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आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था

    आज दोपहर छुट्टी होने पर भी कार्यालय के एक कॉन्फ़्रेंस कॉल पर थे, तभी घर के बीएसएनएल फ़ोन पर घंटी आना शुरू हो गई, हमने अपनी कॉल को म्यूट पर कर के लैंडलाईन उठाया तो सामने से बंदा कहता है कि “मैं चैन्नई से बोल रहा हूँ, मेरा नाम रमेश है” ।

    इसी बीच मैंने उसे कहा एक मिनिट होल्ड करो, और मैं अपनी कॉन्फ़्रेंस कॉल में व्यस्त हुआ, २ मिनिट बाद फ़्री होने के बाद फ़िर चैन्नई वाले बंदे से मुखतिब हुआ, कुछ लोन की बातें करने लगा, तो मैंने उसे टरकाना चाहा कि भई हमें लोन वोन नहीं चाहिये ।

    सामने से बंदा कहता है कि नहीं सर हम लोन नहीं दे रहे हैं, आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था, हमने उसके लिये फ़ोन किया है, हमने तत्काल अपने बेटे को कहा “जरा कागज और पैन देना, इसकी जन्मकुंडली लिख लें” । जब कागज कलम आये तो हमने उससे पूछा कि “हाँ भाई अब आप अपना पूरा नाम बतायें”,

वह बोला “मेरा नाम रमेश ही है”,

मैंने कहा “अपना सरनेम भी बतायें”,

वह बोला “नहीं सर, केवल रमेश ही है”,

मैंने कहा “अच्छा तुमको किसी ने सरनेम नहीं दिया क्या ?”

अब तक वह घबरा चुका था, फ़िर हमने कहा “अच्छा ठीक है रमेश, अब अपना फ़ोन नंबर और पता बताओ” ।

वह बोला “सर आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था, उसी के लिये आपको फ़ोन लगाया है”,

हमने कहा “तभी तो भैया आपका नाम पता ले रहे हैं, क्योंकि हम पहले ही आरबीएस बैंक से बहुत मगजमारी कर चुके हैं और अब तुमने फ़ोन किया है, तो अब बैंक और तुमको दोनों को हम कोर्ट में घसीटेंगे”,

वह बोला “सर एबीएन अमरो बैंक तो बंद हो चुका है, हम तो कोटक महिन्द्रा बैंक से बोल रहे हैं”

हमने कहा “अच्छा, तो हमारा लोन कोटक को बेच दिया गया है ?”

वह बोला “सर हम तो लोन की रिकवरी के लिये फ़ोन लगाये हैं”

हमने कहा “हम आपके ऑफ़िस में आकर लोन के रूपये देंगे, बस आप अपना और अपने ऑफ़िस का पता बता दीजिये”

वह बोला “सर हम आपके घर आ जायेंगे”

हमने कहा “बेटा अगर घर आ गये तो सीधे कृष्णजन्मभूमि पहुँचोगे”

अब वह और घबरा गया था ।

फ़िर हमने कहा “कि कितना लोन लिये हैं हम ?”

वह बोला “सर आपसे कुछ बातें पहले वेरिफ़ाय कर लेते हैं”

हमने कहा “बिल्कुल नहीं, पहले तो आपने फ़ोन लगाकर हमें डिस्टर्ब किया और अब वेरिफ़िकेशन करना है, आपने फ़ोन कैसे लगाया, पहले आपको व्यक्ति का वेरिफ़िकेशन करना चाहिये, उसके बाद फ़ोन लगाना चाहिये, इसका मतलब यह तो नहीं कि दुनिया में जितने भी विवेक रस्तोगी ने लोन लिये हैं, उसका मैं अकेला देनदार हूँ”

वह बोला “सर आप कभी कॉस्को कंपनी में काम किये हैं”

हमने कहा “बिल्कुल नहीं”

वह बोला “सर आप छ: साल पहले इस कंपनी में बैंगलोर में थे ?”

हमने कहा “भई, हम तो पहले मुँबई में थे”

वह बोला “सॉरी सर, गलती हो गई” और फ़ोन रख दिया ।

    अब हम इस मामले को अभी यहीं रफ़ा दफ़ा कर रहे हैं, और अगर अगली बार फ़िर ऐसा कोई फ़ोन आया तो उसको पता नहीं कहाँ कहाँ लेकर जायेंगे, वह सोच भी नहीं पायेगा ।

डैडी जल्दी घर पर चाहिये तो भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान डैडी को जल्दी घर पर भेज दो..

    फ़िर चले अपने घर मुंबई, चैन्नई से वापिस शाम की फ़्लाईट है, सफ़र पर जाने के पहले पेट में जाने कैसा कैसा महसूस होता है, वह मैं अभी साफ़ साफ़ महसूस कर रहा हूँ, हाँ यात्रा रोमांचक होती है पर केवल तब जब आप कभी कभी यात्राएँ कर रहे होते हैं, परंतु अगर यात्राएँ जीवन का अंग बन जायें तो वह रोमांच खत्म ही हो जाता है, पूरा जीवन यायावर हो जाता है।

    बस अंतर केवल हममें और साधुओं में यही है कि वो नगरी नगरी बिना किसी लालच के ज्ञान बांटते हुए घूमते थे और हम घूमते हैं अपनी रोजी रोटी के लिये, बहुत पहले एक एस.एम.एस. आया था पहले जो लोग घर छोड़ कर दूर रहते थे अपने घरों से और कभी कभी घर आते थे, पहले उन्हें साधु कहते थे और अब उन्हें सॉफ़्टवेयर इंजीनियर कहते हैं।

