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इक्विटी मार्केट चार्ट में Golden Cross

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Golden Cross तकनीकी चार्ट पैटर्न कहलाता है। जो शेयर बाजार में बड़ी तेजी की संभावना का संकेत देता है। यह तब होता है जब एक शॉर्ट टर्म मूविंग एवरेज (जैसे 50-Days moving average) जब एक लाँग टर्म मूविंग एवरेज को cross करती है (जैसे 200- Days moving average) से ऊपर हो जाती है। यह संकेत देता है कि वह शेयर या बाजार इंडेक्स का movement bearish से bullish की ओर shift हो रहा है, और आगे यही trend मतलब कि upward direction ही रहने की संभावना है।

गोल्डन क्रॉस को long term bull market के लिये बाजार का एक विश्वसनीय indicator माना जाता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि buyers की strength sellers की तुलना में अधिक है। मूविंग एवरेज सपोर्ट लेवल्स के जैसा काम करती है, जिसका अर्थ है कि वे कीमत को उनके नीचे गिरने से रोकते हैं। मूविंग एवरेज की अवधि जितनी लंबी होगी, उसके सपोर्ट का स्तर उतना ही मजबूत होगा। इसलिए, जब 50- Days Moving Average, 200- Days Moving Average को cross करता है, तो इसका मतलब है कि price ने एक मजबूत resistance को तोड़ दिया है, और एक नया uptredn बन गया है।

गोल्डन क्रॉस को किसी भी स्टॉक, इंडेक्स पर लगा कर देखा जा सकता है, और इसको अलग अलग timeframes में देखा जा सकता है, पैसे कि daily, weekly या monthly चार्ट पर। हालाँकि, सबसे ज़्यादा और अधिकतर सभी लोगों द्वारा देखे जाने वाला गोल्डन क्रॉस 50-day और 200-day moving averages है जो कि daily chart पर देखा जाता है।वह इसलिए कि ये दोनों moving averages मीडियम और लांग टर्म ट्रेंड को दिखाते हैं, और इसे कई ट्रेडर्स और निवेशक उपयोग करते हैं।

गोल्डन क्रॉस का एक उदाहरण चार्ट में दिखाया गया है, जो मई 2023 से सितंबर 2023 तक निफ़्टी 50 इंडेक्स को दिखा रहा है। लाल रेखा 50- day moving average को दिखा रही है और नीली रेखा 200- day moving averages है। गोल्डन क्रॉस मई 2023 में हुआ, जब लाल रेखा नीली रेखा से ऊपर चली गई। इसने अप्रैल 2023 में शुरू हुई downtrend की समाप्ति और सितंबर 2023 तक चलने वाले एक नए uptrend की शुरुआत को दिखाया गया है। Crossover के point से सितंबर 2023 में टॉप तक index लगभग 15% बढ़ गई।

हालाँकि, गोल्डन क्रॉस को पूरी तरह से perfect indicator भी नहीं कहा जा सकता है। इसकी कुछ कमियाँ और limitations हैं, जो कि निवेशकों को पता होना चाहिए।

उनमें से कुछ हैं: –

– गोल्डन क्रॉस बहुत धीमा indicator है, मतलब कि क्रॉसओवर के पहले ही trend बदल चुका है पर चार्ट पर बाद में दिखता है। जब तक निवेशक लेने जाता है तब तक कीमत पहले ही काफी बढ़ चुकी होती है और कुछ possible profit नहीं मिलता।

– गोल्डन क्रॉस गलत सिग्नल भी दे सकता है, जिसका अर्थ है कि यह ट्रेंड change का signal दे देगा परंतु दरअसल ऐसा होता नहीं है। और कई बार moving average के पास price पर ज़बरदस्त pressure होता है, जिससे price बार-बार cross और uncross होता रहता है। इससे भ्रम की स्थिति हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन ट्रेडर्स का भारी नुक़सान उठाना पड़ता है, जो crossover को आँखें बंदकर follow करते हैं।

– गोल्डन क्रॉस इस बारे में कोई जानकारी नहीं देता है कि नया trend कितने समय तक चलेगा या कितनी दूर तक चलेगा। यह केवल यह बताता है कि trend बदलाव। इसलिए, ट्रेडर्स और निवेशकों को गोल्डन क्रॉस के संकेतों को confirm करने के लिए अन्य indicators और टूल्स का भी उपयोग करना चाहिये।जैसे ट्रेंड लाइन, support & resistance levels, वॉल्यूम एनालिसिस और जोखिम प्रबंधन तकनीकों (Risk Management Techniques) का उपयोग करना चाहिए।

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The Taj Mahal: A Monument of Love

Shah Jahan was the fifth Mughal emperor of India, who ruled from 1628 to 1658. He was a great patron of art and architecture, and he built many beautiful buildings and gardens in his empire. But his most famous and beloved creation was the Taj Mahal, a white marble mausoleum that he built in memory of his wife Mumtaz Mahal.

Mumtaz Mahal was Shah Jahan’s second wife, whom he married in 1612. She was his constant companion and confidante, and he called her “the chosen one of the palace”. She bore him 14 children, but died in 1631 while giving birth to their last child, Gauhara Begum. Shah Jahan was heartbroken by her death, and decided to build a magnificent tomb for her as a symbol of his eternal love.

He commissioned the best architects, craftsmen, and artists from India, Persia, the Ottoman Empire, and Europe to design and construct the Taj Mahal. The project started in 1632 and took about 22 years to complete. The mausoleum is located on the right bank of the Yamuna river in Agra, Uttar Pradesh. It is surrounded by a complex of buildings and gardens, which include a mosque, a guest house, a main gateway, and a crenellated wall.

The Taj Mahal is considered to be the finest example of Mughal architecture, which is a blend of Indian, Persian, and Islamic styles. The mausoleum is made of white marble that reflects different colours depending on the time of the day and the season. It is decorated with intricate carvings, calligraphy, floral patterns, precious stones, and geometric designs. The dome of the mausoleum is 73 meters high, and is flanked by four minarets that are 40 meters high each. The interior of the mausoleum contains the cenotaphs of Mumtaz Mahal and Shah Jahan, which are enclosed by an octagonal marble screen. The actual graves are located in a lower chamber.

The Taj Mahal is not only a masterpiece of art and engineering, but also a testament of love and devotion. It is one of the most iconic monuments in the world, and attracts millions of visitors every year. It was declared a UNESCO World Heritage Site in 1983, and was voted as one of the New Seven Wonders of the World in 2007. The Taj Mahal is also known as “the jewel of Muslim art in India” and “the illumined or illustrious tomb

कालू कुत्ते, लंगूर और महिलायें

आज सुबह घूमने निकले तो सबसे पहले अपना ब्लूटूथ कनकव्वा लगाया और ऑडिबल्स पर किताब Do epic shit सुनना शुरू की। अच्छी किताब है, दिमाग के जाले मिटाने के लिये इस तरह की मैनेजमेंट व पर्सनल स्किल वाली किताबें पढ़ना चाहिये, वैसे हमने जिस दिन यह किताब पढ़ना शुरू की थी, उसी दिन बेटेलाल को इन किताबें की हार्डकॉपी ऑर्डर कर दी थी।

सूरज भाई निकल ही रहे थे, गली के 2 कुत्ते दोनों ही कालू हैं, एक के दोनों कान खड़े रहते हैं, दूसरे वाले के एक कान में समस्या है, तो 45 डिग्री पर उसका एक कान मुड़ा रहता है। वो अक्सर किसी ने किसी कार की छत पर बैठा दिखता है। जब हम यहाँ आये थे, तब इन दोनों कालुओं ने हम पर खूब भौंका, पर अब शायद पहचान गये हैं कि ये लोग भी अपने ही भाई बंद लोग हैं। पर अब भी मूड होने पर भौंकते जरूर हैं।

हमारे घूमने वाले रास्ते में कम से कम 15-20 गली के कुत्ते हैं ही और सबके सब जबरस्त भौंकते हैं, पर अभी रोज ही हम घूमने जा रहे हैं तो वे सब भी पहचान गये हैं, तो अब कोई दौड़ाने वाला जैसा कोई दिखता नहीं।

