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रोज महाकाल की संध्या आरती में जाना

हम जब उज्जैन रहने पहुँचे तो दोस्त लोग शाम को घूमने जाते थे, पर हम कुछ दोस्तों ने थोड़े दिनों बाद इधर उधर जाने की जगह रोज शाम को 7 बजे महाकाल मंदिर में आरती में जाने का निर्णय लिया और नंदी जी के पीछे उस समय तीन बड़ी घंटियाँ हुआ करती थीं, तो वहाँ एक बड़ा लंबे से पटरे पर खड़े होकर हम तीन दोस्त कई बार पूरी आरती में घंटियाँ बजाते थे। अगर कोई और भक्त आकर निवेदन करता था, तो उनको भी मौका मिलता था। पर लगातार हाथ ऊपर करके घंटियाँ बजाना भी आसान काम नहीं, हाथ दुख जाते थे, पर धीरे धीरे आदत पड़ गई, उस समय डमरू और झांझ मंजीरे भी हाथ से ही बजाये जाते थे, फिर डमरू और झांझ मजीरे की मशीन आ गई।

महाकाल की संध्या आरती के बाद हम महाकाल परिसर में स्थित बाल विजयमस्त हनुमान जी की आरती में शामिल होते थे, वहाँ एक आरती रोज पढ़ी जाती थी, जो हमें नहीं आती थी, और वह आरती हमने घर पर भी रोज पढ़ना शुरू की तो हमें कंठस्थ हो गई, अब भी कंठस्थ है। वह है श्रीराम स्तुति – सुनने में ही इतनी मोहित करने वाली और और जब आप डूबकर भक्तों के साथ स्तुति करते हैं तो एक अलग ही दुनिया में होते हैं।

श्रीराम स्तुति (Shri Ram Stuti)

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन

हरण भव भय दारुणम्।

नवकंजलोचन, कंज-मुख

कर-कंज पद-कंजारुणम्।।……

…..

बाल विजयमस्त हनुमानजी की आरती के बाद महाकाल परिसर में स्थित 84 महादेव व उज्जैन के हर मंदिर की छोटी प्रतिकृति भी वहाँ है, उनके दर्शन के बाद, माँ हरसिद्धि पहुँच जाते थे, कई बार वहाँ आरती मिलती कई बार नहीं।

इस प्रकार अपने जीवन के कुछ 2 वर्ष शाम को यही दिनचर्या रही। बाबा महाकाल मेरे जीवन के अभिन्न अंग हैं। और आज यह बातें अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा पर याद आ गईं।

पापाजी मम्मीजी के साथ महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन

जब से उज्जैन आये हैं हम तो कई बार महाकालेश्वर के दर्शन कर चुके हैं, और लगभग रोज ही शिखर दर्शन कर रहे हैं। पापाजी मम्मीजी की भी इच्छा थी कि वे भी महाकालेश्वर के दर्शन करें, परंतु ज्यादा चलना उनके बस का नहीं था। तब हमने महाकालेश्वर में पूछा तो पता चला कि व्हील चेयर मिल जाती है। यह भी देखा कि कार कैसे महाकालेश्वर मंदिर के पास तक जा पाये, जिससे उनको ज्यादा न चलना पड़े।

कार का रास्ता – गोपाल मंदिर से महाकाल घाटी की और जाते हुए, दायीं तरफ चौबिसखम्बा माता का मंदिर के रास्ते में मुड़ें, और फिर बायीं तरफ वाला रास्ता जो कि घाटी जैसा है, उस पर जायें, बस उसके बाद रास्ते पर चलते रहें, आप महाराजबाड़ा स्कूल पहुँच जायेंगे, जगह देखकर कर पार्किंग में लगा दें। अपना मोबाईल और चप्पल जूते कार में ही छोड़ दें।

महाकालेश्वर मंदिर में ₹250 का टिकट वाली विंडो पर जब हम पहुँचे तो उनसे कहा कि 3 टिकट चाहिये और 2 व्हील चेयर चाहिये, तो उन्होंने कहा कि आप गेट नम्बर 5 पर चले जाइये, अटेंडेंट साथ में जा सकते हैं। व्हील चेयर व उनके अटेंडेंट के लिये दर्शन फ्री हैं, कोई टिकट लेने की आवश्यकता नहीं है। हम गेट नम्बर 5 पर गये और हमें अंदर बैठने के लिये कह दिया गया। इस समय सुबह के 6.10 हो रहे थे। 5 मिनिट बाद ही 2 लोग आये और उन्होंने पापाजी मम्मीजी को व्हील चेयर पर बैठाया व दर्शन हेतु महाकालेश्वर मंदिर में चल दिये।

सुबह ₹1500 वाली लाइन भी लंबी थी, जिसमें महिलाओं को साड़ी व पुरुषों को धोती व बनियान पहनना होता है। हमें सीधे नंदी हाल के पीछे लगी रेलिंग के पास ले गये, वहाँ से पैदल जाकर बाबा महाकाल के दर्शन किये, और वापिस उसी रास्ते मंदिर के बाहर आ गए। दर्शन करने में लगा समय लगभग 15 से 20 मिनिट रहा। हम घर से सुबह 6 बजे निकले थे व वापिस 6.45 पर घर पर आ गये थे।

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महाशिवरात्रि पर उज्जैन का विश्व रिकॉर्ड

18 फरवरी वैसे तो हमेशा ही मेरे लिए बहुत विशेष दिन रहा है, क्योंकि मैं इसी दिन अपने वैवाहिक गठबंधन में बंधा था। कल देखते देखते इस गठबंधन को 21 वर्ष हो गये। जीवन के इस पड़ाव पर आते आते पता ही नहीं चला कि कब हम इतने अच्छे दोस्त बन गए और प्रगाढ़ता बढ़ती ही जा रही है।

राम घाट उज्जैन

हम बचपन से ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते आए हैं। व्रत क्या हमारे लिए तो बहुत ही विशेष दिन होता है, क्योंकि इस दिन घर में व्रत की सामग्री से माल बनते हैं क्योंकि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की शादी हुई है। भोले बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में रहते हुए महाकाल में आस्था कब इतनी गहरी हो गई पता ही नहीं चला। हालांकि कल महाकालेश्वर में भीड़ के चलते हम दर्शन करने नहीं गए लेकिन पूरे दिन मन वही अटका रहा। यूट्यूब पर महाकाल के लाइव दर्शन करते रहे और महादेव को मन में भजते रहे।

घर के पास ही मंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व की छटा देखते ही बनती थी। मंदिरों को बहुत ही बढ़िया सजाया गया था, कुछ मंदिरों में शिव जी का भांग से श्रृंगार किया गया था और दूल्हा स्वरूप बनाया गया था। उज्जैन में दिनभर भक्तों के लिए भंडारे खुले हुए थे, जिसमें साबूदाने की खिचड़ी, ठंडाई, पोहे इत्यादि सड़क पर ही स्टाल लगाकर बांटे जा रहे थे। कई जगह सड़क पर ही स्टेज लगाकर भजन संध्या चल रही थी, जिसमें कई जगह स्टेज पर भगवान शिव को दूल्हा स्वरूप और मां पार्वती को दुल्हन स्वरूप सजाकर बैठाया गया था वही जनता भक्ति में सड़क पर नृत्य कर रही थी। लोगों ने खुद ही ट्रैफिक मैनेजमेंट संभाला हुआ था जिससे जाम की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।

हमने दोपहर को घर के पास ही नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन करके साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद प्राप्त किया और वहीं बैठे पंडित जी ने जो कि बालक थे उन्होंने हमारे माथे पर तिलक लगाया।

नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन के बाद
साबूदाने की खिचड़ी का प्रसाद

हम यूट्यूब पर लगातार खबर देख रहे थे और रामघाट का लाइव प्रसारण भी देख रहे थे। जहाँ मध्य प्रदेश शासन ने 21 लाख दिए प्रज्वलित कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की चेष्टा की थी। गिनीज बुक में द्रोन के माध्यम से चित्र खींचे व उनकी गणना की तथा 18 लाख 80 हजार दिए प्रज्वलित है इसका विश्व रिकॉर्ड कल उज्जैन के नाम हो गया। इसके पहले यह रिकॉर्ड 15 लाख से कुछ अधिक दियों का अयोध्या के नाम था। शाम को लगभग 9:00 बजे हम घर से निकले और रामघाट पहुंचे व इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने। हर तरफ सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे हर तरफ घाट पर दिए ही दिए दिखाई दे रहे थे।

रामघाट से हम मुंबई धर्मशाला होते हुए हरसिद्धि की तरफ पहुंचे और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर दर्शन किये। भक्तों का जोश देखते ही बनता था, कल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए कम से कम 10 लाख लोगों का तांता उज्जैन में लगा हुआ था।

रामघाट और दत्त अखाड़ा क्षेत्र
रील जो बनाकर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड करी।

उज्जैन और सिंहस्थ 2016 के बारे में

उज्जैन विश्व के प्राचीन शहरों में है, और प्राचीन शहर ऊँगलियों पर गिने जा सकते हैं। उज्जैन सदियों से पवित्र एवं धार्मिक नगर के रूप में प्रसिद्ध रहा है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ शासन किया उनके नाम पर ही भारत में विक्रम संवत चलता है। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्न थे महाकवि कालिदास, वेताल भट्ट, वराहमिहिर, वररूचि, अमरसिंह, धनवंतरी, क्षपणक, शंकु और हरिसेना। अपने अपने क्षैत्र में सारे रत्न धुरंधर थे।

महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोवर्शीयम, रघुवंशम, कुमारसंभवम, ऋतुसंहारं, मेघदूतं जिनको पढना और समझना अद्भुत है। वराहमिहिर ज्योतिष के विद्वान थे उनकी प्रसिद्ध कृति है पंचसिद्धान्तिका। वररूचि संस्कृत व्याकरण के आचार्य थे। अमरकोष अमरसिंह की देन है। धनवंतरी आयुर्वेदाचार्य थे। हरिसेना संस्कृत के कवि थे। उज्जैन महर्षि सांदीपनि की तपोभूमि है तो राजा भृतहरि की योगस्थली, हरिशचन्द्र की मोक्षभूमि और भगवान श्री कृष्ण की शिक्षास्थली भी रहा है।

उज्जैन में Drive लेकर प्राचीन शनि मंदिर, राजा जयसिंह द्वारा बनवाई गई वेधशाला, चिंतामन गणेश मंदिर, हाशमपुरा जैन मंदिर, अवंतिनाथ पार्श्वनाथ जैन मंदिर, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, बड़ा गणपति, सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन, हरसिद्धी देवी, रामघाट, गैबी हनुमान मंदिर, गोपाल मंदिर, अंकपात, कालभैरव मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, भृतहरि गुफा, योगी मत्स्येन्द्रनाथ की समाधि, सिद्धवट, कालियादेह पैलेस, मंगलनाथ, अंगारेश्वर, महर्षि सांदीपनी आश्रम, इस्कान मंदिर, फ्रीगंज स्थित घंटाघर, सिंधिया प्राचीन अनुसंधान केन्द्र, वाकणकर शोध संस्थान, कालिदास अकादमी देखा जा सकता है।

