Monthly Archives: May 2011

संगीत विज्ञान के बारे में …

    संसार मे संगीत विज्ञान की सबसे पहली जानकारी सामवेद में उपलब्ध है। भारत में संगीत, चित्रकला एवं नाट्यकला को दैवी कलाएँ माना जाता है। अनादि-अनंत त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव आद्य संगीतकार थे। शास्त्र-पुराणों में वर्णन है कि शिव ने अपने नटराज या विराट-नर्तक के रूप में ब्रह्माण्ड की सृष्टि, स्थिति और लय की प्रक्रिया के नृत्य में लय के अनंत प्रकारों को जन्म दिया। ब्रह्मा और विष्णु करताल और मृदंग पर ताल पकड़े हुए थे।

    विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को सभी तार-वाद्यों की जननी वीणा को बजाते हुए दिखाया गया है। हिंदू चित्रकला में विष्णु के एक अवतार कृष्ण को बंसी-बजैया के रूप में चित्रित किया गया है; उस बंसी पर वे माया में भटकती आत्माओं को अपने सच्चे घर को लौट आने का बुलावा देने वाली धुन बजाते रहते हैं।

    राग-रागिनियाँ या सुनिश्चित स्वरक्रम हिन्दू संगीत की आधाराशिलाएँ हैं। छह मूल रागों की १२६ शाखाएँ-उपशाखाएँ हैं जिन्हें रागिनियाँ (पत्नियाँ) और पुत्र कहते हैं। हर राग के कम-से-कम पाँच स्वर होते हैं: एक मुख्य स्वर (वादी या राजा), एक आनुषंगिक स्वर (संवादी या प्रधानमंत्री), दो या अधिक सहायक स्वर (अनुवादी या सेवक), और एक अनमेल स्वर (विवादी या शत्रु)।

    छह रागों में से हर एक राग की दिन के विशिष्ट समय और वर्ष की विशिष्ट ॠतु के साथ प्राकृतिक अनुरूपता है और हर राग का एक अधिष्ठाता देवता है जो उसे विशिष्ट शक्ति और प्रभाव प्रदान करता है। इस प्रकार (१) हिंडोल राग को केवल वसन्त ऋतु में उषाकाल में सुना जाता है, इससे सर्वव्यापक प्रेम का भाव जागता है; (२) दीपक राग को ग्रीष्म ऋतु में सांध्य बेला में गाया जाता है, इससे अनुकम्पा या दया का भाव जागता है; (३) मेघ राग वर्षा ऋतु में मध्याह्न काल के लिये है, इससे साहस जागता है; (४) भैरव राग अगस्त, सितंबर, अक्तूबर महीनों के प्रात:काल में गाया जाता है, इससे शान्ति उत्पन्न होती है; (५) श्री राग शरद ऋतु की गोधुली बेला में गाया जाता है, इससे विशुद्ध प्रेम का भाव मन पर छा जाता है; (६) मालकौंस राग शीत ऋतु की मध्यरात्रि में गाया जाता है; इससे वीरता का संचार होता है।

बस में हमने सुनी दो टूटे दिलों की दास्तान…

    ऑफ़िस से आते समय रोज ही कोई न कोई नया वाकया पेश आता है और वह अपने आप में जिंदगी का बड़ा अनुभव होता है।

    पहले तो सामने वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी, जो कि मोबाईल पर किसी से चहक कर बातें कर रही थी, उसके पास लेनोवो का IDEALPAD नाम का लेपटॉप का कवर और उसका बैग था, लेपटॉप अपनी नई पैकेजिंग में था और उसके ऊपर के टैग अभी तक उसी पर झूल रहे थे, वह लड़की अपने लेपटॉप के बारे मॆं ही किसी को बता रही थी, जो कि शायद उसका बहुत करीबी होगा जिससे वह खुशी बांट सकती थी। “देख एक समय वो था और एक समय यह है कि अब मैंने लेपटॉप तक ले लिया है, अच्छे दिन आ गये हैं, और मैं इस बात से बहुत खुश हूँ।”

    थोड़ी देर बात करने के बाद उस लड़की ने अपना आई.पोड कान में लगाया और अगले ही स्टॉप पर उतर गई।

    उसके बाद दोनों सीट खाली हों गई क्योंकि एक सीट पर तो वह लड़की खुद बैठी थी और दूसरी सीट पर उसका समान ।

    उसी स्टॉप से एक लड़का और लड़की चढ़े, दोनों संभ्रांत घर से लग रहे थे, और लड़की बहुत सुन्दर थी (सुन्दर लड़की की तारीफ़ करना कोई बुरी बात तो नहीं, मतलब कि सुन्दर कहना)। दोनों ने आकर्षक कपड़े पहने हुए थे, और उनकी बातें शुरु हुईं।

    पहले लड़का बोला कि “मैं पहले ३ हजार रुपये कमाता था और पंद्रह सौ रुपये जमाकर बाकी पंद्रह सौ से घर चलाता था और उसी समय वह मेरी जिंदगी में आई और मेरी जिंदगी में इस कदर शामिल हो गई, जैसे जिस्म से साँस । तभी उसकी जिंदगी में एक लड़का आया और उसके पास वह सब कुछ था जो मेरे पास नहीं था और वह उसके पास चली गई, मेरे दोस्तों ने मुझे बहुत समझाया था कि लड़कियों के चक्कर में मत पड़, पर जब आदमी का दिल मजबूर होता है तो  दिमाग चलना बंद हो जाता है।”

    लड़की ने ठंडी सांस भरी और कहा “ओह्ह्ह्ह”

    अब लड़की बोली “मैं और वह करीबन ४ साल पहले मिले थे और बहुत अच्छे मित्र थे, धीरे धीरे कब इतने पास आ गये पता ही नहीं चला, उसकी अच्छी नौकरी लग गई और वह टोरोंटो चला गया और मुझे बिसरा दिया, मुझे उसने अपनी जिंदगी से हर तरह से ब्लॉक कर दिया, अपने हर कॉन्टेक्ट को मिटा दिया, जो हमारे कॉमन फ़्रेंड्स थे उन तक को उसने ब्लॉक कर दिया और अपना नया मोबाईल नंबर नहीं दिया।””

    “पता नहीं किस बात पर वह मुझसे उखड़ा था और अगर ब्रेकअप करना ही था तो कम से कम मुझे बोला तो होता तो मैं भी मानसिक रुप से तैयार रहती, लेकिन उसने अपने लिये रास्ता खुला रखा और मुझे पता है कि जब जिंदगी में उसे कहीं भी मेरी जरूरत होगी तो वह फ़िर कोई नई अच्छी सी कहानी लेकर मेरे पास आयेगा और मनाने की कोशिश करेगा,  आखिरकार मैंने भी फ़ैसला लिया कि अब ब्रेकअप ही सही, और मैंने भी अपने सारे कॉन्टेक्ट्स उसके लिये ब्लॉक कर दिये हैं, अपना जीमैल का पता भी बदल दिया, पर ऐसा मेरी किस्मत में ही क्यूँ लिखा था”।

    दोनों बहुत ही रुआँसे और मायूस नजर आ रहे थे, वे बहुत धीमे बातें कर रहे थे परंतु फ़िर भी उनकी बहुत ही गोपनीय बातें सुन ही लीं, यह मेरी गलती है और वे दोनों बातें करते हुए सकुचा भी रहे थे, क्यूँकि वाकई अगर कोई परिचित सुन ले तो अच्छा नहीं लगेगा। उन दोनों की बातें इतनी दर्द से भरी हुईं थीं कि उनकी बातें न सुनने का निर्णय मेरे लिये असाध्य रहा।

    खैर मेरा बस स्टॉप आ गया और मैं उतर गया, उन दोनों को वोल्वो के काँच से देखते हुए उनके लिये दुआ करते हुए कि भगवान इन दुखी दिलों पर रहम की बारिश कर और उनके ऊपर कृपा कर।

ज्ञान, क्रोध और ईश्वर ….. योगी कथामृत .

ज्ञान –

“छोटे योगी, मैं देख रहा हूँ कि तुम अपने गुरु से दूर भाग रहे हो। उनके पास वह सब कुछ है जिसकी तुम्हें आवश्यकता है; तुम्हें उनके पास लौट जाना चाहिये।” आगे उन्होंने कहा, “पर्वत तुम्हारे गुरु नहीं बन सकते” – दो दिन पहले श्रीयुक्तेश्वरजी द्वारा प्रकट किया गया वही विचार।

“सिद्ध जन केवल पर्वतों में ही निवास करें, ऐसा कोई विधि का विधान नहीं है।” मेरी ओर रहस्यपूर्ण दृष्टि से देखते हुए वे कहते जा रहे थे : “भारत और तिब्बत के हिमालय शिखरों का सन्तों पर कोई एकाधिकार नहीं है। जिसे अपने अन्दर पाने का कष्ट न किया जाय, उसे शरीर को यहाँ -वहाँ ले जाने से प्राप्त नहीं किया जा सकता। जैसे ही साधक आध्यात्मिक ज्ञानलाभ के लिये विश्व के अंतिम छोर तक भी जाने को तैयार हो जाता है, उसक गुरु उसके पास ही प्रकट हो जाता है।”

मन ही मन मैं इस बात से सहमत हो गया।

“क्या तुम एक ऐसे छोटे-से कमरे की अपने लिये व्यवस्था कर सकते हो जिसका दरवाजा बंद कर तुम अन्दर एकान्त में रह सको ?”

“जी, हाँ ।” मेरे मन में यह विचार उभर आया कि ये सन्तवर इतनी विलक्षण गति से सामान्य स्तर की बातों से व्यक्तिगत स्तर पर उतर आते हैं।

“तो वही तुम्हारी गुफ़ा है।” योगिराज ने ज्ञान जगा देने वाली एक ऐसी दृष्टि मुझ पर डाली कि मैं उसे आज तक नहीं भूल पाया। “वही तुम्हारा पावन पर्वत है। वहीं तुम्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी।”

उनके इन सरल शब्दों ने हिमालय के लिये मेरे मन में बैठी तीव्र आसक्ति एक पल में समाप्त कर दी। धान के एक दाहक खेत में मैं पर्वतों और अनंत बर्फ़ के स्वप्न से जाग गया।

क्रोध –

क्रोध केवल इच्छा के अवरोध से उत्पन्न होता है। मैं कभी दूसरों से कोई उपेक्षा नहीं रखता, इसलिये उनका कोई भी कार्य मेरी इच्छाओं के विपरीत नहीं हो सकता। मैं अपने किसी स्वार्थ के लिये तुम्हारा उपयोग कई नहीं करता; मैं तो केवल तुम्हारे सच्चे सुख में ही खुश हूँ।”

ईश्वर –

“इहलौकिक सुखों से हम कितनी जल्दी ऊब जाते हैं  ! भौतिक सुखों की कामनाओं का अन्त नहीं है; मनुष्य कभी पूर्ण तृप्त नहीं होता और एक के बाद दूसरे लक्ष्य के पीछे दौड़ता ही रहता है। सुख के लिये वह जिस “कुछ और” की खोज करता रहता है वह ’कुछ और’ ईश्वर ही है और केवल वही शाश्वत आनन्द प्रदान कर सकता है।

“बाह्य इच्छाएँ हमें अभ्यनतर के ’स्वर्ग’ से बाहर खींच लाती हैं; वे मिथ्या आनन्द देती हैं जो आत्मिक आनन्द का छद्म आभास मात्र है। खोया हुआ आनतरिक स्वर्ग दिव्य ध्यान के द्वारा शिघ्र ही पुन: प्राप्त किया जा सकता है। ईश्वर अकल्पित नित्य-नूतनता है, अत: हम कभी उससे ऊब नहीं सकते। परमानन्द अनन्त काल तक सदा के लिये आह्लादक विविधताओं से भरा हो उससे क्या कभी किसी का मन भर सकता है ?”

“अब समझ में आया गुरुदेव, कि सन्तों ने ईश्वर को अगाध क्यों कहा है। अमर जीवन भी ईश्वर को समझने के लिये पर्याप्त नहीं है।”

व्यक्ति के दिमाग का फ़ितूर और कैसे छोटी छोटी चीजें हमारा जीवन हमारी आदत बदल देती हैं ।

    व्यक्ति के दिमाग में अगर कोई बात बैठ जाये तो उसे निकालना बहुत ही मुश्किल होती है, और हमें वह बात पता नहीं कहाँ से हर समय याद आ जाती है।

    मसलन थोड़े समय पहले हमने आयुर्वेद की एक किताब में पढ़ा था कि नहाते वक्त सीधे सर पर पानी नहीं डालना चाहिये पहले पैर पर फ़िर धड़ पर और फ़िर अंत में सिर पर पानी डालना चाहिये, इससे शरीर अनुकूल होता जाता है और बीमारियों से बचाव भी होता है। और कुछ हुआ हो या ना हुआ हो, आज तक वही याद रहता है और उसी तरह से नहा रहे हैं व कभी अगर गलती से भी गलती करने की कोशिश होती है तो फ़ौरन सुधार देते हैं, यह बात पता नहीं दिमाग में हमेशा याद रहती है कि कहीं कोई अनिष्ट ना हो जाये।

    ऐसे ही थोड़े दिन पहले एक ईमेल आया कि अगर बटुआ आप जेब में रखते हैं तो रीढ़ की हड्डी ९० डिग्री से कुछ डिग्री झुक जाती है, क्योंकि एक और बटुआ होने से व्यक्ति एक तरफ़ झुक जाता है, बात तो सही है, पता नहीं कितनी सही और कितनी गलत परंतु हाँ अब बटुआ पीछे से निकल जा चुका है, बटुआ रखने का स्थान बदल दिया गया है।

    अब अगर बटुआ पीछे पैंट की जेब में रखा भी हो तो एकदम से वह ईमेल याद आ जाता है, और अपनी रीढ़ की हड्डी की फ़िक्र में बटुए की जगह बदल देते हैं। हालांकि यह ईमेल खोजा परंतु मिला नहीं अगर कभी मिला तो जरूर पोस्ट पर लगाऊँगा।

    पहले मोबाईल शर्ट की ऊपर की जेब में रखते थे तो सबने मना कर दिया और न्यूज चैनल वालों ने तो हल्ला ही मचा दिया था, बस वह आदत जो छूटी है आज तक छूटी ही है, और अगर कभी गलती से कभी शर्ट में मोबाईल रख भी लिया तो जल्दी से निकाल कर हाथ में ले लेते हैं, नहीं तो ऐसा लगता है कि जिन लोगों ने मना किया था वे सब अपनी आँखें बस मुझ पर ही गड़ाये हुए हैं।

इस तरह की छोटी छोटी चीजें हमारा जीवन हमारी आदत बदल देती हैं।

असफ़ल एटीएम ट्रांजेक्शन पर अगर १२ दिन के अंदर रकम न लौटाये तो बैंकों को ग्राहक को १०० रुपये प्रतिदिन से हर्जाना देना होगा… (On every Failed ATM Transactions delay in reimbursement bank must pay Rs.100 a day penalty)

     शीर्षक देखकर चौंक गये ना ! जी हाँ यह रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने यह परिपत्र २००९ में जारी किया था परंतु बहुत ही कम लोगों को इसके बारे में पता है।

    एटीम असफ़ल ट्रांजेक्शन एटीएम पर कई बार हम रुपये निकालने जाते हैं और कभी कभी रुपये नहीं आते हैं और बैंक खाते में रकम कम हो जाती है, याने के बैंक की किताबों में आपके रुपयों की निकासी दर्ज हो जाती है, फ़िर आप बैंक की हेल्पलाईन पर फ़ोन करके इसकी शिकायत दर्ज करवाते हैं या फ़िर शिकायत पत्र के द्वारा करते हैं या बैंक की शाखा में शिकायत दर्ज करवाते हैं। परंतु कुछ होता नहीं है कई बार तो बैंक सुनते ही नहीं हैं और अपनी मनमर्जी की करते हैं।

    २००९ में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बैंको के लिये एक परिपत्र जारी किया थ कि अगर असफ़ल एटीएम ट्रांजेक्शन का निपटान १२ कार्यकारी दिवसों में नहीं किया जाता है तो बैंक को ग्राहक के बिना कहे १०० रुपये प्रतिदिन हर्जाने के रूप में दिना होंगे। परंतु अभी तक कोई बैंक इस बारे में गंभीर नहीं है।

    २ वर्ष पहले जब मैं गहने खरीदने बाजार गया था, तो लगभग २०,००० रुपयों की और जरूरत पड़ी, अब क्रेडिट या डॆबिट कार्ड से ट्रांजेक्शन करने पर २% अतिरिक्त शुल्क उज्जैन में उन दिनों लिया जाता था, क्योंकि बैंक उनसे शुल्क लेता था, अब धीरे धीरे चलन में आ गया है तो अब इतनी दिक्कत नहीं होती है। पहले मैं पास के दो-तीन ए.टी.एम. पर गया तो पता चला कि खराब हैं, और फ़िर जब महाकाल के पास लगे स्टेट बैंक के ए.टी.एम. पर गया तो रुपये निकले नहीं और बैलेन्स कम हो गया (यह हमें बाद में पता चला), खैर फ़िर भी हमने दूसरे ए.टी.एम. से रुपये निकालकर अपनी खरीददारी पूरी करी।

    जब वापिस मुंबई पहुँचे और तो पता चला कि २०,००० रुपये के दो ट्रांजेक्शन दर्ज हैं, हमने तत्काल अपने बैंक के ग्राहक सेवा को फ़ोन किया तो जानकारी मिली की १५ दिन के अंदर आपके रुपये खाते में जमा हो जायेंगे, हमने सात दिन बार फ़िर फ़ोन किया तो कहा गया कि स्टेट बैंक से अभी तक उत्तर नहीं आया है। खैर १० कार्यकारी दिवसों में हमारी रकम हमारे खाते में जमा कर दी गई।

    जब हमने अपने स्तर पर इसकी कार्यप्रणाली की छानबीन की कि आखिर कैसे पता लगाते हैं कि ग्राहक ने सही शिकायत की है या नहीं तो पता चला –

    जब ए.टी.एम. से रुपये निकलते हैं तो कितनी रकम निकाली गई और नोट डिस्पेन्सर से  कितने रुपये के कितने नोट बाहर गये हैं, यह एक अंदर गोपनीय रोल पर प्रिंट होता रहता है और इस तरह की शिकायत में इन रोलों की जाँच की जाती है और फ़िर रुपये वापिस जमा किये जाते हैं, और यह प्रिंट तभी होता है जब कि नोट डिस्पेन्सर से बाहर आते हैं, तो गलती की कोई जगह ही नहीं है। फ़िर जिस बैंक के ए.टी.एम. से ट्रांजेक्शन असफ़ल होता है वह संबंधित बैंक को बताता है कि रुपये नहीं निकले हैं और यह सत्यापित किया जाता है तब आपका बैंक आपके खाते में रूपये जमा करवा देता है, और इसके लिये १२ दिन का समय बहुत होता है।

तो अगली बार अगर आपके साथ ऐसा हो तो हर्जाने को लेना न भूलें।

खरीदने के लिये उकसाते विज्ञापन….

अभी बस हायपरसिटी से घर का एक सप्ताह का नाश्ते और खाने के लिये समान लेकर निकल ही रहा था कि ओलंपस के कुछ लोग खड़े थे, और एक लड़की जो कि बहुत ही उत्तेजक कपड़े पहने हुए थी और उसने रोककर पूछा कि क्या आप ओलंपस के कैमरे से फ़ोटो खींचकर देखना चाहेंगे और दस मिनिट आपको DSLR कैमरा दिया जायेगा और आप चाहे जितनी फ़ोटो ले सकते हैं, और फ़िर ओलंपस की फ़ोटो कांटेस्ट में हिस्सा ले सकते हैं। हमने सोचा चलो इसी बहाने DSLR कैमरे की विशेषताएँ भी देखने को मिल जायेंगी।

कैमरा अच्छा था पर खैर बाद में हमने उसके बारे में पढ़ा तो पाया वह सेमीप्रोफ़ेशनल कैमरा है, ना कि प्रोफ़ेशनल कैमरा पर हाँ इस कैमरे की सबसे अच्छी बात यह थी कि अगर वीडियो बना रहे हैं और बीच में फ़ोटो खींचना है तो जूम करके बीच में फ़ोटो भी ले सकते हैं और वीडियो तो बनता ही रहेगा। खैर हमें केवल एक बात समझ में नहीं आई क्या उत्तेजक कपड़े पहनकर ही कैमरे बेचे जा सकते हैं ?

घर पहुँचे टीवी पर एक विज्ञापन आ रहा था (हम टीवी कम ही देखते हैं, इसलिये विज्ञापन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रहती है), जिसमें एक परिवार को तैयार होते हुए दिखाया जा रहा था और पति अपनी पत्नी और बच्चों से कहता है कि जल्दी चलो फ़िल्म छूट जायेगी, अगर फ़िल्म छूट गई तो तुम्हीं लोगों से पैसे लूँगा। [हा हा कमाये पति और अपनी ही जेब के पैसे वसूँलेंगे पत्नी और बच्चों से ;-)]

तैयार होकर घर के बाहर पहले केवल पति बाहर आता है फ़िर पत्नी और फ़िर एक एक करके तीन बच्चे और फ़िर पति अपने स्कूटर की तरफ़ देखते हैं [हमें लगा कि बजाज स्कूटर का विज्ञापन है, और वापस से बाजार में आ रहा है 🙁 ], पति अपने एक बच्चे के साथ स्कूटर पर जाता है और पत्नी अपने दो बच्चों के साथ ठुमकते हुए पलटती है और कहती है, हम तो ऑटो से जायेंगे तुम्ही जाओ इससे !!

और पंचलाईन आती है “इसीलिये तो बैंक ऑफ़ इंडिया लाये हैं आपके लिये आसान कार लोन”।

अब इस विज्ञापन से विज्ञापनदाता ने एक साथ पूरे परिवार पर निशाना साधा है और फ़िर बच्चों और पत्नी की जिद के आगे पति को नतमस्तक होना ही पड़ता है, इस तरह से उस परिवार के पास कार तो आ जाती है, बैंक का व्यापार भी हो जाता है। परंतु उस परिवार का वित्तीय भविष्य कितना सुरक्षित हो पाता है यह तो वह पति ही जानता है क्योंकि उसे तो भविष्य के लिये वित्तीय प्रबंधन भी करना है। ऐसे विज्ञापन घर में झगड़ा करावाने के लिये बहुत हैं।

पासवर्ड को की-लोगर्स से कैसे बचायें… (How to safe your passwords from Key-Loggers)

पासवर्ड की कड़ी को पढ़ने के लिये यह लेख भी पढ़ें – आसानी से पासवर्ड कैसे बनायें, क्या रखें पासवर्ड (Simple Password!!, How to create Password)

kloggers की-लोगर्स शब्द शायद सबने पहले सुना होगा, की-लोगर्स एक छोटा सा गोपनीय प्रोग्राम होता है जो कि ओपरेटिंग सिस्टम शुरु होते ही अपने आप एक्टिव हो जाता है और वह ना तो ट्रे में दिखता है और ना ही टॉस्क मैनेजर में दिखता है। keyloggers लॉग देखने के लिये उसी प्रोग्राम में गोपनीय की-कॉम्बीनेशन बताना पड़ता है और उन्हीं की (keys) के संयोजन को दबाने पर की-लोगर्स अपने लॉग स्क्रीन दिखाता है। जैसे Ctrl+Shft+k, Shift+Alt+d

की-लोगर्स का उपयोग बहुत सारे लोगों द्वारा किया जाता है और अलग अलग तरीके से इसका उपयोग किया जाता है, जहाँ इसका उपयोग अच्छे कार्यों के लिये भी किया जाता है तो कहीं इसके द्वारा रिकार्ड की गई लॉग्स से दुरुपयोग भी किया जाता है।

