दे घुमा के … घुमा के … दे घुमा के… और ऊँगली में टिंगली

ऐसा लगता है कि ये गाना भारतियों के लिये बनाया गया है कि जब खिलाड़ी प्रदर्शन न करें तो दर्शकों को इस गाने पर अमल करना चाहिये और बस शुरु हो जाना चाहिये दे घुमा के … घुमा के … दे घुमा के…

विश्वकप तो लगता है कि भारत की तरफ़ से केवल २-३ खिलाड़ी ही खेल रहे हैं, बाकी टीम तो केवल इसलिये खेल रही है, क्योंकि चयनकर्ताओं ने उन लोगों को चुन लिया है और विश्वकप के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं।

जब हमारे बल्लेबाज ही नहीं चल रहे हैं, तो भी कप्तान कहते हैं कि गेंदबाजों पर ज्यादा भरोसा नहीं है, पर भई बल्लेबाजों ने क्या उखाड़ लिया।

और अगर कुछ निर्णय गलत लिये गये जो कि मैच के दौरान तात्कालिक थे तो उसकी जिम्मेदारी तो केवल कप्तान की ही होती है। पर केवल कप्तान के गलत निर्णय के कारण भारत का हार जाना कितना सही है ? क्या कप्तान बचपना कर रहे हैं या फ़िर विश्चकप उन्हें मौहल्ला क्रिकेट लग रहा है।

बीच में एक समाचार चैनल पर सुना कि लगता है कि भारत की टीम अगले विश्वकप के लिये अभ्यास कर रही है, और अभी ये सब लोग जिम्मेदारी नहीं समझते हैं।

बस इनको श्टाईल विज्ञापन में मारना आता है, जैसे हरभजन सिंह का आता है पेप्सी का “दूसरा”, ऊँगली में टिंगली।

छोड़ो भारत छोड़ो ये क्या विश्वकप जीतेंगे, इनसे कोई उम्मीद करना बेमानी है, अब चूँकि भारत में क्रिकेट धर्म हो गया है, तो अब ऐसे धर्म को छोड़ दें, जो दुख दे रहा है।

इन सबको तो पेप्सी की एक बोतल में बंद करके इनकी ऊँगली में टिंगली करना चाहिये।

एक नाखुश क्रिकेट प्रेमी…

12 thoughts on “दे घुमा के … घुमा के … दे घुमा के… और ऊँगली में टिंगली

  1. बिल्कुल सही लिखा आपने आख़िरी के १० ओवर में से २ तो खेले ही नहीं और जो आठ खेले भी उसमे कुछ किया नहीं, गैर जिम्मेदाराना तरीके से खेले आज सभी 🙁

    वो तो किस्मत अच्छी थे जो हम इंग्लैण्ड से जीत गए थे, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते… उम्मीद तो मुझे भी कम है पर प्रार्थना तो की ही जा सकती है

    फीड से सम्बंधित एक और समस्या और उसका समाधान

  2. हा हा हा ! भाटिया जी ने कितना मासूम सा ज़वाब दिया है ।
    यहाँ हाइप पैदा करने की कुछ ज्यादा ही बुरी आदत है ।

  3. शायद जीत जाएँ अब भी…खिलाडी अगर अपनी जिम्मेदारी समझने लगें…
    लेकिन दुखी और गुस्से में मैं भी हूँ…:X

  4. विवेक जी एक तो हार गये दूसरे आप दुखती रग पर हाथ रख रहे हैं तभी ये दोहा लिखा है
    गये बुझाने आग जो वही जलायें तील
    करें दिखावा शोक का दिल मे ठोकें कील
    आपको तो सब को सांतवना देनी चाहिये। बहुत बदिया व्यंग। बधाई।

  5. ये तब तक नहीं जीतते जब तक सामने वाले हार न जायें और बाकी तब तक नहीं हारते जब तक कि सामने वाला जीत न जाये…
    हम भविष्य की सोचते हैं, वर्तमान का क्या है…

  6. खेल को खले की तरह लीजिए। दिल पर मत लीजिए। बाजार को खुद पर हावी मत होने दीजिए। अपनी जिन्‍दगी मस्‍ती से गुजारें।

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