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जुहु गोविंदा रेस्त्रां, समुद्र का किनारा, अमिताभ का घर और बुलेट ।

    सुबह मित्र को फ़ोन किया कि इस सप्ताहांत का क्या कार्यक्रम है, उनसे मैं शायद ३ वर्षों बाद मिल रहा था और ये मित्र मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। ये आध्यात्म को इतने गहरे से समझना और किसी और की जरूरत को समझने वाले मैंने वाकई बहुत ही कम लोग देखे हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऑफ़िस से सीधा आपको लेने आ रहा हूँ फ़िर जुहु इस्कॉन स्थित गोविंदा रेस्त्रां में आज दोपहर का भोजन ग्रहण किया जायेगा।

    दोपहर में बिल्कुल समय पर हमारे मित्र हमें लेने आ गये और फ़िर amitabhहम चल दिये जुहु, एक सिग्नल पर हमारे मित्र ने बताया कि यह सामने जो घर है युगपुरूष अमिताभ बच्चन का घर है, तो सहसा ही अमिताभ का चेहरा आँखों के सामने घूम गया और अभी हाल ही में आई फ़िल्म बॉम्बे टॉकीज के अमिताभ बच्चन के ऊपर फ़िल्माये गये दृश्य याद हो आये। फ़िर लगा व्यक्ति कितना भी सफ़ल हो, परंतु रहना तो उसे धरती पर ही है और रहना भी घर में ही है, बस वह जिन ऐश्वर्य का सुख भोग सकता है वह हर कोई नहीं भोग सकता ।

  iskcon-juhu-govindas-01  गलियों में से होते हुए हम गोविंदा रेस्त्रां की तरफ़ बड़ रहे थे, इतने में तेज बारिश आ गई, मौसम खुला हुआ था, तेज धूप निकली हुई थी। मुंबई में यही खासियत है कब बारिश आ जाये कोई भरोसा नहीं। हम गोविंदा रेस्त्रां पहुँच चुके थे, वहाँ दरवाजे पर हमारी और समान की सुरक्षा जाँच हुई और हम रेस्त्रां में दाखिल हुए, संगमरमर की सीढ़ियों से होते हुए एक विशाल हॉल में आये जहँ  बैठने के लिये सोफ़े लगे हुए थे, जिनसे यह प्रतीत होता था, कि यहाँ पर प्रतीक्षारत लोगों को बैठाया जाता है, जब रेस्त्रां में जगह नहीं होती होगी। यहाँ दोपहर का भोजन ३.३० तक होता है।

    रेस्त्रां अंदर से बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित था और बहुत सारे लोग govinda-sभोजन से तृप्त हो रहे थे। यहाँ पर खाना बफ़ेट होता है, विभिन्न प्रकार के सलाद, पकोड़े, चाट  पनीर की सब्जियाँ, रोटी, चावल, रायता और मिठाईयाँ उपलब्ध थीं। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, साथ में फ़लों का रस, केहरी पना और मठ्ठा भी परोसा जा रहा था। खाने के बाद में आइसक्रीम का प्रबंध भी था। और इस सबके लिये एक व्यक्ति के खाने का खर्च ३५०/- खाने के हिसाब से हमें ठीक लगा । हालांकि अगर आजकल के आधुनिक बफ़ेट रेस्त्रां में और महँगा होता है परंतु यहाँ खाने का स्वाद, गुणवत्ता एवं इतने प्रकार की खाद्य पदार्थ के सामने  आधुनिक रेस्त्रां का टिकना मुश्किल है। खैर यह तो अपनी अपनी पसंद है।

    भोजन से तृप्त होकर हम बाहर निकले और हमारे मित्र ने पूछा कि जुहु बीच चलोगे, हमने कहा बिल्कुल चलो हमें लहरों की आवाज सुनने का सुखद आनंद लेना है, मचलती और वेगों से आती लहरों को देखना है, वहाँ से पैदल ही हम जुहु बीच की और चल दिये मुश्किल से ५ मिनिट में हम जुहु बीच पर थे, प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को मानव किस तरह से नष्ट करता है, जुहु बीच इसका जीवंत उदाहरण है, बीच पर जहाँ तक देखो वहाँ तक कचरा और पोलिथीन बिखरे पड़े थे। जोड़े कहीं ना कहीं एकांत ढूँढ़ रहे थे। बहुत से युगल हाथों में हाथ डाल बीच पर समुद्र के किनारे टहल रहे थे। जो पहली बार आये थे समुद्र देखने वे और कुछ मनमौजी लोग समुद्र के पानी में भीगने गये हुए थे। पता नहीं इतने गंदे पानी में कैसे भीग सकते हैं, अगर समुद्र का पानी साफ़ हो तो नहाने का अपना अलग मजा है। बीच पर समुद्र के पास शांति से थोड़ा समय बिताने के बाद वापस जाना निश्चय किया गया।

    समय साथ में बिताना था, तो हम मित्र के फ़्लेट में उनके साथ ही चल दिये, खाने के बाद का नशा अब चेहरों पर दिखने लगा था, सोचा थोड़ा लोट लगा ली जाये और फ़िर बातें की जायेंगी, खैर बातें तो जारी ही थीं। थोड़ी देर आराम करने के बाद अचानक ही एक मित्र के बारे में बात होने लगीं, वे भी पास ही में रहते थे। उनसे फ़ोन पर बात की गई और उनके यहाँ जाने का निश्चय किया गया। हमारे मित्र ने हमसे कहा Bulletआप अब हमारी बुलेट से चलो, और आप ही बुलेट चलाओ। हमने कहा कि हमने तो वर्षों पहले बुलेट चलाई थी, तो पता नहीं चला पायेंगे या नहीं। हमारे मित्र बोले आप चिंता मत करो, आराम से चला पाओगे। हमने भी बुलेट की सवारी की और देखा कि बुलेट में भी बहुत सारे आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी गई हैं। अब केवल बटन दबाने पर भी बुलेट शुरू हो जाती है और बुलेट की आवाज मन को सुहाती है। बुलेट की सवारी राजा सवारी कहलाती है। आदमी बुलेट पर ही असली जवाँ मर्द दिखता है, लोग उसी की और देखते हैं, बहुत सारे बदलाव बुलेट चलाने के दौरान महसूस हुए, पर वर्षों बाद ऐसा लगा कि वाकई बुलेट ही असली दोपहिया सवारी है।

    अपने दूसरे मित्र के घर पहुँचे जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं, वहाँ बातों का जो दौर चला, समय का पता ही नहीं चला, हमने मित्रों से विदा ली, हमारे मित्र ने कहा इधर ही रुक जाओ, हमने कहा, नहीं हम जहाँ रुके हैं वह भी पास ही है तो हम वहीं जाते हैं। (जब हम खाना खाने के बाद मित्र के घर लोटने पहुँचे तो देखा कि उनके यहाँ गद्दे नहीं हैं, वे तो चटाई पर ही सोते हैं, वे पक्के भक्त आदमी हैं, हमारी परेशानी को समझ उन्होंने हमारे लिये उनके पास रखी रजाई को चटाई पर बिछाकर थोड़ा गद्देदार बनाने का प्रयास किया, हम भी लोट लिये, परंतु आरामतलब शरीर १० मिनिट से ज्यादा नहीं लेट सका) और हमने उनसे कहा कि कामना तो गद्दे पर सोने की ही है, इसलिये भी जाना ही चाहिये।

    इस प्रकार अपने मित्रों से मिलकर उनके साथ समय बिताकर आत्मा तृप्त हो गई।

जुहु पटाटी !!

हमने अपने परिवार के साथ जुहु चौपटी घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया और साथ मै अपने मित्र से भी पूछा और वे भी हमारे साथ आ गये। हमारे बेटेलाल की जबान पर चौपाटी शब्द चढ़ नहीं रहा था वो बार-बार पटाटी बोल रह था। हमें भी उसकी ये नई शब्दावली अच्छी लगी, कि जुहु

पटाटी कब चलेंगे

पहले हमने विले पार्ले से एक स्पोर्ट शूज लेने का फ़ैसला लिया और् फ़िर चल पड़े जुहु पटाटी की ओर। पर जाते जाते हमारे पुराने जूते ने जवाब दे दिया, हो सकता है कि नया जूता आने का गम नहीं झेल नहीं पाया होगा बेचारा और शहीद हो गया।
जब हम जुहु पटाटी पहुँचे तो बस सूर्यास्त होने ही वाला था और समुद्र का पानी आज बीच के काफ़ी पास था, बस फ़िर क्या था हम सबने अपने जूते चप्पल अपने बैग में डाले और पैंट ऊपर करके चल दिये समुद्र की लहरों से मिलने, बहुत मस्ती की और हमारे बेटेलाल तो पूरे भीग चुके थे। फ़ोटो भी लिये बहुत सुहानी हवा चल रही थी। हम अपने साथ लायी फ़ुटबाल  से खेलना शुरु किया तो बस हमारे बेटेलाल, हमारा छोटा भाई, हमारे दोस्त की पुत्री खेलने में मस्त हो गये। फ़ुटबाल खेलते खेलते हम बीच के किनारे तक पहुँच गये और फ़िर वहाँ हमने स्वादिष्ट  मीठा भुट्टा खाया, नारियल पानी पिया। और बैठकर हम लोग बात ही कर रहे थे कि इस्कॉन की यात्रा आ गई वे महामंत्र जप करते हुए बीच पर आत्मीयता के साथ चल रहे थे और सबसे निवेदन कर रहे थे कि वे भी महामंत्र का जाप करें। बहुत आनंद आया। फ़िर थोड़ी देर में निकलने के समय बहुत जोर से भूख लगने लगी तो मैकडोनल्डस पर वेज मील से तृप्ती की। हमारे पुराने जूते की समाधी वहीं जुहु पटाटी पर बनाकर हम अपने नये जूते पहन कर आये।
तो कैसी लगी आपको जुहु पटाटी की सैर, जरुर बताईयेगा।

जलती हुई कार पर एक आटोवाले का विश्लेषण !!

कल मतलब कि इस रविवार याने कि २० सितम्बर को हम अपने परिवार के साथ जुहु पटाटी (इसको हम बाद मैं बतायेंगे) गये थे। विले पार्ले से अपने घर ऑटो से आ रहे थे, गोरेगाँव में वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर जाम लगा हुआ था, ट्राफ़िक सुस्त रफ़्तार से बढ़ रहा था। बस ये पता चल रहा था कि सड़क पर किसी गाड़ी में आग

लगी है।

ऑटोवाला बोला कोई छोटी गाड़ी जल रही है। वो आग को देखकर् अंदाजे से बोला, फ़िर बोला कि अरे ये तो छोटी गाड़ी है बड़ी गाड़ियाँ तक जल जाती हैं। तो हमने पूछ ही लिया कि ऐसे कैसे गाड़ियाँ जल जाती हैं, ऑटोवाला बोला कि कार बहुत लम्बे से चल कर आ रही होगी और बहुत गरम होगी, कार्बोरेटर का पानी खत्म हो गया होगा और वायर पिघल कर चिपकने से शार्ट् सर्किट हो जाने से आग लग जाती है।
कई लोग अपने आप गाड़ी जला देते हैं जो लोन की किश्त नहीं चुका पाते हैं और बीमा कंपनियों से पूरी राशि वसूल लेते हैं, और कई बार सही में जल जाती हैं। इनकी सेटिंग सब जगह रहती है।
इतने में हम जलती हुई कार के करीब से निकले हमने पहली बार कार जलती हुई देखी थी बहुत ही खौफ़नाक मंजर था, कार के चारों दरवाजे खुले हुए थे और हवा के साथ साथ आग का रुख था, चिंगारियों ने आसपास के नजारे को और खौफ़नाक बना दिया था। तमाशबीन अपनी गाड़ियाँ खड़ी करके जलती हुई कार देख रहे थे। हम रुके नहीं वहाँ से आगे चल दिये। पर वह जलती हुई कार का खौफ़नाक मंजर अभी भी भूले नहीं भूलता है, हम अपने मोबाईल से फ़ोटो लेना भूल गये।