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दोस्तों के साथ दोस्तों में विशेषण के साथ बात किये बने आत्मीयता नहीं आती (Communication between friends is important for friendship)

    दोस्तों के साथ कॉलेज के दिनों के बिताये दिन कुछ अलग ही होते हैं, कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता और फिर बाद में भले ही कोई कितना बड़ा आदमी बन जाये पर कॉलेज के दिनों के साथियों से तो पुराने अंदाज और पुराने तरीके से ही बात की जाती है। कुछ लोग बदल जाते हैं और वे लोग दोस्त कहलाने के लायक नहीं होते, उनसे हाथभर की दूरी बनाये रखे जाना चाहिये कि जिससे वक्त पड़ने पर उनको गले लगाने की जगह, लप्पड़ या लात रसीद की जा सके। जिससे उनको उनका पूरा खानदान याद आ जाये ।
    जब भी बातें करते हैं तो माँ बहन और गद्दी के विशेषणों के बिना बात ही नहीं होती है, पर दोस्तों से बात करने का मजा भी तब ही है और जब तक विशेषण न हो, लगता ही नहीं कि पक्के दोस्त हैं, यकीन मानिये जितनी ज्यादी नंगाई दोस्तों के साथ हो, उतनी ही पक्की दोस्ती होती है। फुल ऑन देसी हिन्दी भासा में पता नहीं कहाँ कहाँ के किस्से कहानी कहते थे। और पता नहीं कभी मालवी भाषा तो कभी निमाड़ी भाषा और कभी भोपाली जुमलों का इस्तेमाल विशेषण के रूप में किया जाता, उन सबमें विशेष रस आता था, आज भी उन्हीं दोस्तों के साथ उन विशेषणों के द्वारा विशेष रस का आनंद लिया जाता है, बस अब अंतराल कम नहीं बहुत कम हो गया है।
    भोपाली विशेषणों में तो आनंद ही कुछ और है, कई बार तो प्योर भोपाली विशेषणों के लिये आज भी पुराने घनिष्ठ दोस्तों को फोन लगाकर पान खिलवाकर वे विशेषण सुनने के आनंद ही कुछ और होते हैं, एक हमारे मित्र थे वे तो साली, भाभी और पता नहीं कहाँ कहाँ के रिश्तों के साथ रस लेकर किस्से कहानियों को जोड़ देते थे। आज भी कई बार कहीं कोई अपना कॉलेजियाना यार मिल जाता है तो पता नहीं कहाँ से पुराने जुमले जुबान पर से फिसल पड़ते हैं, और पुराने दिनों की यादें वीडियो बनकर नंगी आँखों में उभर आती है, सारी की सारी वीडियो फिल्म बनकर सामने हमारी मुख गंगा से बह निकलती है। और वीडियो भी देसी जबान में बोला जाता है तो आज भी हम लोग हँस के चार हो जाते हैं।
    जीवन के इन चार दिनों में वैसे ही रिश्तों की बागडोर सँभालना मुश्किल होता है और अगर जीवन में कहीं न कहीं हलकट अंग्रेजी भाषा में कहें चीप न बनें तो आप जीवन के आनंद में सारोबार हो ही नहीं सकते । आत्मीयता भी तभी आती है, जब दोस्तों के बीच कोई दुराव छुपाव नहीं हो, बस दोस्ती के बीच में कुछ और न लाया जाये और अपने दोस्त के लिये हमेशा एक आवाज पर खड़ा हो जाया जाये तो इससे बेहतरीन बात और कोई हो ही नहीं सकती है।

व्याकुलता – चिंतन

    व्याकुलता इंसान को जितनी जल्दी कमजोर बनाती है, उतनी ही जल्दी व्याकुलता से मन को ताकत मिल जाती है। जब भी कोई दिल दहलाने वाली खबर हमें लगती है, हम व्याकुल हो उठते हैं, मन कराहने लगता है, दिमाग काम करना बंद कर देता है और तत्क्षण हम निर्णय लेने की स्थिती में नहीं होते, मन की स्थिती डांवाडोल हो चुकी होती है, आँखों को वस्तुएँ एक से ज्यादा लगने लगती हैं, क्योंकि उस समय हमने कुछ ऐसे सुन लिया होता है जो कि हम सुनना नहीं चाहते, और हम कुछ बुरा सपने में भी नहीं सोच सकते।
    यह सत्य है कि हमारे मन में कई बार अपनों के ही लिये कुछ बुरे ख्याल मन में आते रहते हैं, और कोई भी इस क़टु सत्य को नकार नहीं सकता है, उस समय हमारा मन सोचता है कि कैसे उस समय उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निपटा
जायेगा। इन सारी चीजों को सोचते समय हम विचलित नहीं होते, वरन् हम अपने आप को दृढ कर रहे होते हैं।
    जीवन में इस तरह के क्षण हरेक की जिंदगी में आते हैं, जिसे हर व्यक्ति अपने अपने तरीके से अपनी क्षमता के अनुसार संचालित करता है, हमारा दिमाग दो भागों में बँटा होता है, जिसमें बायें तरफ का दिमाग बहुत ही ज्यादा सक्रिय रहता है, जिसमें हम तरह तरह की बातें सोचते रहते हैं, विचारों को बुनते गुनते रहते हैं। वहीं दायीं तरफ का दिमाग हमारे शारीरिक प्रबंधन का कार्य करता है। सोते समय हमारा बायीं तरफ का दिमाग आराम करता है और दायीं तरफ का दिमाग सोते समय बायीं तरफ केदिमाग का कार्य करता है, अधिकतर बीमारियों के उत्पन्न होने की वजह भी बायीं तरफ का दिमाग होता है। व्याकुलता बायें हिस्से से ही नियंत्रित होती लगती है।
    व्याकुलता याने कि वह स्थिती जिसमें कि हमारा काबू हमारे ऊपर नहीं होता है, हम अपना नियंत्रण खो देते हैं, हम ऐसी कोई खबर सुनने के बाद अपने ऊपर किसी को भी हावी हो जाने देते हैं, हमें अगर कोई भी इस समय सहारा देता है खासकर वह जो कि हमारे बहुत नजदीकी हो, जिसका हमारी जिंदगी में बहुत महत्व हो, तो हमारी व्याकुलता कुछ हद तक कम हो जाती है।
ये विचार मैंने अपने अनुभव के आधार पर लिखे हैं ।

हमारे एक मित्र का जीमेल पर स्टेटस …. प्रबंधन पर खरी खरी

हमारे एक मित्र नीरज आनंद के जीमेल स्टेटस से ये पंक्तियां ली गई हैं –

A team of Lion lead by donkey can be defeated by a team of donkies lead by a Lion…

एक शेर के समूह का नेतृत्व अगर गधा करता है तो वो अवश्य हारेगा, उस गधों के समूह से जिनका नेतृत्व एक शेर कर रहा है….

कुत्ता, शेर और बन्दर (कुत्ते का प्रबंधन Management)

एक दिन एक कुत्ता जंगल में रास्ता खो गया। तभी उसने देखा एक शेर उसकी तरह आ रहा है। कुत्ते की साँस रुक गय़ी। “आज तो काम तमाम मेरा!” उसने सोचा, फ़िर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ पड़ी देखीं, और आते हुए शेर की तरफ़ पीठ करके बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा और जोर जोर से बोलने लगा “वाह ! शेर को खाने का मजा ही कुछ और है, एक और मिल जाये तो पूरी दावत हो जायेगी !”।
और उसने जोर से डकार मारी, इस बार शेर सोच में पड़ गया उसने सोचा “ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है! जान बचा कर भागो !”
और शेर वहाँ से जान बचा के भागा।
पेड़ पर बैठा एक बन्दर यह सब तमाशा देख रहा था, उसने सोचा यह मौका अच्छा है शेर को सारी कहानी बता देता  हूँ – शेर से दोस्ती हो जायेगी और उससे जिन्दगी भर के लिये जान का खतरा दूर हो जायेगा.. वो फ़टाफ़ट शेर के पीछे भागा।
कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गया कि कोई लोचा है।उधर बन्दर ने शेर को सब बता दिया कि कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ़ बनाया है। शेर जोर से दहाड़ा, “चल मेरे साथ अभी उसकी लीला खत्म करता हूँ” और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ़ लपका।
क्या आप सोच सकते हैं कि कुत्ते ने क्या आपदा प्रबंधन किया होगा!!!
कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फ़िर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गया और जोर जोर से बोलने लगा, “इस बन्दर को भेज के एक घंटा हो गया, साला एक शेर फ़ाँस के नहीं ला सका !”।

नैतिक शिक्षा –
ऐसे बहुत सारे बन्दर हमारे आसपास मौजूद हैं उन्हें पहचानने की कोशिश कीजिये।