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सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी

सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी, और किप्टम ने Nike के डेव 163 प्रोटोटाइप पहनकर दौड़ते हुए मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ा।

अभी दो सप्ताह पहले, दौड़ की दुनिया में तब हड़कंप मच गया जब टाइगस्ट असेफा ने बर्लिन मैराथन में 2:11:53 के समय में महिला मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया। असेफा ने हाल ही में जारी एडिडास सुपर शू, एडिज़ेरो एडिओस इवो प्रो 1 पहनकर यह मैराथन दौड़ी थी। और उसके बाद असेफ़ा को गर्व से जूते को अपने सिर के ऊपर उठाते हुए और फिनिश लाइन पर चूमते हुए भी देखा गया था।

रेस से पहले उन्होंने कहा, ‘यह अब तक का सबसे हल्का रेसिंग जूता है जो मैंने पहना है।’ ‘उसे पहनकर दौड़ना एक अद्भुत अनुभव है – जैसा मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया।’

लेकिन अब, ठीक दो हफ्ते बाद, नाइकी ने पलटवार किया है। इस वीकेंड शिकागो मैराथन में, केल्विन किप्टम ने 2:00:35 टाइमिंग में पुरुषों के मैराथन रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

इन सुपर शूज में कार्बन की एक परत लगा दी गई है, जिससे ये शूज बेहद हल्के हो गये हैं और इसकी शुरुआत nike ने की थी, जिसे बाद में सभी कम्पनियों ने अपना लिया।

जीवन की भागदौड़

सुबह अलसाई थी, आँख खुलने के पहले ही अहसास था और बारिश की आवाज आ रही थी। बारिश की आवाज से ओर आलस आ गया, फ्रेश होने के बाद घूमने जाना मुश्किल था। पर पेट कभी मन की नहीं सुनता, न खाली होने पर और न ही खाली होने के लिये, दोनों ही स्थिति में पेट को प्रायोरिटी चाहिए। पेट ही हमारे जीवन का केंद्रबिंदु है। पेट कम हो तो कम क्यों है, ज्यादा हो तो कम कैसे करें। सारी बीमारियों की जड़ भी पेट ही है, खाना खाता मुँह है, पर सजा पेट को भुगतना पड़ती है। बेचारा पेट सुबह कराह रहा होता है, पर मुँह है कि मानता ही नहीं।

मानसिक तंद्रा भंग होने के बाद, जब ध्यान में बैठे, तो आजकल ज्यादा देर बैठते भी नहीं बन रहा। मन और विचार कम से कम 2 या 3 गुना तेजी से चल रहे हैं जैसे प्लेयर पर बटन होता है ff1, ff2, या 1.5x, 2x etc बस मन और दिमाग भागे ही जा रहा है, जो रफ्तार जीवन ने पकड़ी है, उस रफ्तार पर ध्यान नहीं होता। ध्यान करने के लिये सहज होना होता है, और सहज स्थिति प्राप्त तभी होगी जब हम प्राकृति के तय समयानुसार अपने जीवनचक्र पर चलें।

एक साथ कई काम करना भी एक मजबूरी ही है, दिमाग अभी 3 अलग अलग तरह से बंटकर काम कर रहा था, तभी फोन बजा और एक चौथा स्थान उसने बना लिया। सभी को अपने कार्य प्रायोरिटी पर चाहिये। ऐसे ही कल जब प्रेशर में कुछ डॉक्यूमेंट रिव्यू के लिये आये तो तुनककर इतने अच्छे से रिव्यू किये कि अब वापिस रिव्यू के लिये शायद ही मुझे डॉक्यूमेंट भेजेंगे। काम तो सभी को परफेक्ट चाहिये, पर दूसरे से, अगर कोई दूसरा उसमें ढ़ेर गलती निकाल दे तो मुँह छोटा कर लेते हैं।

खैर जब एक कड़वी कॉफी पी, तभी जाकर थोड़ा दिमाग रिसेट हुआ है, अब लंच के बाद आज की आगे की लड़ाई, वो अलग बात है कि हम लंच नहीं करते।

पुराना मोबाईल कैसे बेचें, अब एक्सचेंज बंद है।

इस बार के अमेजन प्राइम डे में बेटेलाल के लिए नया फोन तो ले लिया। पुराने फोन के साथ एक्सचेंज ऑफर उपलब्ध तो थे, परंतु जब पेमेंट पेज पर आते थे तो लिखा हुआ आता था कि यह फोन बिना एक्सचेंज के आपके पिनकोड पर उपलब्ध है, मतलब कि बेंगलुरु में एक्सचेंज उपलब्ध नहीं था।

फिर हमने अमेजन कस्टमर केयर पर बात करी, पर समस्या का हल नहीं निकला, उन्होंने कहा कि यह कूरियर की प्रॉब्लम है। कूरियर वाले एक्सचेंज को सपोर्ट नहीं कर रहे है। हमने कई और पिन कोड पर एक्सचेंज के साथ डिलीवरी करने का ट्राई किया, तो लगभग सब जगह वही मैसेज हमें दिखाई दिया।

फोन लेना जरूरी था तो हमने ले लिया। फिर उसके बाद हम यह सोचने लगे अब इस पुराने फोन को कैसे ठिकाने लगाया जाए, क्योंकि कुछ ही दिनों में वह बेकार हो जाता फोन 6 वर्ष पुराना हो चुका था और बॉडी तथा स्क्रीन में थोड़ा डैमेज भी था।

इंटरनेट पर घूमते हुए हमें रिसाइकल डिवाइस कंपनी का पता चला और हमने ऑनलाइन पुराने फोन के डिटेल डाल दिये, जिसमें कि हमारे पुराने फोन की कीमत लगभग ₹3100 दिखा रहा था और अमेजॉन वाउचर लेने पर 10% एक्स्ट्रा दे रहा था तो लगभग हमें ₹3400 का एस्टीमेट मिला।

आज रीसाइकिल डिवाइस (recycledevice) से उनका बंदा आया और फोन चेक करने के बाद हमें बताया की बॉडी ज्यादा ही डैमेज है, इसके लिए हम टोटल ₹3000 दे पाएंगे हमने तत्काल ही हाँ कर दी और उन्होंने हमारा आधार कार्ड लिया और आधार कार्ड का ओटीपी भेजकर आधार कार्ड से वेरीफाई किया। हमने पूछा ऐसा क्यों कर रहे हो तब वे बोले रेगुलेटरी अथॉरिटी का नया फरमान है कि एक्सचेंज के समय ओरिजिनल मोबाइल का डब्बा, चार्जर मोबाइल के साथ लेना जरूरी है। यह कदम इसलिए है इससे चोरी का मोबाइल एक्सचेंज में नहीं जा सकेगा साथ ही सेकंड हैंड मार्केट में चोरी का मोबाइल कोई खरीद नहीं पाएगा।

तब हमें ध्यान आया कि फ्लिपकार्ट ने अब ओरिजिनल मोबाइल के डब्बे के साथ चार्जर भी लेना शुरू कर दिया है इसके बिना वह एक्सचेंज नहीं लेते।

हमने उनसे पूछा आप इस मोबाइल का आखिर करोगे क्या? तो वह बोले इसके अंदर के पार्ट्स जो सही सलामत हैं उसकी वैल्यू बहुत ज्यादा है, इसलिए हमें इसमें भी बहुत फायदा है।

FII-Money-Outflow

भारत का पैसा विदेशों में क्यों जा रहा है?

भारतीय बाजारों से पैसा भारत के बाहर के बाजारों में जा रहा है। यह रकम बहुत बड़ी है।

सेकेंडरी मार्केट – बाजार में 3 बड़े निजी बैंक जो एडवाइजर का भी काम करते हैं, उनकी सलाह है कि अपने पोर्टफोलियो का 20% विदेशी बाजारों में लगायें, वहीं 3 वर्ष पूर्व उनकी सलाह 0% की थी।

प्राइवेट मार्केट – भारत से सैकड़ों स्टार्टअप विदेश जा रहे हैं। 

क्या असर पड़ेगा –

भारत $5 ट्रिलियन इकोनॉमी करना चाहता है किस्से भारत विश्व की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बन जाये।

लेकिन भारत बहुत से मोर्चों पर असफल है, जैसे बढ़िया टैलेंट, कैपिटल, एंटरप्राइज, और यह एक बहुत बड़ी मुश्किल है।

हमारा सारा टेलेंट, पैसा और स्किल्स बाहर देशों में जा रहा है, उन देशों की इकोनॉमी को उन्नत, कुशल और समृद्ध बनाने में लगा हुआ है।

भारत के लिये यह सर से पानी गुजरने जैसा है और इस नकसीर को यहीं रोकना होगा, वरना तो बहुत देर हो चुकी होगी।

अमेरीका ही क्या कई अन्य देश व्यवस्थित ढंग से लालच देकर पूरे विश्व से अच्छे टैलेंट को चुरा रहे हैं। कितने ही अमेरीका के पॉपुलर पॉडकास्ट लगातार जॉब एक्ट, इमिग्रेशन एक्ट, स्पेशल परपज वीसा पर बातें करते हैं।

हो यह रहा है कि ये कुछ देश विश्व के हर कोने से टैलेंट को अपने यहाँ जगह दे रहे हैं, मतलब की पूरे विश्व के टैलेंट को चूस रहे हैं। भारत के बहुत ही गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और सबसे पहले टैलेंट को चिह्नित करके उनको अपने ही देश में अपने देश की उन्नति के लिये स्वीकार करना होगा। 

राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त होकर अमेरिका पर ऊँगली उठाना बहुत आसान है कि अमेरिका हमारा पूरा टैलेंट चुरा कर ले जाता है। असली प्रश्न तो यह है कि – भारत ऐसा होने कैसे दे रहा है। गाँधी जी ने भी कहा था कि अगर आप किसी पर ऊँगली उठाते हो तो वो एक ही होती है, परंतु तीन ऊँगलियाँ ख़ुद की तरफ़ उठती हैं।

भारत से पैसा बाहर जाने से रोकने के लिये म्यूचुअल फंड जो कि विदेशी बाज़ारों में निवेश करते हैं उनकी विदेशी मुद्रा की लिमिट ख़त्म हो चुकी है और नया पैसा इस तरह के फंड्स विदेश नहीं जा पा रहे हैं। पर यक़ीन मानिये यह पैसा है, पैसा पानी जैसा होता है, अगर पैसे को बाहर जाना है तो वह अपने तरीक़े ढूँढ लेगा, और बाहर के बाज़ारों में बह जायेगा।

FII Fund Outflow from India

स्टार्टअप को स्केल अप करने के लिये बड़े फंड की ज़रूरत है पर भारत में बड़े बिज़नेस घराने इस तरफ़ बहुत ज़्यादा एक्टिव नहीं हैं। Web3 मीटिंग दिल्ली, बैंगलोर या मुंबई में नहीं हुई यह हुई दुबई में और इसमें 75% प्रतिभागी भारतीय थे बाक़ी के रशिया और यूरोप के थे। अधिकतर स्टार्टअप या तो दुबई में जा चुके हैं या जाने की प्रोसेस में हैं। Web3 इंटरनेट का अगला वर्शन कहा जा रहा है, और उसके लिये दुबई में इसका प्लेटफ़ॉर्म तैयार है जो कि डिसेंट्रलाईज होगा और ब्लॉकचैन पर चलेगा। जबकि भारत में स्टार्टअप अभी भारतीय सरकारी व्यवस्था और उनके नियामकों से जूझ ही रहे हैं, जहाँ नियम कभी भी बदल जाते हैं और उसका किसी को अता पता नहीं होता है। भारत में हर तरफ़ टैक्स की मार भी है।

दरअसल यह बदलाव शुरू हुआ है नवंबर 2021 से, जब क्रिप्टोकरंसी के लिये क्रिप्टो बिल में ज़्यादा टैक्स और कठिन नियमों के चलते दुबई या किसी और देश जा रहे हैं, अब प्रश्न यह नहीं होता है कि “क्या तुम जा रहे हो?” बल्कि प्रश्न होता है कि “कब जा रहे हो?”

स्टार्टअप जब काम करना शुरू करते हैं तो वे आधुनिक तकनीक पर काम करते हैं और वह तकनीक सरकारी अमले को समझाना लगभग असंभव ही होता है और स्टार्टअप को भारतीय नियमों में बँधकर काम करना होता है, जबकि वे तकनीक विश्व के लिये बना रहे होते हैं, जब स्टार्टअप शुरू होते हैं तो प्रोसेस में कई चीजें ऐसी होती हैं कि उन्हें भी नहीं पता होता कि उन चीजों के लिये भारत में सरकार से बार बार हर चीज के लिये परमीशन लेना होगा। अगर किसी ने डिजिटल एसेट्स का ही काम शुरू कर दिया तो उस पर भारत में 30% टैक्स हो और 1% टीडीएस भी। हर स्टार्टअप के अपने प्रोटोकॉल होते हैं और उन्हें ही पता नहीं होता है कि वाक़ई क्या लीगल है और क्या नहीं, आप कोई NFT का उपयोग करना चाहते हैं, या डिजिटल कॉइन लाँच करना चाहते हैं, यह सब तो स्टार्टअप शुरू करते समय पता नहीं होता है।

वैसे भी ऐसा क्यों हो रहा है तो आप ट्विटर पर क्या ट्रेंड कर रहा है, अपने टीवी खोलकर सामने देख लीजिये, या फिर अख़बारों के मुख्य पेज ही देख लें, फिर शायद यह प्रश्न नहीं पूछें।

लठ्ठ युद्ध

हिन्दू कैसे सुरक्षित हों, सरकार क्या करें?

हमारी सरकार अब केवल एक ही मुद्दे पर बन रही है कि हिन्दू सुरक्षित रहें। परंतु ऐसा कोई कदम हिन्दुओं के लिये उठाया ही नहीं जा रहा है कि हिन्दू सुरक्षित महसूस करें। सरकार चाहे तो ऐसे बहुत से कदम उठा सकती है जिससे हिन्दू सुरक्षित महसूस करें –

१. बहुविवाह प्रथा – बहुविवाह प्रथा हमारे यहाँ सदियों से चली आ रही है, परंतु हिन्दुओं पर नकेल कसने के लिये केवल एकल विवाह सिस्टम बना दिया गया, जिससे हमारी पीढ़ीयाँ भी सिमटती चली गईं। अब हालत यह है कि बच्चे भी एकल विवाह संस्था में हम एक ही करना चाहते हैं, और उस बच्चे पर पढ़ाई व परिवार का इतना प्रेशर होता है कि पढ़ ले, नौकरी कर ले, नहीं तो शादी नहीं होगी और अपना परिवार याने कि वंश आगे नहीं बढ़ेगा। आजकल सभी परिवार अपनी लड़की देने के पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि लड़का सैटल्ड हो, ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि हमारे यहाँ लड़कियाँ कम हैं और लड़कों को सही पढ़ाई न करने के कारण फिर उनके विवाह में बहुत तकलीफ़ होती है।

बहुविवाह प्रथा से हमारे हिन्दुओं में भी लड़कियों की कमी नहीं रहेगी और न ही लड़कों पर प्रेशर रहेगा, जिससे वे भी अपना दिमाग़ धार्मिक ग्रंथों में लगाकर, हथियार चलाने की प्रैक्टिस कर पायेंगे।

२. धार्मिक शिक्षा – हमारे हर मंदिर में धार्मिक शिक्षा का प्रबंध हो, व हर मंदिर में अपने पुराणों, गीताजी व अन्य धार्मिक ग्रंथों पर नियमित कार्यक्रम हो, व कोई ऐसा सर्टिफिकेट निश्चित कर दिया जाये कि हिन्दुओं को कम से कम इस ग्रेड का सर्टिफिकेट इस मंदिर से लेना ही होगा। हर मंदिर में हिन्दुओं के लिये भोजन की व्यवस्था रखी जाये।

३. सरकारी नौकरी – यह भी सुनिश्चित किया जाये कि हर परिवार में किसी एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाये, जिससे परिवार पर कमाई करने का बोझ न रहे और वे अपने धार्मिक कार्यक्रमों में नियमित रहें।

४. लड़ाई का प्रशिक्षण – हमारे यहाँ भारत में सदियों से कई प्रकार की लड़ाईयों का अभ्यास होता रहा है, परंतु मैकाले की शिक्षा व्यवस्था ने उस पारंपरिक लड़ाई की कला को ख़त्म कर दिया है। बजाय कुंग फूँ या चीन के किसी और खेल के, क्यों न हमारे यहाँ विधिवत लठ्ठ चलाने, तलवार, भाले इत्यादि पुरातन लड़ाई की कलाओं को प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाये, व ब्लैक बैल्ट जैसे कुछ ग्रेडिंग सिस्टम भी लागू किये जायें।

मुझे उम्मीद है कि अगर कम से कम इतने कदम हिन्दुओं के लिये उठा लिये गये तो फिर हमें किसी और क़ौम से डरने की ज़रूरत ही नहीं रह जायेगी। कल हमारे एक मित्र से फ़ोन पर बात हो रही थी, ये उनके विचार हैं जो कि हमने ब्लॉग पर लिखे हैं।

आचार्यकुलम

बाबा रामदेव के स्कूल में एडमीशन

यह बात है वर्ष 2014 की जब भारतवर्ष में चुनावी बिगुल बजा हुआ था और बाबा रामदेव खुलेआम भाजपा का समर्थन कर रहे थे व वित्त के क्षैत्र में बहुत से ऐसे ऐसे बयान दे रहे थे, कि हमें भी आश्चर्य होता था कि ऐसा हो ही नहीं सकता और ये व्यक्ति जो कि इतने लोगों की सोच प्रभावित करता है कैसे कह सकता है कि अगर पेट्रोल 30-40 रूपये चाहिये तो भाजपा को जिताओ। इतना प्रचार किया था कि बताया नहीं जा सकता था, उस समय कई फ़ोरम में मैंने अपने विचार रखे तो लोगों ने मुझे पसंद नहीं किया। खैर हम तो इतना जानते हैं कि बाबा रामदेव को सरकार बनने के बाद ही संसद के सामने धरने पर बैठकर सरकार से माँग करनी चाहिये थी कि पेट्रोल 30-40 रूपये प्रति लीटर करो।

हुआ उसका बिल्कुल उलट अब हम 30-40 रूपये पेट्रोल के लिये प्रति लीटर ज़्यादा दे रहे हैं, अब जो बाबा रामदेव कह रहे हैं कि सरकार देश कैसे चलायेगी अगर पेट्रोल सस्ता हो जायेगा। यह बात हमने फ़रवरी 2014 में जब बाबा रामदेव के स्कूल में बेटेलाल का एडमीशन करने के दौरान उनके मैनेजमेंट को भी कही थी।

दरअसल हुआ यह था कि बाबा रामदेव ने हरिद्वार में नया स्कूल खोला था, जिसमें कि वेदों के साथ साथ अंग्रेज़ी में भी पढ़ाई होती है, हमने बैंगलोर में एडमीशन टेस्ट दिलवाया था, फिर सिलेक्शन होने पर कहा गया कि हरिद्वार में उनके स्कूल आचार्यकुलम में 7 दिन बच्चे को रहना होगा, और वे देखेंगे कि बच्चा वाक़ई उनके स्कूल के काबिल है या नहीं। तब हम हरिद्वार गये और बेटेलाल को 7 दिन के लिये स्कूल में छोड़ दिया। जब 7 दिन बाद हम वापिस लेने गये तो उनके आचार्य जी ने कहा कि हमने आपके बेटे की सबसे ज़्यादा अनुशंसा की है क्योंकि बालक मेधावी है। फिर पता चला कि अब अभिभावकों का मैनेजमेंट से साक्षात्कार होगा।

उस समय हमारा भारत के बाहर जाने का प्लान भी बन रहा था, हमसे पूछा कि भारत से बाहर क्यों जाना चाहते हैं। हमने कहा कौन बेहतर विकल्प नहीं अपनाना चाहेगा। फिर पूछा कि आप तो वित्त क्षैत्र से जुड़े हैं तो बताइये कि आप बाबा रामदेव के चुनावी मुद्दों में इकॉनोमिक्स के विचारों को कैसे देखते हैं, तो हमने बिना लाग लपेट के कह दिया कि बाबा रामदेव के विचार अपनी जगह और व्यवहारिक दुनिया में यह संभव नहीं। बाबा रामदेव जिन बातों को समझते नहीं क्यों उन पर अपने विचार रखते हैं। फिर हमसे पूछा गया कि अगर किसी कारण से बाबा रामदेव या स्कूल कहता है कि तत्काल ही 50-70 हज़ार रूपये जमा करवाइये बिना सवाल जबाब के, तो आप करवा पायेंगे। हमने कहा अगर यह रूपये हमारे बालक के किसी कार्य के लिये करवाये जायेंगे व हम उस कारण से पूर्ण रूप से संतुष्ट होंगे तो करवा देंगे।

फिर बाद में एडमीशन की लिस्ट जारी हुई तो हमारे बेटेलाल का नाम उसमें नहीं था, आचार्य जी आये और बोले कहीं कुछ गड़बड़ हुई है, मैं पता करके आता हूँ। वे पता करके आये बोले कि आपका बच्चा तो एडमीशन के लिये पास था, पर आप साक्षात्कार में फेल हो गये, आपने अपने विचार उचित दिशा में नहीं रखे। हम मन ही मन हँसे कि हम तो वैसे भी यहाँ एडमीशन करवाने वाले थे नहीं, पर कम से कम बाबा रामदेव के स्कूल और मैनेजमेंट के मन की खो़ट तो हमें पता चल गई।

आज भी यह क़िस्सा इसलिये लिख रहा हूँ कि जब एक पत्रकार ने पूछा था कि बाबाजी आपने कहा था कि पेट्रोल 30-40 रूपये हो जायेगा, तो बाबा रामदेव ने कहा तो क्या पूँछ पाड़ेगा मेरी।

मुझे मेरी चुनी हुई सरकार से क्या चाहिये

सरकार हर ५ वर्ष में बनती है, और सारे राजनैतिक दल अपने अपने घोषणा पत्र लेकर जनता के सामने आते हैं, परंतु कोई भी जनहित वाले वायदे नहीं करता। मेरी तरफ से कुछ बिंदु हैं, जिन पर राजनैतिक दलों को ध्यान देना चाहिये और भारत के विकास की बातें न करके अलसी विकास करना चाहिये, ये सारी बातें बहुत ही बुनियादी हैं, जो कि हर भारतीय को मिलनी चाहिये और यह चुनी हुई सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य होना चाहिये।

मुझे मेरी चुनी हुई सरकार से क्या चाहिये –
1. सर्वसुविधायुक्त स्वास्थ्य सुविधाओं वाले क्लिनिक और अस्पताल (सरकारी)
2. सर्वसुविधायुक्त विद्यालय जहाँ शिक्षक भी उपलब्ध हों (सरकारी)
3. सर्वसुविधायुक्त महाविद्यालय जहाँ शिक्षक भी उपलब्ध हों (सरकारी)
4. सार्वजनिक परिवहन के साधन (अभी हैं पर उसमें तो पैर रखने की हिम्मत नहीं पड़ती)(सरकारी)
5. सड़कें अच्छी हों, व नालियाँ साफ हों।
6. स्वच्छ भारत कागज से निकलकर बाहर आये।
7. किसी का भी ऋण माफ न करें, किसानों और लघु उद्योगों की दशा सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाये जायें, विलफुल डिफॉल्टर और अमीर लोगों के NPA तुरत वसूल किये जायें।
8. युवाओं को भविष्य के मार्गदर्शन के लिये शैक्षणिक संस्थानों का गठन किया जाये। जब स्किल होगा तो नौकरी और व्यापार अपने आप कर लेंगे।
9. सरकार में हर मंत्री को सम्बंधित विभाग की परीक्षा करवानी चाहिये, जिससे यह तय हो कि मंत्री अच्छे से विभाग संभाल पायेंगे।
10. जनता को उपरोक्त सुविधाएँ न दे पाने की दशा में, लिए गये सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को जनता को रिफंड करना चाहिये।

आने वाले दिनों में और भी बिंदुओं को जोड़ा जा सकता है, आपके पास भी ऐसे कोई बिंदु हैं तो टिप्पणी में बताईये, हम जोड़ देंगे।

QNET कंपनी से बचकर रहें

QNET कंपनी का टाईम्स ऑफ इंडिया में दो दिन पहले ही पूरे मुख्य पेज का एक विज्ञापन आया था, मैं तो उस विज्ञापन को देखकर ही हतप्रभ था, कि फिर एक बड़ी पैसे घुमाने वाली कंपनी, उत्पादों के सहारे कैसे भारत में एक बड़ी एन्ट्री कर रही है। यह सब पौंजी स्कीम कहलाती है, जिसमें कि आपको कुछ लोगों को अपने नीचे लोगों को जोड़ना होता है, जिसके बदले आपको उन पैसों से कमीशन दिया जाता है जिन पैसों से वे लोग आपके नीचे उस कंपनी के लिये आपसे जुड़ते हैं। अगर उस कंपनी के उत्पाद भी देखेंगे तो आपको पता चल जायेगा कि यह कंपनी उत्पाद के लिये नहीं बल्कि सीधे सीधे मनी रोटेटिंग का काम मल्टी लेवल मार्केटिंग के सहारे कर रही है। Continue reading QNET कंपनी से बचकर रहें

मोर्निग सोशल नेटवर्किये

मोर्निग सोशल नेटवर्किये सुबह उठे और सोच रहे थे कि आज कुछ पुराने लेख जो क्रेडिट कार्ड और डेरिवेटिव पर लिख रहा था उन्हें पूरा लिख दूँगा, परंतु सुबह उठकर हमने मोबाईल हाथ में क्या ले लिया जुलम हो गया, फेसबुक और ट्विटर तो अपने अपडेट हमेशा ही करते रहते हैं, किस किस ने क्या क्या लिखा है और उनके मन में क्या विचार थे। दिल कह रहा था कि क्या टाईम पास लगा रखा है, अपना काम करो, परंतु मन जो था वो अपनी रफ्तार से भागता जा रहा था और कह रहा था नहीं पहले दूसरे के विचार पढ़ो और उनके स्टेटस पर अपनी टिप्पणी सटाओ। फिर दिनभर तो तुम्हें समय मिलने वाला है नहीं, रात को 9 बजे तो मुँह फटने लगता है। हम भी मन के बहकावे में आ गये और आज पूरी सुबह मोर्निग सोशल नेटवर्किये हो गये।

Morning Social Networker
Morning Social Networker

आजकल फेसबुक और ट्विटर पता नहीं कौन से वीडियो फार्मेट में दिखाते हैं कि नेट की रफ्तार कम हो या ज्यादा पर वीडियो अपने आप ही चलने लगता है। और अब वीडियो भी इस तरह के ही बनने लगे हैं कि आपको आवाज सुनने की जरूरत ही न पड़े, कुछ लोग या तो अपने एक्शन से ही समझा देते हैं या फिर वीडियो में टाइटल लगा देते हैं। अब बिना आवाज के वीडियो  भी देखा जाना मुझे वैसा ही जबरदस्त चमत्कार लगता है जैसा कि बिना आवाज के टीवी देखते थे कि किसी को पता नहीं चले हम टीवी देख रहे हैं, बस समस्या यह होती थी कि टीवी में रोशनी ज्यादा होती थी तो पूरे कमरे में अंधेरे में फिलिम जैसी दिखती थी और रोशनी कम ज्यादा होने से हमेशा ही पकड़े जाने की आशंका बनी रहती थी। पर मोबाइल में यह सुविधा आने से यह समस्या लगभग खत्म सी हो गई है।

अपना मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का भी एक कारण है कि अपने को सुबह ही समय मिल पाता है, बाकी दिनभर जीवन के दंद फंद चलते रहते हैं और हम उनमें ही उलझे रहते हैं। कई बार फेसबुक या ट्विटर पर कुछ अच्छे शेयर पढ़ने को मिल जाता है जो हमारी विचारधारा को बदल देता है, हमेशा ही निगाहें कुछ न कुछ ऐसा ढ़ूँढती रहती हैं कि पढ़ने पर या देखने पर कुछ ज्ञान बढ़े तो आत्मा को शांति भी मिल जाये। मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का एक और फायदा है कि हम विभिन्न विचारधारा के व्यक्तियों से जुड़े होते हैं और उनके विचारों में कई अच्छे तो कई बुरे होते हैं, उन विचारों के मंथन के लिये दिनभर हमें मिल जाता है।

मोर्निग सोशल नेटवर्किये होने का एक मुख्य नुकसान है कि हम हमारी तय की गई गतिविधि से भटक जाते हैं और हम कुछ और ही कर लेते हैं बाद में पछताते हैं कि हमने अपना बहुत सारा समय व्यर्थ ही गँवा दिया, काश कि हम मन पर थोड़ा संयम रख लेते तो हम अपने उस समय का अच्छा उपयोग कर लेते परंतु हम शायद ही मन से कभी जीत पायें, मन हमेशा ही दिल की बातों पर भारी होता है और हमेशा ही जीतता है।

आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते

   
   
    आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते जो मैं सुबह की चाय के साथ लिख रहा हूँ गलत नहीं लिखूँगा, आजकल ट्विटर और फेसबुक पर हम अगर किसी एक दल के लिये कुछ लिख देते हैं तो हमें अपने वाले ही विकास विरोधी बताकर लतियाना शुरू कर देते हैं। पर हम भी अपना संतुलन ना खोते हुए संयमता बरतते हैं, दिक्कत यह है कि विकास की लहर वाले लोग जबाव देने की जगह हड़काने लगते हैं। क्या वाकई उन्हें लगता है कि इससे सारी दिक्कतें दूर हो जायेंगी, या वाकई उन्हें यह लगता है कि सब ठीक चल रहा है, खैर अब हम क्या बतायें ये तो मानव मन की गहराईयाँ हैं, जो अच्छा लगता है वही पढ़ना चाहता है, वही लिखना चाहता है, वही बोलना चाहता है और वही दूसरों से सुनना चाहता है।
    बाकी सब तो व्यंग्य हैं, पर आज सुबह उठकर हमने सोचा कि वाकई हमें उनका पक्ष भी जानना चाहिये, कि हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, क्या मुझे रोजमर्रो के कामों में कोई आसानी हुई या वही सब पुरानी परेशानियाँ अभी भी झेलनी पड़ रही हैं।
महँगाई – यह तो सुरसा की मुँह है, बड़ती ही जा रही है, दूध आज से 4 वर्ष पहले बैंगलोर में 21 रू. किलो मिलता था, आज वही दूध 42 रू. हो गया है, अब तो बैंगलोर छोड़े मुझे समय हो
गया, हो सकता है और भी ज्यादा हो गया हो। यहाँ गुड़गाँव में खुला दूध 42 से 46 रू. ली. मिलता है और पैक वाला 44 से 50 रू ली. मिलता है। यहाँ तो मेरी जेब कट ही रही है। न सब्जी के दामों में कमी है न दालों के।
चिकित्सा – थोड़े दिनों पहले बेटेलाल बहुत ज्यादा बीमार थे, पता नहीं कितने डॉक्टरों के चक्कर काटे और जाने कितने टेस्ट करवाये, लूट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉक्टरों की फीस कम से कम 500 रू. हो गई है और साधारण से टेस्ट के भी 100 – 500 रू. तक वसूले जा रहे हैं, और उनमें भी शुद्धता नहीं है दो अलग अलग लैबों की रिपोर्ट भी अलग आती है, किसी स्थापित मानक का उपयोग नहीं किया जाता है। जबकि हम सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों कर देते हैं, पर हमें सीधे कोई फायदा नहीं है, यहाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा मेरे प्रोजेक्ट से अभी एक बंदा ब्रिटेन से वापस आया तो बोलो कि वहाँ अगर कर लेते हैं तो वैसी सुविधाएँ भी हैं, लिये गये पूरे पैसे का पाई पाई का उपयोग होता है, केवल फोन कर दो तो दो तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, पहला तो कि आपको कुछ समस्या हो गई है तो तत्काल एम्बूलेन्स आयेगी और वहीं तात्कालिक  सहायता उपलब्ध करवाकर अगर जरूरत है तो अस्पताल भी ले जायेगी, दूसरी आप फोन करके डॉक्टर से मिलने का समय सुनिश्चित कर सकते हैं, जो कि स्वास्थय बीमे में ही कवर होता है।
