Monthly Archives: November 2014

अब आप नहीं बोलोगे तो मोंटू बोलेगा (Ab Montu Bolega)

सीन 1 – सब्जीमंडी में
    सुबह का सुहाना दिन शुरू ही हुआ था, और हम सब्जी लेने पहँच गये सब्जीमंडी, वहाँ जाकर सुबह सुबह हरी हरी ताजी सब्जियाँ देखकर मन प्रसन्न हो गया, सब्जी वाले बोरों में से सब्जियाँ निकाल रहे थे, और साथ ही उनकी फालतू की बची हुई डंडियाँ अपने ठेले के पास फेंकते जा रहे थे, हमने कहा भई ये कचरा ऐसे क्यों फेंक रहे हो, तो जवाब मिला कि और क्या करें, फिर ऐसे ही कचरे को कचरा साफ करने वाला ठेले में भरकर ले जायेगा, एकदम हममें मोंटू की आत्मा घुस गई, क्योंकि सामान्यत: हम कुछ भी कहने से बचते हैं, हमने कहा पता है तुम लोगों की इसी आदत के कारण लोग मॉल में सब्जी खरीदने जाते हैं, सब्जीमंडी जाना बंद कर दिया है, लोगों को सब्जीमंडी आना पसंद नहीं है क्योंकि तुम लोग ही इसे स्वच्छ नहीं रखते हो, क्या तुम लोग इस अतिरिक्त कचरे को ठीक ढ़ंग से ठिकाने नहीं लगा सकते हो, जिससे कि लोग वापिस से सब्जीमंडी में आना शुरू कर दें, क्यों नहीं आप लोग अपने पास एक बड़ा बंद ढक्कन का कचरे का डिब्बा नहीं रखते हैं, जिससे गंदगी तो कम से कम अपने पैर नहीं पसारेगी और लोगों को स्वच्छता मिलेगी, जिससे लोग सब्जीमंडी में आना शुरू हो जायेंगे, आपका भी धंधा अच्छा चलेगा और लोगों को भी फायदा होगा, उन्हें बात जँची और जब हम अगले सप्ताह सब्जीमंडी में गये तो कहीं भी गंदगी नहीं मिली, और देखा कि लोग भी अब धीरे धीरे सब्जीमंडी की ओर आने लगे हैं । तो देखा मोंटू के बोलने का कमाल !!
सीन – 2 – ट्रेन में
    काफी दिनों बाद में किसी लंबी यात्रा पर निकला। रात का समय था, लंबा सुहाना सफर शुरू ही हुआ था, कि रात्रीभोजन का समय हो चुका था, लोग अपने साथ लाया खाना या फिर पेंट्री से मँगाया गया खाना आनंदमय तरीके से खा रहे थे, मैंने सोचा कि यह संपूर्ण सामाजिक दृश्य है, किसी कूपे में कोई मिन्नत कर करके अपना खाना किसी और को भी खिला रहा है, तो कोई शांत बैठा खा रहा है और किसी कूपे में सब खाना खा रहे हैं, परंतु किसी को किसी से कोई वास्ता ही नहीं है, पर ट्रेन में बैठे हरेक व्यक्ति में एक समानता है, सब कचरा खिड़की से बाहर फेंककर हमारे भारत को अस्वच्छ कर रहे हैं, तभी मेरे अंदर मोंटू की आत्मा घुस आयी और लोगों से कहा कि आप खाना खाकर भारत को अस्वच्छ क्यों कर रहे हैं, तो लोगों का जवाब था कि उन्हें या तो पता ही नहीं है कि कचरे का करना क्या है और अगर पता भी है तो आलस के मारे कोई कचरे के डब्बे तक जाना नहीं चाहते, मैंने पूछा कि क्या आप घर पर भी जहाँ खा रहे होते हैं तो पास की खिड़की से बचा हुआ खाना ऐसे ही फेंक देते हैं, लोग वाकई समझ रहे थे और कचरे के डब्बे की ओर बड़ रहे थे।
    मोंटू स्ट्रेप्सिल का एक कैम्पेन है जिसके लिये यह पोस्ट लिखी गई है, मोंटू हमारे भीतर के अच्छे आदमी को बोलने को कहा गया है, कहीं भी कुछ गलत होते देखें तो एकदम से मोंटू #AbMontuBolega बन जायें, चुप न रहें। http://www.abmontubolega.com/ पर इस कैम्पेन के बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं, आप मोंटू के इस कैम्पेन में Strepsils के Facebook और Twitter पेज पर भी अधिक जानकारी ले सकते हैं।

स्पर्श की संवेदनशीलता (BringBackTheTouch)

    पहले हम लोग एक साथ बड़ा परिवार होता था, पर अब आजकल किसी न किसी कारण से परिवार छोटे होने शुरू हो गये हैं, पहले परिवार में माता पिता का भी एक अहम रोल होता था, परंतु आजकल हम लोग अलग छोटे परिवार होते हैं, और अपनी छोटी छोटी बातों पर ही झगड़ पड़ते हैं, पर पहले परिवार एक साथ रहने पर समझदारी से सारी बातों का निराकरण हो जाता था, छोटे झगड़े बड़ा रूप नहीं लेते थे।
    केशव और कला एक ऐसे ही जोड़े की कहानी है, जब तक वे संयुक्त परिवार के साथ रहे, तब तक जादुई तरीके से उनका जीवन सुखमय था, वे आपस में अंतर्मन तक जुड़े हुए थे। परंतु केशव को अच्छे कैरियर के लिये भारत से दूर विदेशी धरती पर जाना पड़ा, केशव और कला दोनों ही बहुत खुश थे, आखिरकार भारत से बाहर जाने का हर भारतीय दंपत्ति का सपना होता है, जो उनके लिये साकार हो गया था।
    यह पहली बार था जब वे संयुक्त परिवार से एकल परिवार में होकर रहने का अनुभव करने जा रहे थे, पहले पहल दोनों को बहुत मजा आया, परंतु जैसे जैसे दिन निकलते गये, केशव की व्यस्तता बड़ती गई, और कला घर में अकेले गुमसुम सी रहने लगी, केशव भले ही शाम को घर पर होता था, पर हमेशा ही काम में व्यस्त और यही आलम सुबह का भी था। ना ढंग से नाश्ता करना और ना ही भोजन, कला भी क्या बोलती, कई बार बोलने की कोशिश की परंतु, कुछ न कुछ कला को हमेशा बोलने से रोक लेता और कला रोज की भांति अपने में सिमटना शुरू हो जाती।
    हर चीज को किसी एक बिंदु तक ही सहन किया जा सकता है, वैसे ही कला का एकांत था, वह दिन कला और केशव के लिये मानो परीक्षा की घड़ी बनकर आया था, कला केशव के ऑफिस से आते ही उस पर टूट पड़ी, बिफर पड़ी, आखिर मेरे लिये समय कब है, क्या मैं यहाँ केवल और केवल कठपुतली बनकर रहने आई हूँ, मैं भी इंसान हूँ मुझे भी तवज्जो चाहिये, मुझे भी तुमसे बात करने के लिये तुम चाहिये, इस खुली हुई दुनिया में मैं अपने आप को कैद पाती हूँ और घुटन महसूस करती हूँ। केशव कला की बातों को बुत के माफिक खड़ा सुनता रहा, और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, आखिरकार कला का एक एक शब्द सच था, ना उसके पास बात करने का समय था और ना ही कला को कला की बातें महसूस करने के लिये वक्त था।


    कला केशव के सामने फफक फफक कर रो रही थी, केशव धीमे धीमे कला के नजदीक गया और कला को अपनी बाँहों में भरकर गालों से गालों को सटाकर कह रहा था, बस कला मुझे समझ आ गया है कि मैं कहाँ गलत हूँ । अब आज से मेरा समय तुम्हारा हुआ, केशव के स्पर्श से कला का गुस्सा और अकेलापन क्षण भर में काफूर हो गया, स्पर्श के स्पंदन को कला और केशव दोनों ही महसूस कर रहे थे, कला और केशव दोनों ने आगे से अपना समय आपस में बिताने का निश्चय किया।

    ठंड में स्पर्श को बेहतरीन बनाने के लिये पैराशूट का एडवांस बॉडी लोशन बटर स्मूथ वाला उपयोग कीजिये, अमेजन पर यह ऑनलाईन उपलब्ध है ।
    यह कहानी #BringBackTheTouch http://www.pblskin.com/ के लिये हमने लिखी है । स्पर्श को आपस में महसूस करिये, जीवन में नई ऊर्जा मिलेगी।
इस वीडियो में निम्रत और पराम्ब्रता को स्पर्श की संवेदनशीलता को दर्शाते हुए देखिये, आपको स्पर्श के महत्वत्ता पता चलेगी – Watch the video to witness Nimrat and Parambrata #BringBackTheTouch.

