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जन्माष्टमी पर मुंबई की दही हांडी (Dahi Handi in Mumbai)

    सुबह से ही दही हांडी की धूम है मुंबई में, क्योंकि आज जन्माष्टमी त्यौहार है। आप सबको जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनाएँ। हम कहीं दूर दही हांडी देखने तो नहीं गये परंतु घर के पास ही एक आयोजन था जिसको देखने जरुर गये और हाथों हाथ वीडियो भी बना लाये, आप सबको दिखाने के लिये। देखिये –

    ऊपर के वीडियो में दो अलग अलग समूह हांडी फ़ोड़ते हुए और नीचे वाले वीडियो में हांडी फ़ोड़ने के बाद गोविंदाओं की मस्ती…

२ सेव और ३ सेव कितना होता है ५ सेव, और दूसरा अध्यापक उनको शिक्षा देता है ४ केला और १ केला ५ केला होता है, अभी दोनों गणित सिखा रहे हैं, दोनों में कोई अंतर है,

२ सेव और ३ सेव कितना होता है ५ सेव, और दूसरा अध्यापक उनको शिक्षा देता है ४ केला और १ केला ५ केला होता है, अभी दोनों गणित सिखा रहे हैं, दोनों में कोई अंतर है, तो एक कहेगा नहीं कोई अंतर नहीं है, दोनों बराबर सिखा रहे हैं, दूसरा कहेगा नहीं बहुत बड़ा अंतर है ये तो सेव है, और ये तो केला है। तो केला और सेव को लेकर झगड़ा शुरु !!! और मूल सिद्धांत जो गणित सीखना है वो रह गया । तो उसी प्रकार भक्ति में भी कई बार मूल सिद्धांत को छोड़कर किस प्रकार से उस गणित को समझाना है इस मसले को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाता है। तो इसीलिये सर्वप्रथम दृष्टि यह है कि दूसरों में दोष देखना ।


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जॉगर्स पार्क में सैर वाले सड़क पर आ गये और दयाल प्रभू का लेक्चर “Developing The Culture Of Blessings”

    हम सुबह की सैर करने वाले जो कि बगीचे में जाते थे, और बगीचे का नाम है जागर्स पार्क। रोज सुबह सुबह प्राकृतिक आनंद लेते हुए सैर किया करते थे पर अब बगीचा १० दिनों के लिये साज-सँभाल के लिये बंद है, अभी हाल ही में बगीचे में आजीबाबा पार्क बनाया गया है, मतलब केवल वृद्ध लोगों के लिये जिसमें बहुत ही अच्छा रंग वगैरह किया गया है, अब यहाँ मुंबई में पास में कोई बीच तो है नहीं कि सुबह या शाम की सैर में समुंदर किनारे बीच पर जाकर मटक आयें। वैसे यहाँ बीच जो हैं पास में वो हैं अक्सा बीच मलाड, गोराई बीच गोराई बोरिवली और जुहू बीच मुंबई।
    आज जब सुबह घूमने को निकले तो अपने स्पोर्ट शूज में मरीना बीच की रेत झाड़ी तो अनायास ही ऐसा लगा कि काश हम हमारे अतीत की रेत भी ऐसे ही झाड़ कर निकाल पाते और फ़िर से वापिस कुछ नया सा शुरु कर पाते पर वास्तविकता में ऐसा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
    आज सुबह जब हम घूमने निकले तो सब हमें घूर घूर कर देख रहे थे हमारे हेयर स्टाईल के कारण, हम फ़िर से गंजी करवा लिये हैं, और सोच रहे हैं कि यही हेयर स्टाईल रखी जाये। और साथ में सुन रहे थे दयाल प्रभू का लेक्चर “Developing The Culture Of Blessings” हालांकि पूरा नहीं हो पाया, पर जो ज्ञान मिला वह है – “श्रीमद्भागवद गीता को केवल वही समझ सकता है जिसने अपने आप को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया हो, जिसने खुद को सर्वाकर्षक कृष्ण को अर्पित नहीं किया वह गीता के ज्ञान से वंचित है।” भगवान श्रीकृष्ण को कैसे अर्पित किया जाये वह भी बताया है, श्रवण, कीर्तन, अर्पण, आत्मनिवेदन। पहली तीन श्रवण, कीर्तन, अर्पण तो सबके लिये संभव है पर आत्मनिवेदन मतलब खुद को और खुद की सारी वस्तुओं को सर्वाकर्षक कृष्ण को समर्पित कर देना बहुत ही कठिन है इस भौतिकवादी युग में, अगर जिसने यह भी कर दिया तो वह गीता का ज्ञान निश्चय ही प्राप्त कर सकता है।
    फ़िर सड़क पर सैर पूरी करने के बाद मन में यही विचार आया कि देखो सब बगीचे में घूमने वाले सड़क पर आ गये। सुबह हम यहाँ पहली बार सड़क पर घूमने निकले थे तो बहुत सारी नयी चीजें देखने को मिलीं। जैसे एक दो अखबार वाले नहीं थे बल्कि लगभग हर दूसरी बंद दुकान के ओटले पर अखबार वाले बैठे थे और अखबारों को शायद बिल्डिंग के हिसाब से जमा रहे थे। पाव वाले अपनी साईकलों पर पाव की डिलेवरी दे रहे थे, स्कूल जाते बच्चे कौतुहल से अचानक आई सुबह के सैर करनेवालों की भीड़ को देखकर आश्चर्यचकित थे। तब हमें लगा कि केवल सुबह की सैर करने वाले ही नहीं जल्दी उठते हैं बल्कि स्कूल जाने वाले और कुछ लोग जिन्हें जल्दी अपने कार्यालय जाना होता है वे भी उठते हैं। सैर पूरी करने के बाद जल्दी ही घर आ गये क्योंकि सड़कों पर स्कूल बसों का और वाहनों का ट्राफ़िक बढ़ने लगा था।
    घर पर आकर अपना मेल देखा तो डॉ मनोज मिश्र जी का एक ईमेल मुस्कराता हुआ हमारा इंतजार कर रहा था, फ़िर आदरणीय मिश्रजी का फ़ोन आया और कुछ बातें भी हुई, धन्य हुए इस ब्लॉगरी से हम जिससे हम एक अलग ही विचारों की दुनिया के लोगों से रुबरु हुए हैं।

मेरा नया हिन्दी ब्लॉग “भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित”

आज मैंने नया ब्लॉग बनाया है कृष्ण हिन्दी । जो कि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।

आज की पहली पोस्ट देखिये –

“पूतना वध” भागवतम – दशम स्कन्ध, भाग छ: