Monthly Archives: August 2010

मुंबई की बारिश, जीवन अस्त व्यस्त है, बारिश बड़ी मस्त है, बारिश के बहाने जीवन की कुछ बातें.. (Rain in Mumbai)

    मुंबई में आज लगातार तीसरा दिन है बारिश का, वो भी झमाझम बारिश का। पारिवारिक मित्रों के साथ सप्ताहांत पर बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया गया था परंतु बारिश ने सब चौपट कर दिया सुबह से ही बारिश ऐसी जमी कि सब चौपट हो गया। जाना भी दूर था सोचा कि अगर अकेले होते तब तो कोई बात ही नहीं थी, परंतु साथ में बीबी और बच्चा हालत खराब कि कहीं कोई विकेट डाउन न हो जाये, क्योंकि अगले दिन बेटे को स्कूल भी जाना था।
    बारिश भी ऐसी की छतरी भी फ़ेल है, इस बारिश के सामने !! बारिश की फ़ुहारें कभी हल्की कभी तेज और हवा चारों तरफ़ से चलती हुई, छतरी होते हुए भी पूरे भीगे हुए, और जब ऑफ़िस पहुँच जायें तो एक दूसरे को देखें कि “अरे सूखे कैसे आ गये !”
    आज सुबह की ही बात थी, ऑफ़िस पहुँचे वो भी पूरे हल्के से गीले, भीगे हुए, धीमी धीमी बौछारों से, छतरी भी पूरी तरह से बारिश के पानी से तरबतर, लिफ़्ट में गये तो लिफ़्ट में भी ऐसा लगा कि आधा इंच पानी भरा हुआ है, वैसे तो हम रोज ही सीढ़ियों का उपयोग करते हैं, परंतु बारिश में जोखिम नहीं ले सकते क्योंकि सभी जगह फ़िसलन होती है, कब कहाँ रपट जायें कुछ कहा नहीं जा सकता।
    वैसे आजकल मोबाईल पर एस.एम.एस. आ जाते हैं कि फ़लाने समय पर हाईटाइड है, कभी मुंबई पोलिस से कभी हिन्दुस्तान टाईम्स से, पर मुंबई को बारिश से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, मुंबई की रफ़्तार कम नहीं होती, तभी तो कहते हैं, “ई है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ”।
    बारिश की बात की जाये और गाना न हो तो मजा ना आये, ये देखिये “आज रपट जायें तो हमें न उठइयो”।
    शाम घर के लिये निकलते समय फ़िर बारिश जोरों से आ गई वो भी चारों तरफ़ हवाओं के साथ, बारिश में मुंबई के ट्राफ़िक की हालत बिल्कुल खराब होती है, बड़ी मुश्किल से २५-३० मिनिट बाद ऑटो मिला, सड़क पर गड्डे जिनमें बारिश का शुद्ध पानी भरा हुआ था, पता ही नहीं चलता कि वाहन निकल जायेगा या फ़ँस जायेगा। रास्ते में एक जगह ऐसी पड़ती है जहाँ सड़क के बीचों बीच में सीवर का ढ़क्कन है, और दो दिनों से उसमें से पानी निकलता हुआ देख रहा हूँ, ऐसा लगता है कि जमीन में से फ़व्वारा फ़ूटा हुआ है। वाह रे दरिया से घिरे हुए मुंबई जिसके चारों ओर दरिया हो और अब बीच शहर में भी दरिया जैसा ही हो रहा है।
    घर आकर फ़िर बाजार जाना हुआ तो सड़क की दुर्दशा देखकर मन बैचेन हो गया और कुछ कविता करने को मन मचलने लगा, दो ही पंक्ति बन पाईं, और भी बनी थीं पर घर आते आते भूल गया –
“जीवन अस्त व्यस्त है
बारिश बड़ी मस्त है”
    सड़क पर बने गड़्ड़ो को लांघते हुए निकल रहे थे, तो ऐसा लग रहा था कि ऐसे ही जाने कितने गड्ड़े अपने जिंदगी में भी बने हुए हैं जिनको लांघकर हम निकल लेते हैं और जब वह गड्ड़ा बड़ा होता है तो उसमें पैर रखकर आगे बढ़ना ही होता है बस वैसे ही जिंदगी की कुछ मुश्किलें जिन्हें हम लांघ नहीं पाते, उन मुश्किलों में से निकलना ही पड़ता है। और एक बार जब जूता गीला हो जाता है फ़िर हम बारिश के पानी से भरे गड्ड़ों की परवाह न करते हुए फ़टाफ़ट अपनी मंजिल पर पहुँच जाते हैं वैसे ही जिंदगी के साथ भी होता है, मुश्किलें सहते सहते हमें उनकी आदत पड़ जाती है और हम अपनी जिंदगी में उन मुश्किलों की परवाह किये बिना आगे बड़ते रहते हैं, कभी बुझे मन से कभी प्रफ़ुल्लित होकर अच्छे मन से, केवल समय का फ़र्क होता है।
    एक मुहावरा जो कि पत्नी जी के मुँह से कई बार सुन चुके थे आज फ़िर से सुना “ऐसा लगा कि कोई आज खरहरी खाट से सोकर उठा है”।

