Monthly Archives: October 2013

मित्र के लिये बैंक से ऋण (Bank loan for friend)

    मित्र के साथ मिलकर बैंक से ऋण (Loan from bank with friend) लेना या मित्र के लिये बैंक से ऋण लेना (Loan from bank for friend), दोनों ही किसी मुसीबत के लिये निमंत्रण हो सकते हैं। थोड़े समय पहले हमारे एक सहकर्मी ने हमसे इस बाबत बात की, और कहा कि उन्होंने बैंक से १० वर्ष पहले प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Pradhamantri Rojgar Yojna) में एक लाख रूपये का ऋण लिया था, ऋण पूरा मित्र “अजय” के नाम पर था, परंतु पीछे वास्तविकता में उनके मित्र “बिजय” उस व्यापार जिसके लिये ऋण लिया गया था, बराबर के हिस्सेदार थे, केवल बैंक में “अजय” के नाम से ऋण लिया गया, जबकि “बिजय” का नाम कहीं भी नहीं था। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे, दोनों को एक दूसरे पर बहुत यकीन था।
    दोनों अपना अपना काम करने लगे, व्यापार थोड़ा चल निकला,  फ़िर “अजय” को ठीकठाक सी नौकरी मिल गई, तो “अजय” ने “बिजय” को व्यापार की बागडोर थमाई और नौकरी में चले गये। जब तक “अजय” व्यापार में साथ था तब तक ऋण का मासिक भुगतान समय पर बैंक को होता रहा, परंतु जैसे ही “अजय” नौकरी के लिये गया, “बिजय” ने बैंक की ऋण अदायगी बंद कर दी। बैंक के रिकार्ड में उनका ऋण खाता निष्क्रिय की श्रेणी में आकर एन.पी.ए. (Non Performing Asset) घोषित कर दिया गया।
    पहले बैंक ने “अजय” से संपर्क किया और प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत लिया गया ऋण चुकाने की बात कही, तो “अजय” ने बैंक को कहा कि मैंने तो कब से व्यापार से नाता तोड़ लिया है और अब मेरा मित्र “बिजय” उस व्यापार को चला रहा है, तो बैंक ने कहा “ऋण तो आपके नाम से है, “बिजय” के नाम से नहीं है, आप हमारा पैसा हमें लौटा दीजिये” ।
    “अजय” परेशान हो गया कि आखिर “बिजय” को यह क्या हो गया जो उसने हमारे अपने व्यापार को जमाने लिये गये ऋण को नहीं चुकाया, जबकि व्यापार अच्छा चल रहा है, जब उसने “बिजय” से बात करने की कोशिश की, पहले तो “बिजय” फ़ोन पर ही नहीं आया, चूँकि “अजय” की नौकरी घुमंतु वाली थी, कभी इस शहर कभी उस शहर। छुट्टियों में “अजय” घर गया और “बिजय” से मिला तो “बिजय” बड़ी ही रूखाई से पेशा आया और कहा ऐसा है कि ऋण तुमने लिया तो मैं क्यों भरूँ, ऋण तो तुमको ही भरना पड़ेगा, मेरे नाम पर ऋण थोड़े ही है, “अजय” यह सुनकर रूआंसा हो गया।
    “अजय” ने “बिजय” से बात करके समस्या का हल निकालने की पूरी कोशिश करता रहा, “बिजय” को लग रहा था कि ऋण चुकाना केवल “अजय” की जिम्मेदारी है, परंतु जब “अजय” ने समझाया कि हमने साझेदारी में व्यापार शुरू किया था, तो तुम भी तो ऋण के साझेदार हुए, “बिजय” को बात समझ आ गई और वह आधा ॠण भरने को तैयार हो गया, अब “अजय” फ़िर परेशान था, क्योंकि उसने तो व्यापार में से एक पैसा भी नहीं लिया था, फ़िर भी उसे आधा ऋण चुकाने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, “अजय” को पता था कि “बिजय” वह आधा ऋण के पैसे निकालने में ही उसके पसीने छुड़ा देगा। और बैंक “अजय” के पीछे पड़ी हुई थी।
    यही वह समय था, जब “अजय” मुझसे मिला और इस बाबत अपनी राय माँगी, हमने कहा “बिजय” को ऋण देने के लिये राजी तो तुमको ही करना पड़ेगा, नहीं तो आधा ऋण फ़ालतू में तुमको अपनी जेब से भरना पड़ेगा, अब “अजय” ने फ़िर से “बिजय” से बात की, व्यापार को छोड़कर मैं तो नौकरी में चला गया था, तो पूरा ऋण तुम्हें ही चुकाना होगा, अब इस बात पर “बिजय” उखड़ गया। “बिजय” बोला एक तो ऋण तुम्हारे नाम पर है, फ़िर भी मैं आधा ऋण चुकाने को तैयार हो गया हूँ और अब तुम पूरा का पूरा मेरे ऊपर डालना चाहते हो।
    खैर “अजय” ने हमसे कहा कि मैं बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता हूँ, मैं आधी रकम जो कि लगभग पैंतीस हजार होती है मैं बैंक को चुका देता हूँ और बाकी की मेरा मित्र “बिजय” चुका देगा, “अजय” ने बैंक से सैटलमेंट किया कि हम केवल मूल ऋण चुका पायेंगे, ब्याज की राशि माफ़ की जाये, तो बैंक इस बात के लिये राजी हो गया और कुल सत्तर हजार के ऋण में से आधी रकम “अजय” ने बैंक को चुका दी और बाकी की रकम “बिजय” को चुकानी थी, बिजय ने अजय को पोस्ट डेटेड चेक देकर कहा कि इन तारीखों में मेरे भुगतान आने हैं, तुम बैंक में लगा देना। “बिजय” ने दस हजार के तीन चेक दिये थे, और तीनों के तीनों बाऊँस हो गये, और इसी बीच “अजय” को “बिजय” ने बाकी के पांच हजार रूपये नकद में दे दिये।
    बैंक वालों ने “अजय” का पीछा नहीं छोड़ा और कहा कि हमारा पूरा पैसा चाहिये तुम्हारी साझेदारी तुम्ही जानो, हमारे लिये तो कर्जदार तुम हो और तुम हमारा पूरा पूरा ऋण चुकाओ, नहीं तो हम तुम्हारा केस अब वसूली के लिये कलेक्टर कार्यालय को भेज रहे हैं। वहाँ से कुर्की के आदेश भी निकल सकते हैं। “अजय” घबरा गया, उसने फ़िर से “बिजय” से बात की और चेक बाऊँस होने के कारण नकद रूपये देने की बात कहीं, अब बिजय अजय को थोड़े थोड़े करके नकद रूपये देकर ऋण चुका रहा है।
    इस बात से एक अनुभव मिलता है कि कभी भी अगर साझे में कोई भी काम करो तो ऋण भी साझेदारी में ही होना चाहिये, फ़िर चाहे कोई कितना भी अच्छा दोस्त हो या रिश्तेदार हो, ऐसे कार्यों में सहानुभूति से कार्य नहीं लेना चाहिये और व्यवहारिकता से सोचना चाहिये, पैसा निकालने में जान निकल जाती है और कानून डंडा लेकर आपके पीछे पड़ा रहता है।
    बेहतर है कि या तो साझे में ॠण ना लें या लें तो उसके बराबर दस्तावेज हों, वैसे ही कभी मित्र या रिश्तेदार की मदद करने के लिये कोई ऋण ना लें, अन्यथा परेशानी का सामना आपको ही करना पड़ेगा। एक बार मना करके बुराई मिलती है तो इतनी सारी आने वाली परेशानियों से वह बुराई बेहतर है।

नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)

    अपने निवेश और संपत्ति के लिये उत्तराधिकारी की घोषणा आपके जीवन में महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होता है। इसके बारे में कुछ ही लोगों, निवेशकों को पता है, नामांकन के ना होने (उत्तराधिकारी घोषित ना होने की दशा में) किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह भी बहुत कम लोगों को पता है। यहाँ पर कुछ अच्छी बातें उन निवेशकों के लिये जो अपने निवेशों के लिये उत्तराधिकारी घोषित कर अपनी और अपने प्यारों की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं।
    जिंदगी अनिश्चितताओं पर चलती है और इसी कारण नामांकन आपके अपने परिवार के लिये आराम है, जिससे ऐसी किसी भी परिस्थिती के बाद परिवार आपके निवेशों को आराम से पा सके, जो निवेश आपने अपने प्यारों दुलारों के लिये किया है, वह निवेश आराम से उन तक पहुँच भी सके। नामांकन उनके लिये केवल अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा होगा, जब उनको आपके निवेश की अधिक आवश्यकता होगी, या खर्चे के लिये पैसों की या फ़िर आपके प्यारों के लिये उस धन / रकम को अपने नाम पर करना होगा, तो नामांकन होने की दशा में उनको बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर औपचारिकता निभाना होगी। नामांकन ना होने की दशा में आपके निवेशों तक पहुँचने के लिये आपके अपने परिवार को पूरी कानूनी कार्यवाहियों से गुजरना पड़ेगा। जो कि उनके लिये सिरदर्द तो होगा ही, साथ में उतना ही परेशानी वाला रास्ता भी होगा। और जब आपके परिवार को धन की आवश्यकता होगी तो वे धन होने की स्थिती में भी इसका उपयोग नहीं कर पायेंगे।
nomination    नामांकन बहुत आसान प्रक्रिया है, नामांकन प्रपत्र लगभग हर दस्तावेज के अंत में होता है, जिसमें निवेशक को अपने उत्तराधिकारी की जानकारी भरना होती है जैसे कि नाम, रिश्ता, पता, फ़ोन नंबर, कई जगह एक गवाह की जरूरत होती है, पर आजकल अधिकतर आप सीधे नामांकन कर सकते हैं, एक प्रतिलिपी आप अपने पास रख सकते हैं या फ़िर अपनी निवेश डायरी में नोट कर लें। जिन लोगों ने यह सुविधा नहीं ली है, वे लिखित में एक पत्र देकर नामांकन करवा सकते हैं। नामांकन करना बहुत ही सरल कार्य है।
    याद रखें, आपके लिये नामांकन करने का प्रावधान हमेशा खुला हुआ है, आप कभी भी नामांकन कर सकते हैं, आप विशेषकर इन निवेशों में जरूर नामांकन का उपयोग करें –
१. बैंक में बचत खाता / सावधि जमा खाता ( Saving Account/ Fixed Deposit)
२. बीमा  (Insurance Policy)
३. शेयर एवं म्यूचयल फ़ंड (Shares and Mutual Funds)
४. अन्य जमा जैसे कंपनी डिपोजिट, पीपीएफ़., पीएफ़ (Company Fixed Deposit, Public Provident Fund, Provident Fund)
    वैसे तो साधारणतया: खाता खोलते समय नामांकन की औपचारिकताunomination को पूरा करवा लिया जाता है, परंतु अगर खाता खोलते समय नामांकन नहीं कर पाये हों तो नामांकन बाद में कभी भी किया जा सकता है। आप बाद में नामांकन को बदल भी सकते हैं और हटा भी सकते हैं। और यह केवल वही निवेशक कर सकता है, जिसने नामांकन किया था ।
    अगर आप नामांकन में एक से ज्यादा उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं तो यह भी संभव है, केवल उन उत्तराधिकारियों के सामने उनके हिस्से के प्रतिशत को बता दीजिये।
नाबालिग, ट्रस्ट, सरकार, स्थानीय अधिकारी, गैर निवासियों को भी उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है।
उत्तराधिकारियों को धन प्राप्त करने के लिये क्या करना होगा ?
१. सभी बैंकों एवं संस्थाओं में मृत्यु प्रमाण पत्र की एक मूल और एक जेरॉक्स दें ।
२. केवायसी के लिये सही उत्तराधिकारी के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें।
३. अगर निवेश की रकम एक लाख रूपये से ज्यादा है तो संस्था इन्डिमिनिटी बांड की मांग कर सकती हैं।
४. नामांकन ना होने की दशा में संस्थाओं द्वारा वसीयत मांगी जा सकती है, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, अन्य वारिसों से अनापत्ति प्रमाण पत्र की जरूरत होगी।

PMP, CBAP, ISTQB कौन सा सर्टिफ़िकेशन करना चाहिये ।

    आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।

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    अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।

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    PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।

    वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।

    इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।

    naukriनई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।

आप इस पोस्ट का वीडियो भी देख सकते हैं –

हमारे सारे पर्व और जयंतियाँ हैप्पी क्यों होने लगी हैं

आजकल हमारे सारे पर्व और जयंतियाँ हैप्पी क्यों होने लगी हैं, इसका कारण समझ नहीं आया । पर जब विश्लेषण करने बैठे तो समझ में यह आया कि अपने पास भारत में तो कोई वेलेन्टाईन डे, फ़्रेंडशिप डे, फ़ादर्स डे, मदर्स डे इत्यादि इत्याद ‘डे’ है ही नहीं, तो हमारे भारत में सारे पर्व और जयंतियों को हैप्पी बना दिया गया है।
 
२ अक्टूबर को तो वोदाफ़ोन ने हद ही कर दी, जब उनका एस.एम.एस. आया हैप्पी गाँधी जयंती, हमें समझ नहीं आया कि ये गाँधी जयंती हैप्पी कैसे हो गई, और हम इसे हैप्पी होकर कैसे मनायें, आखिर हरेक डे हैप्पी कैसे हो सकता है। गाँधी जयंती पर अमूमन खादी पर अच्छी छूट मिल जाती है और आजकल हमें खादी बहुत अच्छी लगती है, इसके रंग संयोजन भी अच्छे आते हैं, हम तो खादी की शर्ट खरीदकर ही हैप्पी हो जाते हैं।
 
हैप्पी पितृपक्ष, हमें समझ नहीं आया अब इसमें क्या हैप्पी है, हमारे पितृ तो इस संदेश को पढ़ नहीं सकते, वे और कन्फ़्यूज हो जायेंगे कि ये हैप्पी कैसे हो गया।
 
हैप्पी नवरात्रि, हमने यही समझा कि नवरात्रि की शुभकामनाएँ ।
 
उसके बाद दशहरा आया, फ़िर एस.एम.एस. और व्हाट्स एप पर संदेश आने लगे हैप्पी दशहरा, जबकि हम संदेश भेजते हैं, दशहरे के पावन पर्व पर आपको बहुत शुभकामनाएँ, अब हमें हैप्पी दशहरा समझ नहीं आया हैप्पी का यहाँ मतलब निकाल सकते हैं शुभकामनाएँ, पर गाँधी जयंती वाले हैप्पी में क्या मतलब निकालें, आजकल की संस्कृति बदलती जा रही है।
 
अब आज आ गया है करवा चौथ, सुबह सुबह एक संदेश आया हुआ है हैप्पी करवा चौथ, भई!! करवा चौथ तो हैप्पी है केवल पुरुषों के लिये, उनके लिये उनकी दुल्हन दिनभर व्रत जो रख रही है, दुल्हन के लिये थोड़े ही हैप्पी है, दुल्हनों की बैचेनी शाम को बड़ जाती है, जब चाँद निकलने का समय अगर साढ़े आठ का है और आठ पैंतीस भी हो जाये, तो बस जैसे ये पाँच मिनिट की देरी भी पति ने ही चाँद को कहकर करवा दी हो, अब हमारे यहाँ तो पिछले ३-४ दिन से बारिश हो रही है, तो चाँद का दिखना भी बादलों की मेहरबानी है।
 
हाँ हैप्पी करवा चौथ उनके लिये होता है जो खुद भी पत्नि के साथ व्रत रखता हो, हमारे बहुत सारे परिचित पत्नि का साथ देने के लिये व्रत रखते हैं, हम तो यह कहकर टाल देते हैं परंपरा में नहीं है, जबकि असल बात यह है कि अपने को व्रत / उपवास करना बहुत भारी पड़ता है।

अब कुछ दिनों बाद भाईदूज, धनतेरस, दीवाली और कार्तिक पूर्णिमा भी आने वाले हैं, इनका भी हैप्पी होने का संदेश आयेगा।

इसका वीडियो भी देख सकते हैं –

 