इस रूट पर घूमते हुए काफी दिन हो गये, पर आज जीरो प्वाइंट ब्रिज शुरू होने पर ही सीधे हाथ पर ही एक मजार दिखी, जिस पर एक भाई सुबह सुबह सजदा कर रहे थे, वहीं पास की एक गुमटी में चाय गुटखा बेचने वाले शख्श ने सड़क पर सामने भैरू के मंदिर को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और आँखें बंदकर कुछ बुदबुदाया और फिर दोनों कानों को हल्के से पकड़ा और फिर ईसा मसीह के सजदा वाली स्टाइल में माथे को छुआ और फिर दिल की जगह छुआ। इतनी सी देर में इतना सब कुछ देखकर इतना तो विश्वास हो गया कि कोई हमें कितना भी तोड़ने की कोशिश करे, पर आम आदमी अपनी आदतें नहीं छोड़ेगा।

तीन महिलाओं ने हमारे आगे चलने की ठानी थी और ब्रिज पर वे आगे चल रही थीं जब पास पहुंचे तो हमने कहा जरा जगह मिलेगी, पर वे तीनों अपनी बातें में इतनी मशगूल थीं कि शायद हमें सुना नहीं, पर जब एक महिला ने हमें देखा तो आगे जगह घेरकर चल रही महिला को कहा ‘अरे दरी जरा जगो दे दे’, तो उस महिला ने ‘हो’ कहा और साइड हो गईं, हम आगे निकल गये। आगे निकलते ही रेल की पटरी दिखने लगे गईं। जहाँ ब्रिज के नीचे रेल्वे लाईन शुरू होती हैं, तो दोनों और 6 फिट की जाली ब्रिज पर लगा दी गई हैं, बस उसी समय हमने देखा काले मुँह के बंदर जिन्हें लंगूर कहते हैं, अपने पूरे कुनबे के साथ लंगूर घूम रहे थे, थोड़ा डर भी लगा पर वे शायद जंगल के लंगूर थे, उनको हमसे कोई मतलब नहीं था, और वो हम शहरवालों को बिना छेड़े अपने रास्ते पर निकल गये।

ब्रिज के खत्म होते ही ठेलेवाले भिया खड़े थे, जहाँ पोहे जलेबी का कालजयी मालवी नाश्ता मिल रहा था, आज कचोरी, समोसे और आलूबड़ा मिसिंग थे। 5-6 लोग नाश्ता कर रहे थे, सब अपनी मस्ती में मस्त थे। ब्रिज पर आते हुए देखा था कि साबरमती एक्सप्रेस उज्जैन आ रही है, लौटते समय देखा कि साबरमती एक्सप्रेस वापिस चल दी है, पहले भी हमने देखा था कई बार आते जाते दोनों समय साबरमती एक्सप्रेस आउटर पर ही खड़ी दिखी थी। आते आते देखा कई लोग जो रोज ही उस समय आते जाते हैं वे अपनी सोमवार की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं।

हम लौटते हुए देख रहे थे कि सूरज भाई अब आसमान में 40 डिग्री पर आ चुके थे और स्कूल की बसें भी आकर किसी न किसी बच्चे का इंतजार कर रही थीं।

पापाजी मम्मीजी के साथ महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

जब से उज्जैन आये हैं हम तो कई बार महाकालेश्वर के दर्शन कर चुके हैं, और लगभग रोज ही शिखर दर्शन कर रहे हैं। पापाजी मम्मीजी की भी इच्छा थी कि वे भी महाकालेश्वर के दर्शन करें, परंतु ज्यादा चलना उनके बस का नहीं था। तब हमने महाकालेश्वर में पूछा तो पता चला कि व्हील चेयर मिल जाती है। यह भी देखा कि कार कैसे महाकालेश्वर मंदिर के पास तक जा पाये, जिससे उनको ज्यादा न चलना पड़े।