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल के दर्शन और रक्षाबंधन पर सवा लाख लड्डुओं का भोग ४ (Travel from Mumbai to Ujjain 4, Mahakal Darshan)

    सुबह उठते ही नई उमंग थी क्योंकि आज रक्षाबंधन था, कोई बहन नहीं है परंतु खुशी इस बात की थी कि हमारे बेटेलाल की अब बहन घर में आ गई थी और उसने राखी भेजी थी, एक त्यौहार जो हमने कभी मन में तरंग नहीं जगा पाता था वह त्यौहार अब हमारे घर में सबको तरंगित करता है।

    पापा की बहनें हैं और उनकी ही राखियाँ हम भी बाँध लेते हैं, क्योंकि हमें भी भेजी जाती हैं। देखिये राखी के कुछ फ़ोटो और साथ में मिठाई –

Rakhi aur Mithai Harsh aur mere papaji

    फ़िर चल दिये महाकाल के दर्शन करने के लिये, महाकाल पहुँच कर पता चला कि बहुत लंबी लाईन है और ज्यादा समय लगेगा, हमारे पास समय कम था क्योंकि शाम को वापिस मुंबई की ट्रेन भी पकड़नी थी। हमने पहली बार विशेष दर्शन के लिये सोचा जो कि १५१ रुपये का था, और वाकई मात्र ५ मिनिट में बाबा महाकाल के सामने थे, १५१ रुपये के विशेष दर्शन के टिकट से हम तीनों ने दर्शन किये और धन्य हुए। अटाटूट भीड़ थी महाकाल में।

Mahakal bahar se darshan

    महाकाल में रक्षाबंधन पर्व पर सवा लाख लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और हरेक दर्शनार्थी को एक लड्डू का प्रसाद दिया जाता है। यह परंपरा हम सालों से देखते आ रहे हैं, जब भी रक्षाबंधन पर उज्जैन होते हैं तो दर्शन करने जरुर जाते हैं और साथ ही लड्डुओं का प्रसाद लेने भी। ये वीडियो फ़ोटो देखिये सवा लाख लड्डुओं के भोग का –

Mahakal sava lakh ladduo ka bhog Mahakal sawa lakh ladduo ka bhog

जय महाकाल

ऊँ नम: शिवाय !

अनुग्रहित करो मुझे …. मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

अनुग्रहित करो मुझे

पासंग में अपने लेकर,

अपने संभाषण में

सम्मिलित करो,

जीवन की धारा में

साथ साथ

ले चलो अनुषंगी बनाकर,

कट रहा है

इसे जीने दो

अपनी मौज में

अपने उच्छश्रंखल अवस्था में

रंगीन रंग में

करतल ध्वनि में

जीवन की ताल से

जोड़ते हुए

ले चलो कहीं,

दूर पठारों पर, वादियों में,

झाड़ के झुरमुट में

पतंगों की गुनगुनाहट में

मन की अंतरताल में,

शामिल करलो मुझे

अनुग्रहित करो मुझे।

देखना है रक्त की विजय !!! … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

विषादित जीवन

विषादों से ग्रसित जीवन,

रुधिर के थक्के

जीवन में जमते हुए,

खुली हवा की घुटन,

थक्के के पीछे

नलियों में, धमनियों में,

धक्के मारता हुआ

रुधिर,

थक्के के

निकलने का इंतजार,

खौलता हुआ रक्त,

और

विषादित जीवनमंच,

रेखाएँ खिंचती हुई

हटती हुईं,

जाल बुनता हुआ,

गहराता हुआ,

ठहरा सा

गुमसुम रक्त शिराओं में,

विषादों से लड़ता हुआ,

देखना है

रक्त की विजय !!!

मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)

    जब हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बनाया था तभी यह सोच लिया गया था कि बाबा महाकालेश्वर की चौथी सवारी और जो कि श्रावण मास की आखिरी सवारी भी होगी, के दर्शन अवश्य किये जायेंगे।
    सायं ४ बजे महाकाल की सवारी महाकाल मंदिर से निकलती है जो कि गुदरी चौराहा, पानदरीबा होते हुए रामघाट पहुँचती है, फ़िर रामानुज पीठ, कार्तिक चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए वापिस महाकाल मंदिर शाम ७ बजे पहुँचती है।
    बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिये नगर में निकलते हैं, और प्रजा तो उनकी भक्ति में ओतप्रोत पलकें बिछाये इंतजार करती रहती है। पूरा उज्जैन शहर बाबा महाकाल में रमा रहता है। आसपास से गाँववाले पूरी श्रद्धा के साथ उज्जैन शहर में डेरा डाले रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की भक्ति की बयार बहती है, हवा से भी केवल महाकाल का ही उच्चारण सुनाई देता है।
    इस बार मैंने अपने मोबाईल से कुछ फ़ोटो और वीडियो लिये हैं, आप भी बाबा महाकाल की सवारी के दर्शन कीजिये और जय महाकाल बोलिये ।
फ़ोटो –
Mahakal Savari Gopal Mandir
गोपाल मंदिर पर श्रद्धालुओं का जत्था
at Mahakal Savari Ujjain Vivek Rastogi and Harsh Rastogiगोपाल मंदिर पर हम अपने बेटेलाल के साथ
वीडियो –

 

 

गोपाल मंदिर का एक दृश्य

 

 

 

 

इन वीडियो मॆं पूरी महाकाल की सवारी का आनंद लिया जा सकता है।
जय बाबा महाकाल
ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा सीट पर पहुँचते ही १५ वर्ष पुरानी यादें ताजा हुईं 2 (Travel from Mumbai to Ujjain 2)

पिछला विवरण निम्न पोस्ट की लिंक पर चटका लगाकर पढ़ सकते हैं।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    बोरिवली से हमारी ट्रेन का सही समय वैसे तो ७.४२ का है परंतु हमने कभी भी इसे समय पर आते नहीं देखा है, जयपुर वाली ट्रेन का समय ठीक १५ मिनिट पहले का है, वह अवन्तिका के समय पर आती है, और फ़िर एक लोकल विरार की और फ़िर लगभग ८.०० बजे अवन्तिका आती है।

    इतनी भीड़ रहती है कि प्लेटफ़ार्म पर समझ ही नहीं आता कि कैसे थोड़ा समय बिताया जाये। अपने समान पर ध्यान रखने में और अगर बच्चा साथ में हो तो उसके साथ तो वक्त कैसे बीतता है समझ सकते हैं।

पुरानी एक पोस्ट की भी याद आ गई – “ऐ टकल्या”, विरार भाईंदर की लोकल की खासियत और २५,००० वोल्ट

    हमारे मित्र साथ में जा रहे थे, तो उन्होंने बेटेलाल को आम के रस वाली एक बोतल दिला दी, और एक कोल्डड्रिंक ले आये, बस पहले हमारे बेटेलाल ने सबके साथ पहले कोल्डड्रिंक साफ़ किया वह भी भरपूर ड्रामेबाजी के साथ, और फ़िर अपनी आम के रस वाली बोतल, बेटेलाल ने आसपास के इंतजार कर रहे यात्रियों का जमकर मनोरंजन किया।

    जयपुर वाली ट्रेन आ गई, और राखी की छुट्टी के कारण यात्रियों की भीड़ का रेला ट्रेन पर टूट पड़ा, २-३ मिनिट बाद चली ही थी कि एकदम किसी ने चैन खींच दी, तो जैसी आवाज आ रही थी उससे हमें साफ़ पता चल रहा था कि वातानुकुलित डिब्बे में से चैन खींची गई है। दो सिपाही दौड़कर देखने गये, तभी हम देखते हैं कि एक दंपत्ति अपने दो बच्चों के साथ दौड़ा हुआ आ रहा है और कुली उनका सूटकेस लेकर दौड़ा हुआ आ रहा है, इतनी देर में वे सामने ही वातानुकुलित डिब्बे में चढ़ गये, तभी ट्रेन चल पड़ी, हमें संतोष हुआ कि चलो कम से कम ट्रेन नहीं छूटी।

    फ़िर एक विरार लोकल आयी, धीमी बारिश जारी थी पर विरार वाले हैं कि मानते ही नहीं, मोटर कैबिन के बंद दरवाजे पर भी दो लोग लटके हुए जाते हैं, दो डब्बे के बीच में ऊपर चढ़ने के लिये एंगल होते हैं, उस पर भी चढ़ कर जायेंगे, और एक दो लोग तो छत पर भी चढ़ जायेंगे अपनी श्यानपत्ती दिखाने के चक्कर में, जबकि सबको पता है कि छत पर यात्रा करना मतलब सीधे २५ हजार वोल्ट के तार की चपेट में आना है।

बेटेलाल

बेटेलाल का ट्रेन में खींचा गया फ़ोटो

    अब हमारा इंतजार खत्म हुआ, अवन्तिका एक्सप्रेस हमारे सामने आ पहुँची, ऐसा लगा कि हमारे डब्बे में सब बोरिवली से ही चढ़ रहे हैं, कुछ लोग मुंबई सेंट्रल से भी आये थे पर बोरिवली से कुछ ज्यादा ही लोग थे। जैसे तैसे चढ़ लिये और अपने कूपे में पहुँचकर समान जमाने लगे।

    हमारी चार सीट थीं, और दो लोग पहले से ही मौजूद थे, एक भाईसाहब और एक लड़की, भाईसाहब हमसे ऊपर वाली सीट लेकर सोने निकल लिये, हम लोग बैठकर बात कर रहे थे, तो हमने ऐसे ही एक नजर लड़की की तरफ़ देखा तो लगा कि इसे कहीं देखा है, पर फ़िर लगा कि शायद नजरों का धोखा हो, पर वह लड़की भी हमें पहचानने की कोशिश कर रही थी, ऐसा हमें लगा।

    फ़िर अपनी भूली बिसरी स्मृतियों के अध्याय को टटोलने लगे और साथ में बात भी कर रहे थे, फ़िर थोड़ी देर बाद याद आ गया कि अरे ये तो १५ वर्ष पुरानी बात है, पर ऐसा लग रहा था कि कल की ही बात हो, वह शायद हमारे परिवार को देखकर बात करने में संकोच कर रही थी, हमने अपनी पत्नी और मित्र को बताया कि यह लड़की १५ वर्ष पहले हमारे साथ पढ़ती थी, पर हमें नाम याद नहीं आ रहा है, और इसकी बड़ी बहन बड़ौदा में रहती है, जो कि मिलने भी आयेगी। ये दोनों हमें बोले कि जाओ फ़िर बात करो हमने सोचा छोड़ो कहाँ अपने परिवार और मित्र के सामने पुरानी बातों को उजागर किया जाये, वो भी सोचेगी कि पता नहीं क्या क्या बात होगी, तो इसलिये हमने बात ही नहीं की।

    १५ वर्ष पुराने पहचान वाले आसपास बिल्कुल अंजान बनकर बैठे रहे, बड़ौदा आया और उनकी बहन मिलने भी आयीं, शायद वे भी उज्जैन आ रही थीं परंतु पूना वाली ट्रेन से, जो कि इसके १५ मिनिट पीछे चलती है। बिना बात किये हम उज्जैन में उतर गये। परंतु एकदम १५ वर्ष पुराने दिन ऐसे हमारी नजरों के सामने घूम गये थे जैसे कि कल की ही बात हो।

SIDE EFFECTS of working in the IT sector !!!

SIDE EFFECTS of working in the IT sector !!!

These are real life anecdotes shared by IT workers.

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Bhavik

I once left home to go to the market wearing my Infosys ID card
and did not realize till my friend asked me why I was wearing it !!!!

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Bhabani

Once I was flashing my ID card instead of unlocking the house door with keys.

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Ashok

Few days back  I slept at 12:00 in the night and woke up in the morning
at 7:00 and suddenly thought that I haven’t completed 8 hours and
laughed at myself when I realized that I am at home.

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Jyotsna

Just after our training completion in Mysore and posting to Pune,
me and my friends went out for dinner in one of the best restaurants. .
And as I finished.. I started walking towards the wash basin with Plates in my hand..

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Abhijeet

Once I was on call with my father and mom was not around.
I went on to ask, “Why is she not attending the status call?”
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Anup

I don’t login to orkut, yahoo, gmail, youtube, etc..
at my personal internet connection at home…
thinking it will be blocked any way.
Till I realize – I am at home.

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Rohit

Yeah sometimes it do happens with me also.
keeping hands in front of tap for waiting
water to drop by itself is very frequent with me.
I just forget that we have to turn on and off the tap….

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Nidhi

Once after talking to one of my friends
I ended the conversation saying,
” Ok bye…in case of any issues will call u back”

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Nisha

Sometimes when I mistakenly delete a message
from my mobile, I hope for a second, maybe it’s in the recycle bin

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Nisha

I gave my office mail id and password to access Gmail and
wondered when they became invalid???

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Sandeep

Once I went to a pharmacy n asked for a tab….
pharmacist asked whether I want 250mg or 500mg…..
I replied 256mg….thank god he didn’t notice.

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Ashwin


Me getting a thought of doing an Alt+Tab while switching
from a news channel to the DVD while watching TV.

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Vidyarthi

And I – after a forty hour marathon in Bhubaneshwar with Powerbuilder,
decided to take a break and went to a movie. In the middle of the movie,
when I wanted to check the time,
I kept repeatedly glancing at the bottom right corner of the theatre screen!

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मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    सुबह से मौसम कुछ ठीक था, मतलब की बारिश दिनभर रुकी हुई थी पर बादल सिर पर मँडरा ही रहे थे और बादल सामान्यत: बहुत ही नीचे थे। शाम के समय हमें उज्जैन जाने के लिये ट्रेन पकड़ना थी, और छ: बजे से ही वापिस से मुंबई श्टाईल में जोरदार बारिश शुरु हो गई। बोरिवली जाने के लिये हम ऑटो अपनी ईमारत के अंदर ही बुलवा लाये। जिससे कम से कम यहाँ तो न भीगना पड़े।

    बोरिवली स्टेशन जाते समय पश्चिम द्रुतगति मार्ग (Western Express Highway)  से होते हुए जाना होता है और हमने द्रुतगति मार्ग की जो दुर्गति देखी हमें ऐसा लगा कि हमारा हिन्दुस्तान और यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते। इतने गड्ढ़े देखकर हमें फ़िल्म “खट्टा मीठा” याद हो आई। जिसमें भ्रष्टाचार का खुला रुप दिखाया गया है। यह संतोष है कि जहाँ पर भी कांक्रीट की सड़कें बनी हुई हैं, कम से कम वे तो ठीक हैं, क्योंकि वो देखने पर लगता है कि १२-१४ इंच की बनती हैं, पर डामर की सड़कें तो सुभानअल्लाह, जहाँ थोड़ा पानी बरसा और सड़कें गड्ढ़े से सारोबार। गाड़ी चलाते समय खुद को बचा सको तो बचा लो नहीं तो बस अपनी जान पर आफ़त ही समझो, इसको ऐसा कह सकते हैं कि जान हथेली पर लेकर चलना।

    बोरिवली पहुँचते पहुँचते ऐसे बहुत से गड्ढों से गुजरना पड़ा, और कई जगह तो सड़कों पर १-२ इंच तक पानी जमा था । हम सोच रहे थे कि अगर इतनी बरसात अपने शहर में हो जाये तो वहाँ पर तो छूट्टी का माहौल बन जाता, पर ये मुंबई है यहाँ कुछ भी हो जाये पर मुंबई रुकती नहीं है। यहाँ मुंबई में जिंदगी की रफ़्तार इतनी तेज है कि और कोई भी चीज उसके आगे मायने ही नहीं रखती।

    घर से जरा जल्दी निकल चले थे कि कहीं बारिश के कारण ट्राफ़िक में ही न फ़ँस जायें। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचे तो पता चला कि १ घंटा जल्दी पहुँच गये, और अपने कोच के लोकेशन पर जाकर इंतजार करने लगे। भीड़ तो इतनी थी कि बस देखते ही बन रहा था, क्योंकि हमारी ट्रेन के पहले मुंबई-जयपुर एक्सप्रेस का भी समय रहता है। और रक्षाबंधन पर सब लोग अपने घर की ओर अग्रसर थे और जल्दी से जल्दी पहुँचने के चक्कर में थे।

क्रमश:-

१५ अगस्त के संदर्भ में – वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]

    आज स्वतंत्रता दिवस है, भारत को आजाद हुए आज ६३ वर्ष हो चुके हैं, पर महत्वपूर्ण और ज्वलंत प्रश्न यह है कि क्या हम वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ?