सरकारी कार्य – कुछ दिनों पहले अपनी बाईक के कागजों से संबंधित कार्य था, सोचा कि शायद हम सीधे ही करवा पायें, एक छुट्टी भी बर्बाद की और कोई काम भी नहीं हुआ, अगले दिन सुबह एक एजेन्ट को ही पकड़ना पड़ा जैसा कि स्वागत कक्ष पर बैठे बाबू ने कहा, क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता है, और वहाँ बिना पहचान के काम नहीं होता है, हमें पता नहीं क्या क्या कागजात लाने को बोले गये थे, हमने सब दिखाये पर काम न हुआ, एजेन्ट ने हमसे 300 रू इसी बात के लिये और सर्टिफिकेट बनवा लाया, हमारे जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। क्यों नहीं यह सारा कार्य ऑनलाईन करके जनता को सरकारी मशीनरी की कठिनाईयों से मुक्ती दे दी जाती है। किसी भी सरकारी कार्यालय में जाओ तो पता चलता है कि बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है।
ऑटो पुलिस – न ऑटो वाले मीटर से चलते हैं और न ही पुलिस वाले उन्हें कुछ बोलते हैं, हर जगह जाम की स्थिती है।
ट्रॉफिक जाम – पता नहीं कितने हजारों घंटों को नुक्सान ट्रॉफिक जाम में हो जाता है, क्यों नहीं ऐसा बुनियादी ढाँचा बनाया जाता है कि ट्रॉफिक की समस्या से निजात मिले, क्यों नहीं सड़कों को अगले 10 वर्ष बाद की दूरदर्शिता के साथ बनाया जाता है। और पेट्रोल का नुक्सान तो होता ही है।
पेट्रोल – की बात आई तो यह बात करना भी उचित होगा कि जब क्रूड ऑइल जब महँगा था तो पेट्रोल का भाव 86 रू. ली. तक था, पर आज आधे से भी कम है तो भी पेट्रोल का भाव 62 रू. क्यों है, जब पेट्रोल डीजल के भाव बड़ रहे थे, तब तो सभी ने अपने किराये बढ़ा दिये, अब जब कम हो रहे हैं, तो उसका फायदा हमें क्यों नहीं मिल रहा है।
बिजली – इस पर तो अनर्गल वार्तालाप किये जा रहे हैं, कि कई बिजली की कई कंपनियाँ होने से सस्ती हो जायेंगी, अगर ऐसा है तो रेल्वे को भी कई कंपनियों के हाथों में दे दीजिये, बसों में कई कंपनियों की बसें विभिन्न रूट पर चलती हैं पर कहीं कोई सस्ती सेवा उपलब्ध नहीं है, वैसे भी यह सब सरकार के हाथ नहीं है, यह बिजली नियामक तय करते हैं, पता नहीं सरकार जनता को उल्लू क्यों समझती है।
रेल्वे – जब भी मैं घर जाने का प्रोग्राम बनाता हूँ तो टिकट ही उपलब्ध नहीं होते, क्यों न सफर करने वाली आबादी के अनुसार रेल्वे को डिजायन किया जाये, हम यह नहीं कहते कि बुलेट ट्रेन न चलाई जाये वह तो भविष्य की जरूरत है परंतु उससे पहले हमें कम से कम आजकल के टिकट तो मयस्सर होने चाहिये, अगर बुलेट ट्रेन भी आ गई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तो फिर कैसे उसका भी भरपूर उपयोग भारतवासी कर पायेंगे और अगर संयोग से टिकट मिल भी जाता है तो सुविधाओं में कमी महसूस होती है।
शिक्षा – हम सरकारी स्कूल में पढ़े, तब भी निजी स्कूल थे, परंतु यह कह सकते हैं कि कम से कम सरकारी स्कूलों का स्तर आज से बहुत अच्छा था, मैंने तो आज भी कई सरकारी स्कूल देखें हैं जो निजी स्कूलों से काफी अच्छे हैं, परंतु वे सरकारी प्रयास नहीं है, वह तो किसी प्रधानाध्यापक की मेहनत और कड़ाई के कारण है। सरकारी स्कूल और निजी स्कूल की फीस में जमीन आसमान का अंतर है, ज्यादी फीस देने का यह मतलब नहीं है कि अच्छी शिक्षा मिल रही है, या अच्छा माहौल मिल रहा है, केवल हम अपने बच्चे को अच्छे सहयोगी दे पा रहे हैं, जिनके माता पिता इतनी फीस दे पाने में समर्थ हैं, उनके साथ पढ़ पा रहा है हमारा बच्चा, पर निजी स्कूलों में पढ़ाने वालों का शैक्षिक स्तर सरकारी स्कूल से बदतर है, सरकारी स्कूलों के अच्छे शैक्षिक स्तर वाले गुरूओं को सब जगह घसीट लिया जाता है, उनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो जाता और न ही उनके ऊपर दबाव होता है।
    हैं तो और भी बहुत सारी चीजें जिनकी चर्चा में करना चाहता हूँ पर जिनकी बातें मैंने यहाँ की हैं और अगर आपको लगता है कि यह केवल मेरे साथ भेदभाव हो रहा है तो आप ही बतायें कि आपकी जिंदगी पर कोई असर पड़ा हो तो मैं भी आपकी तरह ही सोचने की कोशिश करूँ।