शौचालय नारी गरिमा के अनुरूप हों (Hygienic Toilets for Women and Family)

    भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जहाँ पर हम अधिकतर हमारे वेद पुराणों में लिखी बातों का अध्ययन कर उन पर विश्वास कर बंद आँखों से अनुगमन करते हैं, पर जहाँ हमारी सामाजिक आलस्यपन की बात आती है वहाँ ये सब बातें गौण हो जाती हैं । हम वहाँ पर किसी न किसी कारण को प्रमुख बनाकर हालात से भागने की कोशिश करते हैं, जैसे कि भारतीय संस्कृति में कहा जाता है नारी सर्वत्र पूज्यते, परंतु घर और बाहर दोनों जगह हम जानते हैं कि नारी के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।
    शौच और शौचालय भारत की प्राथमिक समस्याओं में से एक हैं, घर में चूल्हा करने के लिये रसोईघर जरूर होगा, किंतु अन्न पचाने के बाद अवशिष्टों को निकालने के लिये घर में शौचालय नहीं मिलते हैं, मूलत: यह समस्या गाँवों में बहुत ज्यादा है, परंतु शहरों में भी कम नहीं है। शौच करने के लिये नारी को एक सुरक्षित और साफ स्थान चाहिये होता है, जहाँ वह गरिमा के साथ शौच जा सके । आजकल समाचार पत्रों में इस तरह की कई खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि खुले में शौच करने कई युवती से अशोभनीय हरकत की गई, और यह समस्या खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड में बहुत ज्यादा है।
    जिस तरह पुरुष घर में नारी को पर्दे में रखना चाहता है, उसी तरह से क्यों नहीं नारी की गरिमा के अनुरूप घर में शौचालय बनवाने में कतराता है, शौचालय बनवाने के फायदे ज्यादा हैं और नुक्सान तो हालांकि है ही नहीं। शौचालय घर में होने से नारी गरिमा बची रहेगी, घर की शौचालय खुद ही साफ करने से तरह तरह के संक्रामक और डायरिया जैसे भयानक रोगों से बचाव होगा। इन रोगों के होने से भारत में दो लाख से भी ज्यादा 5 वर्ष से छोटे बच्चों का मौत हर वर्ष होती है, इन संक्रामक रोगों और बीमारियों पर भी पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है, तो बेहतर है कि खुले में शौच से होने वाले संक्रमण से बचाव के लिये वह पैसा शौचालय बनाने में खर्च किया जाये।
    शौचालय बनाते समय ध्यान रखें कि शौचालय पानी के स्त्रोत जैसे नदी, तालाब या कुएँ से कम से कम 20 मीटर दूर हों, जिससे शौच के अवशिष्ट जल से पीने के पानी दूषित न हो, जितनी बीमारियाँ खुले में शौच जाने पर होती हैं, उससे भी खतरनाक बीमारियाँ अवशिष्ट जल के पीने के पानी के दूषित होने पर होती हैं, शौचालय के अवशिष्ट को अगर सही तरह से उपयोग किया जाये तो इन अवशिष्टों से खाद बनाई जा सकती है, शौच के अवशिष्ट को खाद बनाने की प्रक्रिया में एक वर्ष तक का समय लगता है, जिससे हम इस प्राकृतिक खाद का उपयोग कृषि कार्यों में कर सकते हैं, यह खाद आजकल बाजार में आ रही रासायनिक खादों से बहुत अच्छी है।
    शौचालय बनवाना हमारे सामाजिक उन्नति और चेतना का भी परिचायक है, इससे न केवल नारी गरिमा को ठेस लगने से रोका जा सकेगा अपितु घर में शौचालय राष्ट्र के स्वच्छता के लिये भी एक बड़ा योगदान होगा।
    डोमेक्म ने महाराष्ट्र और उड़ीसा के गाँवों को खुले में शौच के लिये कदम उठाया है, और इसमें आप भी योगदान कर सकते हैं, आपके एक क्लिक से डोमेक्स 5 रू. का योगदान देगा, डोमेक्स की साईट पर जाकर “Contribute Tab” पर क्लिक करके ज्यादा से ज्यादा योगदान करवाने में मदद करें ।
    You can bring about the change in the lives of millions of kids, thereby showing your support for the Domex Initiative. All you need to do is “click” on the “Contribute Tab” on www.domex.in and Domex will contribute Rs.5 on your behalf to eradicate open defecation, thereby helping kids like Babli live a dignified life.

