ऊफ़्फ़ कितनी जोर से दरवाजा बंद कर रखा है…मेरी कविता…विवेक रस्तोगी

ऊफ़्फ़
कितनी जोर से दरवाजा बंद कर रखा है
जरा कुंडी ढ़ीली करो
जिससे हलके से धक्के से
ये किवाड़ खुल जाये,
कुंडी हटाना मत
नहीं तो हवाएँ बहुत जालिम हैं।

16 thoughts on “ऊफ़्फ़ कितनी जोर से दरवाजा बंद कर रखा है…मेरी कविता…विवेक रस्तोगी

  1. सच कहा, हवाएं बहुत जालिम हैं…पूरी किवाड़ खोल दी,तो उड़ा ले जायेंगी अपने साथ…

    कम शब्दों में गहरी बात…शब्दों में गहरी बात…

  2. हवा के हलके धक्के से किवाड खोलना भी चाहते हैं और कुण्डी न हटाने की हिदायत.. कि हवाएं ज़ालिम हैं ?

    लगता है कुछ खास कहना चाहते हैं …मैं नहीं समझ पाई …

  3. @ संगीता जी – जी, अनजानी चाहतें न मन में आ जायें और अगर कोई आना भी चाहें तो कम से कम हमें उसके लिये समय तो मिले, इसलिये कुंडी ढ़ीली होना भी जरुरी है, नहीं तो वे चाहतें जिनको हम चाहते तो हैं, परंतु पहल करने से डरते हैं, और वो चाहत खुद से आ जाये।

    पता नहीं बस ऐसे ही शब्द उतर आये… और लिख दिया…

  4. अरे भाई इतनी कुडी लगाई केसे? इतने दरवाजे जो दिख रहे है, क्या कोई खिडकी भी हे? कविता बहुत अच्छी लगी आप के इस चित्र की तरह धन्यवाद

  5. हाय!!

    अंदाज हू-ब-हू उसकी आवाजे पा का था,
    कुंडी हटा के देखा, झौंका हवा का था…..

    क्या बात है.

  6. कल्पनाओं के वृक्ष पर
    बस ऐसे ही शब्द उतर आये…

    अगर कोई आना भी चाहें
    हलके से धक्के से
    खुद से आ जाये।…

  7. आदरणीय विवेक रस्तोगी जी
    नमस्कार !
    बहुत अच्छी लगी आपकी यह लघु कविता

    ' कुंडी ढीली करने ' और ' कुंडी हटा न लेने की चेतावनी ' में बहुत अर्थ ध्वनित हो रहे हैं ।
    बधाई और शुभकामनाएं
    – राजेन्द्र स्वर्णकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *