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आज की सुबह की सैर

घर से निकलने में ही आज 7.40 हो गये, फिर भी हमने सोचा देर से ही सही पर घूम तो आते ही हैं वरना दिन भर फिर समय ही नहीं मिलेगा। सुबह मौसम ठंडा रहता है पर फिर भी हम हाफ टीशर्ट में घूमने निकल पड़ते हैं और दुनिया अपने बच्चों को छोड़ने स्कूल जा रही होती है वे सब जरकिन पहने हुए होते हैं। घर से निकलते ही थोड़ी दूर के बाद नागेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर पड़ता है जोकि जैन मंदिर है। और जैन धर्मावलंबी सुबह 6:00 बजे से ही अपना शोला पहनकर दर्शन के लिए जाते हैं। आज जब तक हम पहुंचे तब तक सब दर्शन करके जा चुके थे।

फिर जैसे ही हम पिछले सिंहस्थ पर बने हैं नई सड़क पर घूमने निकले तो सामने ही सूरज भाई ने पूरे 60 डिग्री पर हमें दर्शन दिए, झट से हमने फोटो खींच लिया और फेसबुक पर डाल दिया। पहले कभी यहां पर हीरा मिल हुआ करती थी, जहां पर मजदूरों की साइकिलें लाइन से खड़ी होती थी और हीरा मिल का गेट हुआ करता था। जहां पर कपड़ा बना करता था, आज वहां रोड बनी हुई है तो कोई कितना भी घमंड कर ले, एक ना एक दिन उसका समाप्ति का दिन आ ही जाता है, इसलिए घमंड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

इसी सड़क पर आगे बढ़ते हुए जो उज्जैन की नई इनर रिंग रोड बनाई गई है, वह आ जाती है। उसके पहले सीधे हाथ पर हीरामल की चाल है, जो पहले भी थी और अभी भी है, उनकी बरसों से यही मांग है कि यह घर उनके नाम कर दिया जाए पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। वहीं पर ही सीधे हाथ पर 2-3 मंदिर बना दिए गए हैं उल्टे हाथ पर एक महावीर हनुमान जी का मंदिर है, थोड़ा सा आगे चौराहे पर जाने पर महादेव का मंदिर बना हुआ है, उसी के पास एक तालाब है, जिसमें गणपति विसर्जन होता है।

यहीं से दाई और मुड़ने पर फ्रीगंज जाने के लिए पुल आ जाता है, जो कि पिछले सिंहस्थ में बनाया गया था और पुल में ऐसा लगता है कि आधा ही पैसा लगाया गया। क्योंकि पुल बहुत ही संकरा है, पुल पर चलते रहने पर पुल की दीवाल पर स्वच्छ मध्य प्रदेश और स्वच्छ उज्जैन के नारे लिखे हुए देखे जा सकते हैं, परंतु उसी नारे के नीचे जमी धूल उन नारों का मखौल उड़ाती हुई देखी जा सकती है।

थोड़ा आगे जाने पर रेलवे लाइन का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है जिसमें आज एक मालगाड़ी आते-आते रोक दी गई इसे आउटर कहा जाता है और बहुत ही लंबी मालगाड़ी थी जिसका दूसरा चोर दिखाई नहीं दे रहा था, वहीं आसपास बस्ती में एक बड़ा सा कुआं है जिसमें से एक व्यक्ति कुए से बाल्टी से पानी निकाल रहा था और एक व्यक्ति ही खड़ा होकर मछलियों के लिए कुछ खाने की चीजें भेज रहा था। इंसान में भी कितना मतभेद होता है, परंतु फिर भी कोई लड़ाई नहीं कोई झगड़ा नहीं कोई हाइजीन नहीं, सब अपने तरीके से जी ही रहे हैं। हालांकि उसका कोई छायाचित्र नहीं लिया। पर आप लिखे हुए ऐसे दृश्य को अपनी आंखों में उकेर सकते हैं।

इस पुल के बन जाने से फ्रीगंज का रास्ता अच्छा हो गया है और दूरी कम हो गई है। जब ब्रिज खत्म होने आ जाता है, तो उल्टे हाथ पर दो-तीन बड़े बड़े अस्पताल खुले हुए हैं, और उनके पहले दारु की दुकान है और फर्स्ट फ्लोर पर बढ़िया बैठ कर पीने की जगह भी है वह ब्रिज से ही दिखाई देता है। वहीं पर एक ही होती अपने कुत्ते को लेकर घूम रही थी और स्वच्छ उज्जैन की ऐसी तैसी कर रही थी। पुल खत्म हुआ और वापस जाने के लिए फुल क्रॉस करके दूसरी तरफ आ गए। वहीं पर एक ठेले पर सुबह सुबह नाश्ते की खुशबू आ जाती है वह पोहे जलेबी पकोड़े और चाय बनाता है। थोड़ा आगे आने पर उज्जैन रेलवे स्टेशन की तरफ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

पुल उतरते ही राजनेताओं के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे, कोई लोकल नेता कांग्रेस कमेटी का मेंबर चुन लिया गया था। तो दुनिया भर के छुटभैया नेता और बड़े नेताओं के फोटो लगे हुए थे, पर सबसे बड़ा फोटो उन्हीं का था जिनको यह सदस्यता हासिल हुई थी। और इस तरह थोड़ी देर में ही हमारी यह सैर खत्म हो गई।

निराशा, जीवन और भूल जाना

जीवन में निराशा कभी आ जाये तो जीवन थोड़ा ढीला और धीमा हो जाता है। निराश कदमी को लगता है कि वो ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो कुछ नहीं कर पाता, वरना तो दुनिया उसके आगे ही है। और वह व्यक्ति हमेशा भाग्य को कोसता रहता है। पर भला कोसने से कभी कुछ होता है, जो होना होगा वह तो होकर ही रहेगा। जीवन में सोच ही व्यक्ति के प्रारब्ध का निर्माण करती है। पर कभी सोचता हूँ कि कोई ज्योतिष गुरू मेरी इस विचारधारा को सुनकर कहीं न कहीं मुझे धिक्कार ही देगा। वे हमेशा कहेंगे कि फलाने ग्रह और फलाने योग में यह सब होता है। शायद उनकी बातें सत्य भी होती हों। पर जीवन की निराशा में मौसम का भी बहुत हद तक हाथ होता है और अगर शरीर में निराशा प्रकार के रसायनों का बोलबाला हो तो जीवन चलना जटिल हो जाता है।

कल जब मोबाईल पर स्क्रीन गार्ड लगवाने के लिये एक दुकान के सामने कार रोकी, तो देखा दुकान पर कोई नहीं था, तभी देखा एक बंदा दुकान की ओर दौड़ता आ रहा है जिसके हाथ में मोबाईल है औऱ कान में कनकव्वा लगा हुआ है। दुकान में घुसते ही उसने हमारा स्वागत किया और हमने अपने आने का कारण बताया। बंदे ने सबसे पहले रेडी रेकनर टाइप का पेज निकाला और मोबाईल का मॉडल देखकर उसके स्क्रीन गार्ड का डब्बा निकाला। फिर एक drawer में देखने लगा, इससे यह तो पता चल गया कि इन भाईसाहब को कुछ पता नहीं है। 2 – 4 मिनिट नाटक करने के बाद बोला कि स्टाफ को पता होगा कि कहाँ रखा है, आप बाद में आइयेगा।

केवल इसी चक्कर में अपन पिछले 15 वर्षों से रेस्टोरेंट नहीं खोल पाये। काम अपन वही करना चाहते हैं जो खुद कर पायें, जिस काम में डिपेंडेंसी हो वह काम करना बहुत मुश्किल होता है। अगर स्टाफ गायब हो जाए तो अपनी दुकान बंद, तो ऐसी दुकान खोलने का कोई मतलब नहीं।

कई वर्षों बाद उज्जैन आया हूँ, तो बहुत से चेहरे जाने पहचाने हैं जिनके बाल काले थे, वे अब सफेद दिखने लगे हैं और चेहरे भी बदल गए हैं। मुझे देख कर पहचानने की कोशिश करते हैं और कभी कभार मैं भी पहचानने की कोशिश करता हूँ, पर अब ऐसी कोशिशें कामयाब नहीं हो पाती हैं, शायद उम्र का असर है। मैं अक्सर ही चीजें भूल जाता हूँ, फिर तो यह शक्ल है जिन्हें में 5 साल बाद देख रहा हूँ। हाँ इस बार बहुत दुख हुआ कई लोगों को मिल नहीं पाया, क्योंकि वे अब इस दुनिया में ही नहीं हैं।

महाशिवरात्रि पर उज्जैन का विश्व रिकॉर्ड

18 फरवरी वैसे तो हमेशा ही मेरे लिए बहुत विशेष दिन रहा है, क्योंकि मैं इसी दिन अपने वैवाहिक गठबंधन में बंधा था। कल देखते देखते इस गठबंधन को 21 वर्ष हो गये। जीवन के इस पड़ाव पर आते आते पता ही नहीं चला कि कब हम इतने अच्छे दोस्त बन गए और प्रगाढ़ता बढ़ती ही जा रही है।

