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मैंने बहुत पहले एक माचिस के पीछे यह वाक्य पढा था ….

मैंने बहुत पहले एक माचिस के पीछे यह वाक्य पढा था जो कि मुझे आज भी याद है और सभी को बताना चाहता हूँ।

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“Practice makes man perfect, but nobody is perfect then why practice.”


कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर – रोहतांग पास की सैर (स्नोपाईंट) Snowpoint Rohtang Pass


सुबह ५ बजे उठकर कड़ाके की ठंड में नहाकर हम लोग तैयार हो लिये रोहतांग पास (स्नोपाईंट) जाने के लिये। बिल्कुल ६ बजे हम टेक्सी में बैठकर चल दिये पहले तो वो टेक्सी पेट्रोल लेने के लिये लाईन में लगी बहुत बड़ी लाईन थी, नहीं लाईन नहीं थी जिसकी जहां मर्जी वह वहां घुस कर पेट्रोल भरवा रहा था, क्योंकि उस रोड पर वह आखिरी पेट्रोल पंप था इसके बाद फ़िर सीधे लेह में पेट्रोल पंप है।

अब हम चल दिये रोहतांग की ओर, निर्मल धवल श्यामल बर्फ़ के पहाड़ों की ओर । फ़िर लाईन से गरम कपड़े की दुकानें रास्ते में आईं जो कि गर्म कपड़े किराये पर देते हैं, क्योंकि ऊपर बहुत ही बर्फ़ीली हवाएँ चलती हैं और आँखों को जलन से बचाने के लिये चश्मे खरीद लिये, साथ में हमने स्कीईंग और गाईड भी लिया।

थोड़ी दूर जाने पर फ़िर हमने अपनी गाड़ी रुकवा कर नाश्ते के लिये एक ढाबा चुना। पीछे कल कल बहती व्यास नदी और ठंडी हवा ओर गर्म नाश्ता वाह।

अब हम चल दिये स्नोपाईंट के लिये तो कहीं पर रोड था तो कहीं पर बिल्कुल भी नहीं, डबल लेन का काम चल रहा था। बीच बीच में बहुत सारे प्राकृतिक झरने मिले। लगभग ३० किमी के बाद एक ग्लेशियर मिला जिसके बीच में से हमारी टेक्सी निकल रही थी। चूँकि हम सुबह जल्दी निकल लिये थे इसलिये हमें जाम भी नहीं मिला और हम लगभग १० बजे रोहतांग पास जो कि समुद्र तल से लगभग १३,०५१ फ़ीट ऊँचाई पर है जा पहुंचे।




वहां पर दो बड़े बड़े ग्राऊंड थे जहां पर लोग आपस में बर्फ़ से खेल रहे थे, स्कीईंग कर रहे थे, याक ओर घोड़ों की सवारी कर रहे थे, स्लेज भी चल रहे थे, बर्फ़ की मोटर साईकिल भी चल रही थीं। बस सब लोग बर्फ़ के इस अद्भुत लोक में आनंदित हो रहे थे।


हमारे परिवार ने भी जमकर स्कीईंग का मजा लिया और फ़िर स्नोबाईक का। फ़िर थोड़ी ट्रेकिंग की वहीं पर कुछ लड़्के पतंग उड़ा रहे थे तो हमने भी पूछ लिया कि भाई इधर पतंग किधर से ले आये तो जबाब मिला कि लखनऊ वाले हैं हरेक जगह पतंगबाजी का शौक पूरा करते हैं। खूब बर्फ़ से खेले और खूब तो फ़िसले। यहां पर व्यास ‌ऋषि का मंदिर है जहां से व्यास नदी निकल रही है, कहते हैं कि अर्जुन ने बाण मारकर यहां पर जल का स्त्रोत निकाला था।


थकान के बाद सोचा कि चलो अब कुछ खाने पीने का कार्यक्रम हो जाये, यहां टेन्ट में बहुत सारे छोटे छोटे ढाबे लगे हुए थे और खाने में गरम चीजों में मिल रहा था आमलेट और मैगी और चाय। खानपान के बाद करीबन १.३० बजे वापिस चल दिये मनाली के लिये क्योंकि मौसम खराब होने लगा था। और ठंडी हवा से हमें बहुत तकलीफ़ भी हो रही थी।


फ़िर वापिस मनाली आते आते वो बर्फ़ के पहाड़ हमसे दूर होते जा रहे थे। फ़िर हम उसी ढाबे पर रुककर चायपान किया और गर्म कपड़े किराये वाले वापिस किये और चल दिये आराम करने के लिये अपने होटल ।