जब भी किसी नये कंप्यूटर पर कुछ काम करें, तो सावधानी बरतें कि आप अपने ईमेल एकाऊँट में लॉगिन न करें, अपने बैंक एकाऊँट में लॉगिन न करें। जो भी पासवर्ड आप टाईप करेंगे वह की-लोगर्स में लॉग हो जायेगा और वह व्यक्ति आपकी गोपनीय  जानकारियों के बारे में जान सकता है और नुकसान भी पहुँचा सकता है, फ़िर वह व्यक्तिगत तौर पर हो या वित्तीय तौर पर, पर नुक्सान तो नुक्सान ही होता है।

Virtual Keyboard    की-लॉगर्स से बचने के लिये बैंको के लॉगिन पेज पर वर्चुअल कीबोर्ड रहता है, उसका उपयोग करें।  यहाँ पर आपको दो नये बटन (Keys) मिलेंगे होवरिंग और शफ़ल, इनका भी भरपूर उपयोग करें, कोई भले ही आपकी स्क्रीन पर नजर रखे हुए हो आपके पासवर्ड के लिये परंतु इस तकनीक का उपयोग करने से आप अपने बैंक एकाऊँट का पासवर्ड बचाने में सुरक्षित रहेंगे।

OnScreen Keyboard

वैसे ही विन्डोज में ऑन-स्क्रीन कीबोर्ड का भी उपयोग कर सकते हैं, जो कि आपको Run में OSK (OnScreen Keyboard) कमांड से मिल जाता है।

माऊस के मूवमेंट्स को की-लोगर्स पकड़ नहीं पाते हैं, इसलिये ऊपर बताये गये दोनों की-बोर्ड सुरक्षित हैं।

की-लोगर्स का उपयोग अभिभावक कर सकते हैं, कि उनके बच्चे कौन सी वेबसाईट पर जा रहे हैं, अगर उनके ईमेल का पासवर्ड उन्हें नहीं बता रखा हो तो उन पर नजर रखने के लिये उनके पासवर्ड पाने के लिये भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

आसानी से पासवर्ड कैसे बनायें, क्या रखें पासवर्ड (Simple Password!!, How to create Password)

पासवर्ड १     पासवर्ड Password आज कंप्यूटर की दुनिया में सुरक्षा का पर्याय है और यह एक ऐसे अनदेखे ताले की चाबी  है जो कि बिना शब्दों के जाल के नहीं खुल सकता है, अगर यह कूटशब्द किसी को पता चल जाये तो पता नहीं क्या क्या हो जाये। बैंकों में बड़ी बड़ी डकैतियाँ हो जायें, निजी डाटा चोरी हो जाये और भी बहुत कुछ हो सकता है। हमें पता होना चाहिये कि पासवर्ड कैसे बनायें।

    सभी लोग कंप्यूटर का उपयोग करते हैं, और वर्षों से कर रहे हैं, परंतु कभी आपने अपने  पासवर्ड पर ध्यान दिया है, यह पता होना जितना उपयोगी है उतना ही लोगों को आलस्य वाला कार्य लगता है। हम तो पासवर्ड बिल्कुल साधारण रखते हैं जिससे याद करने में भी आसानी हो और पासवर्ड अंकन करने में भी और वैसे भी कौन हमारे पासवर्ड को तोड़ना चाहेगा, हमारे पासवर्ड को तोड़ भी लिया तो क्या होगा वगैरह वगैरह।

    अगर ऊपर कहीं गईं बातें, लगे कि यह तो हमारे लिये कहा जा रहा है तो आपको तुरंत पासवर्ड बदलने की जरुरत है।

     साधारणतया: पासवर्ड क्या रखा जाता है, माता,पिता,पत्नी,पति,बच्चे का पासवर्ड ३नाम, घर के पालतू पशुओं के नाम, गाड़ी का ब्रांड या नंबर, मोबाईल नंबर फ़ोन नंबर, ईष्ट देवता देवी का नाम या पसंदीदा अभिनेता अभिनेत्री का नाम। यह सारे शब्द और नंबर ऐसे हैं जो कि हमें याद नहीं रखना पड़ते हैं, और यह हमारे जहन में हमेशा रहते हैं, तो मानव मन हमेशा ऐसे ही शब्दों से पासवर्ड बनाता है। ऐसे पासवर्डों को तोड़ना बहुत मुश्किल नहीं होता और उनके लिये तो बिल्कुल भी नहीं जो कि आपके करीबी हैं, और एक बात बता दूँ कि करीबी लोग ही सबसे ज्यादा पासवर्ड चुराने की कोशिश करते हैं, और आपकी निजी गोपनीय जानकारी को पढ़ना चाहते हैं, उसमें वे एक अलग ही तरह का आनंद महसूस करते हैं।

फ़िर पासवर्ड कैसे बनाया जाये ?