राम घाट उज्जैन

हम बचपन से ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते आए हैं। व्रत क्या हमारे लिए तो बहुत ही विशेष दिन होता है, क्योंकि इस दिन घर में व्रत की सामग्री से माल बनते हैं क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की शादी हुई है। भोले बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में रहते हुए महाकाल में आस्था कब इतनी गहरी हो गई पता ही नहीं चला। हालांकि कल महाकालेश्वर में भीड़ के चलते हम दर्शन करने नहीं गए लेकिन पूरे दिन मन वही अटका रहा। यूट्यूब पर महाकाल के लाइव दर्शन करते रहे और महादेव को मन में भजते रहे।

घर के पास ही मंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व की छटा देखते ही बनती थी। मंदिरों को बहुत ही बढ़िया सजाया गया था, कुछ मंदिरों में शिव जी का भांग से श्रृंगार किया गया था और दूल्हा स्वरूप बनाया गया था। उज्जैन में दिनभर भक्तों के लिए भंडारे खुले हुए थे, जिसमें साबूदाने की खिचड़ी, ठंडाई, पोहे इत्यादि सड़क पर ही स्टाल लगाकर बांटे जा रहे थे। कई जगह सड़क पर ही स्टेज लगाकर भजन संध्या चल रही थी, जिसमें कई जगह स्टेज पर भगवान शिव को दूल्हा स्वरूप और मां पार्वती को दुल्हन स्वरूप सजाकर बैठाया गया था वही जनता भक्ति में सड़क पर नृत्य कर रही थी। लोगों ने खुद ही ट्रैफिक मैनेजमेंट संभाला हुआ था जिससे जाम की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।

हमने दोपहर को घर के पास ही नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन करके साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद प्राप्त किया और वहीं बैठे पंडित जी ने जो कि बालक थे उन्होंने हमारे माथे पर तिलक लगाया।

नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन के बाद
साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद

हम यूट्यूब पर लगातार खबर देख रहे थे और रामघाट का लाइव प्रसारण भी देख रहे थे। जहाँ मध्य प्रदेश शासन ने 21 लाख दिए प्रज्वलित कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की चेष्टा की थी। गिनीज बुक में द्रोन के माध्यम से चित्र खींचे व उनकी गणना की तथा 18 लाख 80 हजार दिए प्रज्वलित है इसका विश्व रिकॉर्ड कल उज्जैन के नाम हो गया। इसके पहले यह रिकॉर्ड 15 लाख से कुछ अधिक दियों का अयोध्या के नाम था। शाम को लगभग 9:00 बजे हम घर से निकले और रामघाट पहुंचे व इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने। हर तरफ सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे हर तरफ घाट पर दिए ही दिए दिखाई दे रहे थे।

रामघाट से हम मुंबई धर्मशाला होते हुए हरसिद्धि की तरफ पहुंचे और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर दर्शन किये। भक्तों का जोश देखते ही बनता था, कल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कम से कम 10 लाख लोगों का तांता उज्जैन में लगा हुआ था।

रामघाट और दत्त अखाड़ा क्षेत्र
रील जो बनाकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड करी।

भैया का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है

कोरोना में बहुत से अपने जा रहे हैं, कभी कोई बहुत करीबी तो कभी कोई जान पहचान वाला, तो कभी किसी दोस्त की जान पहचान वाला, दुख यही है कि सब जा रहे हैं। जाने से कोई रोक भी नहीं सकता, क्योंकि यह बीमारी है ही ऐसी ख़तरनाक, लोग फिर भी जान से क़ीमती कुछ ओर समझ रहे हैं, अपना ध्यान न रखकर खुलेआम बाज़ार में घूम रहे हैं, काश कि सभी लोग इस गंभीरता को समझें। कल अपने मित्र के व्हाट्सएप के स्टेटस से पता चला कि भैया अचानक ही कोरोना का ग्रास बन गये।

हालाँकि यादें धुँधली हैं, परंतु फिर भी मुझे याद आता है कि भैया से पहले मुलाक़ात धार में एकलव्य में हुई थी, और हम लोग वहाँ उनके एकलव्य के ऑफिस में जाकर कभी किताबें पढ़ा करते थे तो कभी कोई विज्ञान का कोई प्रयोग सीखा करते थे, बहुत सी बातें वहाँ से सीखीं, पर एक बात ओर पता चली कि व्यवहारिक विज्ञान सीखने में बहुत से लोगों की रुचि नहीं थी। हमें एकलव्य केवल इसलिये अच्छा लगता था कि वहाँ वैज्ञानिक गतिविधियों के साथ ही कुछ किताबें भी पढ़ने को मिलती थीं।उन्होंने ही बर्ड वाचिंग के बारे में बताया, कई बार उनके साथ गया और पक्षियों को जाना, तब पता चल कि बर्ड वाचिंग भी एक शौक़, एक विधा होती है।

