमाटर सॉस डालना है तो वो भी डाल सकते हैं, तैयार हो गया इटेलियानो पास्ता।
पकाने का समय – १०-१२ मिनिट

३० मिनिट में डिलेवरी देने वाले फ़्रेंचाईजी से लेने से अच्छा हमें खुद ही बनाना अच्छा लगा और पूरे ३० मिनिट भी नहीं लगे समान खरीदने, सब्जी काटने और बनाने में।

कुल लागत – लगभग ६०-६५ रुपये ३-४ लोगों के लिये अच्छी मात्रा में। और अगर बहुराष्ट्रीय कंपनी को ऑर्डर देते तो बिल होता कम से कम २४० रुपये और पास्ता की मात्रा भी कम। यम्मी यम्मी बना पास्ता।

प्रात:भ्रमण के दौरान “मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे रे…”

    आज सुबह घूमने के दौरान कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं, घूमते हुए एक वृद्ध सज्जन के पास से निकले तो उनके जेब में रखे मोबाईल से गाना बज रहा था “मधुबन में राधिका नाचे रे, गिरधर की मुरलिया बाजे रे…”, हमें अपने घर की याद आ गई, क्योंकि हमारे पापा और मम्मी जी को भी यह गाना बहुत पसंद है, और मुझे भी, शास्त्रीय संगीत पर आधारित (मेरे ज्ञान के अनुसार) गाना लाजबाब है।

कोहिनूर (1960) फ़िल्म के इस  गाने का लुत्फ़ उठाईये –

व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, क्या आपके साथ दुर्घटना नहीं हो सकती [Personal Accident Insurance Policy]

    शर्मा साहब ३४ वर्ष के हैं, हँसता खेलता परिवार है उनका, प्यारी सी पत्नी और प्यारे प्यारे दो बच्चे हैं। भविष्य की सारी योजनाओं के लिये शर्मा साहब ने बराबर वित्तीय प्रबंधन कर रखा है। और सभी चीजों का ध्यान रखा हुआ था, बीमा से लेकर बाकी सभी सही वित्तीय उत्पादों में उन्होंने निवेश किया हुआ है। शर्मा साहब पेशेवर सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं, और बाकी लोगों की तरह अपने ऑफ़िस रोज आते जाते हैं। वे मुंबई के बाहरी उपनगर में रहते हैं, जहाँ परिवार के लिये सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पर रोज अपने ऑफ़िस जाना उनके लिये सबसे बड़ा सरदर्द है। उनको रोज लोकल ट्रेन से अपने ऑफ़िस आना जाना होता, और भीड़ इतनी होती कि कई बार तो लोकल ट्रेन के पायदान पर खड़े होकर यात्रा करना होती। एक दिन रोज की यात्रा के दौरान शर्मा साहब चलती लोकल ट्रेन से गिर पड़े, अब शर्मा साहब शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ्य नहीं थे, उन्होंने अपने दोनों पैर इस दुर्घटना में गँवा दिये, और अपने ऑफ़िस जाने की स्थिती में भी नहीं थे, स्वास्थ्य के खर्चे इतने बढ़ गये कि वे होमलोन में डिफ़ाल्टर हो गये। और जितना पैसा उन्होंने बचाया था वह बहुत तेजी से खर्च होने लगा।

    शर्मा साहब का जीवन बहुत ही बुरी स्थिती में पहुँच गया। तो आपको क्या लगता है ? कि इस स्थिती से निपटने के लिये वे क्या कर सकते थे ? खैर अगर वे मात्र ५०० से १००० रुपये की कोई दुर्घटना बीमा योजना अपने लिये ले लेते तो इस तरह से उन्हें वित्तीय प्रबंधन में असफ़लता नहीं होती।

    शर्मा साहब की कहानी केवल एक उनकी ही नहीं है, हम लोग रोज यात्राएँ करते हैं इतने जोखिम हमेशा आसपास रहते हैं, पर यह सोचते हैं कि हमारे साथ दुर्घटनाएँ हो ही नहीं सकती हैं। असल में जिंदगी जीने का एक तरीका वह है। अगर कुछ हो जाये……. तो उसके लिये एक अच्छी रणनीति बनायें अपने लिये व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना लें।

जोखिम क्यों लेना ?

    थोड़ा सा ऐसे समझें कि अपने परिवार के सुरक्षा के लिये आपने मृत्यु के जोखिम से बचाने के लिये जीवन बीमा लिया है। यह समान तर्क अपने लिये दें तो, कि अगर आपकी आय बंद हो जाये, आपके साथ घटी भयानक दुर्घटना के कारण अगर आप अपने कार्य पर जाने में सक्षम नहीं हैं तो ….? आपकी आय बंद हो जायेगी। इस तरह के स्थिती से बचने के लिये व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना लिया जाना चाहिये। अगर आप अस्थायी या स्थायी विकलांग होने की स्थिती में अपने वित्तीय जोखिम को हस्तांतरित कर सकते हैं, तो आप क्यों नहीं करते ?

किन लोगों को इसकी जरुरत है ?

    व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना से आप किसी अनचाही दुर्घटना से अस्थायी या स्थायी विकलांग होने की स्थिती में हो सकने वाले वित्तीय जोखिम से सुरक्षित रह सकते हैं। तो हर उस  व्यक्ति को यह दुर्घटना बीमा योजना लेना चाहिये जो अपने आपको और अपने परिवार को ऐसी किसी भी स्थिती से होने वाले वित्तीय जोखिम से बचाना चाहता है। और अगर केवल आप ही अपने परिवार में कमाने वाले हैं तब तो यह बहुत ही जरुरी है। व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना १८ से ७० वर्ष के किसी भी व्यक्ति द्वारा ली जा सकती है।

क्या सुरक्षा मिलती है ?

    व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना से आपको सुरक्षा मिलती है, नॉमिनी को दुर्घटना से होने वाली आकस्मिक मौत की स्थिती में बीमा धन, संपूर्ण या आंशिक विकलांगता या अस्थायी विकलांगता की स्थिती में कुछ निश्चित बीमा धन की सुरक्षा मिलती है। बीमित राशि का भुगतान आंशिक हो सकता है या पूर्ण भी हो सकता है यह दुर्घटना की गंभीरता पर निर्भर करता है।

    उदाहरण के लिये – यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेन्स की व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना में आकस्मिक मृत्यु या स्थायी पूर्ण अशक्तता  या कोई दो अंग (या दोनों आँखें) न रहने की स्थिती में बीमित राशि का १००% भुगतान होगा। पर आंशिक विकलांगता की स्थिती में याने कि किसी भी एक अंग या एक आँख के नुक्सान होने पर बीमित राशी के ५०% का भुगतान किया जाता है। अस्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिती में बीमा कंपनी बीमित रकम का १% का भुगतान हर सप्ताह करती है जो कि अधिकतम ३००० रुपये और अधिकतम ५२ सप्ताह के लिये दिया जाता है। स्थायी आंशिक विकलांगता के मामले में भुगतान बीमित रकम का कुछ भाग होगा जो कि योजना के नियम और शर्तों के मुताबिक होगा। प्रीमियम की राशि आपके बीमित रकम की राशी पर निर्भर करती है। अतिरिक्त प्रीमियम भुगतान करने पर स्वास्थ्य व्यय के जोखिम से भी सुरक्षा पा सकते हैं। लगभग सभी कंपनियों की योजनाओं के मानक समान ही होते हैं पर सभी कंपनियों की बीमा शर्तें अलग हो सकती हैं। हालांकि व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना एक करार जैसा होता है, आप अगर किसी अंग का ज्यादा रकम का बीमा करवाना चाहते हैं तो करवा सकते हैं। योजना में शर्तें बिल्कुल साफ़ शब्दों में लिखी होती हैं।

    फ़िर भी आपको योजना के नियम और शर्तें पूरी तरह से पढ़ लेना चाहिये कि उसमें किस अंग की कितनी बीमा धन से सुरक्षा है।

स्वास्थय, जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा में क्या संबंध है ?

    आपमें से कुछ लोगों ने स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा, अपने वाहन का बीमा तो ले रखा है और आप सोचते हैं कि मुझे व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना की कोई जरुरत नहीं हैं। आपके बीमा एजेन्ट ने जीवन बीमा बेचते समय आपको बताया था कि इसमें दुर्घटना बीमा से भी सुरक्षा है, बीमा एजेन्ट की कही गई बातों पर आँख बंद करके विश्वास मत कीजिये और जीवन बीमा योजना के दस्तावेजों को ध्यान से पढ़िये। शायद ही कोई जीवन बीमा योजना दुर्घटना के जोखिम से सुरक्षा देती है, आमतौर पर ऐसा नहीं होता है और जोखिम से पर्याप्त सुरक्षा भी नहीं होती है। तो इसलिये यह मेरी सलाह है कि अलग से व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना जरुर लें जो कि आपके जीवन में होने वाली आकस्मिक स्थिती में वित्तीय जोखिम से सुरक्षा प्रदान करे। भारत में दुर्घटना बीमा योजना के लिये  प्रीमियम की राशि पूरे विश्व में सबसे कम है। जो कि १५०-१८० रुपये प्रति लाख रुपये के लिये होती है। अब सोच क्या रहे हैं जल्दी से व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना लीजिये और अपने को और अपने परिवार को सुरक्षित कीजिये या इंतजार कर रहे हैं किसी आकस्मिक दुर्घटना का ….।

अंधेरी में ज्ञान पाने के लिये मुंबई के २ २ मिनिट की कीमत बारिश के बीच जद्दोजहद …. विवेक रस्तोगी

    आज अंधेरी में जागोइन्वेसटर पाठक मिलन था, समय तय किया गया था सुबह १० बजे से दोपहर २ बजे तक । क्लास रुम का जितना भी खर्च आना था वह सबको साझा करना था। सही मायने में वित्तीय प्रबंधन शिक्षा के लिये यह मुंबई में शुरु किया गया एक प्रयास है। जागोइन्वेस्टर.कॉम ब्लॉग मनीष चौहान लिखते हैं।

   तो सुबह ९ बजे घर से निकल पड़े थे क्योंकि अंधेरी पहुँचने में पुरे ४५ मिनिट का अनुमान लगाया था। ९ बजे नहीं निकल पाये हम निकल पाये ९.०५ बजे घर से और हाईवे तक पैदल बस स्टॉप पर ९.०८ बजे पहुँच गये। वहाँ जाकर बोरिवली स्टेशन की बस पकड़ी, हमारा अनुमान था कि लगभग ९.१७ बजे तक हम बोरिवली स्टेशान पहुँच जायेंगे।

    बोरिवली से कांदिवली ३ मिनिट, कांदिवली से मालाड ४ मिनिट, मलाड से गोरेगांव ४ मिनिट, गोरेगांव से जोगेश्वरी ६ मिनिट और जोगेश्वरी से अंधेरी लगभग ३ मिनिट लगता है, याने कि बोरिवली से अंधेरी २० मिनिट लगते हैं।

  और फ़िर हमें टिकट भी लेना था क्योंकि हम रोज लोकल ट्रेन में तो जाते नहीं हैं, हमारे पास रेलकार्ड है, जिसे कि रेल्वे स्टेशन पर लगे टर्मिनल से फ़टाफ़ट टिकट लिया जा सकता है। हमने रिटर्न टिकट लिया मतलब बोरिवली से अंधेरी जाने का और वापस बोरिवली आने का।

    फ़िर वहीं लगे उद्घोषणा टीवी पर देखा कि ९.२१ की चर्चगेट स्लो तीन नंबर प्लेटफ़ॉर्म और ९.२५ की चर्चगेट फ़ास्ट दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर थी। हम फ़टाफ़ट दौड़ते हुए २-३ प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचे और ब्रिज से ही देखा कि ९.२१ की ट्रेन तो नदारद थी लगा कि चली गई परंतु भीड़ देखकर और इंडिकेटर पर ९.२१ का समय देखकर अंदाजा लगाया  कि ट्रेन लेट है। हमें तो अंधेरी तक ही जाना था तो हम ९.२५ की लोकल में चढ़ लिये।

  सेकंड क्लॉस के डिब्बे में बहुत दिन बाद चढ़े थे, अरे लोकल में ही बहुत दिनों बाद चढ़े थे और पीक समय था पर शनिवार होने के कारण चढ़ने को मिल गया था। अंदर घुसते ही पीछे से धक्का पड़ा और आवाज आई “अंदर दबा के चलो …. ” “भाईसाहब जरा धक्का मारकर !!!”, हम हाथ में छाता और अपनी किताब कापी पकड़े भीड़ में दुबके खड़े थे, जो गेट पर खड़े थे वो हर स्टॆशन पर दरवाजे की जनता का बराबर तरीके प्रबंधन कर रहे थे, “ए कांदिवली वालों को चढ़ने दे रे, जगह दे रे…”, “ऐ मालाड चलो आओ रे, ऐ इस तरफ़ से नहीं चढ़ने का” “ चल दबाके अंदर होले…”

    फ़िर जोगेश्वरी निकला और हम भी गेट के पीछे की भीड़ में लाईन में खड़े हो लिये और आगे वाले से पूछ कर आश्वस्त हो लिये “अंधेरी….” तो उसने धीरे गर्दन “हाँ” में हिला दी, और बाहर बारिश अपने पूरे जोरों से शुरु हो चुकी थी, ऐसी बारिश मुंबई के लिये थोड़ी अच्छी नहीं होती क्योंकि मुंबई में बारिश का पानी भर जाता है।

    जैसे ही अंधेरी स्टेशन आया तो आवाज आई “ऐ चल उड़ी मार उड़ी…” और जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकती तब तक तो हम भी प्लेटफ़ॉर्म पर थे। बारिश पूरे जोरों पर थी, हमने एक ओर पाठक से ९.४५ पर मिलना तय किया था, अंधेरी स्टेशन के एक्सिस बैंक के ए.टी.एम. के पास, वो हैं आशुतोष तिवारी जो कि हिन्दी ब्लॉगर भी हैं उनका ब्लॉग है मेरी अनुभूतियाँ । जोरों की बारिश में हम चल दिये अपने गंतव्य की ओर।

    वहाँ जाकर ४ घंटॆ कैसे निकल गये पता ही नहीं चला, गजेन्द्र ठाकुर जो कि सी.एफ़.पी. भी हैं, उन्होंने म्यूचयल फ़ंड पर इतनी अच्छी जानकारियाँ जुटाई थीं, कि समय का पता ही नहीं चला। अब अगली मीटिंग का दिन २८ अगस्त का है जिसमें एस.आई.पी., एस.टी.पी और एस.ड्ब्ल्यू.पी. पर जानकारी साझा की जायेगी।

झाबुआ कॉलेज जाते समय दो तालाब और भी बहुत सारी यादें…. मेरे किस्से … विवेक रस्तोगी

    कॉलेज में पहले वर्ष में ही कॉलेज की हवा लग गयी, झाबुआ जी हाँ यह मध्यप्रदेश में एक आदिवासी क्षैत्र है और यहाँ के भील भिलाले बहुत प्रसिद्ध हैं। पहले भी एक पोस्ट लिखी है यहाँ चटका लगाकर देख सकते हैं “झाबुआ के भील मामा”।

    अपने कॉलेज जाते समय बीच में दो तालाब पड़ते थे, पहला तालाब तो हमारे घर के पास ही था और उसमें पानी थोड़ा कम होता था, केवल बरसात में पुरा जाता था। दूसरा तालाब हमारे कॉलेज के पास था जिसे पार करने के बाद ही कॉलेज जाया जा सकता था। बहुत ही सुन्दर दृश्य बनता था, और खासकर बारिश में तो कहने ही क्या, पुल के ऊपर एक फ़ीट पानी बहता था और कॉलेज आने जाने वाले रेलिंग के सहारे तालाब पार किया करते थे। तालाब में कमल के फ़ूल खिला करते थे कभी कोई कमल पास में खिल गया तो हम उसे ऐसे ही तोड़ लिया करते थे।

