Monthly Archives: March 2011

कुछ खत के नमूने जो मेरी यादों में हैं…

ये कुछ खत के नमूने हैं तो मेरी यादों में, जहन में हैं जो कभी मैं लिखा करता था,  क्या ऐसे ही कुछ नमूने आपको याद हैं… बताईये तो..

 

आदरणीय मम्मी जी एवं पापाजी,

सादर चरण स्पर्श,

आशा है कि आप कुशल होंगे,

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आपका पुत्र

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प्रिय बहन…..

सदा खुश रहो,

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तुम्हारा भाई

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प्रिय भाई

सदा खुश रहो

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तुम्हारा भाई

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प्रिय मित्र

सुनहरी यादें तुम्हारे साथ की,

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तुम्हारा अपना सच्चा साथी

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होली के बहाने होली है… होली है…

Holi

होली मौसम है रंग का, लाल पीले हरे नीले गुलाबी सभी रंगों का, जीवन में रंगों की लहलहाती फ़सलों को बाँटने का..

होली बहाना है भांग छानने का, मौका है तरन्नुम में जमने का, और तरन्नुम जमाने का,  बड़ों को भी बच्चा बनने का..

होली पर कितने ही पकवान बनते हैं, गुझिया, चकली, शक्करपारे, ठंडाई और सबसे बड़ा पकवान पकता है प्यार का, प्रेम का जो बरसों तक दिलों में रहता है..

होली के बहाने पता नहीं लोग क्या क्या करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग दुश्मनी को दोस्ती में बदलते हैं तो कुछ लोग दोस्ती को दुश्मनी में..

होली प्यार का त्यौहार है, यारों की यारी निभाने का प्यार है, पर फ़िर भी कुछ लोग होते हैं जो यारों की यारी में बदमाशी करते हैं..

हैप्पी होरी कहते हैं हम भी होली के बहाने ओह सॉरी हैप्पी होली, फ़ाग के रंग में कड़ाई में डूबें और जम कर डुबायें..

होली है… होली है…

ऐश करना क्या होता है, जिंदगी की दौड़.. (What is Aish.. about life..)

    सब लोग कहते हैं ना कि ऐश करेंगे पर क्या किसी को पता है कि ऐश करना होता क्या है? नहीं तो चलो हम बताते हैं, हमें हमारे महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर साहब ने बतायी थी।

    ऐश जो सिगरेट के आगे राख होती है जिसे हम कश लेने के बाद झटक देते हैं वह कहलाती है ऐश, समझ गये !! कि ऐश किसे कहते हैं, तभी तो ऐश को जिसमें रखा जाता है उसे कहते हैं ऐश ट्रे।

    जैसे सिगरेट जलती है तो जहाँ जलती है उसका तापमान लगभग १०० डिग्री होता है, और अगर उसे हाथ से पकड़ लेंगे तो निश्चित ही हाथ जल जायेगा, और फ़िल्टर से जहाँ से सिगरेट में कश मारते हैं, वहाँ उस गर्मी का अहसास नहीं होता है क्योंकि उस ऐश और फ़िल्टर के दरमियान इतना फ़ासला होता है, कि उस सफ़र को पूरा करने में आदमी को अपनी जिंदगी खर्च करना पड़ती है। शायद ही इतना महँगा सफ़र कोई ओर होता होगा, और शायद ही हम अपनी जिंदगी की गाड़ी को पूरी रफ़्तार से अपनी मौत की तरफ़ ले जाने की इच्छा रखते हैं, परंतु जो शौक रखते हैं वे मंजिलों की परवाह नहीं करते हैं, वे तो केवल सफ़र करते हैं।

    जब सिगरेट खत्म होती है तब तक उसका धुआँ शरीर की नस नस में अंदर फ़ेफ़ड़ों के अंदर बहुत अंदर तक घुस चुका होता है, साथ ही चाय की चुस्की या सिगरेट खत्म होने के बाद एकदम पानी पीते हैं, तो बस हम खुद ही उस रफ़्तार को और बड़ा लेते हैं जिसकी मंजिल मौत है। सिगरेट अधिकतर लोग सभ्य तरीके से पीते हैं पर जो वाकई नशा करते हैं उन्हें तो पता ही नहीं लगता कि कब फ़िल्टर आ गया और कब उसका फ़िल्टर भी जल गया और उसका धुआँ भी वे पी गये।

    जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें पीने का मकसद पता नहीं होता है और साथ ही अपनी जिंदगी की मंजिलों का भी, क्योंकि उन्हें अपनी अंतिम मंजिल का भी पता नहीं होता जो कि मौत होती है। बस वे तो केवल खोखली शान में जिंदगी का कश बनाकर मौत को पिये जाते हैं।

गोल्ड लोन के बारे में कुछ छोटी छोटी जरुरी बातें

    अभी मैंने गोल्ड लोन के बारे में लिखा तो पाठकों की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थीं कि लोन लेना अच्छी बात नहीं है, इससे बचना चाहिये मैं भी व्यक्तिगत रुप से इस बात पर सहमत हूँ कि लोन लेना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है और जो एक बार अगर लोन के जाल में फ़ँस गया उसका भँवर से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

    पर लोन लेना न लेना पूरा व्यक्तिगत निर्णय होता है जो कि परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वैसे अगर लोन लेने वाले की मानसिकता को देखें तो आप पायेंगे कि व्यक्ति जो कि लोन लेता है वह अपनी किसी ख्वाईश को पूरा करने लिये ही लेता है। लोन आपके सामाजिक प्रतिष्ठा को बदल देता है, जैसे कि घर के लिये लोन या फ़िर कार लोन या फ़िर किसी और महँगे इलेक्ट्रानिक उपकरण के लिये लोन, ये लोन मजबूरी में नहीं लिये जाते हैं ये लोन लिये जाते हैं, ये लोन आपके अपने वित्तीय लक्ष्य को पूरा करने में मदद करते हैं। अगर आज बात करें कि घर लेना है तो शायद ही किसी नौकरीपेशा व्यक्ति के पास एकमुश्त इतना पैसा हो कि वह घर नकद में ले सके, तो लोन वह अपने सपने को पूरा करने के लिये लेता है।

    हाँ शायद अन्य लोन लेना इतने जरुरी नहीं, आम व्यक्ति शायद उन्हें नकद ले सकता है परंतु सब अपना बजट बना कर चलते हैं और नकद न लेकर लोन लेना सुविधाजनक लगता है, क्योंकि हर माह एक निश्चित रकम निकालना ज्यादा आसान लगता है और नकद अपने पास भी रहता है जो कि किसी भी आपातकालीन परिस्थिती में काम आ सकता है।

    लोन पूर्णतया: व्यक्तिगत फ़ैसला होता है, अब बात करें लोन की अवधि की तो वह भी हर व्यक्ति का अपना खुद का निर्णय होता है, जो कि कमाई पर निर्भर करता है। बड़े लोन जैसे कि घर या कार के लोन को लंबे समय तक रखना चाहिये और छोटे लोन जल्दी ही चुका देना चाहिये। अब अगर किसी को १५ दिन से ३ माह के लिये ही लोन चाहिये और जल्दी लोन चाहिये तो केवल गोल्ड लोन ही एकमात्र सहारा है और अगर इस बात पर यकीन नहीं है तो खुद ही किसी भी बैंक में जाकर परख लीजिये लोन लेने के लिये इतनी औपचारिकताएँ होती हैं कि कम से कम १० दिन तो लग ही जाते हैं।

    अब गोल्ड बेचना तो हल नहीं है ना अगर किसी को केवल १५ दिन के लिये कुछ ज्यादा रकम चाहिये तो मैं नहीं समझता कि गोल्ड लोन में कोई बुराई है, अगर गोल्ड बेचेंगे तो उसमें कटौती ही इतनी हो जायेगी कि आपको उसमें ज्यादा नुक्सान हो जायेगा और हो सकता है कि उन गहनों के साथ आपका भावनात्मक लगाव भी हो।

    और अगर आपने लोन के कागज जो कि लोन लेते वक्त हस्ताक्षर करना होते हैं, पढ़ लिये तो फ़िर तो शायद ही कभी लोन लें। लोन न लेना ठीक है परंतु उसके बारे में जान लेना बहुत जरुरी है, वह जानकारी शायद आपके ही किसी परिचित के काम आ जाये।

गोल्ड लोन – चमक असली या नकली

    आजकल टीवी और रेडियो पर कितने ही लुभावने विज्ञापन आते हैं कि जब भी आपको रुपयों की जरुरत हो तो गोल्ड लोन लेना कितना साधारण है और एकदम और कभी भी ले सकते हैं। उतना ही महत्वपूर्ण है कि गोल्ड लोन के पीछे की सच्चाई जानना, क्या वाकई गोल्ड लोन लेना बहुत अच्छा है और सुरक्षित है ?

    “जब घर में पड़ा है सोना तो काहे का रोना” आजकल अक्षय कुमार टीवी और रेडियो के विज्ञापनों में मन्नपुरम फ़ाईनेंस के गोल्ड लोन के लिये कहते हुए नजर आते हैं। जितना साधारण गोल्ड लोन दिखता है कि बस गोल्ड को गिरवी रखा और उसके बदले में आनुपातिक रुप में फ़ाईनेंस कंपनी लोन दे देती है, उतना साधारण भी नहीं है, इसमें बहुत सारे जोखिम और कमियाँ हैं।

    पहले तो गोल्ड लोन केवल सुनारों और साहूकारों की बपौती थी, जो कि लोन का दोगुना तक वसूलते थे। पर अब सरकारी बैंक, निजी बैंक और बहुत सारी निजी फ़ाईनेंस कंपनियाँ गोल्ड दे रही हैं।

    गोल्ड लोन आपके सोने के गहने या शुद्ध सोना जैसे कि ईंट को गिरवी रखकर दिया जाता है। और यह जरुरी नहीं कि जो सोना आप गिरवी रखकर लोन लेने जा रहे हैं वह आपने घोषित किया हो, परंतु अगर सोना ज्यादा मूल्य का हो और लोन भी तो टैक्स विभाग बैंकों और फ़ाईनेंस कंपनियों से जानकारी लेकर आपके पीछे पड़ सकता है।

    गोल्ड लोन एक ऐसा उत्पाद है जो कि बहुत ही जल्दी आपको मिल जाता है। जल्दी से लोन मिलने का एकमात्र कारण है कि लोन आपको सोने को गिरवी रखकर मिलता है। लोन की रकम सोने की मात्रा और शुद्धता के ऊपर निर्धारित किया जाता है। पर यहाँ पर सबसे बड़ी बात यह है कि गोल्ड लोन देने वाली संस्थाएँ इस बात का ध्यान नहीं रखती हैं कि ऋणी ऋण चुका भी पायेगा या नहीं ?

    सोने का मूल्यांकन के पैमाने सभी कंपनियों के अलग अलग होते हैं, अगर आपका सोना हालमार्क है तो आपके सोने की कीमत अच्छी आंकी जायेगी और ज्यादा लोन मिल पायेगा। परंतु अगर सोना हालमार्क नहीं है तो आपको बहुत सतर्क रहने की जरुरत है क्योंकि आपके ज्यादा कीमत वाले सोने का मूल्यांकन बहुत ही कम किया जा सकता है और आपका सोना जो कि कीमत में बहुत ज्यादा है वह संस्था गिरवी रख लेगी। गोल्ड लोन केवल सोने के गहने के बदले ही मिल सकता है। अगर गहने में कोई महँगा पत्थर जड़ा है तो उसकी कीमत नहीं आंकी जाती है, और भार में पत्थर का भार कम कर दिया जाता है। मूल्यांकन केवल सोने का ही किया जाता है।

    लोन में कितनी रकम मिल सकती है यह सोने की मात्रा और शुद्धता पर निर्भर करता है, जो कि गिरवी रखा जाना है। जो कि  सोने के मूल्यांकन का ६० प्रतिशत से १०० प्रतिशत तक हो सकता है। यह सब तो ठीक है, परंतु यहाँ सोने के मूल्य के अनुपात जिस पर लोन दिया जा रहा है उसके लिये बाजार का अपना एक स्वाभाविक जोखिम है। जैसा कि बाजार में पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला है कि सोना कभी बहुत ज्यादा ऊपर और फ़िर कम भाव हो जाते हैं। सोने के भाव में कमी होने पर ऋणकर्ता और ऋणदाता दोनों जोखिम में आ जाते हैं। बाजार में आजकल यही सोचा जाता है कि सोने का भाव केवल ऊपर ही जायेगा जो कि बाजार और ऐसी संस्थाओं के लिये बहुत ही बड़ा जोखिम है।

    गोल्ड लोन की अवधि साधारणतया: १ माह से लेकर २ वर्ष तक की होती है, और अगर लोन की अवधि बढ़ानी है तो बढ़ा भी सकते हैं, परंत उसके लिये ये संस्थाएँ कुछ अतिरिक्त शुल्क लेती हैं।

    गोल्ड लोन पर ब्याज दर ११ प्रतिशत से २८ प्रतिशत प्रतिवर्ष तक हैं। ब्याज दर गोल्ड लोन की रकम पर निर्भर करती है, जितना सोना आपने गिरवी रखा है और उसके बदले में मिलने वाली रकम अगर ज्यादा होगी तो ज्यादा ब्याज और कम रकम पर कम ब्याज। साथ ही यह निर्भर करता है गोल्ड लोन के अनुपात पर अगर अनुपात ज्यादा है तो ब्याज ज्यादा होगा और कम अनुपात होगा तो लगभग १२ प्रतिशत ब्याज होगा। ज्यादा समय के लिये ज्यादा ब्याज देय होता है और कम समय के लिये कम ब्याज देय होता है।

   ऋण देने वाली संस्थाओं और बैंकों को सुनिश्चित करना होता है कि सोना शुद्ध है और नकली नहीं है, नहीं तो उनके लिये तो पूरा ऋण ही घाटा है।

  ब्याज दर के अलावा अतिरिक्त शुल्क क्या हैं यह भी पहले पता लगा लेना चाहिये जैसे कि प्रोसेसिंग चार्जेस, समय के पहले ऋण अदा करने पर शुल्क जो कि गोल्ड लोन के ०.५ से १ प्रतिशत तक कुछ भी हो सकता है। फ़िर अगर लोन को रिनिवल करवाना है तो लोन की अवधिक के अनुसार उसका भी अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है। और अगर इसी दौरान ऋणकर्ता को कुछ हो जाये तो ऋणदाता उसके लिये बीमा करवाते हैं, जिससे लोन की रकम भरी जा सके और सोना ऋणकर्ता के परिवार को लौटा दिये जाते हैं, बीमा का शुल्क भी अतिरिक्त होता है।

    गोल्ड लोन अधिकतर ईएमआई आधारित नहीं होता है। लोन की अवधि में कभी भी भुगतान किया जा सकता है। जैसे कि अगर एक वर्ष के लिये लोन लिया है तो आप एक वर्ष में  उस लोन का कभी भी भुगतान कर सकते हैं।

     गोल्ड लोन में चूककर्ता बहुत ही कम होते हैं, ३० प्रतिशत ॠणकर्ता तो उसी माह में लोन चुकता कर देते हैं और बाजार में २ प्रतिशत से भी कम ॠणकर्ता गोल्ड लोन में चूककर्ता होते हैं। अगर चूक होती भी है तो ऋणदाता गिरवी में रखा गया सोना या गहना बेचकर अपनी रकम वसूल कर लेते हैं।  पर गिरवी  रखे गये सोने की नीलामी की भी लंबी प्रक्रिया है पहले चूककर्ता को रजिस्टर्ड पत्र भेजा जाता है, साथ ही उनसे बात करके मामले को सुलझाने की कोशिश की जाती है, उन्हें कहा जाता है कि कम से कम ब्याज तो चुकायें तो फ़िर उन्हें और ॠण चुकाने के लिये समय देने की कवायद शुरु की जाती है।

    गोल्ड लोन सस्ता लोन नहीं है, और गोल्ड लोन तभी लेना चाहिये जब आप निश्चित हों कि निश्चित समय के बाद आप रकम वापिस भरकर गोल्ड लोन चुका सकते हैं। हाँ और किसी लोन से यह लोन लेना बहुत ही सरल है और लोन जल्दी भी मिल जाता है। और अगर समय पर लोन नहीं चुकाया जाता है तो आप अपने महँगे सोने के गहनों को कम रकम के लोन के चक्कर में गँवा सकते हैं।

आदमी की धूर्तता

    कल बेटे की स्कूलबस के स्टॉप पर लेने के लिये खड़ा था, वहीं ऑटो स्टैंड भी है। बस आने में समय था तो मैं अपने मोबाईल पर ही चैटिंग करने लग गया और साथ ही ऑटो भी देख रहा था, बिल्कुल नया चकाचक ऑटो था, और चालक शकल से ही घाघ लग रहा था, वह ऑटो में बैठे बैठे अंगड़ाईयाँ ले रहा था, उसका काम करने का कोई मूड लग ही नहीं रहा था, ऐसा लग रहा था कि वह खुद को ही वहाँ खड़ा कर अपने आप को बेबकूफ़ बना रहा है कि सवारी का इंतजार कर रहा हूँ, पर जाने क्यों मुझे लगा कि यह सवारी लेकर नहीं जायेगा।
अब चूँकि बहुत देर तक वहीं खड़ा था तो मन में बहुत सारे विचार आये और लीन भी हो गये।

थोड़ी देर बाद ही एक महिला अपने बच्चे के साथ बात करती हुई तेजी से आई और ऑटो वाले से किसी जगह का नाम लेकर पूछा भैया चलोगे, ऑटो वाले ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई और महिला ऑटो में बैठने लगी तो उसी समय हिकारत वाली नजरों से ऑटो वाले ने देखते हुए कहा कि १७० रुपये लगेंगे, महिला तेजी से उतरी और बिना बोले अपने बच्चे के साथ वहाँ से मुख्य सड़क की ओर चली गई। शायद वह महिला इन ऑटो वालों के नाज नखरों से अभ्यस्त होगी।
जब वह महिला वहाँ से चली गई, तो ऑटो वाला मुझसे मुखतिब हुआ बोला “मीटर से १४०-१५० रुपये किराया बनता और मैंने १७० रुपये ही तो मांगे थे, जान निकल गई”। मैं कुछ बोला नहीं क्योंकि मेरा मन भी खिन्न हो चुका था और अगर मैं कुछ बोलता तो यह तो तय था कि मैं जबरदस्त तरीके से झगड़ा करता, और मैं झगड़ा करना नहीं चाहता था।
मन ही मन सोच रहा था कि अगर इसी व्यक्ति को आज से हरेक चीज १०-१५ प्रतिशत महँगी दी जाने लगे जो कि उसके तय दामों से ज्यादा होगी तो क्या यह ऐसे ही आराम से दे देगा, क्या इसकी “जान नहीं निकलेगी” ? क्या केवल वही मेहनत से पैसा कमाता है और सब लोग आराम से या बेईमानी से कमाते हैं ? ऐसे लोगों के लिये, ऐसी मानसिकतावालों के लिये कठोर कानून होना चाहिये, एक तो महँगाई और ऊपर से ऐसे लूटने वाले…. सरकार तो लूट ही रही है… और सरकार ने ऐसी सेवा देने वालों को भी खुली छूट दे रखी है।

क्या वाकई ऐसा कोई कानून बन सकता है और उसे अमली जामा पहनाया जा सकता है जिससे जनता की मदद हो… ?