जो किताबें वहाँ पढ़ने को मिलती थीं, उस तरह की किताबें बाज़ार में कहीं भी पढ़ने के लिये उपलब्ध नहीं थीं, ख़ासकर चकमक जिसमें हर तरह की विधा का समावेश हुआ करता था, भैया का छोटा भाई विष्णु मेरा अच्छा मित्र रहा और है, इस कारण उनसे पारिवारिक संबंध भी रहे, जब हम धार से झाबुआ चले गये तो यह बातचीत का दौर लगभग ख़त्म सा हुआ था, परंतु बीच बीच में उज्जैन आना जाना लगा रहता था, तब भैया उज्जैन में ही रहने आ गये थे, तब मैं कई बार उनसे मिलने उनके घर चला जाता था, वे तथा उनका परिवार बहुत ही आत्मीय थे, हैं। भैया का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है, जिसे भरा नहीं जा सकता। यह आघात सहने का उनके परिवार को असीम बल मिले, और आत्मा को शांति मिले, यही प्रार्थना है।

लिखने में बहुत तकलीफ़ होती है, लिखते नहीं बनता, जब कोई बहुत आत्मीय चला जाता है, परंतु अब दौर इस प्रकार का आ गया है, कि हम जाने वाले के लिये कुछ कर नहीं सकते, जो लोग जीवित हैं, उनका बचाया जाना जरुरी है, ख़ुद को बचाना ही आज की सबसे बड़ी मानवता है, अगर आपने ख़ुद को बचा लिया तो यह समझ लीजिये कि आपने समाज के कम से कम 50 लोगों को बचा लिया।घर में रहिये सुरक्षित रहिये, बाहर जाना भी पड़े तो सुरक्षा के सारे उपाय जरुर अपनायें।

महाकाल कार्तिक मास सवारी

उज्जैन के एबले नि जूनी उज्जैन के महा एबले

उज्जैन में एक मित्र से बात हो रही थी दो दिन पहले –

मैं – भिया जै महाकाल

मित्र – जै माकाल

मैं – कोरोना कैसा फैल रिया है गुरु

मित्र – अरे फैलने दो अपने को कई, अपन तो धरमिंदर ओर अमिताभ के जैसे हो रिये हैं आजकल जान हथेली पे लेके घूम रिये हैं, मास्क वास्क सोसल डिस्टनसिंग चल री है, पन बार निकलना नि छोर सकते, पहले तो उज्जैनी तो एबले नि जूनी उज्जैन के महा एबले

हमने कहा भिया ध्यान रखो

भाई बोला – भिया पेट भी है परिवार भी है, एबले बनेंगे तो ही पेट भर पायेंगे नि परिवार चला पायेंगे।

हम शब्दहीन थे।


यह तो मित्रों की बात हुई परंतु कोरोना के कारण बेहद ही ख़राब स्थिति है अपना ध्यान रखें, अभी बातों के दौरान पता चला भाई से कि उनके एक मित्रवत मात्र 29 वर्ष की आयु में ही काल का ग्रास बन गये, वहीं उज्जैन में एक दंपत्ति को लगभग एक साथ ही कोरोना के शिकार हुए।

यहाँ भाषण नहीं करेंगे वो तो सभी लोग कर रहे हैं, परंतु इतना ध्यान रखें कि क्षणिक सुख के लिये कि बाहर न निकलें, जाना ज़रूरी हो तो पहले घर पर सारी चीजों की सूचि बनाकर रख लें, बार बार बाज़ार न जायें, ध्यान से रहें, अपने कारण परिवार को तकलीफ़ में न डालें, यह ऐसी बीमारी है जो परिजनों को तो डस ही लेगी साथ ही आपको आर्थिक तौर पर भी अच्छा ख़ासा नुक़सान पहुँचायेगी, जान पहचान क्या कोई करीबी भी आपकी चाहकर भी मदद नहीं कर पायेगा। सब कुछ आपके अपने हाथों में है।

घर पर रहें, मन न लगे तो भगवान में मन रमायें, भगवान में मन न लगे तो यूट्यूब देखकर कुछ सीख लें, न सीखने का मन हो तो जो भी आप करना चाह रहे थे, पर न कर पाये वही देख लें, मनोरंजन कर लें, बस घर पर रहें। ज़रूरी हो तभी बाहर निकलें, नहीं तो बस यह समझ लीजिये कि आप साक्षात यमराज को ही घर ला रहे हैं।

जिनको न पता हो उनके लिये – उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।

मुंबई से उज्जैन एक कूपे में 6 सीटों पर 14 लोगों की यात्रा

जब मुंबई में रहते थे, तो हम कुछ मित्र किराये का एक फ्लेट लेकर रहते थे, और अधिकतर उज्जैन या इंदौर के थे, और लगभग हर सप्ताह हम बोरिवली से उज्जैन की ट्रेन शाम 7.40 पर पकड़ते थे, ट्रेन का नाम है अवंतिका एक्सप्रेस, ट्रेन शनिवार सुबह 7 बजे उज्जैन पहुँच जाती थी और रविवार शाम को फिर से शाम 5.40 पर यह ट्रेन बोरिवली के लिये चलती थी, तो बोरिवली सोमवार सुबह 5 बजे पहुँच जाते थे। थोड़ी देर सोकर फिर तैयार होकर ऑफिस निकल जाते थे। यह बात है लगभग 2007 की, उस समय अवंतिका एक्सप्रेस में रिज़र्वेशन आसानी से तो नहीं मिलता था, पर ऑनलाइन रिज़र्वेशन के कारण आसानी थी। और जैसे ही 3 महीने बाद का रिज़र्वेशन खुलता था, हम लोग आने जाने का रिज़र्वेशन करवा लेते थे।
 
त्योहार के दिनों में हम लोग ज़्यादा लोग होते थे, तो मैं हमेशा ही एक टिकट पर मिलने वाली 6 सीटें रिज़र्व कर लेता था, क्योंकि हमारे एक मित्र हैं वे बहुत दयालु हैं, हमारे पास जब सीटें लिमिटेड होती थीं तो हम चुपचाप अपनी सीट पर बैठ जाते थे, और ये महाशय पूरी ट्रेन में प्लेटफ़ॉर्म पर घूमकर जिनके पास वेटिंग टिकट होता था, उनको अपनी सीट पर आमंत्रित कर आते थे, हमें खैर ग़ुस्सा तो बहुत आता था, पर उनकी दरियादिली देखकर अपनी मित्रता पर गर्व भी होता था। ऐन समय पर ऐसे बहुत से मित्र मिल जाते थे जिनके पास कन्फर्म टिकट नहीं होता था, पर हमारे पास ज़्यादा सीटें होने से हम 1 कूपे में हर सीट के हिसाब से 2 और बीच में बची जगह पर, जहाँ पैर रखते हैं, वहीं 2 लोग सो जाते थे, इस हिसाब से 14 लोग एक कूपे में आ जाते थे।
 
कई बार उन मित्र से बहुत ख़फ़ा भी रहा, वो चुपचाप रहते हमें मनाते रहते, खैर आज याद करता हूँ तो बहुत अच्छा लगता है।
 
ऐसे ही कई किस्से जो ट्रेन के हैं, याद आते रहते हैं, लिखता रहूँगा।

कार से बैंगलोर से उज्जैन यात्रा

सिहंस्थ के दौरान हमें अपने गृहनगर उज्जैन जाना तय कर रखा था, परंतु आखिरी मौके पर पता चला कि कुछ ऐसी अड़चनें हैं कि हम सिंहस्थ के दौरान उज्जैन नहीं जा पायेंगे, तो हमने सिंहस्थ के पहले ही आने का निर्णय लिया। सबसे बड़ी अड़चन यह थी कि हमने अपने ट्रेन के आरक्षण सिंहस्थ की दिनांक के मद्देनजर उन दिनों में करवा रखे थे, और 4 महीने पहले ही जिस दिन आरक्षण खुले उसी दिन सुबह करवा लिये थे। नहीं तो एक भी घंटा अगर लेट करते तो वेटिंग के ही टिकट मिलते हैं। हमने मन बनाया कि इस बार 3 अप्रैल को उज्जैन में ही अपने माता पिता के साथ अपने जन्मदिन पर रहें। कार से बैंगलोर से उज्जैन सड़क मार्ग से जाने का मन तो पहले ही था।

31 मार्च को शाम को आखिरकार अचानक ही कार्यक्रम बना कि कल सुबह याने कि 1 अप्रैल को कार से ही बैंगलोर से पूना होते हुए उज्जैन जाया जाये। 31 मार्च को हमने सोचा था कि जल्दी सो जायेंगे परंतु उसी दिन टी 20 के विश्वकप में भारत और वेस्टैंडीज का सेमीफाईनल था Continue reading कार से बैंगलोर से उज्जैन यात्रा

उज्जैन और सिंहस्थ 2016 के बारे में

उज्जैन विश्व के प्राचीन शहरों में है, और प्राचीन शहर ऊँगलियों पर गिने जा सकते हैं। उज्जैन सदियों से पवित्र एवं धार्मिक नगर के रूप में प्रसिद्ध रहा है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ शासन किया उनके नाम पर ही भारत में विक्रम संवत चलता है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्न थे महाकवि कालिदास, वेताल भट्ट, वराहमिहिर, वररूचि, अमरसिंह, धनवंतरी, क्षपणक, शंकु और हरिसेना। अपने अपने क्षैत्र में सारे रत्न धुरंधर थे।

महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोवर्शीयम, रघुवंशम, कुमारसंभवम, ऋतुसंहारं, मेघदूतं जिनको पढना और समझना अद्भुत है। वराहमिहिर ज्योतिष के विद्वान थे उनकी प्रसिद्ध कृति है पंचसिद्धान्तिका। वररूचि संस्कृत व्याकरण के आचार्य थे। अमरकोष अमरसिंह की देन है। धनवंतरी आयुर्वेदाचार्य थे। हरिसेना संस्कृत के कवि थे। उज्जैन महर्षि सांदीपनि की तपोभूमि है तो राजा भृतहरि की योगस्थली, हरिशचन्द्र की मोक्षभूमि और भगवान श्री कृष्ण की शिक्षास्थली भी रहा है।

उज्जैन में Drive लेकर प्राचीन शनि मंदिर, राजा जयसिंह द्वारा बनवाई गई वेधशाला, चिंतामन गणेश मंदिर, हाशमपुरा जैन मंदिर, अवंतिनाथ पार्श्वनाथ जैन मंदिर, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, बड़ा गणपति, सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन, हरसिद्धी देवी, रामघाट, गैबी हनुमान मंदिर, गोपाल मंदिर, अंकपात, कालभैरव मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, भृतहरि गुफा, योगी मत्स्येन्द्रनाथ की समाधि, सिद्धवट, कालियादेह पैलेस, मंगलनाथ, अंगारेश्वर, महर्षि सांदीपनी आश्रम, इस्कान मंदिर, फ्रीगंज स्थित घंटाघर, सिंधिया प्राचीन अनुसंधान केन्द्र, वाकणकर शोध संस्थान, कालिदास अकादमी देखा जा सकता है।

उज्जैन के प्राचीन और ऐतिहासिक स्थानों की Design देखने योग्य हैं। भूतभावन श्री महाकालेश्वर मंदिर का बारह ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान है, श्री महाकालेश्वर शिवलिंग दक्षिणमुखी होने के कारण विशेष महत्व रखता है, महाकाल मंदिर के गर्भगृह की छत पर लगा रूद्र यंत्र विशेष दर्शनीय है और इसका वैज्ञानिक महत्व है। मंगलनाथ को भगवान मंगल का जन्म स्थान माना जाता है, कहते हैं कि यहाँ भातपूजा से मंगल का असर कुँडली पर विशेष प्रभाव डालता है, कर्क रेखा उज्जैन से गुजरती है इसी कारण राजा जयसिंह ने उज्जैन में वेधशाला का निर्माण करवाया था, जिसे जंतर मंतर भी कहा जाता है, सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगांश यंत्र और शंकु यंत्र को वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया है और आज भी बहुत से लोग यहाँ पर शोध करने आते हैं।

उज्जैन बस, ट्रेन और वायु तीनों संसाधनों से Connect है, उज्जैन इंदौर से केवल 55 किमी की दूरी पर स्थित है, मुँबई, दिल्ली, चैन्नई और कलकत्ता से सीधे ट्रेन यहाँ के लिये उपलब्ध हैं, बसों से भी उज्जैन पहुँच सकते हैं। अगर आप वायुयान से यात्रा कर रहे हैं तो निकटतम हवाईअड्डा इंदौर है और लगभग सभी बड़े शहरों से सीधे फ्लाईट उपलब्ध है, इंदौर हवाईअड्डे से उज्जैन टैक्सी के द्वारा या बस के द्वार पहुँचा जा सकता है।

उज्जैन में 2016 में सिंहस्थ महापर्व होने वाला है जो कि 22 अप्रैल से 21 मई 2016 (30 दिनों) के दौरान होगा। सिंहस्थ को कुँभ मेले के नाम से भी जाना जाता है और यह बारह वर्षों में एक बार उज्जैन में लगता है, उज्जैन में यह महापर्व सिंह राशि में होता है इसलिये यह सिंहस्थ कहलाता है। इस बार सिंहस्थ का कुल क्षैत्र 3000 हेक्टेयर से ज्यादा होगा, सिंहस्थ को दौरान होने वाले स्नानों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

उज्जैन Made of Great है, जीवन में एक बार उज्जैन आना आपके जीवन को सुकून से भरने के लिये पर्याप्त है।

