वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

वित्तीय उत्पादों (ऋण) के साथ जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को बेचा जाना (Force Selling combined with other financial products)

    ऋण या गृह ऋण के साथ क्या कभी आपको किसी ने यूलिप खरीदने पर मजबूर किया है ? आजकल भारत के वित्तीय बाजार में यह अनैतिक बिक्री जोरों पर है। आजकल बहुत सारे लोग ये शिकायत करते हैं कि कई कंपनियाँ बड़े ऋण के साथ या कुछ और बड़ा ऋण लेने पर उनके कबाड़ा उत्पाद जैसे कि एन्डोमेन्ट योजना या यूलिप (जिसमें ज्यादा कमीशन मिलता है) बेचती हैं, जहाँ यूलिप की छोटी सी रकम के लिये कहा जाता है “ठीक है, इतनी बड़ा ऋण लिया है फ़िर छोटी सी चीज के लिये क्यों सोच रहे हैं”। पर यह सही नहीं है, इससे आम आदमी का विश्वास टूट रहा है, और यह सब नियमों के खिलाफ़ हो रहा है। चलो कुछ वास्तविक जीवन के मामले देखते हैं –

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को ऋण स्वीकृति के साथ बेचना
    मुझे एक योजना लेनी थी, वो भी बिना जानकारी के, कि उस योजना में क्या है और वह क्या योजना है, जैसा कि बार्कलेज फ़ायनेंस कंपनी ने कहा कि कर्ज के अनुमोदन के लिये यह योजना लेना अनिवार्य है, पता नहीं कि यह सब कितना सही है। लेकिन मेरे पास समय नहीं था, मैं पहले ही काफ़ी देरी कर चुका था, इसलिये मैंने चुपचाप ले लिया।

जबरदस्ती अन्य वित्तीय उत्पादों को गृह ऋण के साथ बेचना
    मैंने सोचा कि भारतीय स्टेट बैंक जैसे बैंक अपने नियमों पर सीधे अमल करेंगे। पर यहाँ से ऋण लेने पर मुझे बहुत ही मुश्किलात का अनुभव हुआ।

ऋण अनुमोदन करने के पहले के सपने –
    लोन दिलाने वाला एजेंट (हिन्दी में दलाल, शायद सुनने में अच्छा न लगता हो) जो मेरे कार्यालय में ही कार्य करता है, उसे ऋण के नियम और शर्तों के बारे में कुछ पता ही नहीं है। वह एसबीआई का सेवानिवृत्त अधिकारी है और अपनी पहचान का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए ऋण दिलवा देता है। एक दिन वह मुझसे बोला कि मैंने जो ऋण दिलाने के लिये सेवाएँ दी मुझे उसका भुगतान(Service Charges) तो कीजिये (मैं तो स्तब्ध रह गया)| शायद उसके द्वारा मेरे ऋण लेने पर बैंक ने कुछ न कुछ फ़ीस का भुगतान किया ही होगा। मैंने उसे कुछ जरुरी जमानती (Gurantor) संबंधी कागजात दिये थे, जो कि फ़ाईल में नहीं थे। शायद उसने खो दिये थे, जितनी राशि के लिये मैंने ऋण का आवेदन किया था, ऋण अनुमोदन के दौरान ही मैंने अपनी ऋण राशि कम कर दी। जब मेरा ऋण अनुमोदित हुआ तो मैंने पाया कि १.९ लाख का अतिरिक्त ऋण मुझे मंजूर किया गया है और ऋण राशि बड़ा दी गई है। मैंने उनके द्वारा प्रस्तावित बीमा सुरक्षा ऋण के लिये लेने से मना कर दिया क्योंकि मैंने प्रतिवर्ष के आधार पर कवर करने की योजना बनाई थी। मैंने इसके लिये प्रबंधक से चर्चा की और वह इसको हटाने पर राजी भी हो गये।
    जरुरी बात, जब आप ऋण के कागज पर हस्ताक्षर कर रहे हों तो जमानती को हमेशा वहाँ होना चाहिये। मैंने अपने जमानती को सुबह के समय में अपने साथ लेकर यह कार्य सफ़लतापूर्वक किया।