    एक अच्छा पासवर्ड कम से कम आठ 8 अक्षरों का होना चाहिये जिसमें नंबर, कैपिटल लैटर और स्पेशल अक्षरों को शामिल करना चाहिये। अगर नाम पासवर्ड में हैं तो देखिये कि कौन से अक्षर को आप स्पेशल अक्षर में बदल सकते हैं या नंबर में बदल सकते हैं, अगर नहीं हो रहा है तो पासवर्ड के पहले या आखिरी में जन्मदिन की तारीख और शिफ़्ट के साथ उसी तारीख का स्पेशल अक्षर को भी पासवर्ड में इस्तेमाल कर सकते हैं।

पासवर्ड जितना जटिल होगा उतना ही सुरक्षित होगा।

उदाहरण देखिये –

शब्द जिसका पासवर्ड बनाना है पासवर्ड
Vivek v!V9k
Praveen Pr@v99n
Abhishek @6h!sh9k
Om Namah Shivay (Zero)0Mn@m@hsh!v@7
Bangalore b@n8@l0(Zero)r9

    इस प्रकार साधारण शब्दों से भी जटिल पासवर्ड बना सकते हैं, और एक बार आप इस प्रकार के पासवर्ड का उपयोग करना शुरु करेंगे तो फ़िर यह धीरे धीरे आपको आसान लगने लगेगा।

पासवर्ड के बारे और जानकारी आगे की पोस्ट में पढ़ियेगा –

पासवर्ड को की-लोगर्स से कैसे बचायें… (How to safe your passwords from Key-Loggers)

अक्षय तृतिया सोना चाँदी कैसे खरीद रहे हैं, डीमैट में या ईंट ? (Purchasing Gold Silver in which form dMat or Physical on Akshay Tritiya)

    अक्षय तृतिया आ रही है, और यह सोना खरीदने के लिये जानी जाती है, इसी दिन बड़ी संख्या में विवाह भी होते हैं, इस दिन कोई भी शुभ काम बिना मुहुर्त के शूरु किया जा सकता है।

    अक्षय तृतिया आते ही सोने चांदी के व्यापारियों ने अपने विज्ञापन बड़े बड़े होर्डिंग पर लगाने शुरु कर दिये हैं, कोई नकद पर ५% वापसी का लालच दे रहा है तो कोई कार ईनाम में दे रहा है। सोना चांदी खरीदने के लिये  तरह तरह के लुभावने ऑफ़र बाजार में दिये जा रहे हैं। अब क्या खरीदना है वह तो जरूरत पर निर्भर करता है।

    वैसे तो अक्षय तृतिया पर सोना ही खरीदा जाता है, परंतु इस एक वर्ष में चाँदी ने इतनी तेजी दिखाई कि एक वर्ष में १३५ प्रतिशत बढ़ गई और सोना १०-२० प्रतिशत तक ही बढ़ा। जानकारों का कहना है कि अगले वर्ष के लिये सोना खरीदने पर १५-२० प्रतिशत और चाँदी खरीदने पर ३०-४० प्रतिशत तक मुनाफ़ा हो सकता है।

    अगर जरुरत गहने पहनने की है तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं, परंतु अगर गहने की जरूरत नहीं है तो फ़िर इसे डीमैट में खरीदें, इससे गहने बनने की लागत भी बचेगी और बेचने पर सुनार द्वारा काटे जाने वाला प्रतिशत भी बचेगा।

    एन.एस.ई. पर ईसिल्वर और ईगोल्ड दोनों ही मौजूद हैं, ईसिल्वर १०० ग्राम के और ईगोल्ड १ ग्राम के मूल्य वर्ग में उपलब्ध हैं, बस खरीदते और बेचते समय ब्रोकरेज लगेगा।