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हरिओम पँवार की कविताएँ

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आज भी वो दिन याद है जब हम रात रात भर कवि सम्मेलन में हरिओम पँवार को सुनने के लिये बैठा करते थे और उस जमाने में अपना टेपरिकार्डर और ३-४ खाली कैसेट, और ४-६ बैटरी लेकर बिल्कुल मंच के सामने आसन जमा लेते थे।

 

हरिओम पँवार जब कविता पाठन करने मंच पर आते तो सबसे पहले वो कहते कि अगर किसी को उठ कर जाना है तो पहले ही निकल जाये और अगर कोई बीच में से उठा तो उसे गद्दार घोषित कर दिया जायेगा और वाकई अगर कोई उनके कविता पाठन के  बीच में से उठता तो उसे वो हाथों हाथ सीधा कर देते थे। पेशे से वकील हैं पर वीर रस के कवि हैं मेरठ के रहने वाले हैं, मतलब हमारे पैतृक शहर के।

 

जब हरिओम जी मंच पर कविता पाठन के लिये खड़े हो जाते तो खून में जोश आ जाता था और लगता था कि बस अब पाकिस्तान सामने हो तो हम उसे ध्वस्त कर दें।

 

अब वो हमारी कैसेट सब खराब हो गई हैं हमारा संग्रह खत्म हो गया है, गूगल पर बहुत ढूंढने की कोशिश की पर एमपी३ भी नहीं मिली और न ही कोई छपी हुई अगर मिली भी तो इक्का दुक्का।

अगर किसी के पास एमपी३ में हो तो कृप्या हमसे शेयर करें।

१-२ कविता यूट्यूब पर मिली। यहां चटका लगाइये  उनकी एक कविता “घायल घाटी का दर्द सुनाने निकला हूँ, कश्मीर का दर्द”  देखने के लिये और वीर रस के जोश से अपने आप को सारोबार कीजिये।