    घर पर बता दिया है पर बेटे को नहीं बताने का बोला है, उसे बोला है कि डैडी जल्दी घर पर चाहिये तो भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान डैडी को जल्दी घर पर भेज दो, मैं उनके बिना नहीं रह पाता हूँ। कल तो भगवान से प्रार्थना करते हुए बहुत रो रहा था बोल रहा था “भगवान जी डैडी को जल्दी भेज दो मैं सबका कहना मानूँगा, कोई शैतानी नहीं करुँगा” तो मैंने बेटेलाल की मम्मी से पूछा कि अब क्या कर रहे हैं, पता चला कि कबका आँसू पोंछकर नीचे बगीचे में बच्चों की टोली में खेलने निकल गये हैं, सब नाटकबाजी है। हमें भी मन ही मन बहुत आनंद आया।

    बस इस सफ़र का आनंद अपने बेटे के पास जाकर ही खत्म होगा, हमेशा की तरह मैं जैसे ही घंटी बजाऊँगा, वो दरवाजा खोलेगा और बोलेगा अरे डैडी आ गये, और फ़िर एक पल के लिये शरमा जायेगा और फ़िर अपना समान भी ढंग से नहीं रख पाता हूँ कि मेरे ऊपर सवार हो जाता है, और प्यार करते हुए कहता है, तुतलाते हुए “डैडी, डैडी मैं आपके बिना नहीं रह पाता हूँ, मुझे आपकी बहुत याद आ रही थी, और मैं रोया भी था, आप मेरे लिये क्या लाये हो !!!” फ़िर “अच्छा नहीं लाये हो तो कोई बात नहीं, मुझे चाकलेट खानी है, आईसक्रीम खानी है !!” और इसी आनंद में अपनी सारी थकान उतर जाती है।

वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट

आज सायंकालीन सैर के साथ हम सुन रहे थे गोविंद प्रभू का लेक्चर वैदिक स्टाईल ऑफ़ मैनेजमेन्ट। जिसमें उन्होंने क्षत्रिय और ब्राह्मण के गुण बताये हैं।

आज फ़िर सायंकालीन सैर के लिये हम निकल पड़े मरीना बीच की ओर, फ़िर वहाँ समुद्र के किनारे लहरों को देखते हुए घूम रहे थे और जहाँ जनता थोड़ी भी कम होती थी वहीं युगलों की जुगत जमी रहती थी और युगल समुन्दर के किनारे एक दूसरे के आगोश में, एक दूसरे की बाँहों में, और भी न जाने कैसे कैसे बैठे थे जिससे बस वह अपने साथी के ज्यादा से ज्यादा समीप आ सके। खैर यह तो सभी जगह होता है कोई नई बात नहीं है।

फ़िर जब वापिस आने को हुए तो लेक्चर खत्म हो चुका था और एफ़.एम. पर गाने सारे तमिल भाषा में आ रहे थे, जो कि अपनी समझ से बाहर थे तो अपनी एम.पी.३ लिस्ट पर नजर डाली तो गुलाल के गाने नजर आये, बस मन चहक उठा, “मन बोले चकमक ओये चकमक, चकमक चकमक”, “रानाजी मोरे गुस्से में आये ऐसे बलखाये आय हाय जैसे दूर देश के टॉवर में घुस जाये रे ऐरोप्लेन” ।

चैन्नई मरीना बीच पर सुबह की तफ़री और समुद्र के कुछ फ़ोटो..

वैसे तो आजकल सुबह शाम घूमना बहुत जरुरी हो गया है, क्योंकि अब घूमना भी मजबूरी है, पसीना बहाओ, जितना हो सके और अपना वजन कम करो, अब चैन्नई में हैं तो आज सुबह का घूमना हमने मरीना बीच जाना तय किया और कुछ फ़ोटो भी निकाले। सुबह लोग समुद्र के पानी में लहरों के साथ मस्ती कर रहे थे, तो अनायास ही मुझे अपने बेटे की याद आ गयी, उसे भी ये अठखेलियाँ करना बहुत पसंद है, किनारे पर नावों का जमावाड़ा लगा था, वे नावें अपने नाविकों का इंतजार कर रहीं थीं।

देखिये और बाकी सुबह घूमने का आनंद और सुख केवल वही जान सकते हैं जो सुबह घूमने जाते हैं, सार्वजनिक करना ठीक नहीं है 🙂

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पहला दिन था अंदाजा ही नहीं लगा कि कितनी दूर आ गये हैं वहीं से पता लगाकर बस पकड़कर वापिस आ गये, तो उस बस के टिकट का भी फ़ोटो चस्पा दिये हैं, और साथ ही आजकल छावा पढ़ रहे हैं, जब भी जैसे भी समय मिल जाता है तो पढ़ते रहते हैं।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 10)[Darshan of ShrikalaHasti Shiva…]

    श्रीकालाहस्ती शिवजी की स्थली है, जो कि बहुत ही प्राचीन और भव्य मंदिर है, मैंने शायद आज तक इतना भव्य प्राचीन मंदिर कहीं देखा होगा। स्थापत्य का तो बेजोड़ नमूना है।

    श्रीकालाहस्ती एक छोटा सा गाँव है, जहाँ स्वर्णमुखी नदी बहती है। तिरुपति से श्रीकालाहस्ती तकरीबन ४५ कि.मी. है और करीब एक घंटा लगता है। यहाँ पर भी भगवान के नाम की लूट मची हुई है।

    श्रीकालाहस्ती में आते ही  वहाँ का नजारा मन मोहने वाला था, मंदिर के पार्श्व में पहाड़ी थी, और मंदिर का गुंबद दक्षिण भारतीय स्टाईल का सफ़ेद रंग में चमक रहा था, जो तालमेल था वह गजब ही था।

