Tag Archives: नाटक

पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ

    हर कोई चाहता है कि हमेशा बेफिकर उमरभर रहे पर ऐसा होता नहीं है, सब जगह मारामारी रहती है, कोई न कोई फिकर हमेशा जान को लगी ही रहती है, और उस फिकर की फिकर में हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं, वो सब भूल जाते हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि पेट की आग के आगे अपने शौकों को तिलांजली देनी पड़ती है । काश कि हम जीवनफर
बेफिकर रहें तो मैं ये पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ, जिससे मुझे ये पाँच काम बहुत ही महत्वपूर्ण लगते हैं और ये मेरे लिये हमेशा ही प्राथमिकता भी रही है।
1. गैर सरकारी संगठन शुरू करना – महाकाल के क्षैत्र उज्जैन में एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना करना, जिसकी मुख्य गतिविधियाँ हों – 
 
अ.     बच्चों की ऊर्जा को सकारात्मक रूख देना, जिससे बच्चे अपनी ऊर्जा का उपयोग अपनी मनपसंदीदा गतिविधियों में कर पायें और अपने शौक को पहचान कर जुनून में बदल पायें।
आ.  आधुनिक श्रम केक्षैत्र में हमारे आजकल के नौजवान खासकर गाँव के नौजवान जो इंजीनियरिंग या कोई और
पढ़ाई नहीं कर पाये, उनकी प्रतिभा को निखारकर उन्हें आधुनिकतम तकनीक के बारे में जानकारी देना और उनका मार्गदर्शन करना, जिससे वे अपने जीवन स्तर को उच्चगुणवत्ता के साथ जी पायें और समाज को नई दिशा दे पायें।
इ.   निजी वित्त से संबंधित परिसंवाद गाँव गाँव आयोजित करना जिससे छोटी जगहों के लोग भी आजकल बाजार में उपलब्ध जटिल वित्तीय उत्पादों में निवेश कर पायें और एजेन्टों द्वारा किसी भी तरह के उत्पादों के खरीदे जाने से बच सकें।

2. किताबें पढ़ना – किताबें पढ़ने के बहुत शौक है, हर वर्ष बहुत सारी किताबें खरीद लेता हूँ, और नई किताबें अधिकतर तभी लेती हूँ जब पास में रखी किताबें पढ़ चुका होता हूँ, कोशिश रहती है कि महीने में कम से कम एक किताब तो पढ़ ही ली जायें,
मुझे हिन्दी की साहित्यिक किताबें पढ़ना बहुत भाता है, अभी हाल ही में लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी
सरदार और आचार्य विष्णु प्रभाकर की जीवनी का प्रथम भाग पंखहीन पढ़ा है, अभी तक की पढ़ी गई किताबों में सर्वश्रेष्ठ किताब सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय की शेखर एक जीवनी लगी । 

3.   कहानी और नाटक लिखना लिखना अपने आप को अंदर से जानना होता है और जब कोई हमें पढ़ता है तो वह हमें अंदर तक जान लेता है, हम क्या बताना चाहते हैं, कैसे शब्दों को ढ़ालते हैं, पात्रों को कैसे रचते हैं, कैसे हम पाठक को अपनी भाषाशैली से और विभिन्न सामाजिक उदाहरणों से प्रभावित करते हैं, कई पाठकों के लिये कुछ किताबें उनके जीवन की धुरी हो जाती हैं, इस तरह की कहानियाँ और नाटक मैं अपने पाठकों के लिये लिखना चाहता हूँ। 
4. महाकाल की आरती के नित्य दर्शन करना – जब होश सँभाला तब पाया कि बाबा महाकाल की अनन्य भक्ति में कब मैं घुलमिल गया हूँ, कब ये मेरी जीवनशैली में इतना घुलमिल गया कि मैं उस भक्ति में पूरा डूब चुका हूँ, पता ही नहीं चला। मेरे जीवन के इस दौर में भी मैं भले ही उज्जैन से इतनी दूर हूँ पर बाबा महाकालेश्वर में मन इतना रमा हुआ है कि मैंने कब बाबा महाकाल का ब्लॉग बना दिया और फिर उस ब्लॉग पर फोटो भी गाहे बगाहे अपलोड करता रहता हूँ कि मेरे साथ ही साथ उनको भी दर्शन हों जो महाकाल से जुड़ना चाहते हैं। महाकाल की आरती बहुत ही भव्य और आनंदमयी होती हैं, मैं अपना तन मन सब भूल जाता हूँ, कई वर्षों पहले संझा आरती में लगभग रोज ही मैं बाबा महाकाल की आरती में घंटे बजाता था, और निश्चय ही यह सौभाग्य बाबा महाकाल की असीम कृपा के कारण ही मुझे प्राप्त हुआ होगा। हालांकि आजकल भक्तों को यह सेवा करना निषेध कर दिया गया है। 
5. हैकर बनना – जब डायलअप इंटरनेट का दौर था, तब हमने पहली बार हैकिंग की शुरूआत की थी, चुपके से दूसरे के घर से उसका आई.पी. लेते थे और फिर हमारे पास एक हैकिंग सॉफ्टवेयर था जिससे हम उसके कम्प्यूटर को नियंत्रित कर लेते थे, और हमारा मित्र बेबस सा देखता रह जाता था। हैकिंग में बहुत कुछ नया करने को है, जिससे हम आधुनिक सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने में सहयोग कर सकते हैं। 
 

समाज में आवारा हवाओं के रुख

(स्टेज पर हल्की रोशनी और, एक कोने में फोकस लाईट जली होती हैं और खड़ी हुई लड़की बोलती है)
    मैं एक लड़की जिसे इस समाज में कमजोर समझा जाता है, और वहीं पाश्चात्य समाज में लड़की को बराबर का समझ के उसकी सारी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। जब से घर से बाहर निकलना शुरू किया है तब से ही मैंने नजरों में फर्क समझना शुरू कर दिया है, पता नहीं कैसे, शायद भगवान ने लड़कियों को छठी इंन्द्रीय की समझ देकर हमें अच्छी और बुरी नजरों
में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।
    कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है, जब मैंने घर से निकलना शुरू किया तो एक मजनूँ बाँके लाल ने मेरा पीछा करना शुरू किया, जल्दी ही पता चला कि वह मजनूँ मेरे घर के पास ही दो घर छोड़ कर रहता है। पता नहीं कहाँ से एक पुरानी कहावत याद आ गई, डायन भी सात घर छोड़ती है, पर यह मजनूँ तो तीसरे घर में ही..
    मेरी त्योरियाँ हमेशा चढ़ी ही रहती थीं, जिससे कभी उसकी बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई पर मैं अंदर ही अंदर दिल में इतनी घबराती हुई आगे बढ़ती थी जिसे मैं बता नहीं सकती।
    एक दिन वह मजनूँ घर के चौराहे पर ही खड़ा था और मैं अपनी साईकिल से घर की और बड़ी जा रही थी,  मुझे वह पढ़ा लिखा लगता था, सलीके से पहने हुए कपड़ों में जँचता भी था। पर किसी का अच्छा लगना ही तो सबकुछ नहीं होता, मेरा ध्यान तो केवल और केवल पढ़ाई की ओर लगा हुआ था, आखिर किसी और तरफ ध्यान लगाने की न मेरी उम्र थी और न ही कोई वजह।
    मेरी साईकिल को किसी अज्ञात सी शक्ति ने रोका, पता नहीं एकदम क्या हुआ कि मेरी साईकिल रुक गई, जबकि मैंने न ब्रेक लगाया और न ही साईकिल की चैन उतरी थी।
सीन
    आवाज आई – मैं आपको पसंद करने लगा हूँ। तब मेरे ध्यान मेरी साईकिल के हैंडल को पकड़े हुए उसी मजनूँ की तरफ गई। वह मजबूती से मेरी साईकिल का हैंडल पकड़े हुए खड़ा था और मैं उसकी इस हिमाकत से अंदर तक हिल गई, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैं चुपचाप थी और साईकिल को पैडल मारकर आगे जाने की कोशिश करने लगी, पर मेरी साईकिल मेरा साथ नहीं दे रही थी, मैंने अपनी पूरी ताकत बटोरकर उससे कहा मेरी साईकिल छोड़िये और मुझे घर जाने दीजिये, ऐसी बदतमीजी करते हुए क्या आपको शर्म नहीं आती है ?”
    वह बोला – शर्म तो आती है, पर क्या करें ये कमबख्त दिल है कि मानता नहीं, और यह बदतमीजी नहीं, हम तो आपसे मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, जब तक आपको हम बतायेंगे
नहीं आपको पता कैसे चलेगा
    हम घबराते हुए बोले – देखिये हमें ये बकवास नहीं सुननी है, और हमसे फालतू की बातों में हमारा वक्त बरबाद मत कीजिये, हम पढ़ाई करते हैं और हमें आप परेशान कर रहे हैं
(स्टेज पर हल्की रोशनी और एक कोने में फोकस लाईट में लड़की बोलती हुई)
    इस तरह से उस दिन तो हम किसी तरह से अपने आप को बचाकर घर आ गया, घर पर इस घटना का हमने कोई जिक्र नहीं किया, अगर हम घर पर इस घटना का जिक्र करते तो शायद पापा और मम्मी घबरा जाते और उनको हमारी कुछ ज्यादा ही फिक्र हो जाती।
सीन
