शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 2 – रस अलंकार पिंगल

(१) शाब्दी व्यंजना – शाब्दी व्यंजना वहाँ होती है, जहाँ व्यंग्यार्थ शब्द के प्रयोग पर आश्रित रहता है। इसके दो भेद किये गये हैं – (अ) अभिधामूला और लक्षणामूला ।

(अ) अभिधामूला – एक शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं लेकिन जब अनेक अर्थ वाले शब्द को संयोग, वियोग साहचर्य आदि के प्रतिबन्ध द्वारा एक ही अर्थ में नियन्त्रित कर दिया जाता है, तब जिस शक्ति द्वारा उसके अन्य अर्थ का भी बोध होता है तब वहाँ अभिधा मूला शाब्दी व्यंजना मानी जाती है।

उदाहरणार्थ –

चिर-जीवौ जोरी जुरै क्यों न स्नेह गम्भीर।

को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर॥

इस उदाहरण में ‘वृषभानुजा’ और ‘हलधर’ शब्दों के दो-दो अर्थ हैं लेकिन यहाँ ‘वृषभानुजा’ का ‘राधा’ (वृषभदेव की पुत्री) और ‘हलधर’ के ‘वीर’ को श्रीकृष्ण (बलराम के भाई) के एक ही अर्थ में नियन्त्रित कर दिया गया है, किन्तु इन अर्थों के साथ ‘गाय’ और ‘बैल’ का व्यंग्यार्थ भी निकलता है और यही अर्थ इस दोहे को सुन्दर बनाये हुए है।

शब्द के अनेक अर्थों को नियन्त्रित करने के लिये भारतीय आचार्यों ने संयोग, वियोग आदि १३ प्रतिबन्धों का विवेचन किया है।

(१) संयोग – अनेकार्थी शब्द के किसी एक ही अर्ह्त के साथ प्रसिद्ध सम्बन्ध को संयोग कहते हैं।

(२) वियोग – अनेकार्थी शब्द के एक अर्थ का निश्चय जब किसी प्रसिद्ध वस्तु सम्बन्ध के अभाव से होता है तब बहाँ वियोग माना जाता है।

(३) साहचर्य – प्रसिद्ध साहचर्य सम्बन्ध से अर्थ बोध होने पर साहचर्य होता है।

(४) विरोध – प्रसिद्ध विरोध के आधार पर जब अर्थ का निर्णय होता है तब वहाँ विरोध होता है।

(५) अर्थ – प्रयोजन के कारण जब अनेकार्थी शब्द का एक ही अर्थ निश्चित हो।

(६) प्रकरण – किसी विशेष प्रसंग के कारण जब बक्ता अथवा स्रोता की बुद्धिमानी से एक अर्थ निश्चित हो।

पहले के भाग यहाँ पढ़ सकते हैं –

“रस अलंकार पिंगल [रस, अलंकार, छन्द काव्यदोष एवं शब्द शक्ति का सम्यक विवेचन]”

काव्य में शब्द शक्ति का महत्व – रस अलंकार पिंगल

शब्द शक्ति क्या है ? रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 1 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा– 2 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (२) लक्षणा – 3 – रस अलंकार पिंगल

शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 1 – रस अलंकार पिंगल

6 thoughts on “शब्द-शक्ति के भेद (३) व्यंजना – 2 – रस अलंकार पिंगल

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