दे घुमा के … घुमा के … दे घुमा के… और ऊँगली में टिंगली

ऐसा लगता है कि ये गाना भारतियों के लिये बनाया गया है कि जब खिलाड़ी प्रदर्शन न करें तो दर्शकों को इस गाने पर अमल करना चाहिये और बस शुरु हो जाना चाहिये दे घुमा के … घुमा के … दे घुमा के…

विश्वकप तो लगता है कि भारत की तरफ़ से केवल २-३ खिलाड़ी ही खेल रहे हैं, बाकी टीम तो केवल इसलिये खेल रही है, क्योंकि चयनकर्ताओं ने उन लोगों को चुन लिया है और विश्वकप के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं।

जब हमारे बल्लेबाज ही नहीं चल रहे हैं, तो भी कप्तान कहते हैं कि गेंदबाजों पर ज्यादा भरोसा नहीं है, पर भई बल्लेबाजों ने क्या उखाड़ लिया।

और अगर कुछ निर्णय गलत लिये गये जो कि मैच के दौरान तात्कालिक थे तो उसकी जिम्मेदारी तो केवल कप्तान की ही होती है। पर केवल कप्तान के गलत निर्णय के कारण भारत का हार जाना कितना सही है ? क्या कप्तान बचपना कर रहे हैं या फ़िर विश्चकप उन्हें मौहल्ला क्रिकेट लग रहा है।

बीच में एक समाचार चैनल पर सुना कि लगता है कि भारत की टीम अगले विश्वकप के लिये अभ्यास कर रही है, और अभी ये सब लोग जिम्मेदारी नहीं समझते हैं।

बस इनको श्टाईल विज्ञापन में मारना आता है, जैसे हरभजन सिंह का आता है पेप्सी का “दूसरा”, ऊँगली में टिंगली।

छोड़ो भारत छोड़ो ये क्या विश्वकप जीतेंगे, इनसे कोई उम्मीद करना बेमानी है, अब चूँकि भारत में क्रिकेट धर्म हो गया है, तो अब ऐसे धर्म को छोड़ दें, जो दुख दे रहा है।

इन सबको तो पेप्सी की एक बोतल में बंद करके इनकी ऊँगली में टिंगली करना चाहिये।

एक नाखुश क्रिकेट प्रेमी…

बस बहुत हुआ… मेरी कविता.. विवेक रस्तोगी

बस बहुत हुआ, जीवन का उत्सव

अब जीवन जीने की इच्छा

क्षीण होने लगी है

जीवंत जीवन की गहराइयाँ

कम होने लगी हैं

अबल प्रबल मन की धाराएँ

प्रवाहित होने लगी हैं

कृतघ्नता प्रेम के साथ

दोषित होने लगी है

मद कौन सा अच्छा भौतिक या श्रीमद…

    मद बहुत अच्छी चीज है, परंतु वह मद कैसा है इस पर निर्भर करता है कि उस मद में चूर होकर व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है। व्यक्ति मद में आकर ही अपना व्यवहार बदलता है।

    भौतिक मद से व्यक्ति की बुद्धि मदमस्त हो जाती है और वह अन्य व्यक्तियों को नुक्सान पहुँचाने लगता है और खुद को भी नुक्सान पहुँचाता है।