धर्म वैज्ञानिकों की मशीनों से मधुमेह को काबू में किया गया

धर्म वैज्ञानिकों के द्वारा किये जा रहे मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप की पिछली पोस्ट के बाद मुझसे कई मित्रों और पाठकों ने द्वारका आश्रम का पता और फोन नंबर के बारे में पूछा, मैं आश्रम गया जरूर था पर पता मुझे भी पता नहीं था, आज हमारे पास पता भी आ गया है और फोन नंबर भी उपलब्ध है।

 

उसके पहले एक बात और मैं साझा करना चाहूँगा कि हमारे मित्र मधुमेह के लिये आश्रम नियमित तौर से जा रहे थे और उन्हें काफी आराम भी है, पहले उनकी शुगर 180 के आसपास रहती थी, और कई बार की कोशिश के बाद ज्यादा से ज्यादा 145-148 तक आती थी, साधारणतया शुगर की मात्रा 140 होती है, आज उनकी शुगर 132 आयी तो वे भी बहुत खुश थे, हालांकि अभी दवाई भी जारी है, जहाँ तक मुझे याद है गुरू जी ने बताया था कि धीरे धीरे दवाई की मात्रा कम करते जायेंगे। फेसबुक पर भी एक टिप्पणी थी कि अगर कोई इंसुलिन वाला मरीज ठीक हुआ हो तो उसके बारे में बतायें, तो मैं मेरे मित्र चित्तरंजन जैन से आग्रह करूँगा कि वे इस बारे में पता कर सूचित करें।

 

इसी बाबद मेरे ऑफिस में एक सहकर्मी से स्लिप डिस्क की बात हो रही थी, कि उनकी बहिन को यह समस्या लगभग 2 वर्ष से है और पहले तो वे बिल्कुल भी पलंग से उठ भी नहीं पाती थीं, पर फिर उन्हें किसी से पता चला कि सोहना (हरियाणा में, गुड़गाँव से 40 कि.मी.) में कोई व्यक्ति देशी दवा से इलाज करता है और वो पैर की कोई नस वगैराह भी दबाता है, तो उनकी बहिन को कुछ ही दिन में बहुत आराम मिल गया, वे बता रही थीं कि उनकी बहिन अब घर में अपने सारे काम खुद ही कर लेती हैं, उनके लिये भी हमने पता किया था, तो हमें मित्र द्वारा सूचना दी गई कि स्लिप डिस्क वाली समस्या में भी किसी मरीज को काफी लाभ हुआ है।

 

बात यहाँ मानने या न मानने की तो है ही, क्योंकि जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वे इसे वैज्ञानिक पद्धति का इलाज मानकर करवा सकते हैं, और जो ईश्वर को मानते हैं वे इस ईलाज के लिये बनाई गई मशीनों के लिये अपने वेद और पुराणों में वर्णित प्राचीन पद्धति को धन्यावाद दे सकते हैं।

 

द्वारका आश्रम का पता इस प्रकार से है –

 

धर्म विज्ञान शोध ट्रस्ट

द्वारिका”, नीलगंगा रोड,

लव-कुश कॉलोनी,

नानाखेड़ा,
उज्जैन (म.प्र)

Phone – धर्म वैज्ञानिक उर्मिला नाटानी 0734 42510716

 

Dharma Vigyan Shodh Trust

Dwarika”, Neelganga Road,

Lav-Kush Colony,

Nanakheda, Ujjain (M.P.)

Phone – Religious Scientist 0734 – 42510716

धर्म वैज्ञानिक जो बिना किसी दवा के मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप को ठीक कर रहे हैं