    जैसे ही हम मंदिर के बाहर पहुँचे तो देखा कि वहाँ इतना बड़ा मंदिर होने के बाबजूद कोई आधिकारिक जूता चप्पल स्टैंड नहीं था, बस अपनी चरणपादुकाएँ भगवान भरोसे छोड़ कर चल दिये।

    मंदिर का प्रवेशद्वार बहुत भव्य है और अंदर जाते ही देखते हैं, कि भारी भीड़ लगी हुई है क्योंकि वह राहु-केतु काल था शाम ४ से ६.३० बजे तक का काल। और वहाँ लिखा हुआ था, राहु-केतु पूजा २५० रुपयों में। स्पेशल पूजा १५०० रुपयों में। सब जगह रुपयों का इतना महत्व देखकर यह तो समझ में आ गया कि यहाँ मंदिर के नाम पर जनता को खूब लूटा जा रहा है।

    हमने निश्चय किया कि हम कोई टिकट नहीं खरीदेंगे और फ़्री दर्शन करेंगे क्योंकि दर्शन के लिये ज्यादा भीड़ नहीं लग रही थी। हम चल दिये फ़्री दर्शन के लिये। मंदिर की भव्यता देखते ही बन रही थी, हम जैसे ही दर्शन के  लिये शुरु हुए सबसे पहले गणपति जी के दर्शन हुए, बहुत ही सुन्दर मूर्ती थी, इतनी सुन्दर मूर्ती हमने आज तक देखी नहीं थी, फ़िर तो जितनी भी मूर्तियों को देखा सब एक से बढ़कर एक थीं, जब हम शिवजी के मंदिर की ओर बड़ते चल रहे थे, तभी एक शिवजी का का सस्त्रशिवलिंग रुप दिखाई दिया, काफ़ी अद्भुत था यह शिवलिंग हमने पहली बार ऐसा शिवलिंग देखा था, और बहुत ही मनमोहक था। हम तो धन्य हो गये शिव के इस रुप के दर्शन करके। हम पहुँच चुके थे, श्रीकालाहस्ती के गर्भगृह के द्वार पर, हमें बाहर से ही दर्शन करने पड़े क्योंकि अंदर केवल १५०० रुपये वाले ही दर्शन कर सकते थे। वाह री माया तेरे खेल निराले, हमने बाहर से ही दर्शन किये पर बाबा के यहाँ माया का खेल देखकर मन खिन्न हो उठा। श्रीकालाहस्ती एक वायुलिंग है और शायद ही हमने ऐसा शिवलिंग कहीं देखा होगा, हम तो धन्य हो गये उनके दर्शन करके। जय श्रीकालाहस्ती।

    फ़िर जब हम बाहर की ओर आ रहे थे, तो देवी देवताओं की एक से एक बेजोड़ मूर्तियों के दर्शन हो रहे थे । एक मूर्ति बाबा कालभैरव की थी, बहुत ही प्राचीन और अतिसुन्दर पहले बार हमने बाबा कालभैरव की ऐसी मूर्ती देखी थी मन प्रसन्न हो गया।

    जब हम मंदिर के बाहर आने लगे तो देखा कि वहाँ दीपदान हो रहा है, बहुत सारे लोग एक साथ दीपदान कर रहे हैं, एक स्टैंड बना हुआ था, जहाँ पर लोग दीपदान कर रहे थे। बहुत ही सुन्दर और अनुपम दृश्य था।

    जब हम मंदिर से बाहर निकल रहे थे, तो देखते जा रहे थे कि ऊपर पहाड़ी से पटाखों की आवाज आ रही थी और किसी की सवारी आ रही थी, जब तक हम बाहर पहुँचे तब तक सवारी हमारे सामने आ चुकी थी, नंदी महाराज आगे थे बहुत ही सुन्दर उनकी सज्जा की गई थी, और श्रीकालाहस्ती उनके पीछे पालकी पर थे, हम तो बाबा के दर्शन करकर धन्य हो गये। इंसानों ने मंदिर में दर्शन नहीं करने दिये तो बाबा ने बाहर आकर खुद ही दर्शन दे दिये। फ़ोटो हम खीच नहीं पाये क्योंकि मोबाईल मंदिर में निषेध है इसलिये मोबाईल हम टैक्सी में छोड़ आये थे। पर मन मोह लिया इस दृश्य ने।

    दर्शन कर चल दिये हम वापिस अपनी टैक्सी की ओर वापिस चैन्नई जाने के लिये, चैन्नई अब हमारे लिये तकरीबन १४० कि.मी. था ये दूरी हमने तय की तकरीबन तीन घंटे में, शाम छ: बजे निकले और नौ बजे गंतव्य पहुँच गये।

    कुछ फ़ोटो श्रीकालहस्ती के देखिये जो हमने जाते समय निकाले –

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सूर्यास्त                                            मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी

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मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी                          सूर्यास्त

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ९ [आन्ध्रा भोजन, माँ पद्मावती के दर्शन, लड्डू ..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 9)[Andhra Food, Maa Padmavati Darshan and laddu…]

जैसे ही तिरुपति पहुंचे एक सुन्दर सी मूर्ति ने हमारा स्वागत किया।

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    फ़िर हमने अपने ड्राईवर अब्दुल को कहा कि चलो अब कुछ अच्छा सा खाना खिलवा दो, तो वो एक विशुद्ध आन्ध्रा स्टाईल थाली वाले होटल में लेकर गया। जहाँ पर केले के पत्ते पर खाना परोसा गया। जिसमें चावल मुख्य भोजन और साथ में सांभर, दाल, दो तरह की सब्जी और एक चटनी थीं, साथ में पापड़ था। हम भी बिल्कुल ठॆठ देसी श्टाईल में शुरु हो गये मतलब हाथ से, वाह क्या स्वाद था। वैसे हमारा मानना है कि जहाँ जाओ वहाँ का खाना खाओ तो ज्यादा अच्छा मिलेगा बनिस्बत कि हर जगह नार्थ का खाना ढ़ूंढ़ते रहो, और अगर मिले भी तो टेस्ट ऐसा कि बाद में सोचो कि इससे अच्छा तो चावल ही खा लेते।

