भयावह स्वप्न – ड्रेगन, बख्तरबंद ट्रक और पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना

उफ़्फ़ रात को भयावह स्वप्न आ रहे हैं पता नहीं किस बात का अंदेशा है ।
स्वप्न १
साड़ी में लिपटी हुई माता के ऊपर ड्रेगन की नजर है और ड्रेगन के मुँह से आग निकल रही है, आग निकालते हुए बड़े बड़े यंत्र बेरहमी से बड़ते जा रहे हैं, और माता के सैनिक अपने खटारा आग निकालने वाले यंत्रों के साथ चुपचाप खड़े हैं, उनके दोनों हाथ सफ़ेद टोपी और खादी पहने लोगों ने खादी के सूत से पीछे की और बाँध रखे हैं, इतना भयावह स्वप्न देख आँख खुल गई।
स्वप्न २
हमारी सशस्त्र सेना युद्ध के मैदान में ट्रकों से जा रही है, बड़े बड़े बख्तरबंद ट्रक हैं, जैसे ही पहाड़ी इलाका आया, ट्रकों की साँसें फ़ूलने लगीं और जवानों को पैदल ही युद्ध के मैदान की और बढ़ना पढ़ रहा है और दुश्मन अपने आधुनिक शस्त्रों के सहारे कबका सीमारेखा पार कर चुका है, दूसरी और सफ़ेद टोपी और खादी वाले लोग बड़े बड़े बक्से लेकर अपने चार्टड विमानों की और जा रहे हैं। यह तो सारी जनता को पता है तो ये स्वप्न आसानी से झेल गये।
स्वप्न ३
एक गोल महत्वपूर्ण इमारत में सेना मार्च करती हुई दाखिल हुई और कानून बनाने के लिये कब्जा कर लिया गया, सारे खादी खद्दर वालों को तोप के मुँह पर बाँधकर जनता के बीच ले जाया जा रहा है, बख्तरबंद गाड़ियाँ दौड़ी जा रही हैं और सशस्त्र सैनिक लोगों का खून पीने वाले विभागों के अफ़सरों के यहाँ धावा कर बख्तरबंद गाड़ियों में हरे हरे पत्ते भर रहे हैं, सारे पत्तों को वापिस पेड़ पर ट्रांसप्लांट करने के लिये वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी फ़ौज लगी हुई है, और वहीं कुछ खाकी में लिपटे हुए लोग अपना डंडा लेकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, एक सैनिक की फ़ूँक से ही सब हवा में उड़ते हुए अंतरिक्ष में अंतर्धान हो जाते हैं, पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना जारी है, साथ के सीमारेखा वाले हरे होते हुए पेड़ को देखकर थरथर काँपने लगते हैं।
पता नहीं ये स्वप्न कैसे हैं, कहते हैं कि कभी स्वप्न भी सच्चे हो जाते हैं।
नोट – यह हमारे सच्चे स्वप्नों पर आधारित है किसी और घटना से जोड़कर ना देखा जाये।

9 thoughts on “भयावह स्वप्न – ड्रेगन, बख्तरबंद ट्रक और पेड़ पर हरे पत्तों को ट्रांसप्लांट करना

  1. नेस्ट्रॉडेमस रस्तोगी की भविष्यवाणियाँ???

    शानदार व्यंग्य प्रस्तुति

  2. क्षमा करें, मैं ऐसी प्रस्‍तुतियों के पक्ष में बिलकुल ही नहीं हूँ। पढने में भले ही ये (प्रस्‍तुतियॉं) रोचक लगें और भले ही इसे 'जनता के मन बात' कहा जाए किन्‍तु इनका अन्तिम सन्‍देश असंदिग्‍ध रूप से सबके लिए घातक है – देश के लिए भी और हम सबके लिए भी।

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