भाग १ – पाठ्य – गायत्री मन्त्र अथर्ववेद के अनुसार

वेदमाता के पावन अनुग्रह से हमें वैदिक तत्वज्ञान का अमृत – प्राशन करने का सुअवसर प्राप्त हो, यही हम सबके हृदय की एक मात्र कामना है – क्योंकि अथर्ववेद के अनुसार इसी से हमारी अन्य सभी इच्छाओं की परिपूर्ति हो जायेगी –
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी
द्विजानाम्‍।
आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं
मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम् ॥
( – मैंने वरदायिनी वेदमाता की स्तुती की है। यह हम सबको पवित्र करने वाली है। हमारी प्रार्थना है कि यह उन सबको पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करे, जो मानवीय संस्कारों से संपन्न हैं। यह हमें लम्बी आयु, प्राणशक्ति, श्रेष्ठ संतानें, पशु समृद्धि तथा ब्रह्मतेज प्रदान करे और अन्त में ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराये ।
अथर्ववेद के अनुसार वास्तव में गायत्री ही वेदमाता है। इस गायत्री मंत्र से हम सभी सुपरिचित हैं, जो इस प्रकार है –
ओऽम् भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्‍॥
मन्त्र का सामान्य अर्थ इस प्रकार है –
हम सभी (सवितु: देवस्य) सबको प्रेरित करने वाले देदीप्यमान सविता (सूर्य)  देवता के (तत्‍) उस सर्वव्यापक (वरेण्यम्‍) वरण करने योग्य अर्थात्‍ अत्यन्त श्रेष्ठ (भर्ग:) भजनीय तेज का (धीमहि) ध्यान करते हैं, (य:) जो (न:) हमारी (धिय:) बुद्धियों को (प्रचोदयात्‍) सन्मार्ग की दिशा में प्रेरित करता रहता है।
 
इस मन्त्र को गायत्री मन्त्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह गायत्री छन्द में निबद्ध है। ‘गायत्री’ का शाब्दिक अर्थ है गायक की रक्षा करने वाली – ‘गायन्तं त्रायते’ यह वेद का प्रथम छन्द है जिसमें २४ अक्षर और तीन पाद होते हैं। इसके प्रत्येक पाद में आठ-आठ अक्षर होते हैं। इस मन्त्र को देवता के आधार पर सावित्री मन्त्र भी कहा जाता है, क्योंकि इसके देवता सविता हैं। सामान्य रूप से सविता सूर्य का ही नामान्तर है, जो मानव जीवन को सार्वाधिक प्रभावित करने वाले देवता हैं। अधिक गहराई में जाने पर सविता को सूर्य-मण्डल के विभिन्न देवों में से एक माना जा सकता है।
गायत्री मन्त्र हमारी परम्परा में सर्वाधिक पवित्र और उत्प्रेरक मन्त्र है। इसका जप करते समय भगवान्‍ सूर्य के अरूण अथवा बालरूप का ध्यान करना चाहिये। जप करते समय मन्त्र के अर्थ का भलीभाँति मनन करना चाहिये, जैसा कि महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में कहा है – ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्‍।’ किसी भी मन्त्र के जप का अभिप्राय है बार – बार उसके अर्थ की भावना करना, उसे मन और मस्तिष्क में बैठाना । किसी न किसी सन्दर्भ में, यह मन्त्र चारों वेदों में प्राप्त हो जाता है। परम्परा के अनुसार इस मन्त्र का साक्षात्कार सर्वप्रथम महर्षि विश्वामित्र ने किया था। वही इस मन्त्र के द्र्ष्टा अथवा ऋषि हैं। वैदिक पारम्परिक मान्यता के अनुसार वेद-मन्त्रों का कोई रचियता नहीं है। सृष्टि के प्रारम्भ, समाधि अथवा गम्भीर ध्यान की अवस्था में ये ऋषियों के अन्त:करण में स्वयं प्रकट हुए थे। जिस ऋषि ने जिस मन्त्र का दर्शन किया, वही उसका द्रष्टा हो गया। इस मन्त्र का जप विश्व भर में व्याप्त किसी भी उपासना-सम्प्रदाय का कोई भी अनुयायी कर सकता है, क्योंकि बुद्धि की प्रेरणा की आवश्यकता तो सभी समान रूप से अनुभव करते हैं। हाँ, ध्यानजप करने से पूर्व शारीरिक शुद्धि कर लेना आवश्यक है।
किसी भी वेदमन्त्र का उच्चारण करने से पूर्व ‘ओऽम्‍’ का उच्चारण करना आवश्यक है। ‘ओऽम्‍’ परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ नाम है – इसमें तीन वर्ण हैं – अकार, उकार और मकार। ‘ओऽम्‍’ के मध्य में लगी तीन (३) की संख्या इसके त्रिमात्रिक अथवा प्लुत उच्चारण की द्योतक है। स्वरों के हृस्व और दीर्घ उच्चारण से हम सभी परिचित हैं – लेकिन वेद में इसके आगे प्लुत उच्चारण की व्यवस्था भी है। हृस्वास्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा का काल लगता है, तो प्लुत में तीन मात्राओं का काल लगता है। ‘ओऽम्‍’ अथवा ओड्‍कार भी विश्व के प्राय: सभी धार्मिक मतों में किसी – न – किसी प्रकार से विद्यमान है ।
‘भू:’, ‘भुव:’ और ‘स्व:’ – ये तीन महाव्याहृतियाँ हैं। ये तीनों शब्द क्रमश: पृथिवी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग अथवा द्युलोक के वाचक हैं।

जो पढ़ रहा हूँ वह लिख रहा हूँ, वेदों की शिक्षा

साइड अपर के लोचे और स्लीपर में ठंड को रोकने का इंतजाम

आज फ़िर से साइड अपर सीट मिली है, हालांकि आज 3AC में टिकट करवा रखा है, परंतु फ़िर भी ये साइड अपर का साईज अपने हिसाब से नहीं है । आरक्षण के समय व्यक्ति की उम्र के साथ ही उसकी लंबाई भी जरूर लिखवा लेनी चाहिये जिससे कम से कम कूपे के बीच की बर्थ मिल जाये । और प्रोग्राम में भी सैट कर देना चाहिये कि इतनी लंबाई से ज्यादा व्यक्ति को साइड की सीट नहीं दी जायेगी ।
 
पैसे भी पूरे दो और ढंग से पैर भी नहीं मुड़ते., ऐसा लगता है कि पूरी रात हमने डरे सहमे निकाल दी है, क्योंकि घुटने मोड़ के सोना पड़ता है और घुटने मोड़ के सोने का मतलब यह होता है कि उस व्यक्ति को डर लग रहा है ।ऊपर चढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे सर्कस के पिंजरे में बंद कर दिया है और सामने के ६ लोग अब उसे देख रहे हैं ।
 
वो तो लालू का बस ज्यादा नहीं चला जो उसने केवल साइड में केवल तीन सीट ही लगवाई थीं, अगर उसका दिमाग ज्यादा तेज चलता तो, ड्राअर जैसी सीटें बनवा देता, ड्राअर खोलो सोओ और ड्राअर अंदर, फ़िर तीन क्या चार या पाँच सीट लग जातीं ।
 
वैसे तो अधिकतर वृद्ध लोगों को ऊपर की बर्थ में जाने पर परेशानी होती है, परंतु ठंड के दिनों में यही वयोवृद्ध स्लीपर कोच में कैसे फ़ुर्ती से ऊपर की बर्थ पर चढ़ जाते हैं और उस समय इनकी फ़ुर्ती देखने लायक होती है, और जब ऊपर चढ़ जाते हैं, तो जो विजयू मुस्कान इनके चेहरे पर होटी है वह देखने लायक होती है। हमने ऐसी पता नहीं कितनी ही यात्राएँ की हैं जिसमें हमें ठंड के दिनों में नीचे की बर्थ मिली और जब भी कोई वृद्ध आता तो लगता कि शायद अब हमसे कहेगा कि ये ऊपर वाली बर्थ पर आप चले जायें, पर कभी किसी ने ठंड के दिनों में नहीं बोला, फ़िर हम खुद ही सोचते कि हम बोल देते हैं, पहली बार बोला भी तो वे सज्जन अपने परिवार के साथ थे, बोले कि देखते नहीं कितनी ठंड है, अब कौन सा हमने रात भर उठना है, अब तो सुबह ही बर्थ से उतरना है। बस उस दिन के बाद से हम अपनी तरफ़ से कभी भी किसी सज्जन को नीचे की बर्थ देने के लिये नहीं बोल पाते हैं।
 
जिस रूट पर यात्रा करते थे उसमें 3AC का कोच नहीं लगता था, और अगर कभी लग भी गया तो केवल एक ही लगता था हमने भी उसी दौरान एक तकनीक ईजाद की, स्लीपर कोच के लिये, स्लीपर कोच में ठंड में सबसे बड़ी समस्या होती है कि उसकी खिड़कियाँ आप कितनी भी अच्छी तरह से बंद कर लो हवा जाने कहाँ से रिस रिस कर आती है, और नीचे वाले बंदे की कुँकड़ू कूँ हो जाती है, और जिसको साद्ड की सीट वाले को तो दो दो खिड़की की हवा खानी पड़ती है,  अपने साथ पकिंग के लिये उपयोग होने वाला दो इंच का चिपकने वाला टेप लेकर चलने लगे, और जब भी नीचे की सीट मिलती या साइड की नीचे वाली सीट मिलती तो पहले खिड़की लगाते और फ़िर उस पर चारों तरफ़ से अपनी पकिंग वाली टेप अच्छे से लगा देते, बस हवा का नामोनिशान गायब हो जाता, और मजे में सोते हुए जाते थे। सुबह उठाकर टेप निकालकर फ़ेंक देते। बाकी सारे नीचे की सीट वाले कातर भाव से हमारी और देख रहे होते थे, वैसे जब भी किसी ने कहा तो हमने उसकी हमेशा टेप लगाकर मदद की।

वो सही ही कहते हैं आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है ।

बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता

मुझे पता है तुम

खुद को गाँधीवादी बताते हो,

पूँजीवाद पर बहस करते हो,

समाजवाद को सहलाते हो,

तुम चाहते क्या हो,

यह तुम्हें भी नहीं पता है,

बस तुम्हें

बहस करना अच्छा लगता है ।

जब तक हृदय में प्रेम,

किंचित है तुम्हारे,

लेशमात्र संदेह नहीं है,

भावनाओं में तुम्हारे,

प्रेम खादी का कपड़ा नहीं,

प्रेम तो अगन है,

बस तुम्हें

प्रेम करना अच्छा लगता है ।

आध्यात्म के मीठे बोल,

संस्कारों से पगी सत्यता,

मंदिर के जैसी पवित्रता,

जीवन की मिठास,

जीवन में सरसता,

चरखे से काती हुई कपास,

बस तुम्हें

सत्य का रास्ता अच्छा लगता है।

ब्रेकअप और आवारा साँसें

एक

बगीचे के चारों और शाम सात बजे अँधेरा हो चुका है, एक जवान युगल जो पहनावे और उनके गले में पड़े हुए आई.टी. कंपनी वाले पट्टे से पता चलता है कि दोनों ही किसी आई.टी. कंपनी में काम करते हैं, और बात करने के लिये कोई माकूल जगह ढूँढ़ रहे हैं..

बगीचे के गोल घूमने वाले गेट के पास पहुँचकर लड़का लड़की को बगीचे के अंदर आने के लिये आग्रह करता है, परंतु शायद रिश्ते की गर्माहट में आई ठंडक ने लड़की को बगीचे के अंदर जाने से रोक दिया, और आँखों और गर्दन घूमने के भाव एक ही थे.. नहीं !! कहीं ओर चलो या फ़िर इधर ही घूमते रहो..

हर आने जाने वाले पर उनकी नजर कि कहीं उनकी कोई चोरी ना पकड़ी जाये.. थोड़ी देर बाद बगीचे के बाहर ही फ़र्शी की एक बैंच पर दोनों बैठे दिखे.. वहाँ दोनों ही पास पास बैठकर धीमी आवाज में बातें कर रहे थे.. घूमते हुए उनके सामने से गुजरना हुआ कि यकायक आवाज आई.. लड़की की आवाज थी.. बता !! मैंने तेरे पैसे से क्या क्या खरीदा.. बता !! क्या ये मोबाईल फ़ोन.. और बता !! मैं सब सुनना चाहती हूँ..

लड़के की सिट्टी पिट्टी गुम थी.. वह सरेंडर वाले भाव में लडकी से याचना कर रहा था.. कि प्लीज चिल्लाओ मत.. फ़िर होठों को गोल करके सीटी बजाकर श्श्श्श कर उसे चुप करने की कोशिश भी की.. और उसकी कोशिश शायद कामयाब हो गई.. लड़की घूमने वालों को देखकर शांत हो गई..

शायद दोनों का ब्रेकअप हो गया था.. या अपनी जुबां में कहें कि हकीकत के धरातल पर आ गये थे..

दो

लड़का ढ़ीली जींस और फ़ॉर्मल शर्ट पहने हुए था, जींस लटकी जा रही थी.. जैसे आजकल लड़कों की जींस अमूमन लटकी रहती है.. पीछे से अंतर्वस्त्र की मोटी इलास्टिक ब्रांड के नाम के साथ दिख रही थी.. और जींस और शर्ट को काले रंग की बेल्ट अलग कर रही थी.. और वह भी थकी हुई लग रही थी.. आखिर शाम जो हो चुकी थी..