उज्जैन के प्राचीन और ऐतिहासिक स्थानों की Design देखने योग्य हैं। भूतभावन श्री महाकालेश्वर मंदिर का बारह ज्योतिर्लिंगों में विशिष्ट स्थान है, श्री महाकालेश्वर शिवलिंग दक्षिणमुखी होने के कारण विशेष महत्व रखता है, महाकाल मंदिर के गर्भगृह की छत पर लगा रूद्र यंत्र विशेष दर्शनीय है और इसका वैज्ञानिक महत्व है। मंगलनाथ को भगवान मंगल का जन्म स्थान माना जाता है, कहते हैं कि यहाँ भातपूजा से मंगल का असर कुँडली पर विशेष प्रभाव डालता है, कर्क रेखा उज्जैन से गुजरती है इसी कारण राजा जयसिंह ने उज्जैन में वेधशाला का निर्माण करवाया था, जिसे जंतर मंतर भी कहा जाता है, सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगांश यंत्र और शंकु यंत्र को वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया है और आज भी बहुत से लोग यहाँ पर शोध करने आते हैं।

उज्जैन बस, ट्रेन और वायु तीनों संसाधनों से Connect है, उज्जैन इंदौर से केवल 55 किमी की दूरी पर स्थित है, मुँबई, दिल्ली, चैन्नई और कलकत्ता से सीधे ट्रेन यहाँ के लिये उपलब्ध हैं, बसों से भी उज्जैन पहुँच सकते हैं। अगर आप वायुयान से यात्रा कर रहे हैं तो निकटतम हवाईअड्डा इंदौर है और लगभग सभी बड़े शहरों से सीधे फ्लाईट उपलब्ध है, इंदौर हवाईअड्डे से उज्जैन टैक्सी के द्वारा या बस के द्वार पहुँचा जा सकता है।

उज्जैन में 2016 में सिंहस्थ महापर्व होने वाला है जो कि 22 अप्रैल से 21 मई 2016 (30 दिनों) के दौरान होगा। सिंहस्थ को कुँभ मेले के नाम से भी जाना जाता है और यह बारह वर्षों में एक बार उज्जैन में लगता है, उज्जैन में यह महापर्व सिंह राशि में होता है इसलिये यह सिंहस्थ कहलाता है। इस बार सिंहस्थ का कुल क्षैत्र 3000 हेक्टेयर से ज्यादा होगा, सिंहस्थ को दौरान होने वाले स्नानों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

उज्जैन Made of Great है, जीवन में एक बार उज्जैन आना आपके जीवन को सुकून से भरने के लिये पर्याप्त है।

हे महाकाल! भ्रष्टाचारियों ने उज्जैन को बदनाम करके रख दिया ।

पिछले कुछ समय से उज्जैन का नाम लगातार समाचार चैनल में देख रहे होंगे वो भी धार्मिक नगरी के तौर पर नहीं, भ्रष्टाचारियों को पकड़ने को लेकर। नगरनिगम के चपरासी से क्लर्क तक से १० करोड़ से ज्यादा की संपत्ती की बरामदगी हुई है और संख्या ५०-६० करोड़ तक जा पहुँची है।

हमें यह तो पता था कि नगरनिगम में भ्रष्टाचार होता है क्योंकि बिल्कुल घर के पास है और वहाँ की संचालित गतिविधियाँ किसी से छूप नहीं पाती हैं। किसी भी काम को करवाने के लिये बिना पैसे दिये काम नहीं होता है। अब लोकायुक्त का तो बहुत काम बड़ गया है, क्योंकि अभी तो उन्होंने केवल चपरासी और क्लर्कों को ही पकड़ा है, और वो बिचारे पकड़े इसलिये गये कि उन्हें यह नहीं पता होगा कि भ्रष्टाचार की रकम को ठिकाने कैसे लगाना है। अब जब पड़े लिखे भवन इंजीनियर और नक्शा इंजीनियरों के यहाँ उनकी संपत्ती खंगाली जायेगी तो हो सकता है कि ये तो अभी तक जितनी रकम मिली है उसके रिकार्ड टूट जायें।