    एक है श्रीमद, श्री याने कि राधारानी और मद नशा तो जो कृष्ण जी और राधारानी के मद में डूब गया वह दुनिया को हृदय से देता है क्योंकि वह हृदय से श्रीमद में है।

    कहने के लिये तो बहुत कुछ कहा जा सकता है, परंतु सबकी अपनी अपनी परिभाषाएँ हैं, और मद के बारे में भी ऐसा ही है, जो भौतिक मद में डूबा वह कभी उबर नहीं पाता और न ही खुद निकल पाता है और न ही दूसरों को निकाल पाता है। जो श्रीमद में डुबा वह खुद तो इस भवसागर से तर ही जाता है और दूसरों को भी तार देता है।

तो कोशिश करें कि श्रीमद में डूबे रहें, योगेश्वर श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे रहें।

   कहा गया है कि श्रीरामचंद्र जी का जीवन अनुकरणीय है परंतु श्रीकृष्ण जी का जीवन चिंतनीय है ।

जय श्री कृष्ण !

आज के परिपेक्ष्य में गोवर्धन पर्वत प्रसंग..

    आज श्रीमदभागवत कथा सुन रहे थे, तो उसमें एक प्रसंग था जब कृष्णजी इन्द्र के प्रकोप की बारिश से बचाने के लिये गोकुलवासियों के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी चींटी ऊँगली याने कि सबसे छोटी ऊँगली से तीन दिनों तक उठा लेते हैं, तो गोकुलवासी भी पर्वत को उठाने में अपने सामर्थ्य अनुसार योगदान करते हैं, कोई अपने हाथों से पर्वत को थामता है तो कोई अपनी लाठी पर्वत के नीचे टिका देता है। इस तरह से तीन दिन बीत जाते हैं, तो गोकुल वासी कृष्णजी से पूछते हैं “लल्ला तुमने तीन दिन तक कैसे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया ?” अब कृष्णजी कहते कि मैं भगवान हूँ कुछ भी कर सकता हूँ तो गोकुलवासी मानते नहीं, इसलिये उन्होंने कहा कि “आप सब जब पर्वत के नीचे खड़े थे और सब मेरी तरफ़ देख रहे थे, तो मेरे शरीर को शक्ति मिल रही थी और उस शक्ति को मैंने अपनी चीटी यानी कि छोटी ऊँगली को देकर इस पर्वत को उठा रखा था” तो भोले भाले गोकुल वासी बोले “अरे ! लल्ला तबही हम सोच रहे हैं कि हम सभी को कमजोरी क्यों लग रही है ।”

    अब यह तो हुआ कृष्णजी के जमाने का प्रसंग अब अगर यही आज के जमाने में हुआ होता तो सबसे पहले तो उनको अस्पताल ले जाया जाता और पता लगाया जाता कि “लल्ला” में इतनी ताकत कैसे आई और इतना बड़ा पर्वत उठाने पर भी एक फ़्रेक्चर भी नहीं आया। फ़िर विरोधी पक्ष सदन में हल्ला मचाता कि इतनी मुश्किल से इंद्र देवता ने बारिश की थी और ई लल्ला ने ऊ सब पानी बहा दिया फ़िर सबही चिल्लाते हैं कि पानी की प्रचंड कमी है।

    और जो जबाब कृष्ण जी ने गोकुलवासियों को दिया था वही जबाब आज देते तो सब उनके पीछे पड़ जाते कि ई लल्ला ने किया ही क्या है, हमारी सबकी थोड़ी थोड़ी ताकत का उपयोग करके ई छॊटा सा पराक्रम कर दिया अब इस ताकत के बदले में हम सबको अनुदान दिया जाये और इस लल्ला के विरुद्ध एक जाँच कमेटी बनायी जाये कि इस लल्ला ने कौन कौन से पराक्रम किस किस की ताकत का उपयोग करके किये हैं।

वाकई भगवान श्रीकृष्ण अपना माथा ठोक लेते ….. ।