हॉकर द्वारा पोंगली बनाकर अखबार फ़ेंकना और हमारा अखबार सुबह गायब होना ।

    अखबार तो बचपन से घर पर आते हुए देख रहे हैं, कभी पूरा अखबार प्रेस करा हुआ मिलता था, तो कभी अखबार को हॉकर पोंगली बनाकर उसे ऊपर रबड़ाबैंड लगाकर या सुतली से बांधकर घर में फ़ेंकता था।

    मुंबई में हम बड़ी बिल्डिंग में रहते थे और वहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना हॉकर के लिये संभव नहीं था, इसलिये हॉकर सबसे पहले लिफ़्ट से सबसे ऊपरी माले पर जाता था और फ़िर वहाँ से फ़्लेटों में अखबार डालते हुए सीढियों से नीचे आता था। कई बार सामने वाले या अगल बगल वाले फ़्लेट का अखबार नहीं आने पर वे लोग चुपके से अखबार उठालेते तो फ़िर अखबार वाले को फ़ोन करना पड़ता, आज अखबार नहीं डाला तो वह वापिस आता और कहता कि अखबार तो डाला था फ़िर मिला कैसे नहीं, इसके बाद फ़्लेट का नंबर भी अखबार पर लिखा मिलता जिससे किसी दूसरे को वह अखबार अपना ना लगे। और सुबह जब अखबार रख कर जाता तो घर की घंटी भी बजा जाता जिससे हमें पता चल जाता कि अखबार आ चुका है।

    अब यहाँ बैंगलोर में पहले हमारा अखबार वाला हमारे फ़्लेट के दरवाजे के सामने प्रेस करा हुआ अखबार रख जाता था, परंतु कुछ दिनों से वह भी अखबार की पोंगली बनाकर फ़ेंकने लगा है। अब फ़िर वही गलतफ़हमी शुरू हुई, पड़ोसी के साथ, हम सुबह ६ बजने से पहले ही बिस्तर छोड़ देते हैं और कई बार पड़ोसी भी, जब तक प्रेस करा हुआ अखबार हमारे दरवाजे पर मिलता था कभी गायब नहीं हुआ परंतु जहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना शुरू किया वहीं अखबार गायब होने लगा, हम अखबार वाले को फ़ोन करते भई किधर गया हमारा अखबार वो भी हतप्रभ, फ़िर उसी ने पता लगाकर बताया कि आपका अखबार आपका पड़ौसी उठा लेते हैं, उनसे कहिये कि उनका अखबार सुबह ७.३० के बाद आता है और उनका इकॉनामिक्स टाईम्स साथ में नहीं आता है। फ़िर एक दिन हमने खुद देखा और पड़ौसी से बात कर मामला सुलझा लिया, अब सुकून से रोज सुबह पोंगली में अखबार हमें ही मिलता है।

    पोंगली में अखबार फ़ेंकने के कुछ फ़ायदे भी हैं तो नुक्सान भी हैं, फ़ायदे तो केवल हॉकर के लिये है कि उसे हर मंजिल पर जाना नहीं पड़ता है। और फ़ायदा सभी के लिये है, रबड़ बैंड मिलती है, अलार्म नहीं लगाओ तब भी समय का पता चल जाता है।

    बहुत पहले एक फ़िल्म देखी थी जिसमें संजीव कपूर था या कोई और याद नहीं, वह बालकनी में आकर अंगड़ाईयाँ लेता है और हॉकर उसी समय पर पोंगली बना हुआ अखबार फ़ेंकता है, जो सीधा उसके मुँह में घुस जाता है।

अब हमारा अखबार हमारा इंतजार कर रहा है, हम अब अपने अखबार को पढ़ते हैं ।

14 thoughts on “हॉकर द्वारा पोंगली बनाकर अखबार फ़ेंकना और हमारा अखबार सुबह गायब होना ।

  1. सही याद दिलाया पोंगली वाला अखबार….अखबार खरीद कर पढ़ने की योग्यता प्राप्त करने के उपरान्त कभी फ्लैट में रहे नहीं तो इस तरह का अनुभव भी नहीं हुआ लेकिन पोंगली बना कर हमारे दलान में भी फेंकना रबर बैण्ड प्राप्ति का साधन कई बरसों तक रहा भारत में.

  2. यह तो सभी के साथ गुजरा है बस रोल रिवर्जल होता रहता है -आप अच्छे पड़ोसी हैं ..मैं तो एक ट्रांसफर की जगह पर पूरे एक महीने तक पड़ोसी का अखबार ही पढता गया !

  3. ओह्हो! बड़ा मुश्किल है मुंह खोल कर अखबार की पोंगली का इंतजार करना! 🙂

  4. हमारा अखबार वाला भी पोंगली बनाकर ही फेंकता है लेकिन बिना रबड़ के। अखबार उठा लिये जाने की चिंता हमें नहीं क्योंकि हमारे यहाँ फ्लैट टाइप सिस्टम नहीं है।

    —-
    ePandit

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