उज्जैन में हर १२ वर्ष में सिंहस्थ का आयोजन होता है, जिसमें करोड़ों रूपये सरकार द्वारा सिंहस्थ के लिये दिये जाते हैं, पिछले सिंहस्थ में लगभग ४०० करोड़ रूपये उज्जैन की सड़कों के लिये दिये गये थे, जिसमें यह हाल था कि सिंहस्थ के बाद सड़क ६ महीने भी नहीं टिक पाई, अगर ईमानदारी से उस रकम को खर्च किया जाता तो जनता सरकार को बधाई देती। अब यह सारा खेल समझ में आ रहा है। जब चपरासी और बाबुओं के पास इतना मिल रहा है तो अधिकारियों के पास तो समझ ही सकते हैं। आखिर धार्मिक नगरी उज्जैन में करोड़ों रूपया आता है और इन कर्मचारियों के पेट में चला जाता है।

कुछ दिन पहले झाबुआ से हमारे मित्र का फ़ोन आया कि फ़लाना जो है ऑडी में घूमता है और यहाँ के रेड्डी बंधु हो रहे हैं, फ़िर उनका मामला सब जगह उठा, परंतु बाद में ठंडा हो गया। अब ये करोड़ों के घपले करने वाले भी कभी हमारे मित्र थे, मतलब कॉलेज के जमाने में, तब कभी सोचा नहीं था कि कभी भविष्य में ऐसा भी होगा।

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हमारी तो महाकालेश्वर से प्रार्थना है कि “हे महाकाल, जितने भी भ्रष्टाचारी, उज्जैन की पावन धरती पर हैं, उन्हें भस्म कर दो और उज्जैन को सारी सुख सुविधाओं से महरूम रखने वाले इन लोगों के प्रति कोई रहम मत करो”।

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सावन का महीना और महाकाल बाबा की सवारी

सावन के महीने में भगवान महाकालेश्वर के रुप :-

महाकाल स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर नागपंचमी और हमारी यादें
मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)
महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को और महाकवि कालिदास का मेघदूतम में महाकाल वर्णन..
उज्जैन यात्रा, महाकाल बाबा की शाही सवारी के दर्शन… भाग – १

महाकाल स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर नागपंचमी और हमारी यादें

    महाकाल स्थित तृतिय मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, जो कि ऐतिहासिक है और महाकाल जितना ही पुरातन है। नागचंद्रेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वर्ष में केवल २४ घंटे के लिये याने के नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।
    धार्मिक मान्यता है कि यहाँ तक्षक का वास है। और हमने कई लोगों के मुंह से सुना भी है कि उन्होंने सफ़ेद नाग का जोड़ा यहाँ देखा है, हर वर्ष किसी न किसी के मुंह से यह सुनते आये हैं, कहते हैं कि नागपंचमी के दिन सफ़ेद नाग का जोड़ा और एक सफ़ेद कबूतर यहाँ दर्शन करने को आते हैं और फ़िर अंतर्धान हो जाते हैं, पता नहीं कितनी सच्चाई है। लोग कहते हैं और धार्मिक मान्यता है इसलिये हम नकार भी नहीं सकते हैं।
    जब उज्जैन में थे तो लगभग हर वर्ष बिना नागा नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने जाते थे। कभी भी ५-६ घंटे की लाईन से कम में दर्शन नहीं हुए, पर हम हमेशा बहुत खुश रहते थे। आखिरी बार हम अपनी माताजी के साथ स्पेशल दर्शन का टिकट लेकर गये थे तो भी लगभग १ घंटा लग गया था।
   जब हम पढ़ते थे तो सभी दोस्त आपस में मजाक करते थे, और एक दूसरे के घर पर जाकर बाहर से आवाज लगाते थे “पिलाओ साँप को दूध”।
   नाग पंचमी के दिन सुबह से ही सँपेरों की लाईन लगी रहती थी और “पिलाओ साँप को दूध” की आवाजें सुनाई देती थीं।
    आज फ़िर नागपंचमी के अवसर पर हम अपने ब्लॉगर दोस्तों को आवाज लगाते हैं –  “पिलाओ साँप को दूध” ।

उज्जैन की प्रसिद्ध चीजों के बारे में, हमारे मित्र “बल्लू” का एस.एम.एस

हमारे प्रिय मित्र ने एक एस.एम.एस. भेजा था जिसमें उज्जैन की वो लगभग सारी चीजें हैं जिससे हरेक उज्जैनवासी का लगाव हो न हो पर हमारे मित्र मंडल का लगाव बहुत है आप भी पढ़िये उज्जैन की प्रसिद्ध चीजों के बारे में, और यकीन मानिये अगर आप उज्जैन में रहते हैं और नीचे लिखी एक भी चीज को नहीं जानते हैं तो निकल पड़ें, और ढूँढें, और सूचि को पूरा करें –

हमारे मित्र बल्लू का एस.एम.एस. बल्लू हम मित्र को प्यार से बोलते हैं ।

वो महाकालेश्वर का मंदिर
वो टेकड़ी की चढ़ाई
वो भोलागुरु के गुलाबजामुन
वो टॉप एन टाऊन की आईसक्रीम
वो क्षीरसागर स्टेडियम के मैच
वो विक्रमवाटिका की हरियाली
वो जैन की कचौरी
वो पेटिस लक्ष्मी बेकरी वाला
वो नरेन्द्र टाकीज की मूवीज
वो श्री की फ़ेक्टरी
वो शहनाई की शादियाँ
वो गंगा बेकरी के पेस्ट्री
वो बस स्टैंड का पोहा
वो मद्रासी का डोसा
वो आनंद की चाट
वो ओम विलास का समोसा
वो इस्कॉन की रौनक
वो सर्राफ़े की गलियाँ
वो ऐरोड्रम का सन्नाटा
वो राजकुमार की दाल
वो मामा की दुकान का पान
वो बल्लू की दोस्ती
यही सब तो है हमारे उज्जैन की शान

जन्मदिन पर दिनचर्या उज्जैन में [दाल बाफ़ले, मिठाई, बाबा महाकाल के दर्शन, रामघाट पर झम्मकलड्डू] भाग २

    जबेली का नाश्ता पूरा होने के बाद हमसे पूछा गया कि अब खाने में क्या पसंद करेंगे हम तो बस इंतजार ही कर रहे थे कि हमसे पूछा जाये और हम झट से कहें “दाल बाफ़ले”। बस हमने झट से कह दिया “दाल बाफ़ले”।

    फ़िर बाफ़ले का आटा बाजार से लाया गया और दाल और बैंगन के भुर्ते की तैयारी की जाने लगी साथ में चावल ये हमारे मालवा का विशेष भोजन है, जिसके लिये हम हमेशा भूखे ही रहते हैं, बाफ़ले का घी जो कि बाफ़ले की रग रग में घुसा हुआ था, हमारे हाई बी.पी. और बड़े हुए कोलोस्ट्रॉल को मुँह चिढ़ा रहा था।

    फ़िर हाथ से मीड़कर बाफ़ले में दाल मिलाकर मजे में अपनी देसी स्टाईल से खाने का आनंद लेने लगे, आज पेट के साथ साथ आत्मा भी तृप्त हो रही थी। आत्मा और मन आनंदित हो रही थी, दिल प्रफ़ुल्लित हो रहा था बाफ़ले के हर गस्से के साथ। अब ज्यादा बात नहीं करेंगे नहीं तो सभी ब्लॉगर्स हमसे अभी यहीं दाल बाफ़ले बनवा लेंगे। 🙂

    कार्यक्रम बनाया गया कि पहले कुछ जरुरी खरीददारी की जाये फ़िर मिठाई ली जाये और फ़िर महाकाल और रामघाट चला जाये। मिठाई में हमने बंगाली मिठाई और काजूकतली ली दोनों ही हमें बेहद पसंद हैं, भले ही डॉक्टर ने मना किया हो परंतु कभी कभी तो उनकी मनाही को ताक पर रखा जा सकता है और मिठाई आनंद लेकर खाई जा सकती है। 😉

    फ़िर समान घर पर रखकर चल दिये हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये, अपनी बाइक पर, पुराने उज्जैन की गलियों से निकलते हुए हमें सालों पुरानी यादें ताजा होने लगीं। जब महाकाल घाटी पहुँचे तो पता चला कि एकाकी मार्ग घोषित कर दिया गया है, तो हमने अपने पुराने रास्ते जो कि चौबीस खंबा माता मंदिर के पास से होकर महाकाल जाता है, उससे महाकाल पहुँचे और बाबा के दर्शन बड़े मजे में हुए। हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये रात को शयन आरती के पहले ही जाना पसंद करते हैं, क्योंकि उस समय एक तो भीड़ भी नहीं रहती और फ़िर आराम से दर्शन हो जाते हैं, शाम की ठंडक भी रहती है। बाबा महाकाल के दर्शन करने के बाद वहीं महाकाल प्रांगण में चल दिये हम बाबा बाल विजय मस्त हनुमान के दर्शन करने के लिये। सालों पहले हम बाबा महाकाल और बाल विजय मस्त हनुमान की आरती में रोज शामिल होते थे, सब बाबा का प्रताप है और आशीर्वाद है।

    बाबा के दर्शन करने के बाद रामघाट चल दिये, रामघाट से भी बहुत ही गहरा लगाव है मेरा, रामघाट ऐतिहासिक और पौराणिक है। अभी तो खूब चहल पहल थी पर आज से सालों पहले यही रामघाट सुनसान रहता था और घाट भी कच्चा ही था हम साईकिल से लगभग रोज ही रामघाट जाते थे। बड़ा अच्छा लगा कि रामघाट पर चहल पहल रहने लगी है। वहाँ झम्मकलड्डू वाला खड़ा था, जो कि हमारी और हमारे बेटे की पहली पसंद है, हमने लिया काला खट्टा और बेटेलाल ने लिया पंचरंगा, जिसे शुद्ध हिन्दी में बर्फ़ का गोला भी कहा जाता है। आजकल तो रामघाट पर बोटिंग भी हो रही है। चलो अच्छा है कि हमारा उज्जैन प्रगति पर है, सिंहस्थ आने को केवल सात वर्ष बाकी है।

    घर वापिस लौटते समय महफ़ूज भाई का फ़ोन आया परंतु हम ज्यादा बात नहीं कर पाये क्योंकि हम बाजार में थे और फ़िर घर पहुँचकर बात करना ही भूल गये और थकान में चूर होकर शरीर निढ़ाल हो गया था।

    फ़िर वापिस से आज याने कि चार अप्रैल को मुंबई प्रस्थान कर रहे हैं, और फ़िर मुंबईया लाईफ़ में एन्ट्री करने जा रहे हैं। ये सुकून भरे क्षण हमेशा याद रहते हैं, अपने मम्मी पापा के साथ और उज्जैन में बिताये हुए….

सावन का महीना और महाकाल बाबा की सवारी

कल सावन का दूसरा सोमवार था, और महाकाल बाबा की दूसरी सवारी भी । उज्जैन शहर में उत्सव का नजारा था, ऐसा लग रहा था कि सिंहस्थ का पर्व वापस आ गया हो, जनता में वही उल्लास था और वही उमंग । मेघराज भी बाबा का अभिषेक करने आ पहुंचे कोई भी इस अवसर को छोड्ना नहीं चाहता था। सबसे आगे पुलिस का बैंड, बाबा के भक्त अपनी विशेष वेशभूषा में, बाबा की भक्त मंडलियॉं, इस्कान की मंडली, महाकाल बाबा की पालकी व महाकाल बाबा का सिंहासन हाथी पर क्रमबद्ध चल रहे थे।
इस साल बाबा छ: बार नगर भ्रमण करेंगे और जनता भक्ति रस में सारोबार होगी। आइये उज्जैन और महाकाल बाबा के दर्शन लाभ लिजिये। भोले बम