    शाम को वही लड़का फिर से हमारे घर पर आया हुआ देखकर हमें परेशानी महसूस हुई, वह अपनी बहिन के साथ मम्मी के पास आया हुआ था, उसकी बहिन मम्मी से स्वेटर बुनने की कुछ तरकीबें सीख रही थी। हमने वहीं पर रखे हुए अपने कंप्यूटर को चालू किया और फेसबुक चालू कर अपने स्टेटस देखने लगे।
    वह लड़का हमारे पास आकर बोला अरे वाह आप तो फेसबुक और ट्विटर दोनों का उपयोग करती हैं, आप तो तकनीक के साथ कदम ताल मिलाकर चलती हैं, वैसे हम भी तकनीकी का काफी उपयोग करते हैं, अब जब आप सामाजिक ताने बाने में खुद को व्यस्त रखती हैं तो हमें भी अपने आप को रखना होगा, क्यों नहीं आप हमें फेसबुक पर दोस्त बना लेती हैं, तो आपके विचार हमें पता चलते रहेंगे और हमारे आपको ?”
    हमने कहा जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमें अपने विचार केवल अपने दोस्तों तक ही पहुँचाने होते हैं, किसी भी अजनबी को हम अपने विचार बताना पसंद नहीं करते हैं, और खासकर उनको तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें सड़क पर साईकिल का हैंडल पकड़कर लड़कियों को रोकने की आदत हो, अच्छा ये बताओ कि तुमने यह बदतमीजी आज तक कितनी लड़कियों के साथ की है ?”
    वह लड़का बोला आप उसे बदतमीजी का नाम मत दीजिये, वह तो हम केवल आपको अपने दिल का हाल बता रहे थे, कि कैसे हम आपके पीछे पागल हैं और हममें इतनी हिम्मत भी है कि आपको बाजार में रोककर अपने दिल के हाल से रूबरू भी करवा सकते हैं, काश कि आप हमारे दिल के हाल के सुनकर हमारी हालत पर रहम खायें” हमने कहा अपने दिल का हाल उसे सुनाईये जो सुनना चाहता है, हमें न सुनवाईये, अगर हमें ज्यादा परेशान किया तो आपको चप्पलों और लप्पड़ों के साथ अपना भविष्य गुजारना होगा, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मोहब्बत में आपका जनाजा निकल जाये, आपकी बेहतरी इसी में है कि आप हमें परेशान न करें और हमारे रास्ते से हमेशा जुदा ही रहें
    वह लड़का बोला चलो हम आपके घर तक तो आ ही गये हैं, धीरे धीरे आपके फेसबुक ट्विटर और दिल तक भी पहुँच ही जायेंगे, देखते हैं कि आप कब हमें अपनाते हैं
(लाईट कम होती है और लड़की पर फोकस होता है, लड़की संवाद कहती है –)
    जी तो मेरा ऐसे कर रहा था कि उसका मुँह वहीं तोड़कर उसे उसकी नानी याद दिला दूँ पर पता नहीं मेरे अंदर की हिम्मत इतनी भी नहीं रही थी कि मैं वहीं बैठी अपनी मम्मी और उसकी बहिन को उस लड़के की बदतमीजी के बारे में बता पाऊँ, पता नहीं ऐसी हिम्मत के लिये लड़कियों को क्या खाना चाहिये, जिससे वक्त रहते कम से कम ऐसे मजनुओं को जबाव तो दे
पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।
मैं कमजोर
नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
बस समाज से,
परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
सारा डर केवल
हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
क्यों इन
आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
कब ये आवारा
हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
आखिर कब इन
हवाओं का रुख बदलेगा
आखिर कब समाज
की दीवारें इन्हें रोकेंगी
कब ये हवाएँ
साफ होंगी
और कब इन
हवाओं से घुटन खत्म होगी
कब ये हवाएँ
बदलेंगी,
और कब हम
साँस ले पायेंगे ।
    और उसी शाम जब मैं फेसबुक स्टेटस देख रही थी कि एक नये दोस्त का नोटिफिकेशन दिखा, मैं हमेशा दोस्त बनाने के पहले प्रोफाईल की जाँच पड़ताल जरूर कर लेती हूँ, और उस दिन भी की तो देखा, पाया कि वही लड़का है जो मुझे परेशान कर रहा है, मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया और तभी मैंने अपने ट्विटर पर एक नया फॉलोअर देखा यह भी वही था, मैंने झट से उस प्रोफाईल को भी ब्लॉक किया। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल ही रही थी, कुछ दिन गुजरे ही थे कि मेरी जिंदगी के ठहरे हुए पानी में फिर से किसी ने कंकर मारकर मेरी जिंदगी को उलट पुलट कर दिया। मेरी सहेली ने बताया कि उसी लड़के ने मेरे कुछ फोटो किसी ने फेसबुक पर डाल दिये हैं, बात अब बिगड़ने लगी थी, मैंने निश्चय किया कि मैं अपने मम्मी और पापा को आज सब कुछ बता दूँगी, और फिर बेहतर है कि हम इस समस्या से मिलजुलकर लड़ें।
सीन
    पापा ने उस लड़के को बुलाकर बहुत समझाया बेटा हम और आप बहुत ही सभ्य घरों से ताल्लुक रखते हैं, और क्यों तुम मेरी बेटी को इस तरह से परेशान कर रहे हो, इससे नाहक ही सब परेशान हो रहे हैं और मेरी बेटी भी अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही है, बहुत ही ज्यादा मानसिक आघात तुमने दे दिया है, हमारी बेटी को हमने बहुत नाजों से पाला है, उसके पढ़लिख कर कुछ बनने के अरमान हैं, और तुम अब उन सपनों को पाने में बाधा बन रहे हो
    उस लड़के ने कहा अंकल जी, मैं तो केवल दोस्ती करना चाह रहा था, कि कोई अच्छा दोस्त हमारा भी हो, हमने तो कभी नहीं चाहा कि हमारे दोस्त के अरमान पूरे न हों, हम भी चाहते
हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे
    पापा ने कहा तो फिर मेरी बेटी के जो फोटो तुमने फेसबुक और ट्विटर पर डाल रखे हैं, क्या वह भी परेशान करने के लिये नहीं हैं, मैं तुम्हारी इस हरकत को किस नजरिये से देखूँ
    उस लड़के ने कहा वह तो मैंने केवल इसलिये डाल रखे हैं कि ये नहीं दिखे तो कम से कम मैं फोटो ही देख लूँ और अपने मन को तसल्ली दे दूँ
    पापा ने कहा अब तुम बदतमीजी पर उतर आये हो, एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी, अगर तुमने फोटो आज को आज ही नहीं हटाये तो मुझे पुलिस के पास जाना पड़ेगा, जब चार डंडे पड़ेंगे तो अपने आप तुम्हारे नये दोस्त बनाने के अरमान ठंडे पड़ जायेंगे
    उस लड़के ने कहा अरे! अंकल जी आप ना ज्यादा टेन्शन न लिया करो, वैसे  तो अब आपने इतनी बात कर ही दी है तो अब देखिये हम क्या करते हैं, आपकी बेटी के सारे फोटो तो हटा ही देंगे पर साथ ही हम परेशान करना भी बंद कर देंगे, हमें पुलिस की वर्दी से बहुत डर लगता है (व्यंग्य से कहते हुए)
    पापा ने गुस्से में कहा अब अगर मुझे तुम्हारी किसी भी हरकत की खबर लगी तो मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम्हें पता भी न चलेगा, तो बेहतर है कि आज के बाद कभी भी न घर के पास फटकना और न ही मेरी बेटी के पास” लड़का चला जाता है ।
(सुबह का सीन है, चिड़ियाओं के चहचहाने की आवाज आ रही है – )
    अगले दिन सुबह लड़की साईकिल पर अपने स्कूल का बैग लटकाये हुए जा रही है, तभी अचानक पास जाते स्कूटर पर हेलमेट पहने किसी लड़के ने उसके मुँह पर एक शीशी से तेजाब फेंक दिया।
    मैं जोर से चिल्लाई ये क्या है मेरे मुँह पर, ये जल क्यों रहा है, मुझे मेरे चेहरे पर इतना गर्म झाग क्यों लग रहे हैं, क्या किसी ने मेरे चेहरे पर मिर्ची फेंक दी है या कुछ और.. मेरा पूरा चेहरा जल रहा है.. झुलस रहा है
(स्टेज पर पीछे बहुत सी आग की लहरें दिखाते हैं)
(पीछे से सामूहिक कोलाहल अरे किसी ने तेजाब फेंक दिया है, तभी कोई पहचान गया अरे बिटिया चलो मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ और घर पर भी खबर कर देता हूँ)
    रास्ते भर में यही सोचती रही कि क्यों ये तेजाब मुझ पर फेंका गया और क्यों मेरे लिये ये जलन है किसी को मेरे प्रति, बस बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा हो रही थी, फफक फफक कर रोने
की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।
    पापा कह रहे थे बेटी मुझे तुम्हें इस तरह देखकर बहुत ही दुख हो रहा है, पता नहीं किसे हमारे से ऐसी दुश्मनी थी जिसने ये घिनौना काम किया है, ये केवल दिन दो दिन की जलन नहीं है, ये तो पूरे जीवन की पीड़ा है, अभी ये जख्म है, और हर जख्म धीरे धीरे ही सूखता है, मेरी प्यारी बेटी तुम इस जख्म से परेशान न होना, तुम्हें न ही किसी से लड़ने की जरूरत है और न ही किसी की सांत्वना की, मुझे पता है तुम बहुत बहादुर हो और कभी भी किसी से न हारने वाली हो, वीर वही होते हैं जो अपने आप में सिसक लें पर दुनिया को कानों कान खबर न होने दें, दुनिया वाले बस सोचते ही रहें कि आखिर इनके पास इतनी हिम्मत आती कहाँ से हैं, बेटी तुम्हें अपने सारे सपने सच करने हैं, ये तो हमारे लिये जिंदगी की परीक्षा है और हम इस परीक्षा को बहुत अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे, बस तुम अपना साहस कम मत होने देना, तुम्हारा परिवार हमेशा ही तुम्हारे साथ है
(स्टेज पर गहन अंधकार है और मंच पर एक कोने में फोकस लाईट जलती है और अपने बारे में बताती है)
    मैं बस उस दिन को अपने जीवन का काला दिन मान कर भूलना चाहती हूँ, पर कभी कोई जख्म भी जीवन में भरा है। हाँ अगर समय की दवा न होती तो नासूर जरूर बन जाता है, पर मैंने अपने जख्मों पर समय का मल्हम कुछ इस तरह से लगाया कि मैं दीन दुनिया को भूल बैठी, हाँ मुझे ठीक होने में काफी समय लगा । काफी लोग सांत्वना भी देते थे, पर मुझे उन लोगों पर हँसी आती थी, कि सांत्वना की जरूरत मुझे नहीं उन्हें खुद को है, काश कि समाज को हम यह भी शिक्षा दे पाते, काश कि हम अपने घर के लड़कों को मानसिक रोगी बनाने से रोक सकते, काश कि ये दर्द और जला हुआ चेहरा जो किसी की शरारत या हिकारत को शिकार हुआ था, न होता ।
(पार्श्व में हल्की रोशनी होती है और ऑनलाईन बिजनेस करते हुए दिखाया जाता है, एक लेपटॉप और कुछ लोग ऑनलाईन ब्रांडिग की प्रेजेन्टेशन उस लड़की को दिखा रहे होते हैं, लड़की का चेहरा रूमाल से ढंका है)
    मैंने अपना पूरा समय और पूरी ऊर्जा अपने सपने अपने अरमानों को पूरा करने में लगा दी, और मैं बहुत ही अच्छे से अपने आप को फाईंनेशियली सैटल कर पाई हूँ, आज मुझे मेरे परिवार पर  गर्व है कि मैं उन्हीं लोगों के कारण अपना खुद का इतना बड़ा ऑनलाईन बिजनेस कर पाई हूँ। बस यहाँ दुख इतना ही है कि कोई मेरे चेहरे को नहीं जानता, मेरे बनाये हुए ब्रांड को जानते हैं। मेरी सफलता की कहानी पूरे समाज की सफलता की कहानी है।

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो (Second Chance in Life)

जिंदगी में सबकी अपनी अपनी तमन्नाएँ होती हैं पर बहुत ही कम लोग अपनी तमन्नाओं के अनुसार काम कर पाते हैं, सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिये, अपने उत्तरादायित्व पूरे करने के लिये, अपने सपनों के अरमानों को कहीं अपने दिल में दफन करना पड़ते हैं, पर बीच बीच में कहीं न कहीं ये अपने सपने कहीं न कहीं झलक ही आते हैं, पूरा समय न पढ़ने में दे पाते हैं और न ही लिखने में, बहुत ही कम समय मिलता है पढ़ने और लिखने के लिये, पाँच दिन अपने ऑफिस में व्यस्त रहते हैं और बाकी के दो दिन परिवार के लिये।
अगर मुझे वो काम करने हों जो मैंने आगे के लिये छोड़ रखे हैं, क्योंकि मैं अभी वे काम नहीं कर पा रहा हूँ, वे इस प्रकार हैं –

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो –

कविताएँ  कहानियाँ लिखूँ
किसी ने सही ही कहा है कि जितना पढ़ोगे उतना ही अच्छा लिखोगे, और उतना ही गहराई से सोच पाओगे, जिंदगी को सही मायने से समझ पाओगे, अपनी समझ को सुलझा पाओगे, लिखते तो हैं पर वह स्तर नहीं आता जो स्तर आना चाहिये, जिसे हम अच्छा कह पायें।
थियेटर करूँ
किसी जमाने में बहुत शौक था स्टेज थियेटर करने का, न दिन का ध्यान रहता था, न रात का, बस कभी डॉयलाग याद करता था तो कभी अपनी अभिनय निखारने के लिये पता नहीं क्या क्या तरीके अपनाता था, खासकर जब पेट से आवाज निकालने का अभ्यास करता था तो पेट पर जोर पड़ते ही मुझे दस्त लग जाते थे, अभिनय भी वह कला है जिसे निखारने के लिये बहुत मेहनत करना पड़ती है।
पर्सनल फाईनेंस के लिये सेमिनार करूँ
मेरे पास पर्सनल फाईनेंस से संबंधित बहुत सारी चीजें हैं जो कि बहुत से लोगों को नहीं पता है, यहाँ तक कि आयकर की धाराओं के तहत कितनी और कैसे बचत की जाये यह भी नहीं पता
है, कितना बीमा लेना चाहिये, लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, मिलने वालों को तो फायदा मिलता ही है, पर चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिले।
This post is a part of the #SecondChance
activity at BlogAdda
in association with MaxLife Insurance
”.

बेटी तू कितना भी विलाप कर ले, तुझे मरना ही होगा (नाटक)

माँ और उसकी कोख में पल रही बेटी के मध्य संवाद

 पार्श्व में स्वरघोष के साथ ही बताया जाता है –
( जैसे ही बहु के माँ बनने की सूचना मिली परिवार खुशियों से सारोबार था, परिवार में उत्सव का माहौल था। उनके घर में वर्षों बाद नये सदस्य के परिवार में जुड़ने की सूचना जो मिली थी, परिवार रहता तो आधुनिक माहौल में है, पर उनके विचार रूढ़िवादी हैं, बहु को बहु जैसा ही समझते हैं, जब से बहु घर में आई है तो घर में उनके पति की मम्मी को बहुत ही आराम है, पहले दिन रात घर के काम में खुद तो खटना ही पड़ता था और साथ ही बर्तन साफ करने वाली, पोंछे वाली और कपड़े धोने वाली धोबन सबका ध्यान रखना पड़ता था, अब जब से बेटे की शादी की है, तब से ना खुद काम करने पड़ता है और बर्तन साफ करने वाली, पोंछे वाली और कपड़े धोने वाली धोबन का भी ध्यान नहीं रखना पड़ता है, क्यूंकि बहु तो होती ही घर के काम करने के लिये है, तो अब घर का सारा काम बहु करती है। जैसे सदियों से धरती और सूर्य अपनी धुरी पर घूम रहे हैं वैसे ही औरत घर की धुरी पर घूम रही है, क्या कभी उसके अंतर्मन को किसी ने पढ़ने की कोशिश की, नहीं कम से कम अब तक तो नहीं ।
जब से बेटी के घर में आने की खबर घर वालों को एक अवैधानिक अल्ट्रासाऊंड से मिली है, माँ को कान में केवल एक ही बात सुनाई देती है,  (गूँजती हुई कोरस में आवाज) मार दो, मार दो, मार दो !!! )
मंच के बीचों बीच माँ बैठी है, फोकस लाईट माँ पर आती है..
माँ अपने पेट पर हाथ रखकर अपनी बेटी से संवाद कर रही है..
माँ – बेटी मैं तो तुझे बचाने की पूरी कोशिश कर रही हूँ, परंतु आखिर मैं हूँ तो नारी ही
बेटी – माँ मुझ बचा लो माँ, क्या माँ आप इस धरती की मानस संतानों को समझा नहीं सकतीं कि अगर बेटी ना होगी तो बहु कैसे आयेगी, वंश आगे कैसे बढ़ेगा, ये तो प्रकृति का नियम है, लिंग कोई भी हो पर प्रकृति के प्रति जबाबदेही तो बराबर ही होती है ।
माँ – बेटी मैं तो दुनिया के हर वहशी दरिंदे हत्यारों से तुझको बचाना चाहती हूँ, पर मैं क्या करूँ, आखिर हूँ तो नारी ही, बेबस हूँ, लाचार हूँ, मैंने इस धरती पर अनचाहे ही कितने ही हत्यारों को देखा है, अनमने ढ़ंग से हत्यारे परिवारों के मध्य रही हूँ, इन खौफनाक आँखों को पढ़ते हुए जाने कितने दिन और रातें सहमी सी बिताई हैं, और सबसे काला पक्ष इसका यह है कि इन वीभत्स हत्याओं के पीछे हमेशा ही कोई नारी सर्वोच्च भूमिका निबाह रही होती है। वह एक बार भी अपने खुद को मारने के अहसास को समझ नहीं पाती है।
बेटी – माँ हमने ही तो किसी न किसी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू के जन्म दिया था, अगर बेटी को ऐसे ही मारा जाता रहा तो इस दुनिया को बता दो कि इनकी किस्मत बदलने वाले की माँ का कत्ल कोख में ही हो गया, हो सकता है कि तुम्हारी कोख से नहीं पर मेरी कोख से भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू जन्म ले लें पर अब वे किसी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू के आने की प्रतीक्षा न करें, बस वे बेटी को कोख में ही कत्ल करें !!
माँ – बेटी तू लड़की है, अल्ट्रासाऊँड में आ गया है, और तत्क्षण ही मैंने इस परिवार की आँखों में तैरती हुई वह नंगी वहशियानी खून में लिपटी हुई तलवारें देखी थीं, ऐसा लगने लगा है कि मैं अब किसी भी पल माँस के लोथड़ों के मध्य जा सकती हूँ, मैं पल पल केवल यही अहसास कर रही हूँ कि कब साँसें रूकेंगी, कब धड़कन रूकेगी और कब मैं उन नरभक्षियों को शिकार बनूँगी, मैँने पता नहीं कितनी बेटियों को कोख में ही मरते देखा है, ना
आजतक बोल पाई और ना ही अब बोल पाऊँगी।
बेटी – माँ आखिर हूँ तो मैं भी एक संतान ही ना, क्या मुझे वाकई इस रंगीन दुनिया को देखने का, अहसास करने का एक मौका नहीं मिलेगा, क्या आने वाले समय में रक्षाबंधन, भाईदूज जैसे त्यौहार दुनिया के लिये गौण हो जायेंगे । जब लड़की न होगी तो, क्या आने वाले समय में विवाह बंधन होंगे !!
माँ – बेटी तू कितना भी विलाप कर ले, पर यह तो तेरी नियती है, तुझे मरना ही होगा, तुझे मरना ही होगा
कोरस में पार्श्व में आवाज (तुझे मरना ही होगा, तुझे मरना ही होगा)