    जब बच्चे स्कूल में १५ अगस्त को स्कूल में भारत का तिरंगा नहीं फ़हरायेंगे और साथ में देशभक्ति से ओतप्रोत गीत और माहौल नहीं मिलेगा तो कैसे उम्मीद करेंगे कि ये भारत की नई पीढ़ी तक देशभक्ति का संदेश पहुँच रहा है। जब तक स्कूल की रैली में झंडे पकड़कर “वन्दे मातरम” “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे, तब तक कैसे ये हमारी नई पीढ़ी स्वतंत्रता और वन्दे मातरम  के सही मायने कैसे सीख पायेगी।

    मुझे याद है कि मैंने जब से होश सम्हाला है तब से कॉलेज से बाहर निकलने के बाद भी जब भी मौका मिलता तो हमेशा परेड ग्राऊँड पर जाकर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के सम्मान में समारोह में शरीक होता रहा हूँ।

    क्या उम्मीद रखें हम अपनी नई पौध से, किस देशभक्ति की उम्मीद रखें हम इस नई पीढ़ी से, जबकि आज के स्वतंत्रता के मायने नई पीढ़ी के लिये “इंडिपेन्डेन्स डे” की ५० % से ७०‍ % तक की सेल होती है। सारे अखबारों में पन्ने “इंडिपेन्डेन्स डे सेल” से अटे पड़े हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं मिलेगा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कैसे ये स्वतंत्रता पाई और कैसे वे लोग ये स्वतंत्र आकाश में रह पा रहे हैं।

    जिस तेजी से हमारी नई पौध वापिस से पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर है तो उनसे देशभक्ति की उम्मीद लगाना गलत है। जिस तेजी से पाश्चात्य देशों से आ रही वस्तुएँ हमारी दैनिक उपभोग में आती जा रही हैं और हम हमारी दैनिक उपभोग की वस्तुओं को भूलते जा रहे हैं। जो बच्चे बचपन से जैसा परिवार में देखते आते हैं, उनके संस्कार भी वैसे ही होते हैं।

    आईये हम अपनी नई पीढ़ी को देशभक्ति के सही मायने समझायें और आजादी की कीमत बतायें, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी नई पौध की ऊँगली हमारे ऊपर होगी। उन्हें पता होना चाहिये कि शहीद चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली क्यों मारी थी, क्या जज्बा था उनका खुद को गोली मारने की पीछे…., उन्हें पता होना चाहिये कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल का क्या योगदान था, नई पौध को आजादी के लिये योगदान देने वालों के बारे में पता होना चाहिये ।

जय हिंद !!!

ये गीत सुनिये मेरा पसंदीदा – “दिल दिल हिन्दोस्तां” फ़िल्म “यादों के मौसम”

कैंसर के रोगियों के लिये गुयाबानो फ़ल किसी चमत्कार से कम नहीं (CANCER KILLER DISCOVERED Guyabano, The Soupsop Fruit)

