कठिन कार्यों को सीखने की कला

बहुत से काम कठिन होते हैं, परंतु सीखने और फिर रोज उसे अभ्यास करने से वे काम कब कठिन से बेहद सरल हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। बस हमारे अंदर सीखने की आकांक्षा और रोज अभ्यास करने का बल होना चाहिये। यही कठिन कार्यों को सीखने की कला है।

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सबसे पहला उदाहरण साईकिल है, साईकिल 2 चक्कों पर चलने वाला वाहन है और जिसने कभी चलाया नहीं, वह व्यक्ति साईकिल चला रहे लोगों को अजूबों की तरह देखता है, क्योंकि उसे बैलेन्स बनाना नहीं आता, परंतु जो साईकिल चला रहे होते हैं, अब उनके लिये यह रोजमर्रा का काम हो गया होता है। जब साईकिल सीखते हैं, तो लगता है कि कितने सारे काम एक साथ करना होते हैं, बैलेन्स बनाना होता है, साईकिल का हैंडल सही तरीके से पकड़ना होगा और कंट्रोल नहीं छोड़ना होगा, पैडल भी मारने होंगे, ब्रेक भी लगाना होगा, तो इन सबका सामंजस्य बैठाने में शुरू में बहुत समस्या होती है।
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ऐसे ही जब मैंने कार सीखना शुरू की थी, तो लगा था कि सबसे पहले तो कार को सही तरीके से चलाने का जजमेंट आना चाहिये, क्योंकि कार इतनी बड़ी है और आप एक तरफ कोने वाली सीट पर बैठकर चला रहे होते हैं, किसी कार में बोनट दिखता है, किसी में नहीं, इसलिये कई कारों में आपने देखा होगा कि बोनट के आगे एक डंडा लोहे का लोग लगा लेते हैं, वैसे ही पीछे की और भी लगा लेते हैं, यह कोई शौक नहीं होता, बल्कि सही जजमेंट के लिये लगा लिया जाता है।
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जब पहले दिन कार चलाना सीखना शुरू किया तो ड्राईविंग स्कूल का ड्राईवर जो सिखाता था, बहुत ही गंदी तरीके से बात करता था, और कहता भी था, कि आप बुरा मत मानना, परंतु अगर जब तक मैं इस तरह से बोलूँगा नहीं आपको याद ही नहीं रहेगी और अगली बार फिर से वही गलती करने से आप खुद ही बचोगे, आज भी जब मैं कोई गलती कर लेता हूँ, तो जहन में उसी की आवाज गूँज जाती है।
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पहले दिन केवल स्टेयरिंग हाथ में पकड़ाया और कहा कि केवल स्टेयरिंग पर ध्यान दो, गढ्ढे में गाड़ी को मत जाने दो, फिर धीरे धीरे कुछ दिनों में क्लच, एक्सीलरेटर और गियर के साथ सब कुछ सिखा दिया, पहले 15 दिन तो मेरी जान ही निकली रहती थी कि इतनी सारी चीजों के सामंजस्य के साथ कैसे लोग कार चला लेते हैं। परंतु अब इतने वर्ष हो गये चलाते चलाते तो ये सब बहुत आसान हो गया, अब तो कार चलाते चलाते बहुत से काम भी कर लिये जाते हैं।
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दोहा याद आ जाता है –
करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान
रसरी आवत जात ते  सिल पर पड़त निसान
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यह सामंजस्य बैठाने का खेल सबके साथ होता है, आप बताईये कि आपको क्या सीखने में सबसे ज्याादा कठिनाई महसूस हुई और फिर वही काम बहुत आसान हो गया।

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