कार का रास्ता – गोपाल मंदिर से महाकाल घाटी की और जाते हुए, दायीं तरफ चौबिसखम्बा माता का मंदिर के रास्ते में मुड़ें, और फिर बायीं तरफ वाला रास्ता जो कि घाटी जैसा है, उस पर जायें, बस उसके बाद रास्ते पर चलते रहें, आप महाराजबाड़ा स्कूल पहुँच जायेंगे, जगह देखकर कर पार्किंग में लगा दें। अपना मोबाईल और चप्पल जूते कार में ही छोड़ दें।

महाकालेश्वर मंदिर में ₹250 का टिकट वाली विंडो पर जब हम पहुँचे तो उनसे कहा कि 3 टिकट चाहिये और 2 व्हील चेयर चाहिये, तो उन्होंने कहा कि आप गेट नम्बर 5 पर चले जाइये, अटेंडेंट साथ में जा सकते हैं। व्हील चेयर व उनके अटेंडेंट के लिये दर्शन फ्री हैं, कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है। हम गेट नम्बर 5 पर गये और हमें अंदर बैठने के लिये कह दिया गया। इस समय सुबह के 6.10 हो रहे थे। 5 मिनिट बाद ही 2 लोग आये और उन्होंने पापाजी मम्मीजी को व्हील चेयर पर बैठाया व दर्शन हेतु महाकालेश्वर मंदिर में चल दिये।

सुबह ₹1500 वाली लाइन भी लंबी थी, जिसमें महिलाओं को साड़ी व पुरुषों को धोती व बनियान पहनना होता है। हमें सीधे नंदी हाल के पीछे लगी रेलिंग के पास ले गये, वहाँ से पैदल जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किये, और वापिस उसी रास्ते मंदिर के बाहर आ गए। दर्शन करने में लगा समय लगभग 15 से 20 मिनिट रहा। हम घर से सुबह 6 बजे निकले थे व वापिस 6.45 पर घर पर आ गये थे।

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आज की सुबह की सैर

घर से निकलने में ही आज 7.40 हो गये, फिर भी हमने सोचा देर से ही सही पर घूम तो आते ही हैं वरना दिन भर फिर समय ही नहीं मिलेगा। सुबह मौसम ठंडा रहता है पर फिर भी हम हाफ टीशर्ट में घूमने निकल पड़ते हैं और दुनिया अपने बच्चों को छोड़ने स्कूल जा रही होती है वे सब जरकिन पहने हुए होते हैं। घर से निकलते ही थोड़ी दूर के बाद नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर पड़ता है जोकि जैन मंदिर है। और जैन धर्मावलंबी सुबह 6:00 बजे से ही अपना शोला पहनकर दर्शन के लिए जाते हैं। आज जब तक हम पहुंचे तब तक सब दर्शन करके जा चुके थे।

फिर जैसे ही हम पिछले सिंहस्थ पर बने हैं नई सड़क पर घूमने निकले तो सामने ही सूरज भाई ने पूरे 60 डिग्री पर हमें दर्शन दिए, झट से हमने फोटो खींच लिया और फेसबुक पर डाल दिया। पहले कभी यहां पर हीरा मिल हुआ करती थी, जहां पर मजदूरों की साइकिलें लाइन से खड़ी होती थी और हीरा मिल का गेट हुआ करता था। जहां पर कपड़ा बना करता था, आज वहां रोड बनी हुई है तो कोई कितना भी घमंड कर ले, एक ना एक दिन उसका समाप्ति का दिन आ ही जाता है, इसलिए घमंड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इसी सड़क पर आगे बढ़ते हुए जो उज्जैन की नई इनर रिंग रोड बनाई गई है, वह आ जाती है। उसके पहले सीधे हाथ पर हीरामल की चाल है, जो पहले भी थी और अभी भी है, उनकी बरसों से यही मांग है कि यह घर उनके नाम कर दिया जाए पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। वहीं पर ही सीधे हाथ पर 2-3 मंदिर बना दिए गए हैं उल्टे हाथ पर एक महावीर हनुमान जी का मंदिर है, थोड़ा सा आगे चौराहे पर जाने पर महादेव का मंदिर बना हुआ है, उसी के पास एक तालाब है, जिसमें गणपति विसर्जन होता है।

