Monthly Archives: March 2015

हर इंडियन का सपना डिजिटल इंडिया (DigitalIndia)हो अपना

   सूचना क्रांति के इस आधुनिक युग में #DigitalIndia सपना नहीं होना चाहिये, सूचना क्रांति को अपना काम करने का हथियार बनाना चाहिये। हमें वैश्विक स्तर पर मुकाबले में खड़े रहना है तो हमें हर जगह सूचना क्रांति का उपयोग करना होगा और पूरा भारत डिजिटलइंडिया करना होगा।

   सरकारी तंत्र के कार्य संसाधन को मानवीय से हटाकर सबसे पहले डिजिटाईज करने की जरूरत है, सही जानकारी या फाईलें अधिकारियों के पास पहुँच ही नहीं पाती हैं और न ही उन्हें पता होता है कि कितनी फाईलें उनके अनुमोदन या स्वीकृति का इंतजार कर रही हैं। जब सारे कार्य डिजिटाईज हो जायेंगे तो उन्हें भी पता होगा कि कितनी फाईलें लंबित हैं और उनको स्वीकृति में लगने वाले समय के हिसाब से कम से कम सरकारी अधिकारी अपने भरपूर समय कार्य को दे पायेंगे।

मॉडल कुछ ऐसा बना सकते हैं DigitalIndia

  1. जनता अपने फॉर्म ऑनलाईन ही भरे और या तो अपने कागजात सत्यापित कर स्कैन करके अपलोड करे या फिर पहचान पत्र का कोई पासवर्ड हो जिससे वह अपने आई.डी. को सत्यापित कर सके।
  2. ग्राहक सेवा केन्द्र में ग्राहक सेवा ऑपरेटर हर चीज को वेरीफाय कर ले, और अगर किसी और दस्तावेज की जरूरत है तो उसकी डिमांड जनरेट कर दे, जिससे ईमेल और एस.एम.एस. से उसके पास तत्काल सूचना मिल जाये।
  3. अगर सारे दस्तावेज जाँच लिये गये हों तो वह फाईल ग्राहक सेवा ऑपरेटर अगले पढ़ाव याने कि उस डिपार्टमेंट के सक्षम अधिकारी की क्यू में लगा दे, अधिकारी के पास तत्काल ही डेशबोर्ड पर नोटिफिकेशन चला जाना चाहिये। जैसे ही सक्षम अधिकारी सारी सूचना को वैरीफाय कर दे तो परिचय पत्र तत्काल अपने आप ही जनरेट हो जाना चाहिये।
  4. परिचय पत्र जनरेट करने के बाद सिस्टम सॉफ्टवेयर खुद ही ऑटोमेटेड प्रोसेस से आवेदक के ईमेल पते पर भेज दे और मोबाईल पर एस.एम.एस. भेज दे।

   उपरोक्त मॉडल के फायदे होंगे कि सरकारी स्तर पर फिर से किसी भी सूचना को डिजिटाईज नहीं किया जायेगा, जिससे कोई भी काम पेडिंग नहीं होगा, और आवेदक को लॉग के जरिये पता भी रहेगा कि उसके कार्य की कितनी प्रगति हुई है, जिससे सरकारी कार्यॆं मे जनता के सामने सरकार की पारदर्शिता भी आयेगी। जिन लोगों के पास कंप्यूटर की पहुँच नहीं है या कंप्यूटर चलाना नहीं आता है, उन लोगों के लिये सरकार निजी कंपनियों के सहयोग से एक एक कंप्यूटर लगाकर छोटे छोटे सेन्टर शहरों एवं गाँवों में कई स्थानों पर खोल सकती है जिसके लिये आवेदक को नाममात्र की फीस चुकानी होगी।

   इसके लिये सरकार को क्लाऊड एवं एनालिटिक्स तकनीक का सहारा लेना होगा, क्लाऊड के जरिये अथेंटिकेशन के बाद सीमित या असीमित जानकारी प्राप्त कर सकता है। क्लाऊड प्राईवेट हो या पब्लिक, उसके हर यूजर का अथेंटिकेशन हो और लॉग जनरेट होते रहना चाहिये, जो कि सुरक्षा के लिये बेहद ही अहम है। सक्षम अधिकारियों को जो कि हर जानकारी को एक्सेस कर सकते हैं उनके लिये आर.एस.ए. टोकन कोड के जरिये लॉगिन करने का प्रावधान होना चाहिये, जिससे कि कोई भी उनके लॉगिन को हैक न कर पाये।

   ई-गोवर्नेंस में चार चाँद लग जायेंगे अगर हर चीज ऑनलाईन हो जायेगी, किसी चीज के खोने का डर नहीं, हम अपना परिचय पत्र या कोई भी आई.डी. अपने मोबाईल पर रखकर चल सकते हैं, जिससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही और साथ ही परिचय पत्र जारी करने की गति तेज होगी, लागत कम हो जायेगी एवं सबके समय की बचत होगी। ई-गोवर्नेंस में DigitalIndia  के लिये इन्टेल कंपनी भारत सरकार की मदद कर रही है।

केलोग्स वाले गुप्ताजी का नाश्ता

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते |
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा ||

जैसे दीप का उजाला अँधेरे को खा जाता है, और काजल को उत्पन्न करता है, वैसे ही जिस तरह का भोजन हम ग्रहण करते हैं, वैसे ही हम उसी तरह का व्यवहार करते हैं।

 उपरोक्त श्लोक आज भी पुरातनकाल की बात को सत्य साबित करता है। अगर हम गैस्ट्रिक भोजन खायेंगे तो हमें पेट की समस्या होगी और अगर सात्विक भोजन करेंगे तो हम तन मन से प्रसन्न रहेंगे। हमें अपने दैनिक जीवन में दूध एवं दही का भरपूर उपयोग करना चाहिये, इससे हमारे शरीर की बहुत सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं।
केलोग्स वाले गुप्ताजी का नाश्ता बहुत ही प्रसिद्ध है, उनके घर का नाम गट्टू है, घरवाली यानी कि श्रीमती गुप्ता का नाम शालू है, बेटे का नाम रोहन जिसे प्यार से घर में रोहू बुलाते हैं और बेटी का नाम रितिका जिसे प्यार से रितु बुलाते हैं। गट्टू याने कि गुप्ताजी केलोग्स के डिस्ट्रीब्यूटर हैं और आम पति की तरह उनको भी भूलने की बीमारी है, हालांकि उनके भी दिल में पहुँचने का रास्ता एक ही है, वह है पेट जिसका रास्ता जबान के जरिये होता है और उनकी पत्नि शालू उनके ही केलोग्स से विभिन्न तरह के व्यंजन बनाकर उनको खिलाती रहती हैं, जो कि सामान्यत किसी को भी पता नहीं होते हैं। तो उनकी पत्नि शालू गट्टू याने कि अपने पति के दिल में ही रहती हैं।
बेटी रितु हरेक बात को शॉर्ट फॉर्म में ही कहती है, जिससे गट्टू याने कि रितु के पापा हमेशा ही नाराज से होते हैं और बेटा रोहू पापा और दीदी की बात की नकल करते हैं। रोहू तो मम्मी की नकल करने से भी नहीं चूकता है।  शालू याने कि मम्मी भी नकल उतारने में माहिर हैं, और किसी की भी नकल हुबहू उतारती हैं और परिवार हँसी खुशी रहता है।
केलोग्स केनाश्ते का पहले हमें तो केवल दूध में ही भिगोकर खाने का पता था, पर केलोग्स वाले गुप्ता जी के घर की तो बात ही और है, कभी चॉकलेट मिलाकर शेक बना कर परिवार का मूड ठीक रखना तो कभी जल्दी जल्दी अगर बेटे को स्कूल के लिये मिठाई बना कर देना है तो केलोग्स से कैसे लड्डू बनाने हैं या फिर दही मिलाकर भी केलोग्स के व्यंजन बनाये जा सकते हैं।
खैर मुझे तो सबसे बढ़िया बात लगी कि नाश्ते के प्रकारों की जैसे कि पार्सल वाला नाश्ता, नखरे वाला नाश्ता, फर्स्ट क्रश वाला नाश्ता, जगह बनाने वाला नाश्ता, मूवी वाला नाश्ता, होमवर्क वाला नाश्ता, बेस्ट फैमिली वाला नाश्ता, चुप कराने वाला नाश्ता, रिमोट वापिस लेने वाला नाश्ता जब इतने सारे प्रकार के नाश्ते उपलब्ध हों तो कौन केलोग्स वाले गुप्ताजी के यहाँ नाश्ता नहीं करना चाहेगा, सुबह ही अच्छा नाश्ता हो जाये तो दिनभर अच्छा जाये।
So,
Eat good, keep the body and generations healthy.
Be good, keep the mind and generations healthy.
Do good, keep the society and generations healthy.

हर चीज में प्रसन्नता खुशी पायी जा सकती है

     खुशी मतलब कि जब हम दिल से, आत्मा से, अंतरतम से प्रसन्न होते हैं, जिसके मिलने से हमारे रोयें रोयें खड़े हो जाते हैं और ऐसा लगता है कि दुनिया का सारा आनंद हमें मिल गया है। हम इस अवस्था को तभी प्राप्त होते हैं जब ऐसी कोई चीज हमें मिल जाये जिसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं हो या फिर जितनी उम्मीद हो उससे ज्यादा मिल जाये। आजकल हर चीज में प्रसन्नता ढ़ूँढ़ी जा सकती है। फिर भले ही वह चीज पैसे से खरीदी जा सकती हो या न खरीदी जा सकती हो या फिर कोई अपना जो बहुत दूर हो वह एकदम से हमारे सामने आकर हमें अकस्मात ही झटका दे दे।

    ऐसी खुशी चेहरे से ही बयां हो जाती है, और भाव चेहरे के ऐसे होते हैं कि हम उस ताज्जुब, विस्मय, आश्चर्य, अचरज, अचम्भे, घबराहट और हैरत भरे चेहरे को एकदम से पहचान सकते
हैं, जब हम किसी को भी आश्चर्यजनक परिस्थितियों में डालते हैं तो खुद हमें ही पता नहीं होता है कि इस वातावरण को कैसे बदला जाये, खुद हम भी उस आनंद के अतिरेक के क्षण में आनंदित हो पता नहीं किसी नये अनुभव की सैर करते हैं। वातावरण में इतनी ऊर्जा होती है कि उस क्षण को हम कई बार तो गई वर्षों तक याद कर करके जीते हैं, और हमेशा यह क्षण हमारे तात्कालिक वातावरण को ऊर्जावान बना देते हैं। और वह क्षण हम कई वर्षों तक जीवित रखते हैं, इस प्रकार एक लम्हे की उम्र हम कई गुना बड़ा देते हैं।
    जब मैं भारत के बाहर मासिक ट्रिप पर रहता था तो भारत आने में मुझे लगभग 12 घंटों की यात्रा करनी होती थी, और मैं हर बार अपने बेटेलाल के लिये कोई न कोई ऐसी चीज ले जाता था कि वह मेरे आने का हमेशा इंतजार करता रहता था, हालांकि मेरे आने जाने की तारीखें बिल्कुल ही निश्चित होती थीं पर मैंने कभी भी पहले नहीं बताया कि मैं आ रहा हूँ और हमेशा घरवाली को भी बोल रखा था कि मेरे आने की तारीखों का बेटेलाल से जिक्र न करे, क्योंकि अगर बेटेलाल को पता रहता था तो वह फोन कर करके दम निकाल देता था, कि डैडी अब और कितनी देर लगने वाली है, आपका प्लेन थोड़ी और तेजी से नहीं उड़ सकता क्या या फिर टैक्सी वाले भैया को बोलो कि और तेज चलाये।
    मेरे घर पहुँचने का समय हमेशा ही सुबह होता था और तब वह सोकर उठा नहीं होता था, और मैं बेटेलाल के बगल में ही लेटकर धीरे से उसको प्यार करता था, तो बेटेलाल आनंदातिरेक
हो उठते थे, उनकी ऊर्जा स्फूर्ति और ताजगी देखते ही बनती थी, बिल्कुल वैसी ही ताजगी जैसे कि कोको कोला पीने के बाद आ जाती है, मन खुशियों से झूम उठता है, हमारे बेटेलाल को भी कोको कोला बहुत पसंद है, और हम आते समय हमेशा ही उनके लिये एक कोको कोला ले आते थे, बेटेलाल की खुशी दोगुना हो जाती थी।

तनख्वाह आमदनी सैलेरी कंपनसेशन या कॉस्ट

तनख्वाह याने कि जो तन खा जाती हो और आमदनी याने कि जहाँ से आमद होती है, सैलेरी आंग्लभाषा के शब्द से हमें कुछ समझ नहीं आया, अब कंपनशेसन कहा जाता है मतलब कि मुआवजा भी समझ जा सकता है और ईनाम भी, केवल शब्द का हेरफेर है। ऐसे ही कई जगह इसे कॉस्ट कहा जाता है मतलब कि लागत, हम हमारे मालिकान को कितना कमाकर देंगे। अब लगभग सारी जगहों पर शब्दों को बैलेन्स शीट के हिसाब से उपयोग किया जाता है। आजकल इसका कुछ हिस्सा वैरियेबल हो गया है जो कि वर्षभर के किये गये कार्य-संपादन के बाद कुछ राशि इसके नाम पर भी दी जाती है, जिससे कि सेवक खुश रहे और अगले वर्ष भी काम करता रहे।

 

केवल शब्द से कुछ नहीं होता, शब्द कोई भी हो पर सबका मतलब एक ही होता है और सबकी जिंदगी में इसका एक ही महत्व होता है, आदिकाल से ही इन शब्दों का महत्व वही है जो आज है और भविष्य में रहेगा। इस संख्या का हर वर्ष बढ़ौत्तरी होते रहना भी जरूरी है, जब इस संख्या में ठहराव आने लगे या फिर संख्याएँ बहुत ही धीमे से बदल रही हों तो समझ जाना चाहिये कि कहीं कुछ समस्य़ा है और हमें उस समस्या का समाधान ढ़ूँढ़ने के लिये तत्पर होना चाहिये।

 

जब हम राशि के काँटो पर चढ़ते हैं तो पहले की संख्याएँ जो कि होती तो समान ही हैं परंतु वे पूरी राशि को भार देती हैं, राशि को बड़ा होने में मददगार होती हैं, उन संख्याओं के ऊपर कूद लो, फाँद लो परंतु असर बेअसर ही होता है, पहली संख्या तो इतनी ढ़ीठ होती है कि हिलती ही नहीं, पता नहीं कौन सी चक्की का आटा खाकर बैठी होती है, दूसरी संख्या किसी की सरकती है तो किसी की नहीं और कभी कभी केवल एक ही संख्या बढ़ती है तो कभी तो वह भी पहली संख्या जैसी ढ़ीठ हो जाती है। अब हाँ उसके आगे की संख्याओं की बात करें तो वे फलेक्सिबल होती हैं, वे सरकने में इतना नाटक नहीं करती हैं। उनको कितना भी घुमा लो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

 

हे तनख्वाह! तुम्हारा इंतजार केवल मुझे नहीं, मेरे अलावा कई लोगों को होता है, तुम एक नहीं कई सपने तोड़ती फोड़ती हो, पता नहीं कितने सपनों को सपनों में ही बदल देती हो, हे आमदनी देवी! आप आद्य देवी हो, पर ये महँगाई देवी! जो कि नई नवेली देवी हैं और बाजार में आई हैं, ये आप पर भारी पड़ रही हैं, ये नई देवी की बढ़ने की रफ्तार इतनी तेज है कि आप इसका मुकाबला ही नहीं कर पा रही हैं, तो आप अपना प्रताप बढ़ायें और आमदनी पर पलने वालों पर कृपा बरसायें।

साप्ताहिक भागमभाग की थकान के बाद कुछ सुकून के पल परिवार के संग

सप्ताह में पाँच दिन के काम के बाद दिमाग को आराम की बहुत ही सख्त जरूरत होती है, आराम करने के भी सबके अपने अपने तरीके होते हैं, कोई केवल दिन भर घर में ही रहना पसंद करता है तो कोई घर पर रहकर दिनभर टीवी देखना तो कोई मोबाईल या लेपटॉप पर गेम्स खेलना पसंद करता है। हम केवल और केवल परिवार के साथ समय व्यतीत करना पसंद करते हैं।
परिवार में हमारी घरवाली और बेटेलाल के साथ हम रहते हैं। सप्ताहांत में अपने दैनिक कार्यों के अलावा जो हमारे कार्य में जुड़ा होता है वह है बेटेलाल को भी साथ में सैर पर बगीचे में ले जाना, साथ में खेलना, बाजार से जरूरत के सामान और सब्जी लाना। घर पर आकर फटाफट तैयार होना और फिर आपस में खेलना, कभी कैरम तो कभी लूडो तो कभी ताश और कभी पहेली। कभी हम बेटेलाल को कहानी सुनाते हैं तो कभी बेटेलाल हमें कहानी सुनाते हैं।
रविवार को बेहतरीन दिन बिताने के लिये हम सुबह से पूरे परिवार के साथ घर के सारे काम निपटाने लगते हैं जिससे साथ में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिता पायें और आपस में और करीब आ
पायें। अभी कुछ सप्ताह पहले ऐसे ही एक रविवार को हमने सुबह पोहा नाश्ते में बनाया जो कि हमारे घर का सबसे ज्यादा पसंदीदा नाश्ता है। तैयारी मैंने और बेटेलाल ने की घरवाली ने फाईनल टच दिया। और फिर साथ में नाश्ता करने के बाद हमने साथ में चाणक्य सीरियल देखा और फिर भारत एक खोज।
अब हमारे बेटेलाल लूडो ला चुके थे और हम दोनों लूडो खेलने बैठ गये साथ ही दाल बाफले की तैयारी चल रही थी, जिसका आटा बहुत ज्यादा पतला नहीं मला जाता है तो कट्ठा आटा हमेशा हम ही मलते हैं, हमने अपने महाविद्यालयीन दिनों में बहुत आटा मला है, जिससे हमें आटा मलने की जबरदस्त प्रेक्टिस हो गई है। बाफले के लिये आटे के लिये गोले बनवाये और फिर इलेक्ट्रॉनिक केतली में पानी उबाल उबाल कर बड़े भगोने में डालने लगे जो कि गैस पर रखा था, उबालने के बाद बाफले को सुखाकर तंदूर में पका लिया, तब तक दाल और चटनी भी लगभग तैयार थी और साथ ही बैंगन का भर्ता भी तैयार था।
जब खाना तैयार हो गया तो हमने छत पर चटाई बिछाई और खाने का सामान छत पर ले चले और खिली धूप में परिवार के साथ आनंद से खाना खाया, खाने के बाद थोड़े बाफलों को कूटकर शक्कर पीसकर उसमें मिलाकर मीठा भी बना लिया गया। अब समय था आराम करने का, तो अपनी किताब शेखर एक जीवनीली और परिवार को सुनाने लगे, इस उपन्यास में पात्रों को इस प्रकार से लिखा गया है कि बड़े तो बड़े, बच्चे भी इससे बँध जाते हैं। तकिया लगा कर लेट गये, भरे पेट थोड़े ही देर में नींद ने आ घेरा, तो छत पर दोपहर की नींद ली गई।
शाम को फिर पैदल ही बगीचे में घूमने गये और साथ में फिल्म देखी। इस तरह से पूरा दिन अपने परिवार के साथ बिताकर पूरे सप्ताह की थकान उतारी गई। परिवार के साथ समय बिताने और उसका अनुभव साझा करने के लिये यह पोस्ट हमने हाऊसिंग.कॉम के लिये लिखी है।

नई शुरूआत मोटो ई के साथ

    हमेशा दुनिया में आदमी को नया सीखने की चाहत होती है, और हर कोई नई तकनीक को अपनाना चाहता है जिससे वह भी सभ्य समाज में जाना जाये और उसकी समाज में अच्छी पहचान बने । समाज में उसे जाना जाये और कोई भी नई तकनीक में विशेषज्ञता हासिल हो तो समाज हमेशा से ही उन व्यक्तियों को अलग ही पहचान देता है। जब से मोबाईल आम हाथों में आया है या यूँ कहें कि विलासिता की श्रेणी से मोबाईल हर व्यक्ति के जीवन की जरूरत बन गई है तब से मोबाईल क्षैत्र मे क्रांति आ गई है। पहले मोबाईल फोन कुछ ज्यादा ही भारी होते थे, जो कि केवल मैसेज और कॉल करने तक ही सीमित थे। पर जब इसी मोबाईल में कुछ और सुविधाएँ आ गईं तब से मोबाईल में एक से एक फीचर आने लगे।

    मेरे पास 13 वर्ष पहले एक मोटोरोला का फोन था जिसमें कुछ ज्यादा फीचर नहीं थे परंतु हाँ उसकी बैटरी जबरदस्त थी, फिर तो मैंने कई मोबाईल बदले जिसमें इंटरनेट तक की सुविधा थी, पर उसमें सारा मजा इसलिये किरकिरा हो जाता था कि किसी भी मनचाही जगह पर हम क्लिक नहीं कर सकते थे। अब हमने सोचा कि कीपैड के साथ वाले मोबाईल को त्याग कर मोटोरोला का नया मोटो ई स्मार्टफोन से टचस्क्रीन की दुनिया में प्रवेश करने का फैसला किया, इसमें हमें टच का मजा लेने को मिलेगा जो कि आज हर दूसरे व्यक्ति के पास होता है और हमें लगा था कि हम तकनीक की दुनिया में पिछड़ने लगे हैं।
    हम अपने मोबाईल पर एन्ड्रॉयड के नये एप्प के मजे ले पायेंगे, नये नये गेम्स के मजे ले पायेंगे, फिल्में देख पायेंगे और सबसे मजे की बात कि हम ये सब केवल टच करके कर पायेंगे, जीपीएस का बेहतरीन उपयोग कर पायेंगे और बड़ी स्क्रीन का मजा ले पायेंगे, रंग तो मोबाईल की स्क्रीन पर बेहतरीन दिखेंगे ही, मैं तो यह सब सोचकर ही रोमांचित हूँ कि मेरे पास टच स्क्रीन का फोन होगा। जिस पर मैं घर पर वाई फाई को भी कनेक्ट कर पाऊँगा, बहुत सारे गेम्स जो दूसरे लोग अपने टच स्क्रीन वाले मोबाईल पर खेलते हैं, और मैं उनको देखकर लालायित होता रहता था, अब मैं भी खेल पाऊँगा। अब मुझे किसी भी तरह की सुविधा के लिये तरसना नहीं  पड़ेगा। 
    इसमें 8 जीबी आँतरिक मैमोरी है और इसमें दो सिम लग सकती हैं, जिससे मैं दो फोन रखने की असुविधा से भी बच पाऊँगा।  5 मेगापिक्सल के कैमरा होने से कम से कम अब मुझे अपना कैमरा साथ में नहीं रखना होगा, गाने या वीडियो रखने
के लिये 32 जीबी की बाहरी मैमोरी तक का समर्थन है। इसमें 1 जीबी रैम होने से मुझे हर एप्प में अधिकतम रफ्तार मिलेगी और फोन हैंग भी नहीं होगा और मैं इससे वीडियो भी रिकार्ड कर पाऊँगा। इसमें एक्सेलेरोमीटर, लाईट सेन्सर और प्रोक्सीमिटी सेन्सर होने से मेरे इस टच स्क्रीन फोन का मजा दोगुना हो जायेगा। फोन का वजन मेरे पहले वाले फोन से बहुत कम है और इसकी बनावट भी बहुत अच्छी है।
    इतने बेहतरीन फीचर्स वाला फोन अगर मिल जाये तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है। जिंदगी में हमें बदलाव के लिये हमें प्रयास करने चाहिये और मैं बदलाव लाऊँगा अपनी जिंदगी में मोटो ई टच स्क्रीन फोन से।  #ChooseToStart with the new Moto E!

जीवन का पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में

अपने ही बनाये हुए सपनों के महल में ऐसा घबराया सा घूम रहा हूँ, कब कौन से दरवाजे से मेरे सपनों का जनाजा निकल रहा होगा, भाग भाग कर चाँद तक सीढ़ीयों से चढ़ने की कोशिश भी की, पर मेरे सपनों की छत कांक्रीट की बनी है किसी विस्फोट से टूटती ही नहीं। दम भी घुटता है पर कहीं से निरंतर ही ठंडी बयार आने से हमेशा ही सपनों के सच होने का भरोसा दिला देते हैं। इस जंजाल से निकलने के लिये कई बार छुप्पा में, कभी अक्षरों तो कभी शब्दों के पीछे, पर इन्होंने भी मेरा साथ न दिया, जब कोई और बुलाये तो झट से ये उधर चले गये, कभी मैंने तुम पर इसीलिये ऐतबार न किया।
ढ़ूँढ़ता ही रह जाऊँगा जीवन की कुछ सीढ़ियाँ, कभी सीढ़ियाँ ही टूटी मिलीं तो कभी रास्ते टूटे मिले, कभी छत नहीं मिली और अगर मिली भी तो आसमां में चाँद तारे न मिले, जिसने जैसा आसमां दिखाया बस हमेशा वैसा ही आसमां हमने देखा, हम अपना आसमां कब बनायेंगे, कब हम अपनी छत पर अपनी ही सीढ़ियों से जायेंगे, और कब हम शब्दों को अपना बना पायेंगे, सदियों तक इंतजार करेंगे, पर यह भी सत्य है कि इंतजार से कुछ नहीं मिलता, केवल और केवल हमें यही लगता है कि अपने लिये अपनी दुनिया खुद ही गढ़नी होगी।
जब दुनिया गढ़ने भी बैठे और जिसको हमने उस दुनिया का खुदा बनाने की ठानी, उसने हमारी दुनिया का खुदा बनने के लिये पहले तो राजीनामा कर लिया पर अब वह खुद ही अनिश्चितता के दौर से निकल रहा दिखाई देता, किसी दूसरी दुनिया से आने पर भी वहीं की टीस उसे इस दुनिया को मिटाने पर मजबूर कर रही है। जब खुदा खुद ही खुदी के राह पर निकल पड़े तो जीवन के पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में खड़ा दिखाई देता है, जहाँ दूर उसे दुनिया तो दिखती है, दुनिया को वह भी दिखता है, पर नदी नहीं, दुनिया तो इधर से उधर जाने के लिये पुलिया का इस्तेमाल करती है, पेड़ के पास खड़े होकर अपनी शक्ल के साथ कई जगह वाहवाही भी लूटते हैं, पर पेड़ के संघर्ष का कोई भी कहीं भी जिक्र नहीं करता, न उसकी भावनाओं को समझता।
बस खुश हूँ तो यूँ कि कुछ पक्षियों ने मेरी शाख पर घोंसले बना रखे हैं, केवल उनके लिये मैं इस प्रकृति से संघर्षरत हूँ, उनके शाख पर खेलने से जीवन की कुछ चीजों पर पड़े जालों को कभी झाड़ने की जरूरत ही नहीं आन पड़ी, जाले तो तब ही झाड़े जाते हैं जब वस्तु को या तो उपयोग करना हो या वह उपयोगहीन हो गई हो। जीवन में आगे बढ़ने की सीढ़ियाँ अब भी ढ़ूँढ़ रहा हूँ, जब कोई मेरी सीढ़ी को सहारा दे तो शायद मैं ज्यादा जज्बे से बेपरवाह होकर मंजिल पर चढ़ाई कर पाऊँगा, नहीं तो सपनों के महल को भरभराते देर ही कितनी लगती है।