    फ़िर वहाँ से चल दिये पद्मावती मंदिर, जो कि लक्ष्मी माता का मंदिर है, मान्यता है कि बालाजी के दर्शन करने के बाद माँ लक्ष्मी के दर्शन पद्मावती मंदिर में करने चाहिये।  यह मंदिर तिरुपति में थोड़ा बाहर की ओर बना है, लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर लूट मची हुई थी, पार्किंग जो कि सड़क के किनारे ही बनी हुई थी, उसके भी ३० रुपये वसूल लिये गये। खैर यह तो आजकल लगभग सभी धार्मिक स्थलों पर होता है।

    फ़िर देखा कि यहाँ भी स्पेशल दर्शन वाली व्यवस्था है, टिकट १० के स्पॆशल दर्शन, ४० में शीघ्र दर्शनम, २०० रुपये में २ व्यक्ति तत्काल दर्शन। मंदिर के काऊँटर पर ही एक व्यक्ति मिल गया जो हमसे बोला कि मैं आपको २०० वाले दर्शन करवा देता हूँ, अगर आप काऊँटर से टिकट लोगे तो ४०० रुपये लगेंगे, पर मुझे आप ३०० ही देना। मैंने उससे पूछा कि हमें टिकट तो मिलेगा न, और टिकट के पैसे कौन रखेगा, तो वो ठग महाधूर्त हँसकर बोला कि टिकट के पैसे तो मेरी जेब में ही जायेंगे और आपके सौ रुपये भी बचेंगे। यह सब बातें मंदिर के सुरक्षाकर्मियों के सामने हो रही थीं, उन्हें भी सब पता है, शायद इसमें उनका भी हिस्सा रहता होगा। मन भर आया भगवान के यहाँ इतना भ्रष्टाचार देखकर, कि इंसान जिससे अपनी रोजी रोटी चला रहा है, उसको भी धोखा खाने से बाज नहीं आ रहा है।

    हमने ४० वाले टिकट लिये और दर्शन के लिये चल दिये, उसमें भी फ़टाफ़ट दर्शन हो गये और माँ पद्मावती के दिव्य दर्शन मिले। वहाँ पर भी पुजारी का ध्यान प्रसाद और फ़ूलमालाओं में नहीं भक्तों से नोट बटोरने में था, अगर भक्त नोट दानपेटी में डालने जा रहा होता तो पुजारी हाथ लगाकर उसे अपनी मुठ्ठी में कर लेते, कितना बड़ा धोखा कर रहे हैं ये लोग हमारे साथ भी, और उनके नाम पर भी जिनके नाम की ये माला जप करते हैं, जिन देवी की आराधना करते हैं।

    फ़िर हमने अपने २ लड्डू प्राप्त किये और चल दिये वापिस अपनी टैक्सी की और। मन खिन्न हो आया इतना पाखंड और इतना भ्रष्टाचार देखकर।

    अब हम चल दिये श्रीकालाहस्ती की ओर, जो कि राहु-केतु की विशेष पूजा और कालसर्पयोग पूजा के लिये प्रसिद्ध है।

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    वहीं सामने (हुंडी के) एक छोटा सा मंदिर ओर था, जिसमें परिक्रमा के बाद एक पत्थर नीचे टेबलनुमा चीज पर रखा था, जिसपर लोग अपनी मनोकामनाएँ लिख रहे थे, शायद पूरी भी होती होंगी।

    फ़िर वहीं हुंडी के सामने सीढ़ियों पर हम बैठ गये, अच्छी खिली हुई धूप थी, टकलाने के बाद धूप बहुत ही अच्छी लग रही थी, वैसे भी ठंड के मौसम में धूप सेंकने का आनंद बहुत दिनों बाद मिला था, क्योंकि पिछले ४ सालों से मुंबई में रह रहे हैं और ठंड की आदत खत्म हो गयी है। कुल्लू मनाली, रोहतांग और मनिकर्ण साहिब गये थे, तबही ठंड देखे थे।

    फ़िर वापिस मुख्य द्वार से बाहर की ओर निकले, उल्टे हाथ की ओर जाना था, वहीं पर बालाजी के यहाँ आये हुए चढ़ावे की गिनती होती है, ये जेल जैसा एक लंबा सा रास्ते के साथ जाता हुआ गलियरे में बनाया गया है, जिसमें हुंडी में और दानपेटी में आई हुई रकम और आभूषणों को आप देख सकते हैं, कम से कम २५ लोग छँटाई और गिनाई का काम करते हैं, जहाँ आप देख सकते हैं, पहले कुछ लोग केवल नोट सीधा करने का कार्य करते हुए मिलेंगे, फ़िर नोट अलग अलग करेंगे, जैसे १०००, ५००, १००, ५०, २०, १०, ५, २, १। फ़िर आगे वाले लोग उनकी गड्डी बनायेंगे और रखते जायेंगे। कितने ही डॉलर भी थे और कितनी ही अलग अलग करंसी।

    अवधारणा है कि हुंडी में लोग बालाजी का हिस्सा डालते हैं, जी हाँ यह सच है, वहीं के एक व्यक्ति ने मुझे बताया था, कि लोग बालाजी को अपने व्यापार में पार्टनर बनाते हैं, और जितना भी हिस्सा तय होता है, वह बालाजी के पास देने आते हैं, अब भला खुद ही सोचिये जिसके व्यापार के पार्टनर खुद बालाजी हों, उसके व्यापार में भला कभी हानि या परेशानी हो सकती है।

    वहीं आगे लिखा था मुफ़्त प्रसादम, हम भी उधर ही लाईन में लगकर चल दिये। वहाँ पर एक बड़ा सा कमरा जो कि लोहे की राडों से बना हुआ था, और उसमें पीतल के बड़े बड़े बर्तनों में हलुआ, और चावल बने हुए रखे थे, शुद्ध घी ऊपर तैरता हुआ नजर आ रहा था। दोनों तरफ़ एक एक पंडित कागज के दोनों में प्रसाद भक्तों को दे रहे थे। दोने में शुद्ध घी से बने हुए गुड़ में पगे हुए चावल थे, दोने हालांकि छोटे थे, और प्रति व्यक्ति केवल एक ही दोना मिल रहा था, जो भी एक से ज्यादा दोनों के लिये बोल रहे थे, किसी को दे रहा था तो किसी को झिड़क रहा था, नीचे चलते हुए चिपचिप हो रही थी, क्योंकि लोग खाते हुए गिरा भी रहे थे, हमने पूरे मजे लेते हुए वह प्रसाद उदरस्थ किया, और दिल से बालाजी को नमन कर यह अवसर देने के लिये धन्यवाद दिया। वहीं हाथ धोने के लिये बहुत सारे नल लगे हुए हैं, वहीं हाथ धोकर, निकल पड़े मंदिर के परकोटे से बाहर की ओर जहाँ लिखा था, कि लड्डू के लिये टीटीडी देवस्थानाम का रास्ता, हम उधर ही चल पड़े।

    परकोटे से सटा हुआ लंबा सा गलियारा है, जहाँ लोगों की बहुत भीड़ थी, लड्डू लेने जाने वालों की भी और लेकर आने वालों की भी। वहीं पर बालाजी को बेचने वाले ओह माफ़ कीजियेगा उनकी तस्वीरें और किताबें और भी पता नहीं क्या क्या। हम सबको अनदेखा करते हुए लड्डू लेने के लिये चल दिये,  जो कि गलियारा खत्म होते ही दायीं ओर जाने पर सामने एक बड़ा सा हाल दिखता है, जहाँ लिखा हुआ भी है, लड्डू प्रसादम, १० की लाईन अलग, ५० की अलग, ३०० की अलग, वीआईपी की अलग, वाह री माया। सब अलग बैंको के काऊँटर थे, जहाँ लड्डू मिल रहे थे। लड्डू के साथ लड्डू का कवर फ़्री नहीं था, उसके लिये अलग से दो रुपये शुल्क देय है। हमने भी अपनी जेब से दो रुपये शुल्क दिया और कवर में लड्डू रखकर हमें दे दिये गय। पूरे वातावरण में लड्डुओं की महक, मन तो बस लड्डुओं में ही रम गया था। वैसे भी पुरानी कहावत है कि अगर किसी का दिल जीतना है तो “रास्ता पेट से होकर जाता है”। अगर लड्डू अच्छा है तभी तो आप बालाजी वापिस आने का सोचेंगे, भले ही दर्शन के लिये नहीं पर लड्डू के लिये जरुर।

    वापिस आते हुए फ़िर वही गलियारा पड़ा और हमने भी बालाजी की हिन्दी की एक कॉमिक्स और इतिहास की किताब ली। वहीं बायीं ओर बहुत बड़ा कुण्ड है जहाँ पर लोग नहाते भी हैं, फ़िर हम चल दिये मंदिर के बाहर की ओर, बहुत बड़ा मैदान पार करने के बाद, सीढ़ियाँ आईं, वहाँ पर नारियल और कपूर बिक रहा था, वहाँ पर नारियल और कपूर बालाजी को चढ़ाया जाता है, मतलब होम किया जाता है, वहाँ पर बहुत सारे नारियल एक साथ होम हो रहे थे। वह नजारा देखते ही बनता था, चारों ओर कपूर की गंध माहौल में थी।

    हमने फ़िर ड्राईवर अब्दुल को एस.टी.डी. से फ़ोन लगाया कि हम टैक्सी पर पहुँच रहे हैं तुम आ जाओ। बहुत जोर से भूख लगने लगी थी, परंतु यह निश्चय किया गया कि खाना तिरुपति जाकर खायेंगे।

    जब तक अब्दुल आता तब तक हमने फ़िर एक कड़क कॉफ़ी पी, और कुछ धार्मिक खरीददारी की। तब तक ड्राईवर अब्दुल भी आ गया और हम चल दिये तिरुपति की ओर।

    फ़िर घुमावदार सड़कें और चारों ओर हरियाली एक तरफ़ खाई, एक तरफ़ पहाड़ी। आते हुए लोग दिख रहे थे, जो कि पैदल यात्री थे, तिरुपति से पैदल बालाजी आ रहे थे, कुछ फ़ोटो हमने टैक्सी में से लिये, एक जगह हमने टैक्सी रुकवाई कि चलो हम फ़ोटो खींच लें, एक फ़ोटो सेशन हो जाये। देखिये फ़ोटो –

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    आखिरी फ़ोटो में देखिये जैसे ही जैसे तिरुपति नजदीक आने लगा, वहाँ का हमने एक फ़ोटो ले लिया।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ७ [बालाजी के दिव्य दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 7)[Balaji Amazing Darshan…]

    तभी हमारे पास की एक ओर लाईन  खोल दी गई लोग धड़ाधड़ उसमें से हमसे भी आगे जाने लगे तो हमें बहुत कोफ़्त हुई कि ये क्या हो रहा है पर वो वापिस घूमकर हमारे पीछे लगे तो हमें पता चला कि अब इस लाईन में लगने की जगह नहीं है इसलिये इस लाईन को बंद कर एक रेलिंग छोड़ दूसरी रेलिंग खोल दी गई है। हमारे पास में फ़िर एक दक्षिण भारतीय फ़ैमिली खड़ी हुई, पास वाली रेलिंग में, जिनकी बहुत ही प्यारी सी बिटिया साथ में थी, और सबसे ज्यादा हमें उसके वस्त्रों ने आकर्षित किया उसने बहुत ही सुन्दर सफ़ेद कलर का सिल्क का फ़्राक पहना था, जिसमें स्वर्ण के धागे की बोर्डर थी। वहाँ हमने जितनी भी महिलाएँ देखीं सब सिल्क ही धारण किये हुए थीं। कई महिलाओं ने भी केश दान किये थे, उनको देखना कुछ अजीब सा लग रहा था।

    थोड़ा आगे बड़े तो वहीं पर फ़िर एक मोबाईल काऊँटर था, कि अगर किसी के पास अगर मोबाईल हो तो उसे वह वहाँ जमाकर सकता था। सुरक्षा व्यवस्था ठीक थी, और धार्मिक स्थलों जैसी सुरक्षा चाक चौबंद नहीं थी। फ़िर हमने ३०० रुपये का टिकट लिया जिस पर लिखा था कि प्रति व्यक्ति दो लड्डू मिलेंगे। जो कि टीटीडी के काऊँटर से १२ घंटे के अंदर आप ले सकते हैं। तिरुपति बालाजी के ये लड्डू विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।

    जैसे ही पहला बैरिकेड पार किया टिकट का एक हिस्सा फ़ाड़ लिया गया और वहीं पर देवस्थानम के गुंबद का छोटा सा मॉडल बना हुआ रखा था। फ़िर बेरिकेड्स के रास्ते धीरे धीरे आगे बड़ने लगे। नीचे पहुँचे तो वहाँ रास्ते में ही कमरे जैसे बनाये हुए हैं, जिसमें बैठने के लिये बैंच लगा रखी हैं, जिस पर बैठकर सुस्ता सकते हैं जब तक कि वहाँ का दरवाजा नहीं खुल जाता।

    इस तरह कम से कम दस दरवाजों से गुजरना पड़ा। फ़िर एक लंबा सा गलियारा आया और फ़िर बिल्कुल खुला हिस्सा जहाँ पर एक पुल से देवस्थानम की ओर जाना था, यहाँ सुन्दरसन दर्शन और मुफ़्त दर्शन वालों की लाईन साथ में ही लगी हुई थी, अब अंतर यह था कि वे लोग खड़े थे और हम लोग फ़टाफ़ट आगे बड़ते जा रहे थे। जल्दी ही बालाजी के मुख्य मंदिर का द्वार आ रहा था। मुख्य द्वार के पहले एक अजीब सी बात देखने को मिली कि मंदिर की दीवार बहुत ही प्राचीन थी और उसमें पत्थरों के बीच लोग पैसे घुसा देते हैं, और पैसे भी पूरे घुसे हुए थे, और कुछ सिक्के तो बहुत सालों से अंदर हैं ऐसा प्रतीत हो रहा था। शायद पत्थर भी अपनी थोड़ा ऊपर नीचे होते होंगे इसलिये फ़ंसे हुए सिक्के भी तिरछे हो चुके थे, जिनके निकलने की कोई उम्मीद भी नहीं है।

    मंदिर का मुख्य द्वार आ चुका था, वहीं पर पानी का छोटा सा स्रोता जैसा था, जिससे अपने पांव शुद्ध हो जायें। और फ़िर बिल्कुल सामने मुख्य मंदिर था, जहाँ तिरुपति बालाजी विद्यमान हैं। बिल्कुल ऐसा लगा कि स्वर्ग में आ गये हों, पूरा मंदिर स्वर्ण जड़ित है, स्वर्ण की आभा से सब दमक रहा है, हम अपने को भूल चुके थे, और गोविंदा गोविंदा कह रहे थे।

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फ़ोटो गूगल सर्च से ढ़ूंढ कर लगाये हैं।

   बहुत भीड़ थी, जैसे जैसे मंदिर में अंदर की ओर जा रहे थे, भीड़ का दबाब बड़ता जा रहा था। रेलिंग के बीच फ़ँसे हुए हम लोग आगे जा रहे थे, बालाजी बिल्कुल हमारे सामने थे, हम एकटक देखे जा रहे थे, मात्र १ या २ मिनिट होते हैं चलते हुए ही दर्शन करने होते हैं, हम भी अपने हाथ ऊपर करके गोविंदा गोविंदा करते हुए दर्शन लाभ ले रहे थे, हम भूल गये थे कि हम भीड़ में हैं, पूरे मनोयोग से बालाजी में ध्यानमग्न थे, बालाजी हमारे सामने थे, सबसे आनंददायक क्षण थे ये जीवनकाल के। रोम रोम भक्ति में डूबा हुआ था, सामने हल्की सी टिमटिमाती रोशनी में बालाजी के दर्शन से हम धन्य हो गये।

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    हम जैसे ही बाहर निकले हमारे ठीक दायीं ओर एक द्वार था, जिस पर ताला लगा हुआ था और लाख की सील लगी हुई थी, जिस पर लिखा था, वैकुण्ठ द्वार, जो कि केवल वैकुण्ठ चतुर्दशी और उसके अगले दिन ही खुलता है। फ़िर वहीं पास में बैठकर हम मंदिर के गुंबद को बाहर से निहारने लगे। भला स्वर्ग में से भी किसी के जाने की इच्छा होती है। वहाँ और भी मंदिर थे, उनमें भी दर्शन किये।

    वहीं पर लक्ष्मीजी की एक मूर्ती थी लोग उस पर अपना पर्स, नोट छूकर अपने को धन्य मान रहे थे, बेचारे सुरक्षाकर्मी उन्हें भगाभगाकर परेशान थे। वहीं फ़िर बालाजी की हुंडी थी, जिसमें लोग अपना हिस्सा बालाजी को देते हैं। हमने कई लोगों को देखा जो बड़ी रकम भी डाल रहे थे, और अपने को धन्य मान रहे थे। सब अपनी श्रद्धा अनुसार हुंडी कर रहे थे।

    हुंडी एक बड़ा सा पात्र जैसा होता है, जिसमें बालाजी के लिये चढ़ावा डाला जाता है, जो कि एक बड़े सफ़ेद कपड़े से घड़े जैसी आकृति का पात्र होता है।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ६ [शीघ्र दर्शनम की लाईन में..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 6)[In quick darshan Que…]

    अपना मोबाईल बंद करके टैक्सी में अपने बैग में ही रख छोड़ा, फ़िर चल पड़े तिरुपति बालाजी देवस्थानम दर्शन करने के लिये। अपने सैंडल भी टैक्सी में ही रख दिये केवल कुछ नकद और क्रेडिट कार्ड लेकर चल दिये।

    ध्यान रखें पर्स, बेल्ट इत्यादि चीजें न ले जायें तो बेहतर होगा, यहाँ किसी भी मंदिर में इलेक्ट्रानिक उपकरण और मोबाईल ले जाना निषेध है। इसलिये पहले ही इन सब चीजों को हटा दें। जिससे अगर गलती से भी चली जायें तो खोने का या लॉकर में रखने की दिक्कतों से बच सकते हैं। फ़िर हमने अपनी टैक्सी के पास ही फ़ोटो खिंचवा लिया।

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    बहुत जोर से पेट में चूहे कूद रहे थे, तो पार्किंग के पास ही शापिंग कॉम्पलेक्स में इडली, बड़ा और सांभर चटनी मिल गये, थोड़ा खाया तृप्ति मिल गई।

    फ़िर चल पड़े वापिस उसी रास्ते पर जिधर केश देने के लिये हाल में गये थे, रास्ते में छोटी छोटी दुकानें लगी हुई थीं। वहीं पर तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट की मुफ़्त भोजनशाला भी थी। और वहीं एक और बोर्ड लगा हुआ था, कि लोकल, एसटीडी काल करने के लिये इधर जायें, व्यवस्था देवस्थानम की ओर से है, एवं इसका कोई शुल्क नहीं है।

    तिलक लगाने वाले बहुत सारे लोग घूम रहे थे जो कि बालाजी की स्टाईल में तिलक लगा रहे थे। वहीं पास ही टोपियों की दुकान भी थी, जो नये नये टकले हुए थे, जिनके लिये टकलाना नया अनुभव था, उन्हें ठंड लग रही थी। हालांकि हम भी टकलाने के मामले में पुराने तो नहीं थे परंतु नये भी नहीं थे। इसलिये टकलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था।

    वहीं पर ३०० रुपये के शीघ्र दर्शनम टिकट का बोर्ड दिखा जो हमारा मार्गदर्शन कर रहा था, हम भी बोर्ड देखते हुए चले जा रहे थे। फ़िर एक सुरक्षाकर्मी को हमने पूछा कि और कितना दूर है, वो बोला और आगे जाईये और पहली लाईन में लग जाईये। वहाँ सेवक भी खड़े थे, जैसे ही हम वहाँ पहुँचे फ़िर से हमने उनसे पूछ लिया कि भैया यह ३०० रुपये के टिकट वाली लाईन ही है न, वो बोले बिल्कुल लग जाईये लाईन में। हम सबसे पीछे लगे थे लाईन में। हमने पूछा कि कितना समय लगेगा, तो वो सेवक जी बोले आज रविवार का दिन है, और बहुत भीड़ है, १-२ घंटे में दर्शन हो जायेंगे। हम लाईन में लग लिये, और महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का जाप करने लगे। कुछ लोग “ऊँ वेंकटेश्वराय नम:” का जाप कर रहे थे, कुछ समूह में लोग थे जो “गोविंदा गोविंदा” कहकर ध्यान आकर्षित कर रहे थे। पास की लाईन ५० रुपये के सुन्दरसन टिकट की लाईन थी, बड़ी ही जल्दी आगे बड़ रही थी, पर हमें बताया गया कि यहाँ केवल दिख रहा है कि ये जल्दी जल्दी आगे जा रहे हैं पर इनको दर्शन के लिये ५-६ घंटे लगने वाले हैं।

    हमारे आगे लाईन में एक फ़ैमिली थी, जो कि दक्षिण भारतीय थे और पीछे हिन्दी भाषी फ़ैमिली थी उससे लगा कि दिल्ली तरफ़ के हैं। हम आसपास का वातावरण के साथ साथ लोगों को महसूस भी कर रहे थे और महामंत्र का जाप भी कर रहे थे। तभी पास में से ५-६ टकले लोगों की टोली याने कि जिन्होंने केशदान किये थे निकले जो अलग ही लग रहे थे, क्योंकि उन्होंने सर पर चंदन लगाया हुआ था। और सिर पीले रंग से अलग ही चमक रहे थे। हमें तो उनको देखकर ही ठंड लगने लगी क्योंकि चंदन में ठंडक होती है, और वातावरण में पहले ही इतनी ठंडक थी। ऊपर प्लास्टिक की चद्दरों का शेड था जिसमें से सूर्य भगवान की हल्की सी तपिश आ रही थी, बड़ा अच्छा लग रहा था।

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    हम मनोरम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए तिरुमाला पहुँच गये, हाँ एक बात और कहीं भी अपनी टैक्सी न रोकें क्योंकि सड़कें बहुत घुमावदार हैं, और दुर्घटना होने का बहुत डर रहता है। और एक बात जब तिरुपति टोल से निकलते हैं तो आपको अपना सामान कन्वेयर बेल्ट वाली एक्सरे मशीन से निकालना पड़ता है और अगर वहाँ के सुरक्षाकर्मियों को शक होगा तो वो समान की खोलकर तलाशी लेंगे।
    तिरुपति पहुँचकर सबसे पहले हमने अब्दुल (टैक्सी ड्राईवर) का नंबर मोबाईल और कागज पर लिख लिया। यहाँ पार्किंग फ़्री है उसका कोई पैसा नहीं देना पड़ता है। हमें बाल देने थे तो हमने अब्दुल को बोला कि पहले हमें बता दो के बाल कहाँ देने हैं और मंदिर का शीघ्र दर्शनम टिकट कहाँ मिलेगा। उसने टैक्सी स्टैंड पर लगाकर हमें दिखाने आने लगा, तभी एक ठग टाईप का आदमी आया और कहने लगा कि आपको बाल देने हैं तो मैं सब बन्दोबस्त करवा देता हूँ, ढ़ाई सौ रुपये में बाल के साथ साथ तैयार होने के लिये कमरा भी दिलवा दूँगा। पर हमने उसे अपनी लठ भाषा बोलकर भगा दिया।
    फ़िर हम चल दिये अब्दुल के पीछे पीछे, हम अपने साथ एक जोड़ी वस्त्र और नहाने का समान लेकर आये थे जिसे साथ में लेकर हम उसके साथ चल दिये। अब्दुल तकरीबन ६० से ज्यादा बार यहाँ आया हुआ था तो उसे बहुत ही अच्छॆ से सब चीजें पता थीं। उसने हमें बताया कि यहाँ देवस्थानम है, यहाँ मुफ़्त में बाल दिये जाने की व्यवस्था है, जो कि तिरुपति देवस्थानम की ओर से दी जाती है, वहाँ अपने जूते उतारकर जाना पड़ता है।
    हम जैसे ही लाईन में लगे तो चलते ही गये, हाल के पहले हमें एक टोकन दिया गया और आधी ब्लेड, अंदर हाल में पहुँचे तो देखा कि बहुत सारे नाई वहाँ बैठे हुए हैं, और हमारे टोकन पर जिस नाई का नंबर लिखा हुआ था, हम भी उसके सामने लाईन में जाकर खड़े हो गये। तो उसे लगा कोई साहब आदमी आ गये हैं, उसने हमारे आगे वाले ५ लोगों को बाईपास कर हमें पहले बाल देने के लिये बैठा लिया, पानी से बाल गीले किये और जो आधा ब्लेड हमें दिया गया था, उससे हमारी हजामत बनाना शुरु कर दी, फ़िर हमसे पूछा कि दाढ़ी भी करनी है, हमने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी, तो दाढ़ी भी बना दी गई। फ़िर धीरे से बोला पैसा दो न, हमने पहले घूरकर उसकी तरफ़ देखा, फ़िर भी बोला पैसा दो न, हमने चुपचाप अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकाला और उसे थमा दिया, तो मुँह बनाते हुए उसने रख लिया। तभी देखा कि एक आदमी वहाँ आया और वे टोकन इकट्ठे करने लगा तो जितने भी नाई थे सबने अपने अपने टोकन दिये और साथ में दस दस के दो या तीन नोट भी रिश्वत के तौर पर पकड़ा रहे हैं। सबसे टोकन इकट्ठे करने के बाद हाल के बाहर एक कंप्यूटर लगा हुआ है जहाँ पर बारकोड रीडर से उन टोकनों को पंच किया जा रहा था, और जो दस दस के नोट बीच में से निकल रहे थे, उन्हें अपनी जेब में रखता जा रहा था। हम तो उन लोगों की बेशर्मी को देख रहे थे कि देवस्थान पर रिश्वत का नंगा नाच कर रहे हैं, और कोई भी इन लोगों के विरुद्ध बोलने वाला नहीं है। और अगर किसी को बोलो भी तो हिन्दी या अंग्रेजी न जानने का नाटक करने लगेंगे।
    फ़िर वहीं से नीचे जाने का रास्ता था, जहाँ नहाने की व्यवस्था थी, महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग गुसलखाने बने हुए हैं और गरम पानी भी उपलब्ध था, क्योंकि तिरुपति में अच्छी खासी ठंड थी।
    हम वहीं तैयार हुए और अपना समान लेकर चल दिये अपनी टैक्सी की ओर अपना समान रखने के लिये । वैसे वहाँ पर अमानती समान घर उपलब्ध है, वहाँ पर भी समान रख सकते हैं। पर हमें दर्शन करने के बाद फ़िर बहुत लंबा घूमकर इस स्थान पर आना पड़ता इसलिये हमने टैक्सी में ही हमने अपना समान रखना उचित समझा।
कुछ और चित्र देखिये –
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    पहले चित्र में देखिये बालाजी का मंदिर दिखाई देता है, और दूसरे चित्र में वहीं पास में ही एक मंदिर में चबूतरे पर बैठकर वहाँ की स्थानीय भाषा में भजन हो रहे थे, हालांकि हमें बोल समझ में तो नहीं आ रहे थे परंतु, बहुत ही आकृष्ट कर रहे थे।

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