धर्म वैज्ञानिक नाम ही कुछ अजीब लगता है न, लगना भी चाहिये हमारे पूर्वज, ऋषि, महर्षियों ने जो भी नियम हमारे लिये बनाये थे, उन सबके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर होता है, बस उन कारणों को लोगों को नहीं बताया गया, केवल रीत बना दी गई और डर भी बैठा दिया गया कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो अच्छा नहीं होगा। जो धर्म पर अध्ययन कर उसके पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को ढ़ूँढ़ते हैं, इस बार के उज्जैन प्रवास के समय हमारे मित्र चित्तरंजन जैन ने हमें इस नई संस्था से अवगत करवाया, हम उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं, जब तक कि वे खुद किसी चीज से संतुष्ट नहीं होते जब तक वे न तो किसी को कुछ बताते हैं और न ही दिखाते हैं।
इस बार हम शाम के समय उनकी दुकान पर बैठे हुए थे, तो उन्होंने हमसे पूछा कि अगर आप एक घंटा फ्री हों तो हम आपको नई जगह ले चलते हैं, जहाँ मैंने भी पिछले 7 दिन से जाना शुरू किया है, इस जगह आश्रम का नाम है द्वारिका, हम उनके साथ चल दिये, कि चलो हमारे पास एक घंटा है, और हम भी कुछ ज्यादा जानें इस आश्रम के बारे में। जाते जाते हमें हमारे मित्र ने बताया कि आपको तो पता ही है कि हमें मधुमेह की बीमारी है और यहाँ पर मात्र 30 दिन में मधुमेह को हमेशा के लिये खत्म करने की बात कही जाती है, कि उसके बाद कभी भी आपको मधुमेह के लिये दवाई लेनी ही नहीं होगी। उनके ईलाज की पद्धति चार चीजों पर आधारित है, चुँबक, प्रकाश, आकृति और मंत्र। आश्रम में खाने के लिये कोई दवाई नहीं दी जाती है, केवल उपरोक्त चार चीजों पर ही बीमारियों का ईलाज किया जाता है।
हमारे मित्र के साथ हम आश्रम में पहुँचे, वहाँ प्रथम तल पर सामने ही गुरू जी बैठे हुए थे, उनके पास ही हमारे पुराने मित्र मुन्नू कप्तान भी बैठे हुए थे, हमने सबको राम राम की, हमारे मित्र ने हमें कहा कि हम तो ईलाज के लिये जा रहे हैं, आपको भी अगर आजमाना है तो आ जाओ, हमें आजमाना तो नहीं था, परंतु देखना जरूर था, हम उनके साथ कमरे में गये वहाँ तीन पलंग लगे हुए थे, हरेक पलंग की छत पर कुछ आकृतियाँ बनायी हुईं थीं, जैसे कि पिरामिड, त्रिकोण इत्यादि और साथ ही वहाँ विभिन्न तरह के बल्ब लगाकर प्रकाश की व्यवस्था की गई थी, हमारे मित्र ने वहीं पर दीदी जी जो कि वहाँ सेवा देती हैं, उनसे एक थाली ली, जिसमें से कुछ काला सा तिलक अपनी नाभि मे लगाया और 7 तुलसा जी की पत्ती खाईं और फिर चुँबकीय बेल्ट अपनी कमर पर नाभि के ऊपर कस कर लेट गये, उन्हें 15-20 मिनिट अब उसी अवस्था में लेटे रहना था, पूरे आश्रम में मंत्र ध्वनि गुँजायमान थी। तो हम बाहर आकर गुरू जी के पास बैठ गये और उनसे बातचीत कर अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करने लगे।
गुरूजी ने हमें पूरे आश्रम की मशीनों से अवगत करवाया, जिन्हें उन्होंने 31 वर्षों के शोध के बाद खुद ही तैयार किया था, और लगभग सभी मशीनें लकड़ी की ही बनी हुई था, जिसमें छत पर अलग अलग आकृतियाँ थीं, गुरूजी ने हमें मधुमेह, कोलोस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप जैसी मशीनों के बारे में जानकारी दी, कि ये सब बीमारी हम केवल एक महीने में ठीक कर देते हैं, एक बार ठीक होने के बाद उन्हें कभी भी जीवनभर किसी दवाई का सेवन भी नहीं करना होगा। किसी को बुखार हो तो हम उसे केवल 15 मिनिट में ठीक कर देते हैं। किसी को तनाव है तो उसके लिये भी उनके लिये अलग मशीन है और उसके लिये भी मात्र 15 मिनिट लगते हैं। दोपहर बाद हमें भी तनाव तो था ही, परंतु वहाँ के माहौल से और मंत्रों से हमारा तनाव 5 मिनिट में ही दूर हो गया। 
हीमोग्लोबीन अगर कम है तो उसके लिये भी एक अलग यंत्र है, जिसके बारे में हमें बताया गया कि उसमें भी रोगी को रोज 15 मिनिट बैठना होता है और आश्चर्यजनक रूप से 2-4 दिन में ही लाभ दिखने लगता है, इसके पीछे गुरूजी ने बताया कि हमारी अस्थिमज्जा को ब्रह्मंडीय ऊर्जा के संपर्क से ठीक करते हैं, और उनकी सारी मशीनें व यंत्र इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं।
ईलाज के लिये कोई फीस नहीं है, बिल्कुल निशुल्क है, आश्रम की यह सुविधा मुख्य रूप से उज्जैन में ही उपलब्ध है, उज्जैन के अलावा उनके आश्रम इंदौर और इलाहाबाद में भी हैं। पिछले सप्ताह ही मित्र से बात हुई तो उन्होंने हमें बताया कि मधुमेह की जाँच में पता चला कि 15 प्रतिशत का फायदा है, और अब मानसिक शांति पहले से ज्यादा है, साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ज्यादा है।

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