स्वस्थ बच्चा ही खुशियों से भरा घर बना सकता है (A healthy child makes a happy home!)

    मुझे मेरा बचपन की बहुत सारी चीजें याद नहीं, पर मम्मी और पापा मेरा बहुत ही ख्याल रखते थे, शायद दुनिया में कोई ऐसे माता पिता होंगे जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते होंगे, टमाटर खाओगे तो खून बढ़ेगा, गाजर भी सेहत के लिये अच्छी होती है, आँवले से आँखों की रोशनी तेज होती है, आँवले की अच्छी बात यह है कि किसी भी तरह से खाओ, उसके गुण कम नहीं होते, और जीभ पर आँवले का मीठा स्वाद हमेशा ही अच्छा लगता है। रोज एक काली मिर्च खाने से कभी बीमारी नहीं घेरती, यह एक घरेलू उपाय है, जो कभी दादी माँ का नुस्खा था।
 
    खाने पीने में हम हमेशा मस्त रहे और हरेक सब्जी और फल खाते रहे, वैसे ही हमने अपने बेटेलाल को आदत डाली है, जिससे रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे और हमेशा रोगों से दूर बने रहें, हमारे बेटेलाल खाने के बहुत आलसी हैं, केवल मूड होता है तो खाते हैं नहीं तो कुछ नहीं खाते, अभी पिछले महीने ही तकरीबन 15 दिनों तक ढंग से खाना नहीं खाया तो मौसमी वाईरल ने पकड़ लिया, जिससे हम सभी लोग 13 दिन तक परेशान रहे, क्योंकि अगर घर में बच्चा बीमार है तो कुछ भी ठीक नहीं लगता है, बच्चा खेलता रहे, स्वस्थ रहे तो पूरा घर खुश रहता है।
    जैसे हमें पापाजी ने च्यवनप्राश खाने की आदत डाली थी, हमारे बेटेलाल पहले च्यवनप्राश नहीं खाते थे परंतु जब धीरे धीरे रोज मुझे और पापाजी को खाते देखते तो उत्सुकतावश रोज ही थोड़ा थोड़ा खा लेते थे, अब हमारे बेटेलाल ने च्यवनप्राश को अपनी रोज की दिनचर्यो में शुमार कर लिया है, रोज सुबह च्यवनप्राश की एक चम्मच और रात को सोने के पहले हल्दी वाले दूध के साथ एक चम्मच खाते हैं।
    हमने 1-2 आयुर्वेदिक चीजें और शुरू कर दी जो कि स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभदायक है, रोज सुबह शाम तुलसी का अर्क 10 एम.एल. एक गिलास पानी में मिलाकर पी जाते हैं, और रोज सुबह उठते ही एक चम्मच शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बादाम, मिश्री और सौंफ को पीसकर बनाया गया चूर्ण चबा चबा कर खाते हैं । इस मिश्रण के खाने से दिमाग को ताकत मिलती है और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है, तुलसी के अर्क से तुलसी की प्रतिरोधक क्षमता मिल जाती है, आजकल फ्लेट सिस्टम में तुलसी प्रचुर मात्रा में तो होती नहीं कि रोज सुबह शाम 2 4 पत्ती तोड़कर खा लीं, इसलिये हमें तो तुलसी के अर्क बहुत अच्छा लगा।
    पहले कभी ऐसे ही हमने सोचा था कि च्यवनप्राश घर पर बनाकर खायेंगे पर फिर हमने कभी भी च्यवनप्राश बनाने की मेहनत को देखकर कभी भी बनाने की चेष्टा नहीं करी। बाजार से जाकर च्यवनप्राश खा लेते थे, वही हमें आज भी ठीक लगता है, बेटेलाल को जमकर सलाद और फल  खिलाते हैं और खुद भी खाते हैं, जिससे शरीर में प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहे। और घर में बेटेलाला केवल मस्तियाँ करते नजर आयें, हमेशा उनके हँसने खिलखिलाने की आवाज आये।
       यह पोस्ट इंडीब्लॉगर्स के हैप्पी अवर्स के लिये लिखी गई है, च्यवनप्राश के प्रतिरोधक क्षमता के बारे में यहाँ से ज्यादा जानकारी ले सकते हैं – https://www.liveveda.com/daburchyawanprash/.

बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है (Are you the victim of Insurance or Financial Product Misselling)

     बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है, नहीं तो कई बार बीमानियामक और बीमा लोकापाल भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं ।

    एक ईमानदार सरकारी अधिकारी के बारे में बात करते हैं, लगभग 4 वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए ही थे और उन्हें लगभग 40 लाख रूपये निवेश करने थे, वे बहुत ही ईमानदार थे तो उनके पास इन रूपयों के अलावा और कुछ भी नहीं था, उनके निवेश करने के लक्ष्य साफ थे पहला नियमित आय और तीन वर्ष बाद उनकी बेटी की शादी के खर्च के लिये रकम चाहिये थी। एक निजी बैंक के बहुत ही अच्छे पॉलिसी बेचने वाले अधिकारी ने उन्हें यूनिट लिंक्ड बीमा प्लॉन याने कि यूलिप जिसमें कि इक्विटी का हिस्सा ज्यादा था, खरीदने के लिये प्रेरित किया और बैंक अधिकारी ने बताया कि यह बहुत ही सुरक्षित और बेहतरीन निवेश होगा, इससे आपकी जिंदगी बिल्कुल ही बदल जायेगी ।
  
    तीन वर्ष होने पर निवेशक ने पाया कि उनका निवेश केवल 29 लाख रूपये रह गया है, जिसमें कि पहले तीन वर्षों में उनके यूलिप में से अच्छे खासे शुल्क बीमा कंपनी और बैंक ने वसूल कर लिये थे, और अगर वे उस पॉलिसी को सरेंडर करते तो केवल 14 लाख रूपये मिलते । उन सज्जन को लगा कि मेरे साथ धोखा हुआ है और बस ह्रदयाघात नहीं हुआ । और उन्होंने बैंक और बीमा कंपनियों को शिकायत करना शुरू की, परंतु बैंक और बीमा कंपनियाँ से उन्हें कोई जबाव नहीं मिला।
    आखिरकार उन्होंने बीमा लोकापाल के पास शिकायत करने के निश्चय किया और जब बीमा लोकापाल के पास उन्होंने शिकायत की तो प्रथमदृष्टया ही साबित हो गया कि यूलिप इन सज्जन को गलत तरीके से बेचा गया है और यह मिससेलिंग का केस है। पर मिससेलिंग को सिद्ध कैसे किया जाये ?  सौभाग्यवश उन सज्जन के पास यूलिप खरीदने के दौरान बताये गये सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज जो कि बैंक और बीमा कंपनियों ने उन्हें दिया थे वे मौजूद थे, जिसमें कि उन्होंने दर्शाया हुआ था कि किस प्रकार से उनके निवेश को पंख लग जायेंगे और आने वाले समय में उनका निवेश सुरक्षित तरीके से बहुत ज्यादा हो जायेगा।
    और इन कैलकुलेशन और दस्तावेज के कारण बीमा कंपनी को उन सज्जन को पूरे पैसे लौटाने पड़े, पर ऐसे भाग्यशाली लोग कितने होंगे जो ये सारे कागज जिनको मिलते होंगे और वे सँभाल कर रखते भी होंगे, वैसे तो जो भी लोग मिससेलिंग करते हैं या इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं वे इस तरह के सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज निवेशक के हाथों आने ही नहीं देते हैं, वे कोई सबूत छोड़ते नहीं हैं ।
ध्यान रखने योग्य बातें –
    जब भी कोई बीमा या वित्तीय उत्पाद खरीदें, हमेशा कैलकुलेशन और दस्तावेज अपनी मास्टर फाईल में सँभाल कर रखें, जिससे अगर बेचा गया उत्पाद आगे अच्छा नहीं करे तो ये कैलकुलेशन और दस्तावेज आपके मददगार साबित हों ।