(यह लेख उपलब्ध जानकारी पर आधारित है, और किसी भी प्रकार से किसी भी रुप में दावा न माना जाये कि इससे बिल्कुल ठीक हो जायेंगे, पर हाँ अभी तक जो परिणाम देखने में आये हैं, वे किसी चमत्कार से कम भी नहीं)
    आज डॉ कविता वाचक्नवी जी की पोस्ट “क्या आप कैंसर से युद्ध में आलोक तोमर को सही राय दे सकते हैं” पढ़ी तो रहा नहीं गया क्योंकि मेरे परममित्र की माताजी भी इस कैंसर जैसे भयानक रोग से लड़ रही हैं, और लगभग आखिरी स्टेज पर हैं, पर अभी भी उनका कीमियोथेरेपी का ईलाज लगभग ३ महीने से चल रहा है।
    वैसे यह जानकारी मैं अभी नहीं साझा करने वाला था क्योंकि हमने अभी गुयाबानो फ़ल का पूरा चमत्कार नहीं देखा है, पर आज कविता जी की पोस्ट पढ़कर मैं इस अच्छी जानकारी को रोक नहीं पाया। यह अभी तक सिद्ध तो नहीं पर किसी चमत्कार से कम भी नहीं है।
    मेरे मित्र ने अपनी माँ को बचाने के लिये जमीन आसमान एक कर दिया, और कहीं से उसे इस गुयाबानो फ़ल की जानकारी मिली, जब पहले जानकारी मिली थी तब तक यही पता था कि यह इंडोनेशिया में होता है और अनानास जैसा फ़ल होता है, जैसे ही पता चला तो मेरे मित्र ने यह फ़ल पाने के लिये बहुत दंद फ़ंद किये पर फ़ल नहीं मिला।
    इसी बीच इंटरनेट पर खोज करते हुए उनको इस फ़ल का जूस मिल गया जो कि इंडोनेशिया की एक वेबसाईट ऑनलाईन बेच रही थी, आप यहाँ चटका लगा कर उपलब्ध जूस देख सकते हैं
    ये जूस का पैकेट ऑर्डर कर दिया गया और फ़िर इसी बीच उस फ़ल की खोज जारी रखी गई, क्योंकि कहीं से उसे पता चला था कि इस जूस को लगातार देने से कैंसर का रोग जड़ से नष्ट हो जाता है, पर ये जूस का पैकेट कैसा है इसका पता तो तभी लग सकता था जब वह आ जाता,  फ़िर उसकी बैंगलोर में किसी व्यक्ति से बात हुई जिनकी दोनों लड़कियाँ कैंसर से लड़ रही हैं, और वे भी इस फ़ल का उपयोग कर रहे हैं, और कुछ अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
    केरल में कहीं कोई व्यक्ति इस फ़ल की खेती करता है, मित्र ने उसे फ़ोन लगाया तो पता चला कि उसके पास केवल २ ही फ़ल बचे हैं, फ़टाफ़ट कोरियर से वह फ़ल मंगवा लिये गये, अब तक लगभग २० दिन जूस सुबह दोपहर और शाम पिला चुके हैं, जहाँ उनका ईलाज चल रहा है वहाँ उनका नियमित चैकअप किया गया तो डॉक्टर भी इतने अच्छे परिणाम देखकर चकित हैं, और कह रहे हैं कि किसी चमत्कार से कम नहीं है।
   उनकी कीमियोथेरेपी अभी चल रही है पर जूस भी लगातार देना जारी है।  जहाँ से जूस मँगाया गया है उनका मोबाईल नंबर और पता अगली पोस्ट में जल्दी ही दूँगा, उसके लिये मुझे मेरे मित्र से संपर्क करना होगा।
   ईलाज कर रहे डॉक्टर से भी मित्र की बात हुई तो डॉक्टर बोले कि यह फ़ल कीमियोथेरेपी से लगभग १० हजार गुना ज्यादा असरदार है।
   मेरे मित्र के पास इस फ़ल के १२ बीज हैं जो कि वह किसी ऐसी जगह लगाना चाहता है कि सब को लाभ हो, क्योंकि पेड़, बादाम के पेड़ जैसा होता है और लगभग १२ वर्ष बाद फ़ल आना शुरु होते हैं, और इसकी खेती के लिये कुछ विशिष्ट मौसम भी चाहिये।
    एक ईमेल जो कि मेरे मित्र ने इस फ़ल की जानकारी के लिये भेजा था, वह मैं ऐसा ही दे रहा हूँ बिना अनुवाद के –
This fruit is known as katu aatha in Sri Lanka

CANCER KILLER   DISCOVERED


Guyabano, The Soupsop Fruit

The Sour Sop or the fruit from the graviola tree is a miraculous natural cancer cell killer 10,000 times stronger than Chemo.
Why are we not aware of this?

Its because some big corporation want to make back their money spent on years of research by trying to make a synthetic version of it for sale.
So, since you know it now you can help a friend in need by letting him know or just drink some sour sop juice yourself as prevention from time to time.
The taste is not bad after all. It’s completely natural and definitely has no side effects.
If you have the space, plant one in your garden.
The other parts of the tree are also useful.

The next time you have a fruit juice, ask for a sour sop.
Graviola Tree
How many people died in vain while this billion-dollar drug maker concealed the secret of the miraculous Graviola tree?
This tree is low and is called graviola in Brazil , guanabana in Spanish and has the uninspiring name “soursop” in English.
The fruit is very large and the subacid sweet white pulp is eaten out of hand or, more commonly, used to make fruit drinks, sherbets and such.


The principal interest in this plant is because of its strong anti-cancer effects.
Although it is effective for a number of medical conditions, it is its anti tumor effect that is of most interest.
This plant is a proven cancer remedy for cancers of all types.

Besides being a cancer remedy, graviola is a broad spectrum antimicrobial agent for both bacterial and fungal infections,
is effective against internal parasites and worms, lowers high blood pressure and is used for depression, stress and nervous disorders.

Graviola Tree1
If there ever was a single example that makes it dramatically clear why the existence of Health Sciences Institute is so vital to Americans like you, it’s the incredible story behind the Graviola tree.
The truth is stunningly simple:
Deep within the Amazon Rainforest grows a tree that could literally revolutionize what you, your doctor,
and the rest of the world thinks about cancer treatment and chances of survival.

The future has never looked more promising. Graviola Tree2 Research shows that with extracts from this miraculous tree it now may be possible to:
* Attack cancer safely and effectively with an all-natural therapy that does not cause extreme nausea, weight loss and hair loss
* Protect your immune system and avoid deadly infections
* Feel stronger and healthier throughout the course of the treatment
* Boost your energy and improve your outlook on life
The source o f this information is just as stunning: It comes from one of America ‘s largest drug manufacturers, the fruit of over 20 laboratory tests conducted since the 1970’s!
What those tests revealed was nothing short of mind numbing…
Extracts from the tree were shown to:

* Effectively target and kill malignant cells in 12 types of cancer, including colon,
breast, prostate, lung and pancreatic cancer..

* The tree compounds proved to be up to 10,000 times stronger in slowing the growth of cancer cells than Adriamycin,
a commonly used chemotherapeutic drug!

* What’s more, unlike chemotherapy, the compound extracted from the Graviola tree selectively hunts
down and kills only cancer cells.
It does not harm healthy cells!
The amazing anti-cancer properties of the Graviola tree have been extensively researched–
so why haven’t you heard anything about it?

If Graviola extract is as half as promising as it appears to be–
why doesn’t every single oncologist at every major hospital insist on using it on all his or her patients?

The spine-chilling answer illustrates just how easily our health–
and for many, our very lives(!)–are controlled by money and power.
Graviola–the plant that worked too well
One of America ‘s biggest billion-dollar drug makers began a search for a cancer cure and their research centered on Graviola,
a legendary healing tree from the Amazon Rainforest.

Variou s parts of the Graviola tree–including the bark, leaves, roots, fruit and fruit-seeds- -have been used for centuries by medicine men and native Indians in South America to treat heart disease, asthma, liver problems and arthritis.
Going on very little documented scientific evidence, the company poured money and resources into testing the tree’s anti-cancerous properties– and were shocked by the results. Graviola proved itself to be a cancer-killing dynamo.
Graviola Tree3 But that’s where the Graviola story nearly ended.
The company had one huge problem with the Graviola tree–it’s completely natural, and so, under federal law, not patentable. There’s no way to make serious profits from it.
It turns out the drug company invested nearly seven years trying to synthesize two of the Graviola tree’s most powerful anti-cancer ingredients.
If they could isolate and produce man-made clones of what makes the Graviola so potent, they’d be able to patent it and make their money back.
Alas, they hit a brick wall. The original simply could not be replicated.
There was no way the company could protect its profits–or even make back the millions it poured into research.

As the dream of huge profits evaporated, their testing on Graviola came to a screeching halt.
Even worse, the company shelved the entire project and chose not to publish the findings of its research!
Luckily, however, there was one scientist from the Graviola research team whose conscience wouldn’t let him see such atrocity committed.
Risking his career, he contacted a company that’s dedicated to harvesting medical plants from the Amazon Rainforest and blew the whistle.
Miracle unleashed When researchers at the Health Sciences Institute were alerted to the news of Graviola, they began tracking the research done on the cancer-killing tree.


Evidence of the astounding effectiveness of Graviola–and its shocking cover-up–came in fast and furious….
….The National Cancer Institute performed the first scientific research in 1976.

The results showed that Graviola’s “leaves and stems were found effective in attacking and destroying malignant cells.” Inexplicably, the results were published in an internal report and never released to the public…
…Since 1976, Graviola has proven to be an immensely potent cancer killer in 20 independent laboratory tests,
yet no double-blind clinical trials–
the typical benchmark mainstream doctors and journals use to judge a treatment’s value- -were ever initiated..

Graviola Tree4
A study published in the Journal of Natural Products,
following a recent study conducted at Catholic University of South Korea stated that one chemical in Graviola was found to
selectively kill colon cancer cells at “10,000 times the potency of (the commonly used chemotherapy drug) Adriamycin.. .”

….The most significant part of the Catholic University of South Korea report is that  Graviola was shown to selectively target the cancer cells, leaving healthy cells untouched.
Unlike chemotherapy, which indiscriminately targets all actively reproducing cells (such as stomach and hair cells), causing the often devastating side effects of nausea and hair loss in cancer patients.


…A study at Purdue University recently found that leaves from the Graviola tree killed cancer cells among six human cell lines and were especially effective against prostate, pancreatic and lung cancers… Seven years of silence broken–it’s finally here!


A limited supply of Graviola extract, grown and harvested by indigenous people in Brazil , is finally available in America .
The full Graviola Story–including where you can get it and how to use it–is included in

Beyond Chemotherapy: New Cancer Killers, Safe as Mother’s Milk,
a Health Sciences Institute FREE special bonus report on natural substances that will effectively revolutionize the fight against cancer..