दिल्ली को इन चरसियों से मुक्त करवाने के लिये कृप्या सहयोग करें और दिल्ली को सुँदर बनाने में योगदान दें।

मैं रोज आटो से करोलबाग से कनाटप्लेस अपने ओफ़िस जाता हूँ तो पंचकुइयां रोड और कनाटप्लेस की रोड जहाँ मिलती है, उसके थोड़े पहले ही चरसियों की भीड़ फ़ुटपाथ पर लगी रहती है। खुलेआम भारत की राजधानी दिल्ली में चरस का सेवन कर रहे हैं पर कोई भी किसी भी तरह की कार्यवाही करने को तैयार नहीं, कारण शायद यह कि उनसे कमाई नहीं हो सकती !!

वैसे तो रास्ते में बहुत सारी ओर भी चीजें पड़ती हैं रास्ते में, हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर, थोड़ी ओर आगे जाने पर कबूतरों को दाने खिलाते लोग और कोने में श्मशानघाट और भी बहुत कुछ। पर बरबस ही निगाहें रुक जाती हैं चरसियों को देखकर जब कनाटप्लेस की रेडलाईट पर आटो रुकता है। ये लोग भिखारी, कचरा बीनने वाले जैसे लगते हैं, परंतु ये खुलेआम चरस का सेवन करते हुए दिख जायेंगे कानून का मजाक बनाते हुए। किसी भी कानून पालन करवाने वाले व्यक्ति को ये लोग नहीं दिखते ?

ये लोग वहाँ मैली कुचैली चादर ३-४ के झुँडों में ओढ़कर चरसपान करते रहते हैं और जैसा कि आटो वाले बताते हैं कि यही लोग रात के अँधेरे का फ़ायदा उठाकर लूटपाट भी करते हैं और पुलिस वाले इनको इसलिये पकड़ के नहीं ले जाते हैं कि इनसे उन्हें कोई भी (धन संबंधी) फ़ायदा नहीं होता है। उल्टा उनकी सेवा करना पड़ती है।

दिल्ली को इन चरसियों से मुक्त करवाने के लिये मेरा ब्लाग पढ़कर कोई बंधु जो यह अधिकार रखता हो या मीडिया में हो तो कृप्या सहयोग करें और दिल्ली को सुँदर बनाने में योगदान दें।

7 thoughts on “दिल्ली को इन चरसियों से मुक्त करवाने के लिये कृप्या सहयोग करें और दिल्ली को सुँदर बनाने में योगदान दें।

  1. भाई आप जगा तो उसे ही सकते हैं न जो सोया हो. बगल में ही ‘
    कनाट प्लेस’ थाना है. पुलिस को तो आज तक कोई नहीं दिखा…सच बताइए, कहीं आप झूट तो नहीं बोल रहे 🙂

  2. कल ही हमने एक दिल्ली के मित्र से बात की ओर पूछा कि दिल्ली पुलि्स कुछ करती है क्या तो एकदम जबाब मिला कि हाँ करती है – हफ़्ता वसूली, व्यापारियों को परेशान करना इत्यादि इत्यादि। तब हमने उन्हें बताया कि इन चरसियों का क्या किया जाये तब वो बोले कि वो तो gone केस हैं ओर कोई भी उनका कुछ नहीं कर सकता। पिछले २-३ महीने से इन लोगों ने यहाँ डेरा जमा रखा है। पुलिस तो केवल आनेवाले आ्तंकवादियों की राह देख रही है, बंदूक पकड़कर रेत के बोरों से बंकर बनाकर, वो शायद जिंदगी के आतंकवाद से कोई सारोकार नहीं रखते या अधिकार नहीं रखते हैं। समाज के कई प्रबुद्धजन इस मार्ग से होकर नि्कलते हैं पर इस समस्या पर किसी का ध्यान नहीं है। कानून की इस अनदेखी से दर्द होता है, पर किसे बतायें…..

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