अगले दिन का प्रोग्राम था कुल्लू रिवर राफ़्टिंग और मनिकरण का।
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कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर


बस की १४ घंटे की लंबी यात्रा के बाद बहुत थकान थी पर चारों तरफ़ देवदार के वृक्ष और बर्फ़ के पहाड़ देखकर थकान कुछ हल्की हुई। होटल ने पिकअप के लिये टेक्सी भेजी थी हम उसमें सवार हो लिये और फ़टाफ़ट नाश्ता कर, तैयार होकर थोड़ी देर आराम करने का प्लान किया आँख खुली दोपहर एक बजे और फ़िर चल पड़े लोकल साईटसीन पर।


सबसे पहले तो हमने माल रोड पर दोपहर का खाना खाया और फ़िर चल पड़े वन्य विहार, जहाँ पर देवदार के ऊँचे पेड़ और बच्चों के झूले थे। हमारे बेटेलाल ने खूब तो झूले झूले और ठंडी हवा का आनंद लिया। वहीं पर एक छोटा सा वोटिंग क्लब भी था। 


फ़िर गये मोनेस्ट्री, बुद्ध भगवान का मंदिर। जिंदगी में पहली बार मैं किसी बोद्ध मोनेस्ट्री में था और बहुत ही अलग अनुभव था। मंदिर के दरवाजे के खंबों पर ड्रेगन बने हुए थे। भगवान बुद्ध की प्रतिमा बहुत ही अच्छी लग रही थी।


वहाँ से गये वशिष्ठ मंदिर जहाँ पर ‌ऋषि वशिष्ठ ने तपस्या की थी और अर्जुन ने यहां पर गुस्से में तीर मारकर गरम पानी का स्रोत निकाला था। कहते हैं कि इस पानी में नहाने से त्वचा संबंधी सारे रोग खत्म हो जाते हैं। रास्ते में वूलन वाले आवाज लगाते रहे चिंगू देख लो, हम भी एक दुकान पर देखने लगे चिंगू के कंबल देखे और बताया कि चिंगू एक बर्फ़ में रहने वाला प्राणी है जो कि आजकल बहुत ही दुर्लभ है अब उसके बालों को काट कर ये कंबल बुने जा रहे हैं ना कि मारकर ऐसा हमें बताया गया, ये सर्दी में गरम और गर्मी में ठंडे होते हैं और साथ में ५ आइटम फ़्री थे। पर चूंकि हमें कंबल लेना ही नहीं था इसलिये हम निकल लिये। वहां पर एक बहुत ही आश्चर्य़जन चीज देखने को मिली, छोटे छोटे ढाबों पर भारतीय व्यंजन नहीं, बाहर देशों के व्यंजनों के नाम लिखे हुए थे।

फ़िर निकल पड़े हिडिम्बा मंदिर जो कि भीम की पत्नी थीं वहां पर हिडिम्बा के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं और कहते हैं कि हिडिम्बादेवी के बिना मनाली का दशहरा पूरा नहीं हो सकता। मंदिर के बाहरी दीवार पर तरह तरह के सींग लगे हुए थे। वहीं पर घटोत्कच का एक मंदिर भी है। यहां पर हमने पहली बार याक देखे आज तक केवल फ़ोटो में ही देखे थे।
फ़िर निकल पड़े होटल आराम करने क्योंकि अगले दिन रोहतांग पास बर्फ़ के पहाड़ देखने के लिये सुबह ६ बजे निकलना था।