    दूर से ही तालाब का पुल दिखाई पड़ता था, वहीं दूर से ही कोई हरे,नीले रंग की स्कर्ट पहनी हुई लड़की दिखाई देती, तो साईकिल और तेज कर देते, पता है पास जाकर देखते कि भील जा रहा है, वहाँ के भील लोगों का पहनावा है यह, शाल को लँगी जैसा लपेट लेंगे और दूर से ऐसा लगेगा कि लड़की जा रही है, पास जाकर देखा तो भील मामा।

एक शेर अर्ज किया करते थे –

“दूर से देखा तो लगा हेमामालिनी बाल हिला रही है,

पास जाकर देखा तो पता चला कि भैंस पूँछ हिला रही है।”

    वहीं पास में भील कमल की जड़ याने कि कमलककड़ी वहीं से तोड़कर बेचते थे। कमल में लक्ष्मीजी रहती हैं, इसलिये हम कमल को बहुत पसंद किया करते थे, एक हमारा मित्र था नाम उसका भी कमल था, बस काला था तो हमने उसका नाम कालिया रख दिया था, और हम लोग कहते थे कमल कालिया, काला पड़ने की भी कहानी है, झाबुआ आने के पहले उसके पिताजी खरगोन में रहते थे, और खरगोन निमाड़ में आता है, कहते हैं निमाड़ की गर्मी में अच्छे अच्छे जल जाते हैं, इतनी झुलसती हुई गर्मी होती है निमाड़ में।

    कॉलेज के इस तालाब के एक किनारे शायद मंदिर था और दूसरे किनारे सर्किट हाऊस था, फ़िर थोड़े आगे जाने पर बायीं तरफ़ आदिवासी होस्टल था और फ़िर कॉलेज, कॉलेज के गेट के पहले एक रास्ता बायीं तरफ़ जाती थी जो कि गोपाल कॉलोनी का शार्टकट था और मेन रोड से बसें और अन्य परिवहन साधन रानापुर की ओर जाते थे, आगे कहाँ जाते थे वह हमें अब याद नहीं आ पा रहा है।

    कॉलेज के गेट में प्रवेश करते ही पार्किंग के लिये दो स्टेंड बने हुए थे जिसमें शेड भी लगे थे, और आगे जाने पर “शहीद चंद्रशेखर आजाद” की प्रतिमा लगी थी, और हमारे कॉलेज का नाम है “शहीद चंद्रशेखर आजाद महाविद्यालय, झाबुआ”, फ़िर कॉलेज की इमारत और पीछे की ओर बड़ा मैदान। जहाँ पर हम एन.सी.सी. की परेड किया करते थे फ़िर बाद में करवाते थे। बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं।

shahid chandra shekhar aazad

शहीद चंद्रशेखर आजाद को मेरा नमन

सुरक्षित निवेश मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) के संग (Secured Investment through MIPs [MF])

    मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) मुख्यत: डेब्ट उत्पादों पर आधारित योजना है, जिसमें आमतौर पर कोष का ८०% तक डेब्ट उत्पादों में और बाकी का इक्विटी उत्पादों में निवेश किया जाता है।

    मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) का मुख्य उद्देश्य निवेशकों को नियमित रुप से लाभांश के रुप में भुगतान करना होता है, हालांकि यह अनिवार्य नहीं होता है, लाभांश का वितरण फ़ंड हाउस के विवेक और वितरण योग्य धन होने पर निर्भर करता है।