लड़की चुस्त थी.. जींस बिल्कुल चुस्त ऊपर शर्ट ठीक ठाक सी.. कुछ स्टाइलिश सी बेल्ट और लंबे घने बाल जैसे पहले वो डाबर आँवला के विज्ञापन में लड़की आती थी.. एक एक बाल अलग अलग..

लड़के को समझा रही थी.. सुन !! अभी तीन साल हैं.. बराबर से प्लानिंग कर लेते हैं.. अभी चौबीस का है.. तीन साल में सत्ताईस का हो जायेगा.. तो कुछ अच्छे से कर भी लेगा..

खैर घूमने वालों की रफ़्तार बातें करने वाले युगलों से हमेशा तेज होती है.. और घूमने वाले आगे निकल जाते हैं..

शायद दोनों समझदार थे.. और सब काम प्लॉनिंग करके करना चाहते थे.. पर कुछ लोग होते हैं.. जो निजी जिंदगी को प्रोजेक्ट मैनेजमेंट के टॉस्क वाली फ़ाईल समझ कर उसे बराबर फ़ॉलोअप करते रहते हैं.. और कुछ लोग होते हैं.. जो निजी जिंदगी को आवारा साँसों जैसा चलते रहने देते हैं।

चिंता या चिता

    आज अक्टूबर २०१३ शुरू हो रहा है, ऐसे पता नहीं कितने ही अक्टूबर आये और चले गये, ऐसे कितने ही महीने आये और चले गये, अब तो याद भी नहीं कि कौन सा महीना खुशी लाया था, और कौन सा महीना बिना खुशी के आया या निकला था । बहुत सोचता हूँ परंतु सोचने की भी एक सीमा होती है, उसके परे जाना बहुत कठिन होता है।

    सोचते सोचते कब, पता नहीं कब !! वह सोच हल्की सी चिंता में बदल जाती है, और फ़िर वह चिंता कब हल्की छोटी सी से बदलकर बड़ी हो जाती है, पता ही नहीं चलता है, हर समय दिमाग में वह बात ही घूमती रहती है, कई बार तो ऐसा लगता है कि बस अब यह बात दिमाग में बहुत हो गई, कहीं उल्टी करके निकाल दें, तो शायद कुछ राहत महसूस हो।

    जिंदगी में कई बार दोराहे आते हैं, जहाँ से हमें कोई भी एक रास्ता चुनना होता है, और हर बार किस्मत इतनी अच्छी भी नहीं होती कि रास्ता सही मिल जाये, और जो सही वाला रास्ता छोड़ा था, उस पर फ़िर वापिस आने का कोई भी मौका मिलने की संभावना नहीं होती, वो कहते हैं कि हरेक चीज का सही वक्त होता है, तो बस वह वक्त निकल गया होता है और इंसान केवल हाथ मलता रह जाता है या फ़िर जिंदगीभर उसका पछतावा करता रहता है।

    सबको विभिन्न प्रकार की चिंताएँ घेरे रहती हैं, कभी बिना बात के भी चिंताग्रस्त होते हैं और कभी बवाल वाली चिंता को यूँ ही बिना किसी चिंता के दिमाग पर जोर दिये, निपटा देते हैं, हाँ बस यह देखा कि इंसान को अपना हृदय मजबूत रखना चाहिये, चीजों के प्रति लगाव कम रहना चाहिये,  यह लगाव बहुत सारी चिंताओं का कारण होता है।

    हमें अटल सत्य की ओर सम्मुख होना चाहिये, किसी होने वाली बात के बारे में जानना और उसके बारे में सोचना और उसके लिये अपनी चिंता पालना, यह मानव की स्वाभाविक प्रक्रिया है। जो हमें सोचने को मजबूर करती है और कई कठिनाइयों को पार करने में सहयोग देती है।

    चिंता किसी भी कार्य के प्रति हो फ़िर वह दुख देने वाला हो, या दुख से उबारकर सुख देने वाला हो, चिंता से व्यक्ति परिपक्व होता है और गंभीरता उसके मन मानस और मष्तिष्क में जगह बनाने लगती है।