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गीता के श्लोक की बातें सरल हैं, परंतु व्यवहार में बहुत कठिन

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः ।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥ २७ ॥
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥ २८ ॥

अर्थात समस्त इन्द्रियविषयों को बाहर करके, दृष्टि को भौंहों के मध्य में केन्द्रित करके, प्राण तथा अपान वायु को नथुनों के भीतर रोककर और इस तरह मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके जो मोक्ष को लक्ष्य बनाता है वह योगी इच्छा, भय तथा क्रोध से रहित हो जाता है। जो निरन्तर इस अवस्था में रहता है, वह अवश्य ही मुक्त है।

    आज यह श्लोक सुन रहा था और इस पर ध्यान कर रहा था, मनन करने के दौरान यही समझ में आया, हैं तो ये दो ही श्लोक परंतु जीवन का सार हैं, व्यक्ति अपने जीवन में पता नहीं किस किस के पीछे भागता रहता है, मोह में गृसित रहता है, किसी को डराता है, किसी से डरता है जबकि उसे पता नहीं है कि सभी प्राणी मात्र कृष्ण की इच्छा से इस लोक में भ्रमण कर रहे हैं।

    यहाँ इस श्लोक की हरेक चीज इतनी कठिन है, पहले कहा गया इन्द्रियविषयों को बाहर करें, और आज की दुनिया में सारे कार्य इन्द्रियविषयों में लिप्त हो कर ही होते हैं, हर पल इन्द्रियसुख में ही बीत रहा है, यहाँ इन्द्रियों पर विजय की बात कही गई है, इन्द्रियों के लिये जो सुख ढूँढ रहे हैं, वह निकाल कर फ़ेंक दें, त्यक्त दें, त्याग दें।

    दूसरा कहा गया है भौंहों के मध्य में केन्द्रित करके, आजकल आँखें स्थिर करना बहुत कठिन कार्य हो गया है, केन्द्रित कोई नहीं हो पाता, हमेशा आँखें सुख ही तलाशती रहती हैं, यूँ कह लें कि आँखों को लत लग गई है तो यह भी गलत नहीं होगा, संकल्प नहीं रह गया है, हम आजकल अपने आप से ही सबसे ज्यादा झूठ बोलते हैं ।

    तीसरी बात कही गई है, प्राण और अपान वायु को नथुनों के भीतर रोककर – आजकल मानव अगर दो मिनिट भी वायु को नथुनों के भीतर रोक ले तो उसकी जान पर बन आती है, स्वच्छ वायु के लिये तो तरस गये हैं, प्रदूषण अंदर लेने की इतनी बुरी आदत हो गई है, जो कि हम खुद नहीं लेते, यह न चाहते हुए भी हमारे अंदर वायु के रूप में धकेला जाता है।

    चौथी बात कही गई है मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके – मन तो हमेशा अपने सात घोड़ों के साथ पता नहीं कहाँ कहाँ घूमता रहता है, इन्द्रियाँ भी मन के इन घोड़ों के साथ साथ व्यक्त होती रहती हैं और बुद्धि का विनाश हो गया है, हमेशा भौतिक जगत के बारे में ही सोचते रहते हैं, मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करना अब कोई साधारण बात नहीं रही, इसीलिये पता नहीं कितनी धर्म की दुकानें, आश्रम यह सब सिखा रहे हैं, यह खुद से करने वाला अभ्यास है, जब श्रीकृष्ण भगवान खुद ही बता रहे हैं तो किसी और धर्म की दुकान में जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है, गीता जी के अध्याय पाँच यही तो सिखाया गया है, हाँ कठिन अवश्य है, पर अगर मन में श्रद्धा हो और अटल विश्वास हो तो यह कठिन भी नहीं है।

    यहाँ कहा गया है कि मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके जो मोक्ष को लक्ष्य बनाता है वह योगी इच्छा, भय तथा क्रोध से रहित हो जाता है, जो निरन्तर इस अवस्था में रहता है, वह अवश्य ही मुक्त है। हमारा तो मन बुद्धि यह सोचकर ही अकुला रही है कि अगर मानव इस अवस्था में पहुँच जाये तो उसके आनंद की कल्पना कम से कम इस लोक का मनुष्य तो नहीं कर सकता, हाँ हमारे यहाँ सब उसे शायद पागल जरूर कहेंगे।

अध्याय १० से ( मगर मछली का ही रूप है )

गीता जी के अध्याय १० में भगवान कृष्ण अपना ऐश्वर्य बताते हैं, जहाँ मैं एक श्लोक पर रुक गया, क्योंकि अभी तक मगर को मैं मछली की तरह नहीं लेता था, परंतु यहाँ पर मगर को मछलियों में ही बताया गया है ।

पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम।

झषाणां मकरश्चास्मि स्त्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥

अर्थात – समस्त पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, शस्त्रधारियों में राम, मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूँ ।

यहाँ पर मगर के बारे में बताया गया है कि समस्त जलचरों में मगर सबसे बड़ा और मनुष्य के लिये सबसे घातक होता है । अत: मगर कृष्ण का प्रतिनिधित्व करता है ।

इस्कॉन बैंगलोर मंदिरों में अलग अनुभव जैसे धार्मिक बाजार (Different experience in Iskcon Bangalore like bazzar)

बहुत दिनों बाद बैंगलोर में ही कहीं घूमने निकले थे, आजकल तपता हुआ मौसम और झुलसाती हुई गर्मी है, बैंगलोर की तपन ऐसी है जैसे कि निमाड़ की होती है अगर धूप की तपन में निकल गये तो त्वचा जल जायेगी और अलग से पता चल जायेगा त्वचा ध्यान न देने की वजह से जली है। मालवा में दिन में तपन तो बहुत होती है परंतु मालवा में रातें ठंडी होती है, रात में पता नहीं कहाँ से ठंडक आ जाती है।

घर से लगभग ३० कि.मी. दूर बैंगलोर इस्कॉन जाना तय किया, सोचा कि एक वर्ष से ज्यादा बैंगलोर में हो गया है परंतु अब तक कृष्ण जी के दर्शन नहीं हो पाये, चलिये आज कृष्ण जी के दर्शन कर लिये जायें। इस देरी का एक मुख्य कारण था हमारा मन, जब मुंबई से बैंगलोर आये थे तब हम श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर जो कि गिरगाँव चौपाटी पर स्थित है और ग्रांट रोड इसका नजदीकी रेल्वे स्टॆशन है, जाते थे और आते समय बताया गया कि इस्कॉन का कोर्ट केस चल रहा है और इस्कॉन बैंगलोर  मंदिर इस्कॉन सोसायटी ने बहिष्कृत कर रखा है। अगर आप वहाँ जायेंगे तो कृष्ण भक्ति नहीं आयेगी मन में, बल्कि आपका मन, भावना और भक्ति दूषित होगी। इस्कॉन बैंगलोर में अगर आप सदस्य हैं तो उस सदस्यता का लाभ दुनिया के किसी भी मंदिर में इसी कारण से नहीं मिलेगा, किंतु इस मंदिर को छोड़ आप किसी और मंदिर के सदस्य हैं तो आपको सदस्यता का लाभ मिलेगा।

हम तो ह्र्दय में कृष्ण भावना रखकर गये थे कि हमें तो भगवान कृष्ण के दर्शन करने है और जीवन में प्रसन्नता लानी है। मन से ऊपर लिखी हुई बात हम अपने ह्र्दय से से निकाल कर गये थे, नहीं तो ह्र्दय कृष्ण में लगाना असंभव था।

बिना किसी पूर्वाग्रह के महाकालेश्वर की असीम कृपा से हम सुरक्षित इस्कॉन मंदिर लगभग १ घंटे में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर पहले जूते ठीक स्थान पर रखे गये और फ़िर कृष्ण जी के दर्शन करने चल दिये। जैसे ही थोड़ी दूर चले वहाँ एक लाईन लगी थी, जहाँ लगभग १०८ पत्थर लगे हुए थे और महामंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम, राम राम हरे हरे” का उच्चारण हर पत्थर पर करना था, इसका एक फ़ायदा भीड़ नियंत्रण करना था और दूसरा फ़ायदा दर्शनार्थियों को था उन्हें १०८ बार महामंत्र बोलना ही था या सुनना ही था, रोजमर्रा जीवन में इतना समय भी व्यक्ति के पास नहीं होता कि १०८ बार महामंत्र बोल ले। महामंत्र ऐसे बोलना चाहिये कि कम से कम आपके कानों तक आपकी आवाज पहुँचे तभी महामंत्र बोलने का फ़ायदा है। पत्थर सीढ़ीयों पर भी लगे हुए थे, पहला मंदिर प्रह्लाद नरसिंह अवतार का है उसके बाद दूसरा मंदिर श्रीनिवासा गोविंदा का आता है।

प्रह्लाद नरसिंहश्रीनिवास गोविंदा

अब आता है मुख्य मंदिर जहाँ महामंत्र से वातावरण अच्छा बन पड़ा था, और यहाँ पहली प्रतिमा श्रीश्री निताई गौरांग की दूसरी याने कि मध्य प्रतिमा श्री श्री कृष्ण बलराम की और तीसरी प्रतिमा श्री श्री राधा कृष्ण चंद्र की है। मंदिर का मंडप देखते ही बनता है, बहुत सुन्दर चित्रकारी से उकेरा गया है।

राधा कृष्णकृष्ण बलरामनिताई गौरांग

मंदिर में आप अपने हाथ से प्रसाद पंडित जी को नहीं दे सकते हैं, प्रसाद आपको काऊँटर पर जमा करना है और पर्ची दिखाकर दर्शन करने के पश्चात आप प्रसाद की थैली ले सकते हैं। विशेष दर्शन की व्यवस्था है जिसका लाभ कोई भी २०० रुपये में उठा सकता है, विशेष दर्शन में भगवान के थोड़ा और पास जाकर दर्शनों का लाभ लिया जा सकता है। जैसे ही दर्शन करके आप सामने देखते हैं तो मंदिर में ही किताबें और सीडी के विज्ञापन दिखते हैं, जो शायद ही किसी ओर मंदिर में आपको दिखें। जैसे ही दर्शन करने के बाद बाहर के रास्ते जाने लगते हैं तो कतारबद्ध दुकानों के दर्शन होते हैं, पहले बिस्किट, केक और मिठाई फ़िर अगरबत्ती, किताब, कैलेडर, मूर्तियाँ, सीनरी, सॉफ़्ट टॉयज, कुर्ता पजामा, टीशर्ट और वह सब,  मंदिर में जो जो बिक सकता है वह सब वहाँ कतारबद्ध दुकानों पर उपलब्ध है। उसके बाद खाने पीने के लिये एक बड़ा हाल आता है जहाँ कि कचोरी, समोसे, जलेबी, खमन, तरह तरह के चावल, भजिये, केक, कुल्फ़ी, लेमन सोडा, बिस्किट्स इत्यादि उपलब्ध है। हमें तो स्वाद अच्छा नहीं लगा। और ऐसा पहली बार हुआ है कि इस्कॉन में खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा।

यहाँ हर किसी को पार्किंग से लेकर जूता स्टैंड तक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसी भी इस्कॉन मंदिर में ऐसा नहीं होता।

मंदिर गये थे परंतु ऐसा लगा ही नहीं कि मंदिर में आये हैं ऐसा लगा कि किसी धार्मिक बाजार में हम आ खड़े हुए हैं। हाँ बेटे के लिये जरूर अच्छा रहा वहाँ एक मिनि थियेटर भी बना हुआ है जिसमें कि आप एनिमेशन फ़िल्म सशुल्क देख सकते हैं, जो कि एक छोटे से कमरे में एक बड़ा टीवी लगाकर और थियेटर साऊँड सिस्टम लगाकर बनाया गया है।

जब हम मंदिर से निकले तो हमारे मन और ह्र्दय में महामंत्र नहीं चल रहा था, न ही मंदिर में स्थित भगवान के चेहरे आँखों के सामने थे, बस जो भी नजर आ रहा था वह था, वहाँ स्थित भव्य बाजार।

वैसे एक बात फ़िर भी आश्चर्यजनक लगी कि दर्शन के लिये कोई टिकट नहीं था, जबकि दक्षिण में अधिकतर सभी मंदिरों में दर्शन के लिये टिकट है और अर्चना एवं प्रसाद चढ़ाने के लिये भी टिकट की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ बैंगलोर में आकर मंदिर जाने का मन बहुत ही कम होता है, मंदिर जाकर अगर मन को ऐसा लगे कि आप मंदिर में नहीं किसी व्यावसायिक स्थान पर खड़े हैं, तो अच्छा नहीं लगता।

लूट तो हरेक जगह है, हर मंदिर में है फ़िर वो क्या उत्तर और क्या दक्षिण, और लूट भी रहे हैं वो पुजारी और पंडे जो कि भगवान की सेवा में लगे हैं, और भगवान भी उन पंडों और पुजारियों पर खुश है और उन पर अपनी सेवा करने की असीम कृपा बनाये हुए है।

हे कृष्ण! हे गिरधारी! कब इस कलियुग में तुम्हारे पंडे और पुजारी की इस लूट से आम जनता बच पायेगी।

ब्रजक्षैत्र के भोजन का आनंद और बच के रहें ब्रज के ठगों से भी..

    वृन्दावन में चाट और लस्सी का स्वाद अद्वितिय है, और ब्रजक्षैत्र का भोजन आज भी बेहद स्वादिष्ट होता है। हमने तकरीबन ३-४ बार लस्सी पी, जिसमें ऊपर से मलाई भी डाली जाती है और वह भी कुल्हड़ के गिलास में।

    जब निधिवन की ओर जाते हैं तो वहीं गोल चक्कर पर बहुत से गाईडनुमा लोग मिलते हैं, जो कि आपको बोलते हुए मिलेंगे कि आपको ३० रुपये मॆं ४ मंदिरों के दर्शन करवायेंगे, जिसमें से एक मंदिर में ये ठग ले जाते हैं। टाईल्स और चारों धाम के पुण्यों के नाम पर नकली रसीद और मीरा के भजनों के नाम पर लूटते हैं, इनसे सावधान रहें। हमसे भी यही कहा गया तो हमने १०० रुपये में अपना पीछा छुड़ाया, नहीं तो उनका तो कम से कम भाव ही १५००-१६०० रुपये का है, और कहते हैं कि जीवनभर एक घंटा आपके नाम का भजन होता रहेगा, यहाँ लगभग ३००० से ज्यादा मीराबाईयाँ रहती हैं, जो गाईड हमें मिला था वह तीन मंदिरों में दर्शन के बाद हमसे पैसा मांगकर भागने के चक्कर में था तो हमने उससे कहा कि भई चार मंदिर का बोला है, और जब तक चौथे मंदिर के दर्शन नहीं करवाते हम पैसे नहीं देंगे, ऐसे धार्मिक आस्था के खिलवाड़ करने वाले लुटेरों को उज्जैन मॆं भी देखते आ रहे हैं।

दक्षिण भारतीय शैली में मंदिरसेठ द्वारा बनवाया गया मंदिर का लकड़ी नक्काशी जैसा द्वार

परकोटे में मंदिरनक्काशी द्वार पर

बैकुण्ड द्वारमंदिर का लंबा गलियारा

मंदिर का बड़ा सा गलियारायह खंबा भी सोने का है

यह भी सोने का हैये भी सोने का है

विष्णुजी के दर्शन के पश्चातसोने का हाथी

हर्ष की कुछ शैतानियाँ

    हाँ यहाँ के बात और हर बात के बाद ये लोग बोलेंगे ताली बजाकर हँसिये तो जीवन भर हँसेंगे।

    जब मंदिरों के दर्शन हो गये और वक्त लगभग ११.३० हो चुका था, दोपहर की गर्मी से बेहाल थे, इतने बेहाल थे कि पैदल चलने की सोच भी नहीं पा रहे थे। इसलिये फ़िर से रिक्शे का सवारी के तौर पर उपयोग किया गया। पूरे वृन्दावन में बंदरों से सतर्क रहें, वे जूते, चप्पल, घड़ी, चश्मा, प्रसाद किसी पर भी हमला करके उसका भरपूर आनंद लेते हैं।

    एक ढ़ाबे पर चना मसाला, दाल और तंदूरी रोटियों का आनंद लिया गया, बहुत वर्षों बाद बाहर कहीं इतना स्वादिष्ट खाना खाया था। और उसके बाद फ़िर एक एक लस्सी का आनंद लिया गया। वक्त लगभग हो चला था दोपहर के १२ । हमारा मन मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन करने का भी था पर १२ बजे से २ बजे तक जन्मभूमि के दर्शन बंद रहते हैं, और हमें आगरा में खरीदारी भी करनी थी और पारिवारिक मित्र के साथ मिलना भी था, तो हमने सोचा कि चलो अब सीधे आगरा चला जाये।

    गर्मी अपने भरपूर उफ़ान पर थी, और रास्ते में ऐसे बहुत सारे यातायात के साधन देखने को मिले जो वर्षों बाद देखे, जैसे कि जुगाड़, बैलगाड़ी, भैंसागाड़ी।

सुबह ही हाइवे पर जाम, बांके बिहारी जी और निधि वन के दर्शन.. (Darshan of Banke Bihari ji, Vrindavan)

    २९ तारीख का कार्यक्रम पहले से ही तय था, वृन्दावन, मथुरा और आगरा और आगरा से मालवा एक्सप्रेस से उज्जैन। सुबह ५ बजे ही टैक्सी को बुला लिया गया था और तय किया गया था कि भोर ठंडे ठंडे वृन्दावन पहुँच जायेंगे, क्योंकि आजकल धौलपुर का तापमान ४५ डिग्री के ऊपर ही चल रहा है और पत्थरों का क्षैत्र है इसलिये झुलसा देने वाली हवाएँ खूब चलती हैं। दोपहर को वहाँ यह हालत होती है कि जिसको जरूरत होती है वह भी बाहर नहीं निकलता है।

धौलपुर बस स्टैंडचंबल के बीहड़ चंबल बीहड़धौलपुर के जाम में

    घर से टैक्सी में बैठे और जैसे ही हाइवे पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ तो जाम लगा हुआ है, यहाँ फ़ोर लेन का काम चल रहा है मगर सरकारी गति से, वहाँ पर ड्राईवर ने किसी से पूछा जाम कब से है और कहाँ तक है, तो उत्तर मिला जाम तो पिछले २-३ घंटे से है और एक भी गाड़ी आगे नहीं जा पाई है, और जाम खुलने में कम से कम ३-४ घंटे और लग जायेंगे। ड्राईवर ने वहीं पर फ़ुर्ती से गाड़ी घुमाई और चल दिया दूसरे रास्ते की ओर, गाड़ी घुमाने के दौरान एक बाहर की गाड़ी भी वहीं जाम में फ़ँसी हुई थी, उसने पूछा कि क्या कोई और रास्ता भी है, ड्राईवर बोला कि आगरा जा रहे हैं, आना है तो पीछे हो लो, परंतु वह परिवार नहीं आया, एक कारण क्षैत्रकाल का भी हो सकता है, क्यूँकि वह चंबल क्षैत्र है जहाँ के नाम से ही बाहर के लोगों की पुँगी बजी रहती है। खैर हमारी गाड़ी कच्चे रास्तों को पार करते हुए लगभग १० मिनिट में ही हाईवे पर पहुँच गई और 80-100 की रफ़्तार से बातें करने लगी।

कच्चा रास्ता धौलपुर का ६कच्चा रास्ता धौलपुर का कच्चा रास्ता धौलपुर का १कच्चा रास्ता धौलपुर का २ कच्चा रास्ता धौलपुर का ३कच्चा रास्ता धौलपुर का ४ कच्चा रास्ता धौलपुर का ५फ़ोटो सतीश पंचम श्टाईल में

    हम सीधे वृन्दावन जा रहे थे, इसलिये न आगरा रुके और ना ही मथुरा। सुबह लगभग 8.30 बजे हम वृन्दावन पहुँच गये, सबसे पहले गये बांके बिहारी जी के मंदिर वहाँ बांके बिहारी की छटा देखते ही बनती है। वहाँ प्रसाद चढ़ाया और दर्शनों का आनंद लिया। कई महिलायें बांके बिहारी के भजन गा रही थीं, मन भावभिवोर हो उठा था, जैसे वे महिलायें नाच रही थीं और बांके बिहारी को मना रही थीं, हम भी भजन में मगन थे और सामने बांके बिहारी के दर्शन थे, बांके बिहारी इतने सुन्दर हैं कि वहाँ से जाने की कभी इच्छा ही नहीं होती। प्रसाद में छोटे कुल्लड़ में खुरचन होती है जो कि बांके बिहारी का असली प्रसाद है।

बांके बिहारी के दर्शन के बाद लस्सी के साथबांके बिहारी के दर्शन के बाद

    दर्शनों के बाद गलियों में ही चाट पकौड़ी और लस्सियों की कतार से दुकानें हैं, कहीं भी खा लीजिये स्वाद सबका एक जैसा शुद्ध खालिस देसी घी का बना हुआ। हमने एक टिक्की ली और एक फ़ुल लस्सी, ब्रजक्षैत्र के खाने का तो गजब ही आनंद है, जहाँ माखनचोर खुद रहते हों वहाँ भला स्वाद की कोई कमी होगी, और दोगुना स्वाद होगा।

    वृन्दावन में मंदिरों की कमी नहीं है, हमने २-३ मंदिरों के दर्शन और किये और फ़िर हम चल दिये निधि वन की तरफ़. जहाँ संत हरदास ने बांके बिहारी जी की प्रतिमा को प्रकट किया था । निधिवन बांके बिहारी जी का प्रगट स्थल है, जहाँ पर वृन्द (तुलसी) और कदंब      के पेड़ आज भी हैं और पूरा वन क्षैत्र है। यहाँ पर जिस स्थान पर बांके बिहारी जी प्रगट हुए थे, उस जगह पलंग और उस पर बिस्तर है, जहाँ कहा जाता है कि आज भी रासबिहारी कृष्ण राधा रानी के साथ रास करते हैं, इस बात की पुष्टि मंदिर के पुजारी ने भी की, और बताया कि रात को यहाँ कोई नहीं रुकता न पंछी ना जानवर और ना आदमी, और अगर कोई रुकता भी है तो वह अगले दिन सुबह इस स्थिती में नहीं रहता कि किसी को कुछ बता सके, वह या तो मोक्ष को प्राप्त हो जाता है या फ़िर अंधा, बहरा या गूँगा हो जाता है। आज भी उस बिस्तर पर फ़ूल बिछाये जाते हैं जो कि सुबह दबे हुए मिलते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि कोई उस बिस्तर पर आया था। हमने जोश जोश में यहाँ का फ़ोटो खींच लिया था और वहाँ कहीं लिखा भी नहीं था कि फ़ोटो लेना मना है, तो पुजारी ने बड़े प्रेम से बोला कि भैयाजी यह फ़ोटो काट दीजिये आप ही की भलाई के लिये बोल रहा हूँ, उस पुजारी ने इतने प्रेम से बोला और बांके बिहारी से जुड़ी बात थी तो हमने फ़ट से फ़ोटो अपने मोबाईल से हटा दिया मतलब काट दिया। लगभाग सभी मंदिरों में फ़ोटोग्राफ़ी वर्जित है।

निधिवन १निधिवन २ निधिवन ३निधिवन ४ निधिवन मेंनिधिवन राजक्षैत्र   बैकुण्ड द्वार लकड़ी दरवाजा वृन्दावन के एक मंदिर में वृन्दावन की गलियों में रिक्शे पर वृन्दावन में वृन्दावन में १ वृन्दावन में २ हाईवे पर

आगे का विवरण अगली पोस्ट में, लंबी होने से बोझिल होने लगेगी..

॥ बांके बिहारी लाल की जय॥

३७ घंटे का लंबा सफ़र और अब बांके बिहारी के दर्शन

    आखिरकार ३७ घंटे का लंबा सफ़र कल सुबह खत्म हुआ और थकान तो बिल्कुल थी ही नहीं, बिल्कुल भी नहीं। शायद बहुत वर्षों बाद इतना सोये और आत्मचिंतन का समय मिला। एक तरह से इसके लिये रेल्वे की कर्नाटक एक्सप्रेस के ए.सी. २ के उस डिब्बे को भी धन्यवाद ज्ञापित होना चाहिये अगर उसके प्लग में पॉवर आती तो पूरा समय हम लेपटॉप पर ही बिता देते। अच्छा हुआ कि पॉवर नहीं थी।

    और इतने आराम के बाद भरपूर ऊर्जा का एहसास हुआ, जैसा कि आमतौर पर होता है कि हर सफ़र के बाद जिंदगी के कुछ पाठ सीखने को मिलते हैं, इस बार भी मिले। वह अब अगली किसी पोस्ट में लिखेंगे, भरपूर ऊर्जा से युक्त जब हमने अपने ट्रेन के सफ़र का अंत ग्वालियर में किया और बस स्टैंड की तरफ़ बड़े तो गर्मी के तलख मिजाज का अहसास हो गया, हालांकि उस समय सुबह के ५.३० बजे थे और गर्मी के तेवर देखते ही बन रहे थे, हम ए.सी. से निकलने के बाद पसीने में तर हो रहे थे। बस स्टैंड पहुँचते ही चंबल के लोगों की तल्खी का अंदाज दिखने लगा।

    दिल्ली जाने वाली बस में धौलपुर के लिये बैठे, बस थी एम.पी. रोडवेज की जो कि बहुत ही ज्यादा घाटॆ में चल रही है और या तो बंद होने वाली है या हो चुकी है, पूरी जानकारी नहीं है। सरकारें कोई सी भी आ जायें पर घाटे में चलने वाले उपक्रमों का हाल वही रहता है, कोई रेड इंक को बदलना ही नहीं चाहता है।

    हम भी एम.पी. रोडवेज की बस में ही चढ़ लिये पीछॆ ही राजस्थान रोडवेज की बस थी, दोनों बसों में देखते ही जमीन आसमान का अंतर पता चल रहा था, कहाँ एम.पी. की खटारा बस और कहाँ राजस्थान की ए.वन. नई दुल्हन सी चमचमाती मोटर। खैर एम.पी. का सपोर्ट करते हुए हम चढ़ लिये। और एक घंटे की जगह दो घंटे में धौलपुर पहुँच गये।

आज बांके बिहारी के दर्शन के लिये निकल रहे हैं, वृन्दावन धाम।

॥ जय बांके बिहारी लाल की ॥

दस दिन की यात्रा पर निकल रहे हैं धौलपुर (राजस्थान), वृन्दावन, मथुरा, आगरा, इंदौर और उज्जैन

    आज हम दस दिन की यात्रा पर निकल रहे हैं, और इस दौरान हम धौलपुर (राजस्थान), वृन्दावन, मथुरा, आगरा, इंदौर और उज्जैन शहर की यात्राएँ करेंगे।
    आज २६ मई को हम कर्नाटक एक्सप्रेस से ग्वालियर के लिये निकल रहे हैं और फ़िर आगे का सफ़र बस से जो कि धौलपुर का एक घंटे का है।
    वैसे तो कई बार लंबी यात्राएँ कर चुके हैं, परंतु इतनी लंबी यात्रा बहुत दिनों बाद हो रही है, देखते हैं कि क्या क्या अनुभव होते हैं, कैसे यात्री मिलते हैं।
    जिंदगी अब इस मोड़ पर है कि अब जिंदगी के कुछ अहम निर्णय भी लेना हैं।
    वृन्दावन में द्वारकाधीश (ठाकुरजी), मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन का लाभ लेंगे और उज्जैन में तो हर मंदिर के दर्शन का लाभ लेंगे।
    इस दौरान सफ़र में पढ़ने के लिये काफ़ी समय रहेगा, वैसे तो हमने बी.एस.एन.एल. का डाटा कार्ड ब्राडबैंड लिया है, अगर सिग्नल बराबर मिलते रहे तो इस बार अधिकतम ब्लॉगों को पढ़ने की योजना है और एक किताब जो अभी हम पढ़ रहे हैं, वह भी साथ ही रहेगी।
    इस प्रकार वापसी ४ जून की सुबह भोपाल से राजधानी एक्सप्रैस से बैंगलोर के लिये होगी जो कि बैंगलोर ५ जून प्रात: पहुँचेगी।
    आशा है और उम्मीद है कि यात्रा सुखद होगी और भरपूर ताजगी छुट्टियों के दौरान मिलेगी ।
* *** जय महाकाल *** *

मद कौन सा अच्छा भौतिक या श्रीमद…

    मद बहुत अच्छी चीज है, परंतु वह मद कैसा है इस पर निर्भर करता है कि उस मद में चूर होकर व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है। व्यक्ति मद में आकर ही अपना व्यवहार बदलता है।

    भौतिक मद से व्यक्ति की बुद्धि मदमस्त हो जाती है और वह अन्य व्यक्तियों को नुक्सान पहुँचाने लगता है और खुद को भी नुक्सान पहुँचाता है।

    एक है श्रीमद, श्री याने कि राधारानी और मद नशा तो जो कृष्ण जी और राधारानी के मद में डूब गया वह दुनिया को हृदय से देता है क्योंकि वह हृदय से श्रीमद में है।

    कहने के लिये तो बहुत कुछ कहा जा सकता है, परंतु सबकी अपनी अपनी परिभाषाएँ हैं, और मद के बारे में भी ऐसा ही है, जो भौतिक मद में डूबा वह कभी उबर नहीं पाता और न ही खुद निकल पाता है और न ही दूसरों को निकाल पाता है। जो श्रीमद में डुबा वह खुद तो इस भवसागर से तर ही जाता है और दूसरों को भी तार देता है।

तो कोशिश करें कि श्रीमद में डूबे रहें, योगेश्वर श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे रहें।

   कहा गया है कि श्रीरामचंद्र जी का जीवन अनुकरणीय है परंतु श्रीकृष्ण जी का जीवन चिंतनीय है ।

जय श्री कृष्ण !

आज के परिपेक्ष्य में गोवर्धन पर्वत प्रसंग..

    आज श्रीमदभागवत कथा सुन रहे थे, तो उसमें एक प्रसंग था जब कृष्णजी इन्द्र के प्रकोप की बारिश से बचाने के लिये गोकुलवासियों के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी चींटी ऊँगली याने कि सबसे छोटी ऊँगली से तीन दिनों तक उठा लेते हैं, तो गोकुलवासी भी पर्वत को उठाने में अपने सामर्थ्य अनुसार योगदान करते हैं, कोई अपने हाथों से पर्वत को थामता है तो कोई अपनी लाठी पर्वत के नीचे टिका देता है। इस तरह से तीन दिन बीत जाते हैं, तो गोकुल वासी कृष्णजी से पूछते हैं “लल्ला तुमने तीन दिन तक कैसे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया ?” अब कृष्णजी कहते कि मैं भगवान हूँ कुछ भी कर सकता हूँ तो गोकुलवासी मानते नहीं, इसलिये उन्होंने कहा कि “आप सब जब पर्वत के नीचे खड़े थे और सब मेरी तरफ़ देख रहे थे, तो मेरे शरीर को शक्ति मिल रही थी और उस शक्ति को मैंने अपनी चीटी यानी कि छोटी ऊँगली को देकर इस पर्वत को उठा रखा था” तो भोले भाले गोकुल वासी बोले “अरे ! लल्ला तबही हम सोच रहे हैं कि हम सभी को कमजोरी क्यों लग रही है ।”

    अब यह तो हुआ कृष्णजी के जमाने का प्रसंग अब अगर यही आज के जमाने में हुआ होता तो सबसे पहले तो उनको अस्पताल ले जाया जाता और पता लगाया जाता कि “लल्ला” में इतनी ताकत कैसे आई और इतना बड़ा पर्वत उठाने पर भी एक फ़्रेक्चर भी नहीं आया। फ़िर विरोधी पक्ष सदन में हल्ला मचाता कि इतनी मुश्किल से इंद्र देवता ने बारिश की थी और ई लल्ला ने ऊ सब पानी बहा दिया फ़िर सबही चिल्लाते हैं कि पानी की प्रचंड कमी है।

    और जो जबाब कृष्ण जी ने गोकुलवासियों को दिया था वही जबाब आज देते तो सब उनके पीछे पड़ जाते कि ई लल्ला ने किया ही क्या है, हमारी सबकी थोड़ी थोड़ी ताकत का उपयोग करके ई छॊटा सा पराक्रम कर दिया अब इस ताकत के बदले में हम सबको अनुदान दिया जाये और इस लल्ला के विरुद्ध एक जाँच कमेटी बनायी जाये कि इस लल्ला ने कौन कौन से पराक्रम किस किस की ताकत का उपयोग करके किये हैं।

वाकई भगवान श्रीकृष्ण अपना माथा ठोक लेते ….. ।