निवेश के उद्देश्य –

    मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) का मुख्य उद्देश्य निवेशकों को नियमित रुप से लाभांश प्रदान करना है जो कि ज्यादातर डेब्ट उत्पादों और एक छोटा हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जाता है। ये मुख्यत: यील्ड ब्याज दर के डेब्ट उत्पादों (कमर्शियल पेपर्स, सर्टिफ़िकेट ऑफ़ डिपोजिट, गोवरमेंट सिक्योरिटिज और ट्रेजरी बिल्स) में निवेश करते हैं। डेब्ट उत्पाद पोर्टफ़ोलियो को स्थिरता और निरंतर वापसी की सुनिश्चितता प्रदान करते हैं, जबकि इक्विटी उत्पाद  ज्यादा वापसी के लिये सहायक होता है। मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) बाजार से जुड़े रहते हैं (केवल उतने हिस्से के लिये जितने कि इक्विटी में निवेश है)।

जोखिम –

    पोर्टफ़ोलियो में डेब्ट उत्पादों के होने से, मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) अर्थव्यवस्था में होने वाले ब्याज दर परिवर्तन प्रभावी होते हैं (क्योंकि अधिकतर उत्पाद डेब्ट उत्पाद होते हैं) ।

    जब अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों में कमी आती है तब मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) की एन.ए.वी. बड़ जाती है (बॉन्ड की कीमतों में वृद्धि के कारण)।

    और अगर ब्याज दर बढ़ती है तो मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) की एन.ए.वी. कम हो जाती है, इस समय  तब अच्छी वापसी के लिये इस उत्पाद को इक्विटी पर निर्भर रहना पड़ता है।

    पोर्टफ़ोलियो में इक्विटी उत्पाद शामिल से : चूँकि मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) बाजार से जुड़े हैं (जो कि आमतौर पर १५-२०% तक रहता है) । ये बैलेन्सड फ़ंड से कम जोखिम वाले होते हैं (इसमें ६०-७०% तक इक्विटी में निवेश होता है)  लेकिन शुद्ध डेब्ट फ़ंडों से थोड़ा जोखिम वाले होते हैं (शुद्ध डेब्ट फ़ंड केवल डेब्ट प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं)।

    कोई भी सही सही भविष्यवाणी तो कर नहीं सकता कि कब शेयर बाजार और डेब्ट बाजार अपने उतार चढ़ाव पर होंगे। यह निवेशको के लिये पूँजी कटाव और लाभांश का भुगतान न होने का जोखिम पैदा करता है। अधिकांश मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) के फ़ंड मैनेजर अतीत में कुख्यात रह चुके हैं, डेब्ट निवेश में से ३०% तक का निवेश इक्विटी बाजार में निवेश करने के बाद और बाजार का पूरा मजा लेते हैं जब बाजार अपने पूरे जलवे पर होता है, जिससे इस शेयर बाजार के चढ़ाव का फ़ायदा निवेशक को होता है और एन.ए.वी. काफ़ी बड़ जाता है, पर इसके उलट अगर उतार हो एन.ए.वी. कम हो जाता है यानि के निवेशक को नुकसान।

    निवेशक को इक्विटी पोर्टफ़ोलियो का मूल्यांकन कर लेना चाहिये और जोखिम स्वीकार्य होने के बाद ही निवेश करना चाहिये।

रिटर्न – मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) सीमित अस्थिरता के साथ  स्थिर रिटर्न देता है, पिछले तीन वर्षों में, अधिकतर मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) ने १२-१३% का औसत रिटर्न दिया है।

अवधि – मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) को कम से कम ३-५ वर्ष के लिये निवेश करना चाहिये।

कर कितना लगेगा – मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) डेब्ट फ़ंड है, पर लाभांश पर लाभांश वितरण कर (१२.८६७%) है।

    अगर एक वर्ष के पहले फ़ंड की यूनिट बेचते हैं और उस पर अगर कुछ लाभ है तो उस पर शार्ट टर्म कैपिटल गैन कर लागू होता है, शुद्ध लाभ को आपकी करयोग्य आय में जोड़ दिया जायेगा और जो भी व्यक्तिगत आयकर की स्लैब लागू होगी। और अगर एक वर्ष के बाद बेचते हैं, और लाभ होता है तो लांग टर्म कैपिटल गैन कर लगेगा जो कि १०% होता है (इंडेक्सेशन के बिना) और २०% इंडेक्सेशन लाभ के साथ, जो भी कम हो।

निवेश किसे करना चाहिये –

    ज्यादा जोखिम न उठाने वाले निवेशक जो कि बैंक सावधि जमा से ज्यादा अच्छे और सुरक्षित रिटर्न चाहते हैं, उनके लिये मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) अच्छा विकल्प है। हालांकि मासिक रिटर्न की गारंटी नहीं है, स्थिर आय के लिये बैंक के जैसे नहीं है।

स्कीम नाम एन.ए.वी. १ वर्ष के रिटर्न ५ वर्ष के रिटर्न
HDFC MIP Long Term 21.997 14.6 13
Reliance MIP 20.947 14.6 12.9
Canara Robeco 28.43 10.4 13.7

NAV as on 22 July 2010

मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) के विकल्प –

    मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) के विकल्प हैं बैंक की सावधि जमा योजना, पोस्ट ऑफ़िस एम.आई.पी., फ़िक्स्ड मैच्योरिटी प्लान्स।

निष्कर्ष –

    मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) आपको हर माह निश्चित राशि नहीं मिलती है। हर मासिक लाभांश ब्याज दर के उतार चढ़ाव और बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर रहता है। लेकिन मासिक आय योजना (म्यूचयल फ़ंड) “नियमित आय उत्पाद” की श्रेणी में सबसे ज्यादा रिटर्न देने के कारण सबसे अच्छॆ हैं और कर में भी।

    नियमित आय के लिए म्युचुअल फंड की एमआइपी पर या किसी एक ही उत्पाद पर ही निर्भर नहीं होना चाहिये । अपने निवेशों को हमेशा अलग अलग जगह करना चाहिये जिससे हानि कम से कम हो।

सिगरेट का असली नशा तो धुआँ अंदर लेने पर ही होता है, और असली नुक्सान भी। …. अपने किस्से … विवेक रस्तोगी

    कॉलेज के मेनगेट पर शटर के पास बैठकर दो विल्स मुँह में दबाई और चपरासी काका से शिप माचिस ली फ़िर उसमें से एक तीली निकाली और आग लगाने के लिये जैसे ही माचिस पर घर्षण करने वाले थे कि प्रिंसिपल सर आते दिखे, चुपचाप माचिस साईड में रखी, दोनों विल्स सिगरेट एक हाथ में पीछे दबाई और प्रिंसिपल सर जैसे ही पास आये दूसरे हाथ से झुककर चरण स्पर्श किये, और प्रिंसिपल सर अंदर अपने रुम में चले गये।

    फ़िर वापिस से दोनों विल्स मुँह में और माचिस की तीली घर्षण के लिये अग्रसर, और एक सर्र की आवाज से तीली जली और मुँह में लगी दोनों विल्स सिगरेट में जोर से अंदर कश मारा, जिससे दोनों विल्स सिगरेट एक बार में ही जल ली।

    एक विल्स सिगरेट अपने दोस्त को दी और दूसरी अपने मुँह में दबाये कश खींचे जा रहे थे, तब सिगरेट पीनी तो आती नहीं थी, बस झांकीबाजी करते थे, मुँह में धुआँ लेकर नाक से निकालने को ही सिगरेट पीना समझते थे।

हमारे एक सीनियर आये जो कि अच्छॆ मित्र भी थे, बोले “ऐ क्यों सिगरेट खराब कर रहे हो”

हम बोले “क्यों”

सीनियर बोले “बताओ हम बताते हैं कि सिगरेट कैसे पीते हैं”

    और उन्होंने हमारे हाथ से सिगरेट ली और कश अंदर खींचा और धुएँ का तो अता पता ही नहीं था बोले धुआँ पेट में अंदर तक लो तभी तो नशे का मजा आयेगा। फ़िर थोड़ी देर बाद अपने पेट में से पता नहीं कैसे पूरा धुआँ मुँह से बाहर निकाला। हम तो देखकर ही दंग रह गये, कि ऐसा भी होता है।

सीनियर बोले “अब ऐसा करके बताओ”

हम बोले “लाओ, हम भी करके देखते हैं”

    फ़िर जो सुट्टा मारा तो जो खाँसे कि बस आँखें लाल और आँखों से पानी बाहर, सिगरेट पीने का अभ्यास बहुत ही महँगा सा लग रहा था। पर माने नहीं, केवल दो दिन की सिगरेट प्रेक्टिस के बाद उस्तादी हो गई।

    साथ ही हमें सीनियर ने बताया कि सिगरेट का असली नशा तो धुआँ अंदर लेने पर ही होता है, और असली नुक्सान भी।

तुम कहाँ कहाँ से आती हो …. मेरी कविता …… विवेक रस्तोगी

तुम कहाँ कहाँ से आती हो

कभी मेरे लेपटॉप के कीबोर्ड से

कभी मेरे उदात्त्त मन से

कभी दुखभरे दिल से

कभी उमंग भरे मन से

कभी मेरी अलमारी के अंदर से

कभी मेरे तकिये के नीचे से

कभी मेरे बेटे के जबां से

कभी बारिश की बूँदों से

कभी ठंडे पानी से नहाते हुए

कभी सोते समय कभी उठते समय

कभी डोर से उतरती हुई

कभी डोर से चढ़ती हुई

पर जब तुम आती हो

तो ऐ “कविता”

सबके होश उड़ाती आती हो।

चांसलर सिगरेट के कसैलेपन से विल्स तक का सफ़र और ऐश की परिभाषा…

    चांसलर सिगरेट लेकर टेकरी के पीछे छुपते हुए दोनों साईकिल से जाते थे…… किसी पहाड़ी में छिपकर रोज वो चांसलर सिगरेट जो गहरे चाकलेटी रंग की होती थी…थोड़ी मीठी सी लगती थी … पर दो-चार कश लेने के बाद फ़िर कड़वी लगने लगती थी… क्यों वो बाद में पता चला .. सिगरेट तो पीनी आती नहीं थी ….. पहले कश में ही सिगरेट का फ़िल्टर अपनी जीभ से गीला कर देते थे और फ़िर वो कसैलापन मुँह में चढ़ता ही जाता ।

    सिगरेट के जलते हुए सिरे को देखते हुए उस सिगरेट को खत्म होते देखते थे… सिगरेट का धुआँ और उसकी तपन शुरु में असहनीय होती थी… बाद में पता चला कि जब सिगरेट जलती है और जो आग उस सिगरेट को ऐश में बदलती है उसका तापमान १०० डिग्री होता है… पहली बार हमारे भौतिकी विज्ञान के प्रोफ़ेसर ने बताया था कि इसे ऐश कहते हैं…

    हम तब तक जिंदगी के मजे लेने को ही ऐश समझते थे, पर उस दिन हमें असलई ऐश समझ आई कि सिगरेट की राख जो कि जिंदगी को भी राख बना देती है, उसे ऐश कहते हैं… पता था कि ऐश करना अच्छी बात नहीं है… परंतु बहुत देर बाद समझ में आई ये बात…

    एक मित्र था कालिया कहता था कि किसी भी नये शहर में जाओ तो सिगरेट और दारु से दांत काटे मित्र बड़ी ही आसानी से बन जाते हैं, किसी भी पान की गुमटी को अपना अडडा बना लो और फ़िर देखो …. जब शहर बदला तो यही फ़ार्मुला अपनाया और चांसलर छोड़ विल्स के साथ बहुत से दोस्त बनाये…

    अब लगता है वो ऐश खत्म होने से अच्छी दोस्ती खत्म हो गई, लोग आपस में बात करने के लिये समय नहीं निकाल पाते… कम से कम ऐश करते समय आपस में पाँच मिनिट बतिया तो लेते हैं…

पर क्या करे हम ऐश करना छोड़ चुके हैं…. पर वो चांसलर का कसैलापन अभी भी याद है…