जबरन भारतीय स्टेट बैंक का ऋण के साथ बीमा बेचना
    मैंने देखा कि बीमा सुरक्षा को हटाया नहीं गया है और एसबीआई अधिकारी उसे हटाने को सहमत भी नहीं थे जबकि मैंने उनसे यह भी कहा कि मैं एसबीआई का बीमा खरीद लूँगा। मुझे बताया गया कि फ़िर मुझे वापस से उसी शाखा में जाना पड़ेगा जहाँ ऋण का अनुमोदन किया गया था और फ़िर बैंक प्रबंधक से स्वीकृत करवाना पड़ेगा और फ़िर स्वीकृति के लिये वापिस से बैंक के ऋण प्रोसेसिंग केन्द्र पर जाना होगा। और मैंने स्वीकृत करने वाले अधिकारी और मुख्य प्रबंधक को बहुत मनाया, और केवल एक साल का बीमा सुरक्षा तभी उसी समय खरीदने को तैयार हो जाने पर मैं उनको मनाने में कामयाब हो गया।
    इसके अलावा, मुझे बताया गया था कि इस वर्ष मेरे ऋण का ब्याज ८ प्रतिशत रहेगा (मैं खुश था कि मैंने भारतीय स्टेट बैंक से ऋण लिया था), लेकिन बाद में मुझे बताया गया कि मेरा ऋण अगले ४ वर्षों के लिये ९.७५ प्रतिशत की दर से स्वीकृत हुआ है। किसी ने मुझे इस नियम के बारे में बताया तक नहीं था कि ८ प्रतिशत वाली योजना के लिये मुझे अलग से अनुमोदन करना होगा। मैंने इस बारे में क्लर्क से लेकर प्रबंधक तक सबसे पूछा पर किसी को इस नियम के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं थी कि इसके लिये अलग से अनुमोदन कर स्वीकृति लेनी थी, पर अब मेरे पास हस्ताक्षर करने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं था। इन विषम परिस्थितियों में, मैंने सोचा कि ब्याजदर कुछ ज्यादा है पर फ़िर भी मैं अगले ४ वर्ष के लिये ९.७५ प्रतिशत ब्याज दर पर फ़ँस चुका था।
    खैर, मुझे बैंक अधिकारियों की कार्य करने की गति और अपने पेशे के प्रति जानकारी से संतुष्टि तो थी, पर फ़िर भी मुझे महसूस हो रहा था कि ऋण के नियम और शर्तों में और पारदर्शिता लानी चाहिये।
    क्या शिक्षा मिलती है इस घटनाक्रम से – ऋण के कागजात पर हस्ताक्षर करने के पहले सभी नियमों और शर्तों को ध्यान से पढ़ लो और अगर किसी भी नियम या शर्त समझ में नहीं आ रहा तो वहीं अधिकारी से उसके बारे में पूछ लें और अगर जब तक जबाब नहीं मिलता तब तक संतुष्ट भी नहीं होना चाहिये। निजी एवं सरकारी बैंकें सभी के अपने अपने नियम और शर्तें होती हैं, और वहाँ उनको बताने वाला कोई नहीं होता है।

एक और मामला जबरन अपने वित्तीय उत्पाद बेचने का, ऋण हस्तांतरण के साथ
    मैंने एक और मामला देखा है जिसमें एक आदमी अपना गृहऋण (आईसीआईसी बैंक) पूना से दिल्ली स्थानान्तरित करवाना चाहता था, और केवल इसके लिये उसे जबरदस्ती बैंक के अधिकारियों द्वारा यूलिप योजना लेने को मजबूर किया जा रहा था, जिससे उसके कागजी कार्यवाही में मदद मिलती मतलब जल्दी कर दिया जाता, नहीं तो उसका काम अटक जाता। आखिरकार, उसने दिल्ली ब्रांच में आग्रह किया, तो उसका काम आसानी से हो गया। तो इस मामले में बैंक अधिकारी ऋणी पर अनुपयुक्त वित्तीय उत्पाद लेने के लिये दबाब डाल रहे थे।

निष्कर्ष
    इन दिनों वित्तीय संस्थाओं में यह कृत्य हो रहे हैं, ये सब भ्रष्टाचार का ही एक रुप है। ॠण देने वाले सोच रहे हैं कि ऋण एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संकट की बात होती है आम आदमी के लिये, इसको आसानी से देने के लिये वे लोग अपने घटिया वित्तीय उत्पाद जबरन लेने को मजबूर करते हैं, वैसे भी बैंक वाले ये सोचते हैं कि भारत में लोग अन्य बातों से पहले ही बहुत दुखी और परेशान हैं, उसमें वे कुछ नहीं कर सकते हैं। आमजन पहले थोड़ा बहुत पूछेगा फ़िर आखिरी में अपना सब्र खोकर उनका घटिया वित्तीय उत्पाद जो कि जबरन ॠण के साथ बेचा जा रहा है ले लेगा, और यही होता भी है। लेकिन अपने साथ ऐसा मत होने दीजिये । अपनी आवाज उठाईये, सफ़ाई मांगिये, नियम में ऐसा कहाँ लिखा है देखिये, उन्हें शिकायत करने की धमकी देकर डराईये और अपनी आवाज को बैंकिग ओम्बड्समैन एवं उपभोक्ता अदालत तक ले जाईये, और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि थोड़े समय के पश्चात जो जतन आपने किये हैं उससे सुधर जायेंगे ।
    यहाँ तक कि भारतीय स्टेट बैंक में या किसी और बैंक में पीपीएफ़ खाता खोलने के लिये अगर आप जायेंगे तो पायेंगे कि वो जबरन में आपका बचत खाता खोलने की कोशिश करेंगे । यह भी अपने वित्तीय उत्पाद जबरदस्ती बेचने की श्रेणी में आता है।

टिप्पणी – ऐसे ही कुछ उदाहरण जो आप जानते हों, आपके साथ हुए हों या किसी ओर के साथ और इन मामलों को कैसे हल किया जा सकता है। आईये एकजुट होकर आप अपने विचार साझा कीजिये। हम ये सब बदल सकते हैं !! 
यह आलेख मूलत: http://www.jagoinvestor.com पर मनीष चौहान द्वारा लिखा गया है, और
यह इस आलेख का हिन्दी में अनुवाद है।

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