जीवन में सफलता के लिये पहली बार मुँबई परिवार के साथ जाने का कठिन निर्णय

    जीवन में सफलता के लिये घर का अहम रोल होता है। घर वह होता है जहाँ हमारे माता पिता साथ रहते हैं और प्यार होता है। घर केवल चार दीवारी नहीं होता, चार दीवारी तो मकान होता है, जहाँ न अपने होते हैं और न ही प्यार होता है। मकान में लोग केवल रहते हैं पर घर में लोग जीवन को मजे लेते हुए जीते हैं। बचपन से ही इस शहर से उस शहर घूमते रहे पर कभी मकान में नहीं रहे, हमेशा पापा मम्मी के साथ घर में रहे, जहाँ भी जाते हम शहर के उस मौहल्ले या कॉलोनी में रच बस जाते। जब दूसरे शहर जाने का समय होता तो आँखें भीग आती थीं, फिर से एक नये शहर में जिंदगी शुरू करना बहुत कठिन होता है, फिर से अपने मित्र बनाना, पड़ोसियों से तालमेल बैठाना। यही अनुभव जीवन भर काम भी आता है, हम लोग इंसान को पहचानने लगते हैं। जीवन के कटु पलों से हम अपने में बहुत सी बातें सीख जाते हैं और वक्त के पहले ही काफी बड़े हो जाते हैं।
    जब तक घर में मम्मी पापा के साथ रह सकते थे रहे, फिर हमें नौकरी के चलते मुँबई अपने परिवार के साथ आना पड़ा, कुछ दिन अकेले ही व्यतीत किये और मुँबई को जाना समझा, मुँबई सपनों का शहर है, बचपन से ही फिल्मों को देखते हुए बड़े हुए हैं, और हम मुँबई को फिल्मनगरी के नाम से जानते हैं, ऐसा लगता था कि जब मुँबई जायेंगे तो फिल्मी कलाकार हमारा स्वागत करने सड़क पर उतर आयेंगे, खैर सपने तो सपने ही होते हैं। मुँबई संघर्ष का दूसरा नाम है, जहाँ रहने के लिये ठिकाना ढ़ूँढ़ना उतना ही मुश्किल है जितना कि मुँबई लोकल में अपने आप के जगह ढ़ूँढ़ पाना। पर हाउसिंग.कॉम ने हमारा काम बेहद ही आसान कर दिया। लेपटॉप पर ही फोटो देखकर, जगह के बारे में जान लेते थे और फिर वहाँ फ्लैट देखने जाना है या नहीं यह निर्णय करते थे।
    हमने अपने जीवन में परिवार याने कि घरवाली और बेटेलाल के साथ पहली बार अपनी जड़ से अलग होने की मजबूरी में सोची थी, हमें घर चलाने का अनुभव तो बिल्कुल भी नहीं था, पर हाँ घर में रहते हुए बहुत कुछ सीखा था, और नये शहर में जाना, जहाँ पूरा शहर ही अपने लिये अनजान है, जब नौकरी ही वहाँ करनी थी तो रहना भी वहीं था, यह मेरे जीवन का सबसे
बड़ा निर्णय था, जीवन में अपने कैरियर के लिये आगे बढ़ने के लिये मैंने यह कठिन निर्णय ले लिया।
    पहली बार परिवार के साथ बाहर रहने जा रहे थे, तो घर के सारे समान की सूचि बनाई गई उसके लिये बजट भी बनाया गया, और फिर एक एक करके हम धीरे धीरे सारी चीजों को व्यवस्थित तरीकों से करते गये और हमारा घर एक सप्ताह में ही जम गया, जब रहने लगे तो जिन जिन चीजों के बारे में लगता कि नहीं है तो अपनी सूचि में जोड़ते जाते और सप्ताहांत में जाकर ले आते, इस प्रकार से हमारे पास घर में जरूरत की लगभग सारी चीजें हो गईं। और वह सूचि अब हमेशा हम अपने साथ ही रखते हैं, किसी भी नई जगह जाने पर यह सूचि बड़े काम
की होती है। और इसी एक निर्णय के कारण हम अच्छी प्रगति भी कर पाये।

घर पहुँचने की खुशी बयां नहीं की जा सकती है

    हम जीवन मे संघर्ष करते हैं, अपने लिये और अपने परिवार के लिये । सब खुश रहें, सब जीवन के आनंद साथ लें । जब हम संघर्ष करते हैं तब और जब हम संघर्ष कर किसी मुकाम पर पहुँच जाते हैं तब भी घर जाने का अहसास ही तन और मन में स्फूर्ती भर देता है। घर जाने का मतलब कि हम हमारी कामकाजी थकान से रिलेक्स हो जाते हैं और अपने लिये नई ऊर्जा का
संचार करते हैं। घर पर अपने परिवार से मिलने की खुशी हमेशा ही रहती है।
 
    मैंने जब से नौकरी करनी शुरू की तब से ही हमेशा मेरे काम में घूमना शामिल रहा, कभी ज्यादा दिनों को लिये तो कभी कम दिनों के लिये तो कभी सुबह जल्दी जाकर देर रात तक वापिस घर आना। नौकरी के शुरूआती दिनों में जब मेरी शादी नहीं हुई थी तब भी मैं घर जाने पर बहुत खुश होता था। घर जाने का सुकून कुछ और ही होता था, माँ पिताजी को देखकर ही
सारी थकान मिट जाती थी, उनके साथ मिलकर उनकी हँसी, उनकी डाँट, उनका प्यार सबमें अपना अलग ही अपनापन लगता था। घर पहुँचने का इंतजार इसलिये भी रहता था कि बाहर कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई तो सबसे पहले घर पर परिवार के साथ बाँटने में ही मजा आता था। मेरे बगीचे के पौधे और उनके फल फूलों के बीच मैं अपने आप को सातवें आसमान पर पाता था।
    जब शादी हुई तो भी नौकरी में यात्राएँ चलती ही रहीं और अब घर आने के लिये घरवाली जो कि हमारे जीवन में सबसे अच्छी दोस्त भी होती है, उसके साथ ज्यादा समय बिताने के लिये भी और बहुत सी बातें साझा करने के लिये भी मन उतावला रहता था। ऐसा लगता था कि बस अभी पंख लग जायें और अभी मैं घर पहुँच जाऊँ, कई बार मैं बहुत से उपहार लेकर घर जाता था, तो भी ऐसा लगता था कि बस उपहार खरीदते ही घर पहुँच जाऊँ और झट से उपहार घर पर सबको दे दूँ।
    जैसे जैसे जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं अपने कैरियर में भी आगे बड़ते गये, देश के साथ ही विदेश की भी यात्राएँ होने लगीं, अब कुछ हजार किमी की जगह कई हजार किमी दूर हवाईजहाज में बैठकर आना जाना होता था और परिवार के साथ केवल वीडियो चैटिंग पर ही बात किया करते थे, देख सकते थे पर वह अहसास नहीं होता था जो घर पर होता था, जब भी मैं वापिस भारत अपने घर के लिये निकलता था, तो बस ऐसा लगता था कि अब मेरी सारी थकान मेरे बेटे की हँसी से ही मिट जायेगी, मेरा बेटा मेरी गोद में आकर मुझे बहुत सारा प्यार करेगा, और फिर डैडी डैडी आवाज लगाकर बस मेरे आगे पीछे घूमता रहेगा। फिर मेरे साथ अपने गेम्स खेलने की जिद भी करेगा और मैं बेटे के साथ इन सारी बातों को यादकर ही खुश हो लेता था, घर जाने की खबर ही मन में स्फूर्ति भर देती है। आज भी शाम के घर पहुँचने का इंतजार इसलिये ही होता है कि घरवाली और बेटा, मैं दोनों के खिलखिलाते चेहरे देखकर ही सारे दिन की थकान छूमंतर हो जाती है।
यह पोस्ट हमने हाउसिंग.कॉम के लिये लिखी है।