कुल्लू मनाली और बर्फ़ के पहाड़ों की सैर

हमारा एकदम घूमने का कार्यक्रम बन गया और हम दिल्ली में थे तो घूमने के लिये विकल्प भी बहुत थे क्योंकि हम उत्तर भारत में कहीं भी घूमने जा सकते थे। हमें और हमारे परिवार के मन में बर्फ़ के पहाड़ देखने की बहुत इच्छा थी तो एकदम कार्यक्रम बनाया गया कुल्लू मनाली का।
अपने ट्रेवल एजेंट से हमने दिल्ली से मनाली तक का वोल्वो बस का टिकट करवा लिया और टाईम तो था नहीं कुछ भी प्लान करने के लिये, कि कहां रुकेंगे क्या क्या घूमेंगे कैसे घूमेंगे। हमारे ट्रेवल एजेंट ने हमें आइडिया दिया कि आप मनाली में उतर कर बस स्टेंड से थोड़ा आगे जायेंगे तो माल रोड या फ़िर किसी और रोड पर होट्ल में मोलभाव कर लीजियेगा पर हमने सोचा कि कुछ अपने परिचित भी हैं जो कि यह जगह घूम आये हैं उनसे भी राय मशविरा कर लिया जाये और इस तरह से हमें चंडीगढ़ के एक ट्रेवल एजेंट का मोबाईल नंबर मिल गया और हमने उससे पूछा कि कुल्लू मनाली कितने दिन में घूम सकते हैं, तो उसने हमें ३ रात और ४ दिन का पैकेज बताया और हम भी उस पैकेज पर सहमत हो गये क्योंकि हमारे दिल्लीवाले ट्रेवल एजेंट ने पहले ही बोल दिया था कि सीजन चल रहा है और होटल भी बिल्कुल पैक होंगे अच्छा होगा कि आपको कोई पैकेज मिल जाये। तो हमने भी यह पैकेज फ़ाइनल कर घूमने जाने का फ़ैसला किया।
वोल्वो बस दिल्ली से मनाली के लिये जनपथ कनाट प्लेस पर होटल इंपीरियल के पास के पेट्रोल पंप से मिलती है। हमें समझ में नहीं आया कि पेट्रोल पंप से सवारी बैठाने की व्यवस्था क्यों। वैसे तो इन बसों को मजनूँ के टीले से चलना चाहिये पर शायद ये वोल्वो बसें दिल्ली ट्राफ़िक को ठेंगा दिखा रही थीं या फ़िर सब मिलीभगत थी। आखिरकार ५.०० बजे शाम के रिपोर्टिंग टाईम देने के बाद बस ७.०० बजे चल दी, बीच में एक अच्छे होटल पर रुकी जहाँ पर रात का खाना खाया गया और फ़िर जब सुबह नींद खुली तो देखा कि सड़क के साथ साथ विहंगम नदी चल रही थी और कोई बहुत बड़ा शहर नदी के उस पार था। नदी “व्यास” थी और शहर था “कुल्लू”। फ़िर सुबह ९.३० बजे हम लोग मनाली पहुंच गये।

कनाट प्लेस में तैनात कमांडो (commando) और हमारी आत्मीयता

हम पिछले एक महीने से कमांडोज को पालिका बाजार के पास तैनात देख रहे हैं और सोचते हैं कि कितना मुश्किल काम करते हैं ये लोग। भरी दोपहर बुलेटप्रूफ़ पहनकर और भारी बंदूक लेकर अपनी ड्यूटी बजा रहे हैं केवल इसलिये कि हम लोग सुरक्षित रहें। इनकी ड्यूटी २४ घंटे रहती है।

 

जब रात को हम अपने ओफ़िस से निकलते हैं और आटो वाले से भावताव करते हैं, आटो वाले हमेशा ज्यादा पैसा मांगते हैं तो हम उनसे कहते हैं कि भैया चाकू दिखाकर लूटो ऐसे जबान से क्यों लूट रहे हो इसमें तो ये कमांडो भी हमारी मदद नहीं कर पायेंगे अगर चाकू दिखाओगे तब ये लोग हमारी मदद करेंगे। इस तरह से हमारी तो आत्मियता बन गई है इन कमांडोज के साथ।

 

कमांडोज अपना बुलेटप्रूफ़ और हथियार अपने साथ रखकर हमेशा युद्ध के लिये तैयार रहते हैं सलाम है मेरा उनके जज्बे को और हिम्मत को और उनके परिवार को।

Sigmatel चाईना मोबाईल में हिन्दी सपोर्ट उपलब्ध है।

आजकल मैं मोबाईल हैण्डसेट ढूँढ रहा हूँ जिसमें अच्छी क्षमता वाल वेब ब्राऊजर हो, हिन्दी का समर्थन हो, जावा का पूर्ण समर्थन हो, पर सीडीएमए (cdma) हो। कल ही मैं अपने एक मित्र से बात कर रहा था तो उन्होंने अपना खुद का एक हैंडसेट दिखाया जिसमें सब कुछ उपलब्ध था पर वह जीएसएम (gsm) था और चाईना का मोबाईल था सिग्माटेल। उन्होंने तकरीबन ८ माह पहले खरीदा था और बहुत ही बढ़िया चल रहा है। २ जीएसएम की सिम एक साथ उपयोग कर सकते हैं और उन्होंने खरीदा था मात्र ३००० रुपयों में।

 

