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झाबुआ के भील मामा Jhabua Bheel Mama

इस बार में उज्जैन से ट्रैन से मुम्बई आ रहा था तो सहयात्रियों से बात हो रही थी, तभी मेघनगर रेल्वे स्टेशन निकला तो हम अपने सहयात्रियों को भीलों के बारे में बताने लगे कि यह झाबुआ जिला है और यहाँ भील जनजाति होती है, और प्यार से सब उन्हें मामा कहते हैं। और मैं अपने कालेज की यादों में खो गया ये भील लोग जब कालेज के बाहर से निकलते थे तो दूर भील मामा को देखकर ऐसा लगता था कि कोई लड़की स्कर्ट पहन कर आ रही हो पर पास जाकर पता चलता था कि ये तो भील मामा है, दरअसल भील मामा लुँगी जैसे नीचे रंगीन कलर के शाल पहनते हैं। कई बार ऐसे धोखे हुए। और हम तो ट्रेन मे थे तो सुरक्षित थे अगर सड़क के रास्ते सफ़र कर रहे होते तो लुटने का डर, ऐसा भी नहीं कि आप अपनी सब कीमती चीजें उन्हें देकर पीछा छुड़ा लें वो पहले तो जिसे लूटेंगे उसे मारेंगे फ़िर लूटेंगे, क्योंकि वो कहते हैं कि हम मेहनत की कमाई खाते हैं। और फ़िर भगोरिया की यादें ताजा हो आई और वो गाना “मोरे काका मामा…” जिस पर डांस कर हमारे कालेज ने कई सालों तक अखिल भारतीय यूथ फ़ेस्टीवल का डांस का स्वर्ण पदक जीता था।
तो इस प्रकार ट्रेन में पुरानी यादें ताजा हो गईं।