यहीं से दाई और मुड़ने पर फ्रीगंज जाने के लिए पुल आ जाता है, जो कि पिछले सिंहस्थ में बनाया गया था और पुल में ऐसा लगता है कि आधा ही पैसा लगाया गया। क्योंकि पुल बहुत ही संकरा है, पुल पर चलते रहने पर पुल की दीवाल पर स्वच्छ मध्य प्रदेश और स्वच्छ उज्जैन के नारे लिखे हुए देखे जा सकते हैं, परंतु उसी नारे के नीचे जमी धूल उन नारों का मखौल उड़ाती हुई देखी जा सकती है।

थोड़ा आगे जाने पर रेलवे लाइन का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है जिसमें आज एक मालगाड़ी आते-आते रोक दी गई इसे आउटर कहा जाता है और बहुत ही लंबी मालगाड़ी थी जिसका दूसरा चोर दिखाई नहीं दे रहा था, वहीं आसपास बस्ती में एक बड़ा सा कुआं है जिसमें से एक व्यक्ति कुए से बाल्टी से पानी निकाल रहा था और एक व्यक्ति ही खड़ा होकर मछलियों के लिए कुछ खाने की चीजें भेज रहा था। इंसान में भी कितना मतभेद होता है, परंतु फिर भी कोई लड़ाई नहीं कोई झगड़ा नहीं कोई हाइजीन नहीं, सब अपने तरीके से जी ही रहे हैं। हालांकि उसका कोई छायाचित्र नहीं लिया। पर आप लिखे हुए ऐसे दृश्य को अपनी आंखों में उकेर सकते हैं।

इस पुल के बन जाने से फ्रीगंज का रास्ता अच्छा हो गया है और दूरी कम हो गई है। जब ब्रिज खत्म होने आ जाता है, तो उल्टे हाथ पर दो-तीन बड़े बड़े अस्पताल खुले हुए हैं, और उनके पहले दारु की दुकान है और फर्स्ट फ्लोर पर बढ़िया बैठ कर पीने की जगह भी है वह ब्रिज से ही दिखाई देता है। वहीं पर एक ही होती अपने कुत्ते को लेकर घूम रही थी और स्वच्छ उज्जैन की ऐसी तैसी कर रही थी। पुल खत्म हुआ और वापस जाने के लिए फुल क्रॉस करके दूसरी तरफ आ गए। वहीं पर एक ठेले पर सुबह सुबह नाश्ते की खुशबू आ जाती है वह पोहे जलेबी पकोड़े और चाय बनाता है। थोड़ा आगे आने पर उज्जैन रेलवे स्टेशन की तरफ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

पुल उतरते ही राजनेताओं के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे, कोई लोकल नेता कांग्रेस कमेटी का मेंबर चुन लिया गया था। तो दुनिया भर के छुटभैया नेता और बड़े नेताओं के फोटो लगे हुए थे, पर सबसे बड़ा फोटो उन्हीं का था जिनको यह सदस्यता हासिल हुई थी। और इस तरह थोड़ी देर में ही हमारी यह सैर खत्म हो गई।

अपने अपने खतरे और iskcon मंदिर

स्वास्थ्य ठीक रखना हम सबका अपने शरीर के प्रति सबसे प्रथम कर्तव्य है, परंतु हम इसमें बहुत लापरवाही बरतते हैं। हम हमेशा ज्ञान तो बहुत देते हैं, लेकिन पिछले 3 सालों से लगातार लापरवाही चल रही है। जिसके चलते वजन ज्यादा बढ़ गया है और बीपी भी अभी कंट्रोल में नहीं है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं हार्ट अटैक के बाद हॉस्पिटल में आईसीयू में भर्ती हूँ, और सारे परिवार जन मुझे लेकर चिंतित हैं। उसी समय मेरी निद्रा टूट जाती है और फिर से मैं संकल्प ले लेता हूं कि अब तो ठीक हो कर ही रहूँगा।

अपने ना रह पाने की स्थिति में अपने परिवार जनों के चेहरे देख पाना बहुत मुश्किल लगता है, परंतु जीवन इसी का नाम है यह चलता ही रहता है। वैसे तो अपने आप को वित्तीय क्षेत्र में थोड़ा बहुत समझदार मानते हैं परंतु फिर भी कई बार ऐसा लगता है कि बहुत सारी चीजों से अनजान हैं, पर सब कुछ जान लेना भी संभव नहीं है। इसलिए जितना हो सके इतना तो जान ही लेते हैं और परिवारजनों को भी उसकी जानकारी दे देते हैं। सभी को अपने ऐसेट ओर लायबिलिटी की जानकारी अपने परिवार जनों से शेयर करनी चाहिए, जिससे आकस्मिक परिस्थिति में उनको सहायता हो सके और वह आगे का जीवन ठीक से गुजार सकें

पिछले 3 दिनों से घूमना बंद था काम का लोड ज्यादा था, पर आज फिर यह विचार आते ही वापस से सुबह 3 किलोमीटर घूम आए साथ ही तीन बार एनिमा भी ले लिया। जिससे तत्काल ही बीपी कंट्रोल में आ गया है। अब अपना वजन कम करना है, जिससे कि बीपी कंट्रोल में रहे और वजन कम हो सके। सुबह घूमने के अनुभव पर एक अलग ब्लॉग लिखने का मन है इसलिए यहां पर नहीं लिख रहा हूँ।

एनिमा लेना सुबह और शाम जारी रखेंगे, जिससे एकदम से बीपी में आराम मिलेगा, साथ ही मुँह पर भी टेप चिपकाकर कंट्रोल करेंगे। पर आज भी हो नहीं पाया, सुबह iskcon मंदिर गये थे और दर्शन करने के बाद निकलते समय उनकी केंटीन में गरमा गरम समोसे आये थे, तो अपने आपको कैसे रोकते, और खा लिये। गरम गरम समोसे खाते हुए ग्लानि भी हो रही थी, पर स्वाद बढ़िया था।

सुबह घूमना क्यों चाहिये?

सुबह घूमना क्यों चाहिये?

सुबह घूमने के कई फायदे होते हैं जो हमारी तनाव से मुक्ति दिलाते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ मुख्य फायदे:

  1. सुबह की सैर से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है और एनर्जी लेवल बढ़ता है।
  2. सुबह की सैर तनाव को कम करती है और मन को शांति देती है।
  3. सुबह की सैर शरीर के अक्सर इस्तेमाल होने वाले जोड़ों को स्ट्रेच करती है जिससे जोड़ों के दर्द का निवारण होता है।
  4. सुबह की सैर दिन की शुरुआत में मानसिक तनाव से राहत दिलाती है जिससे दिनभर की दुविधाओं का सामना आसान होता है।
  5. सुबह की सैर से सुबह की शुरुआत में धूप और ताजगी मिलती है जो शरीर को फायदेमंद होता है।
  6. सुबह की सैर नए जगहों का दौरा करने का मौका देती है जिससे व्यक्ति को नए दृश्य देखने का मौका मिलता है।

इसलिए, सुबह घूमना आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।

करवा चौथ का उपवास

कल करवाचौथ का उपवास था, हमने भी घर के कामों में हाथ बँटाने के लिये ऑफिस से छुट्टी ले ली। सोचा कि घरवाली को थोड़ा आराम हो जायेगा, वैसे भी अब हम जमा दो लोग ही घर में हैं, इन्हें घर के काम में ज्यादा तकलीफ न हो, क्योंकि ऐसे ही उपवास और ऊपर से अगर रसोई में खाना बनाना भी पड़े तो वाकई भारी दिक्कत है। हमारे लिये उपवास करना बहुत बड़ी बाधा नहीं है, उपवास तो हम गाहे बगाहे करते ही रहते हैं। उपवास अधिकतर हमारे निर्जला ही होते हैं और अब बहुत समय हो चला, इसलिये हमें पता भी नहीं चलता। भारी दिक्कत है रसोई में काम करने की, अब हमारी लाईफस्टाईल के हिसाब से हमें रसोई में कम ही जाना पड़ता है। अगर खाना बनाना भी पड़ता है तो वह भी केवल शाम को, नहीं तो दिनभर ज्यूस, सलाद बस।

रसोई में हमने सहयोग किया कि सब्जी की ग्रेवी के लिये टमाटर पीस दिये, फिर चटनी के लिये समान की तैयारी कर ली और फिर पीस ली।आलू उबाल दिये। और आजकल आलू इतने मिट्टी वाले आ रहे हैं कि उबालने के पहले धोने में दम ही निकल जाता है। हम स्टील के झाबे से बहते पानी में आलुओं को रगड़ देते हैं, जिससे आलू की मिट्टी तो एकदम निकल ही जाती है, और आलू भी अपनी सफेदाई को देखकर इतराने लगता है। हमें भी लगता है कि चलो कम से कम अपने हाथों किसी का तो कायाकल्प हो गया, भले वह आलू ही क्यों न हो।

घरवाली ने करवा चौथ की अपनी पूजा शाम को कर ली, फिर पूरी उतारने के लिये सहयोग के लिये कहा, हमने कहा चलो पूरी उतरवा देते हैं, पर जब तक कढ़ाई का तेल गरम हुआ, तब तक तो हम कुल जमा दो लोगों के लिये गिनती की पूरियाँ बिल चुकी थीं, और हमें कहा गया अब रहने दो, अब तो हम खुद ही पूरी उतार लेंगे। खाना बन चुका था। पूरा घर महक रहा था। अब हम दोनों चुपचाप टीवी पर एक सिरीज लगाकर देख रहे थे। जब देखा कि 9 बज गये हैं, अब बाहर जाकर चंद्रमा देखा जाये, दो दिनों से 9 बजे चंद्रमा बड़ा इतराकर सामने दिख रहा था, हमने भी दो दिनों से चंद्र महाराज को कम्यूनिकेट किया था, देखना महाराज जिस दिन आपकी जरूरत होगी उसी दिन तुम नाटक करोगे और दिखने से परहेज करोगे। वही हुआ, 9 बजना था, और इंद्र महाराज अपने बादलों के रथ पर सवार होकर धड़ाधड़ बरसने लगे, हमने घरवाली से कहा कि अब तुम मान लो कि चंद्र महाराज तो उग ही चुके हैं, बस ये इंद्र महाराज अपने बादलों के साथ आकर परेशान कर रहे हैं।

जब किन्हीं दो लोगों का काम हो, और बीच में कोई आ जाये जिसका हमेशा ही अनुमान रहता है, तो गड़बड़ होना तय ही होता है। यह जीवन का नियम है और बस वैसे ही यह प्रकृति का भी नियम है। इंद्र महाराज तो अपनी टैरीटरी में जम लिये और यहाँ धरती पर हम लोग व आकाश में चंद्रमा के बीच अपने बादलों की दीवार खड़ी कर दिये। इसलिये इन परिस्थितियों में ट्रिगनोमेट्री के चूँकि इसलिये वाले नियम को याद रखते हुए मान लिया कि चंद्र दर्शन हो लिये हैं।

अपने आपस के ही कुछ फोटो लिये और फिर खाना खाने की तैयारी शुरू की, साथ में खाना खाया, थोड़ी देर जगे, और फिर निंद्रालीन होने अपनी शयनगाह में चल दिये।

जीवन की भागदौड़

सुबह अलसाई थी, आँख खुलने के पहले ही अहसास था और बारिश की आवाज आ रही थी। बारिश की आवाज से ओर आलस आ गया, फ्रेश होने के बाद घूमने जाना मुश्किल था। पर पेट कभी मन की नहीं सुनता, न खाली होने पर और न ही खाली होने के लिये, दोनों ही स्थिति में पेट को प्रायोरिटी चाहिए। पेट ही हमारे जीवन का केंद्रबिंदु है। पेट कम हो तो कम क्यों है, ज्यादा हो तो कम कैसे करें। सारी बीमारियों की जड़ भी पेट ही है, खाना खाता मुँह है, पर सजा पेट को भुगतना पड़ती है। बेचारा पेट सुबह कराह रहा होता है, पर मुँह है कि मानता ही नहीं।

मानसिक तंद्रा भंग होने के बाद, जब ध्यान में बैठे, तो आजकल ज्यादा देर बैठते भी नहीं बन रहा। मन और विचार कम से कम 2 या 3 गुना तेजी से चल रहे हैं जैसे प्लेयर पर बटन होता है ff1, ff2, या 1.5x, 2x etc बस मन और दिमाग भागे ही जा रहा है, जो रफ्तार जीवन ने पकड़ी है, उस रफ्तार पर ध्यान नहीं होता। ध्यान करने के लिये सहज होना होता है, और सहज स्थिति प्राप्त तभी होगी जब हम प्राकृति के तय समयानुसार अपने जीवनचक्र पर चलें।

एक साथ कई काम करना भी एक मजबूरी ही है, दिमाग अभी 3 अलग अलग तरह से बंटकर काम कर रहा था, तभी फोन बजा और एक चौथा स्थान उसने बना लिया। सभी को अपने कार्य प्रायोरिटी पर चाहिये। ऐसे ही कल जब प्रेशर में कुछ डॉक्यूमेंट रिव्यू के लिये आये तो तुनककर इतने अच्छे से रिव्यू किये कि अब वापिस रिव्यू के लिये शायद ही मुझे डॉक्यूमेंट भेजेंगे। काम तो सभी को परफेक्ट चाहिये, पर दूसरे से, अगर कोई दूसरा उसमें ढ़ेर गलती निकाल दे तो मुँह छोटा कर लेते हैं।

खैर जब एक कड़वी कॉफी पी, तभी जाकर थोड़ा दिमाग रिसेट हुआ है, अब लंच के बाद आज की आगे की लड़ाई, वो अलग बात है कि हम लंच नहीं करते।

जब रावण ने अपने परिवार को श्रीराम पर विश्वास करने को कहा

रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब लक्ष्मण के द्वारा मेघनाथ का वध हो जाता है, को मेघनाथ की दक्षिण भुजा सती सुलोचना के समीप गिर जाती है और पतिव्रता का आदेश पाकर वह भुजा सारा वृतांत लिख कर बता देती है।

तब सुलोचना निश्चय करती है कि मुझे भी अब सती हो जाना चाहिए। किंतु पति का शव दो रामदल में पड़ा हुआ था फिर भी कैसे सती होती? तब उसने अपने श्वसुर रावण से कहा कि आप मेरे पति का शव मांग लो।

तब रावण ने उत्तर दिया देवी सुलोचना जिस समाज में बाल ब्रह्मचारी श्री हनुमान परम जितेंद्रिय श्री लक्ष्मण तथा एक पत्नीव्रती भगवान श्री राम वर्तमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है की इन महापुरुषों के द्वारा तुम निराश भी नहीं लौटाई जाओगी।

जब रावण सुलोचना से यह बातें कर रहा था उस समय उसके कुछ मंत्री भी उसके पास बैठे हुए थे। उन्होंने कहा जिनकी पत्नी को आप ने बंदी बनाकर अशोक वाटिका में रखा हुआ है, उसके पास आपकी बहू का जाना कहां तक उचित है, यदि वह गई तो क्या सुरक्षित वापस लौट सकेगी?

रावण ने अपने मंत्रियों को कहा लगता है तुम सब की बुद्धि नष्ट हो गई है, अरे यह तो रावण का काम है जो दूसरे की स्त्री को अपने घर में बंदी बनाकर रख सकता है राम का नहीं।

धन्य है श्री राम का चरित्र बल जिसका विश्वास शत्रु भी करता है और प्रशंसा करते थक गए नहीं हमें राम के इस उदात्त चरित्र से अवश्य प्रेरणा लेनी चाहिए।