मैं उन सभी शरीफ़ लोगों को सैल्यूट करता हूँ ।

जब मैं पहली बार घर से बाहर याने कि किसी दूसरे शहर वो भी इतनी दूर कि जाने में ही कम से कम १८ घंटे लगते थे, जिसमें बीच में अलीगढ़ से बस बदलनी पड़ती थी, चूँकि हमारे अभिभावक उधर की ही तरफ़ के हैं, तो उन्होंने बहुत सारी हिदायतों से हमारा थैला भर दिया । जैसे कि –

– किसी दूसरे पर ऐसे ही विश्वास मत कर लेना ।

– अपना और अपने समान का ध्यान रखना ।

– किसी भी अनजान से खाने को मत लेना ।

– बस स्टैंड पर भी अपने सूटकेस का ध्यान रखना, कहीं ऐसा ना हो कि सूटकेस का हैंडल तुम्हारे हाथ में हो और सूटकेस गायब हो जाये ।

– चलते रिक्शे से लोग गायब कर दिये जाते हैं।

– यहाँ तक कि चलते रिक्शे गायब हो जाते हैं और जो गायब होते हैं उनका कभी पता भी नहीं चलता ।

और भी ऐसी बहुत सारी बातें हमें बतलाई गईं, हमने भी पूर्ण सतर्कता से अपनी यात्रा शुरू की और अलीगढ़ पहुँचे और ये सारी बातें हमें याद आने लगीं, और पूरे साहस के साथ बस स्टैंड पर बस के इंतजार में ऐसे खड़े थे जैसे लुटेरों की बस्ती में एक शरीफ़ आदमी बेबस खड़ा है अगर लुटेरे आ भी गये तो ये शरीफ़ आदमी इस सतर्कता का क्या अचार डालेगा ।

खैर लगभग इस डर और सतर्कता के वातावरण में वो सुबह का एक घंटा अलीगढ़ के बस स्टैंड पर बस का इंतजार करते हुए निकला और फ़िर बस समय से आ गई तब जाकर जान में जान आई। और ये जानकर तसल्ली हुई कि न अपन ने किसी पर विश्वास किया, अपने समान का ध्यान रखा, न ही किसी अनजान से खाने को लिया और समान का ध्यान रखा और सबसे बड़ी बात ना ही चलते रिक्शे से अपन गायब हुए।

खैर आज भी ऐसे कई इलाके हैं जहाँ ये बातें सच हैं, और ऐसी खौफ़नाक जगहों पर लोग रहते ही हैं, और ऐसे लुटेरों में हिम्मत इसलिये है क्योंकि वहाँ ज्यादा ही शरीफ़ लोग रहते हैं, मैं उन सभी शरीफ़ लोगों को सैल्यूट करता हूँ ।

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