अध्याय १० से ( मगर मछली का ही रूप है )

गीता जी के अध्याय १० में भगवान कृष्ण अपना ऐश्वर्य बताते हैं, जहाँ मैं एक श्लोक पर रुक गया, क्योंकि अभी तक मगर को मैं मछली की तरह नहीं लेता था, परंतु यहाँ पर मगर को मछलियों में ही बताया गया है ।

पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम।

झषाणां मकरश्चास्मि स्त्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥

अर्थात – समस्त पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, शस्त्रधारियों में राम, मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूँ ।

यहाँ पर मगर के बारे में बताया गया है कि समस्त जलचरों में मगर सबसे बड़ा और मनुष्य के लिये सबसे घातक होता है । अत: मगर कृष्ण का प्रतिनिधित्व करता है ।

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