बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध (Pollution Essay in Hindi)

बच्चों के लिये प्रदूषण पर निबंध  (Pollution Essay in Hindi) –

    प्रदूषण (Pollution) आज की दुनिया की एक गंभीर समस्या है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रेमियों के लिये यह भारी चिंता का विषय बन गया है। इसकी चपेट में मानव-समुदाय ही नहीं, समस्त जीव-समुदाय आ गया है। इसके दुष्प्रभाव चारों ओर दिखाई दे रहे हैं।
प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ है – गंदगी। वह गंदगी जो हमारे चारों ओर फैल गई है और जिसकी गिरफ्त में पृथ्वी के सभी निवासी हैं, उसे प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। ये तीनों प्रकार के प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं।
    वायु और जल प्रकृति-प्रदत्त जीवनदायी वस्तुएँ हैं। जीवों की उत्पत्ति और जीवन को बनाये रखने में इन दोनों वस्तुओं का बहुत बड़ा हाथ है। वायु में जहाँ सभी जीवधारी साँस लेते हैं वहीं जल को पीने के काम में लाते हैं। लेकिन ये दोनों ही वस्तुआँ आजकल बहुत गंदी हो गई हैं। वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण इसमें अनेक प्राकर की अशुद्ध गैसों का मिल जाना है। वायु में मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसे प्रदूषित तत्व भारी मात्रा में मिलते जा रहे हैं। जल में नगरों का कूड़ा-कचरा, रासायनिक पदार्थों से युक्त गंदा पानी प्रवाहित किया जाता रहा है। इससे जल के भंडार जैसे – तालाब, नदियाँ, झीलें और समुद्र का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है।
ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है –
बढ़ती आबादी के कारण निरंतर होनेवाला शोरगुल। घर के बरतनों की खट-पट और वाद्य-यंत्रों की झन-झन इन दिनों बड़ती ही जा रही है। वाहनों का शोर, उपकरणों की चीख और चारों दिशाओं से आनेवाली विभिन्न प्राकर की आवाजें ध्वनि प्रदूषण को जन्म दे रही हैं। महानगरों में तो ध्वनि-प्रदूषण अपनी ऊँचाई पर है।
प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में विचार करें तो ये बड़े गंभीर नजर आते हैं। प्रदूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों और श्वास-संबंधी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। प्रदूषित जल पीने से पेट संबंधी रोग फैलते हैं। गंदा जल, जल में निवास करने वाले जीवों के लिये भी बहुत हानिकारक होता है। ध्वनि प्रदूषण मानसिक तनाव उत्पन्न करता है। इससे बहरापन, चिंता, अशांति जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त करना टेढ़ी खीर हो गई है। अनेक प्रकार के सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी सिद्ध हुए हैं। अत: स्पष्ट है कि जब तक जन-समूह निजी स्तर पर इस कार्य में सक्रिय भागीदारी नहीं करता, तब तक इस समस्या से निबटना असंभव है। हरेक को चाहिये कि वे आस-पास कूड़े का ढ़ेर व गंदगी इकट्ठा न होने दें। जलाशयों में प्रदूषित जल का शुद्धिकरण होना चाहिये। कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग घटाकर सौर-ऊर्जा, पवन-ऊर्जा, बायो गैस, सी.एन.जी., एल.पी.जी., जल-विद्युत जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों का अधिकाधिक दोहन करना चाहिये। इन सभी उपायों को अपनाने से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को घटाने में काफी मदद मिलेगी।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिये कुछ ठोस एवं सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। रेडियो, टीवी, ध्वनि विस्तारक यंत्रों आदि को कम आवाज में बजाना चाहिये। लाउडस्पीकरों के आम उपयोग को प्रतिबंधित कर देना चाहिये। वाहनों में हल्के आवाज करने वाले ध्वनि-संकेतकों का प्रयोग करना चाहिये। घरेलू उपकरणों को इस तरह प्रयोग में लाना चाहिये जिससे कम से कम ध्वनि उत्पन्न हो।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रदूषण को कम करने का एकमात्र उपाय सामाजिक जागरूकता है। प्रचार माध्यमों के द्वारा इस संबंध के द्वारा इस संबंध में लोगों तक संदेश पहुँचाने की आवश्यकता है। सामुहिक प्रयास से ही प्रदूषण की विश्वव्यापी समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *