जबेली का नाश्ता पूरा होने के बाद हमसे पूछा गया कि अब खाने में क्या पसंद करेंगे हम तो बस इंतजार ही कर रहे थे कि हमसे पूछा जाये और हम झट से कहें “दाल बाफ़ले”। बस हमने झट से कह दिया “दाल बाफ़ले”।
फ़िर बाफ़ले का आटा बाजार से लाया गया और दाल और बैंगन के भुर्ते की तैयारी की जाने लगी साथ में चावल ये हमारे मालवा का विशेष भोजन है, जिसके लिये हम हमेशा भूखे ही रहते हैं, बाफ़ले का घी जो कि बाफ़ले की रग रग में घुसा हुआ था, हमारे हाई बी.पी. और बड़े हुए कोलोस्ट्रॉल को मुँह चिढ़ा रहा था।
फ़िर हाथ से मीड़कर बाफ़ले में दाल मिलाकर मजे में अपनी देसी स्टाईल से खाने का आनंद लेने लगे, आज पेट के साथ साथ आत्मा भी तृप्त हो रही थी। आत्मा और मन आनंदित हो रही थी, दिल प्रफ़ुल्लित हो रहा था बाफ़ले के हर गस्से के साथ। अब ज्यादा बात नहीं करेंगे नहीं तो सभी ब्लॉगर्स हमसे अभी यहीं दाल बाफ़ले बनवा लेंगे। 🙂
कार्यक्रम बनाया गया कि पहले कुछ जरुरी खरीददारी की जाये फ़िर मिठाई ली जाये और फ़िर महाकाल और रामघाट चला जाये। मिठाई में हमने बंगाली मिठाई और काजूकतली ली दोनों ही हमें बेहद पसंद हैं, भले ही डॉक्टर ने मना किया हो परंतु कभी कभी तो उनकी मनाही को ताक पर रखा जा सकता है और मिठाई आनंद लेकर खाई जा सकती है। 😉
फ़िर समान घर पर रखकर चल दिये हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये, अपनी बाइक पर, पुराने उज्जैन की गलियों से निकलते हुए हमें सालों पुरानी यादें ताजा होने लगीं। जब महाकाल घाटी पहुँचे तो पता चला कि एकाकी मार्ग घोषित कर दिया गया है, तो हमने अपने पुराने रास्ते जो कि चौबीस खंबा माता मंदिर के पास से होकर महाकाल जाता है, उससे महाकाल पहुँचे और बाबा के दर्शन बड़े मजे में हुए। हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये रात को शयन आरती के पहले ही जाना पसंद करते हैं, क्योंकि उस समय एक तो भीड़ भी नहीं रहती और फ़िर आराम से दर्शन हो जाते हैं, शाम की ठंडक भी रहती है। बाबा महाकाल के दर्शन करने के बाद वहीं महाकाल प्रांगण में चल दिये हम बाबा बाल विजय मस्त हनुमान के दर्शन करने के लिये। सालों पहले हम बाबा महाकाल और बाल विजय मस्त हनुमान की आरती में रोज शामिल होते थे, सब बाबा का प्रताप है और आशीर्वाद है।
बाबा के दर्शन करने के बाद रामघाट चल दिये, रामघाट से भी बहुत ही गहरा लगाव है मेरा, रामघाट ऐतिहासिक और पौराणिक है। अभी तो खूब चहल पहल थी पर आज से सालों पहले यही रामघाट सुनसान रहता था और घाट भी कच्चा ही था हम साईकिल से लगभग रोज ही रामघाट जाते थे। बड़ा अच्छा लगा कि रामघाट पर चहल पहल रहने लगी है। वहाँ झम्मकलड्डू वाला खड़ा था, जो कि हमारी और हमारे बेटे की पहली पसंद है, हमने लिया काला खट्टा और बेटेलाल ने लिया पंचरंगा, जिसे शुद्ध हिन्दी में बर्फ़ का गोला भी कहा जाता है। आजकल तो रामघाट पर बोटिंग भी हो रही है। चलो अच्छा है कि हमारा उज्जैन प्रगति पर है, सिंहस्थ आने को केवल सात वर्ष बाकी है।
घर वापिस लौटते समय महफ़ूज भाई का फ़ोन आया परंतु हम ज्यादा बात नहीं कर पाये क्योंकि हम बाजार में थे और फ़िर घर पहुँचकर बात करना ही भूल गये और थकान में चूर होकर शरीर निढ़ाल हो गया था।
फ़िर वापिस से आज याने कि चार अप्रैल को मुंबई प्रस्थान कर रहे हैं, और फ़िर मुंबईया लाईफ़ में एन्ट्री करने जा रहे हैं। ये सुकून भरे क्षण हमेशा याद रहते हैं, अपने मम्मी पापा के साथ और उज्जैन में बिताये हुए….
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
आनंद आ गया होगा.
बहुत बढ़िया ….सुंदर प्रस्तुति विवेक जी…फिर से जन्मदिन की बधाई
sabse pahle janam din ki badhai aap ko
fir dal bati to mujhe bhi bahut achi lagti he or bhafla ho to maza aa jata he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
नहीं तो सभी ब्लॉगर्स हमसे अभी यहीं दाल बाफ़ले बनवा लेंगे। bas yahi kahne ka man tha yoon ujjain mere apne ka bahut apna shahar hai.
पिछले सिंहस्थ में उज्जैन में ही थे। खूब भीड़ का आनंद लिया। हम यहाँ कोटा में कत्त-बाफले से परेशान हैं। जब भी कहीं बाहर पार्टी होती है यही एक मेनु होता है, दाल तो होती ही है। चलिए आप के साथ हम भी महाकाल घूम लिए। आप ने चित्र लिए होते और लगाए होते तो इस श्रंखला का आनंद कुछ और ही होता।
अपने माता-पिता के साथ मनपसंद जगह पर मनपसंद खाने के साथ जन्मदिन मनाना किसे अच्छा नहीं लगेगा। एक बार फिर बधाई जन्मदिन की।
जबेली का नाश्ता
जबेली का नाश्ता या जलेबी का नाश्ता -बाकी सब तो ठीक है!
मुम्बई पहुँचिये !
@अरविन्द जी – जबेली हमारे बेटे की भाषा है और इसलिये हमने हुबहू वही लिख दिया है।
@दिनेशजी – चित्रों की कमी हमें भी खल रही है, चित्र लेने में हम आलस्य कर गये 🙁
वाह.. 🙂 तो डिमान्डस पूरी हो रही है आपकी..
खाते रहे.. चीयर्स..
ये तो ठीक नहीं है विवेक जी!
जनमदिन पर जबेली, बाफले, काजू कतली, बंगाली मिठाई अकेले-अकेले हजम कर बताते फिर रहे हैं।
अगला जनमदिन आने दो फिर बताएँगे 🙂
बी एस पाबला
एक बार फ़िर जन्म दिन की मुबारकबाद..्।दाल बाफ़ले की रेसिपी जल्दी से इधर सरकाई जाए। हाँ , हम भी देख के हैरान थे कि पूरे मध्य प्रदेश में लोग पोहा( ऊपर फ़रसान डाल के)और जलेबी बड़े चाव से खाते है। सूरत वालों का भी पसंदीदा नाश्ता है।