त्योहारों पर वास्तविक छूट या उपभोक्ताओं के साथ छल (Sale on Festival Season…)

    आजकल सुबह अखबार में देखो तो लगभग आधे से ज्यादा अखबार त्योहारों पर छूट के विज्ञापनों से भरे रहते हैं, जैसे कि सारा समान मुफ़्त में ही देने वाले हैं। मैंने कुछ चीजों पर विश्लेषण किया तो पाया कि अधिकतर समानों पर बताई जा रही छूट सामान्यत: वर्षभर एक जैसी होती है, केवल त्यौहार पर बताने का तरीका बदल दिया जाता है।

    कुछ अन्य वस्तुओं पर देखा जाये तो पता चलेगा कि इतनी छूट आखिरकार क्यों मिल रही है । वह इसलिये कि क्योंकि कंपनियाँ वे उत्पाद बंद करने वाली हैं और अभी उनके पास बहुत सारा स्टॉक पड़ा है तो कंपनियाँ कुछ उपहारों के साथ वह उत्पाद त्यौहार के बाजार में उतार देती हैं।

    और वैसे भी जो नयी वस्तुएँ या सामान बाजार में उतारा जाता है उसमें कोई छूट नहीं होती है। कई बार देखा है कि छूट का विज्ञापन तो बहुत बड़ा दिया गया है परंतु नीचे एक तारा लगाकर लिख दिया जाता है कि छूट चुनिंदा वस्तुओं पर । जब ग्राहक विज्ञापन पढ़कर दुकान पर जाता है तो पता चलता है कि केवल एक छोटी सी अलमारी में ही छूट का समान है और वह भी उसके लिये किसी काम का नहीं है, तो ग्राहक का मन तो खराब होता ही है और समय भी बर्बाद होता है। परंतु इसके पीछे दुकानदार का मन होता है कि कम से कम ग्राहक दुकान पर तो आयेगा।

    आजकल ग्राहक भी बहुत समझदार हो गया है, वह लगभग हर जगह भाव पता कर लेता है और उसी के बाद खरीदारी करता है।

    खैर खासबात तो यह है कि अगर छूट देखकर कहीं किसी वस्तु की खरीदारी के लिये जा रहे हैं तो सारी बातों का पता करके ही जायें और यह निश्चिंत कर लें कि जो छूट दी जा रही है वह वास्तविक है या केवल लुभावना ऑफ़र है।

 

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