एक् बात मन में हमेशा से टीसती रही है कि हम लोग उन परिवारों के बच्चों को देखकर ईर्ष्या करते हैं जो कॉन्वेन्ट विद्यालयों में पढ़े होते हैं, वहाँ पर आंग्लभाषा अनिवार्य है, उन विद्यालयों में अगर हिन्दी बोली जाती है तो वहाँ दंड का प्रावधान है। वे लोग अपनी संस्कृति की बातें बचपन से बच्चों के मन में बैठा देते हैं।
पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ये विद्यालय हमें हमारी भारतीय संस्कृति से दूर ले जा रहे हैं, हमारे भारतीय संस्कृति के विद्यालयों में जहाँ तक मैं जानता हूँ वह हैं केवल “सरस्वती शिशु मंदिर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित”, “गोपाल गार्डन, इस्कॉन द्वारा संचालित” ।
और किसी हिन्दू संस्कृति विद्यालय के बारे में मैंने नहीं सुना है जो कि व्यापक स्तर पर हर जिले में हर जगह उपलब्ध हों। मेरी बहुत इच्छा थी कि बच्चे को कम से कम हमारी संस्कृति का ज्ञान होना चाहिये, आंग्लभाषा पर अधिकार हिन्दुत्व विद्यालयों में भी हो सकता है, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है गोपाल गार्डन विद्यालय, वहाँ के बच्चों का हिन्दी, संस्कृत और आंग्लभाषा पर समान अधिकार होता है और उनके सामने कॉन्वेन्ट के बच्चे टिक भी नहीं पाते हैं।
हमारे धर्म में लोग मंदिर में इतना धन खर्च करते हैं, उतना धन अगर शिक्षण संस्थानों में लगाया जाये और पास में एक छोटा सा मंदिर बनाया जाये तो बात ही कुछ ओर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षैत्र में उग्र आंदोलन की जरुरत है। नहीं तो आने वाले समय में हम और हमारे बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति भूलकर पश्चिम संस्कृति में घुलमिल जायेंगे।
याद आती है मुझे माँ सरस्वती की प्रार्थना जो हम विद्यालय में गाते थे, पर आज के बच्चों को तो शायद ही इसके बारे में पता हो –
या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||
शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||