बैटरी भी अच्छी चल रही है। बस हिन्दी टाईप नहीं कर सकते, मैंने अपना ब्लाग खोलकर देखा तो बहुत ही अच्छी तरह से स्क्रीन पर प्रदर्शित हुआ। बस फ़िर हमने सोचा कि चलो चाईना सीडीएमए को खोजा जाये और निकल पड़े पालिका बाजार में वहाँ सीडीएमए का एकमात्र हैंडसेट था मेलबोन (melbon) का| जो कि सीडीएमए व जीएसएम दोनों को एक साथ समर्थन करता है मतलब आप दोनों की सिम एक साथ उपयोग कर सकते हैं। पर उसमें वो चाईनीज खूबियाँ नजर नहीं आईं जिसके लिये चाईनिज मोबाईल इतने प्रसिद्ध हो रहे हैं जैसे कि अच्छी क्वालिटी का कैमरा, ४-५ स्पीकर, टच स्क्रीन, बडी स्क्रीन और भी बहुत कुछ। भाव बताया गया ५८०० रुपये, इतना दाम सुनकर हमें उस दुकान पर रुका नहीं गया और हम पालिका बाजार से निकल लिये।

 

इंडियाटाईम्स शापिंग यह मोबाईल ५५०० रुपये में उपलब्ध करवा रही है और इस चाईनीज मेलबोन मोबाईल पर एक साल की वारंटी कंपनी दे रही है जो कि चाईना मोबाईल बाजार के इतिहास में पहली बार है।

 

मोबाईल हैंडसेट की ढूँढ जारी है।

इन.कोम (in.com) ओनलाईन गाने सुनने की बेहतरीन जगह (Ultimate site for to hear online songs)

वैसे तो यह साईट बहुत उपयोगी है, परंतु मैं इस साईट का उपयोग गाना सुनने के लिये करता हूँ। जब कभी जिस भी गाना सुनने की इच्छा होती है, in.com पर जाकर खोज के ऊपर म्यूजिक टैब दबाकर अपना मनपसंदीदा गाना लिखकर सर्च पर क्लिक कर दें, सामने उस गाने से संबंधित परिणाम होंगे। बस प्ले बटन दबाकर गाने का आनंद लीजिये। इसका बफ़रिंग बहुत ही बढ़िया है इसलिये ऐसा लगता है कि गाना लोकल ड्राईव से ही बज रहा है।

 

वैसे यहाँ कुछ हिन्दी रेडियो स्टेशन्स भी उपलब्ध हैं और आप अपनी पसंद की एलबम बनाकर उसे सुरक्षित भी कर सकते हैं।

Nokia 6265 और मोबाईल कंपनियों एवं सर्विस प्रोवाइडर्स की लूट

मैं टाटा इंडिकाम सीडीएमए लगभग पिछले चार सालों से उपयोग कर रहा हूँ और कई बार मुझे परेशानी हुई परंतु हमने अपने ग्राहक अधिकार दिखाते हुए सारी परेशानियों को दूर करवाया। कौन सी परेशानियां कैसे दूर हुईं वो कभी और बताऊँगा।

अभी मैं सैमसंग एक्सप्लोरर फ़ोन का उपयोग कर रहा हूँ पर उस पर इंटरनेट ब्राऊजर की सीमित क्षमताओं के कारण मैं कोई नया फ़ोन ढूँढ रहा था तो कोई भी अच्छा फ़ोन नहीं मिला और मिला तो नोकिया 6265. पर परेशानी यह है कि आज से ४ साल पहले भी उसका भाव 15,500 था और आज भी वही है। अब कोई मुझे बताये कि क्या ये मोबाईल खरीदने में समझदारी है ?

भाव केवल टाटा के लोकल हेडओफ़िस से ही मिलते हैं टाटा के कस्टमर केयर 121 पर किसी भी अधिकारी को भाव नहीं पता है तो उन्होंने अपने मार्केटिंग के कस्टमर केयर का नंबर 9210008282 दे दिया, वहाँ फ़ोन किया तो उनको भी कुछ पता नहीं था। अब जबकि मेरे सामने टाटा इंडिकाम की वेबसाईट पर वह फ़ोन दिख रहा था पर टाटा इंडिकाम के मार्केटिंग डिपार्टमेंट को उस फ़ोन के बारे में कुछ पता नहीं है। अब मैंने कस्टमर केयर अधिकारी को कहा कि आप अपने सुपरवाइजर से बात करवा दीजिये जिससे मैं आपकी शिकायत कर सकूँ या फ़िर कोई और नंबर दे दो तो आपके डिपार्ट्मेंट की और आपकी शिकायत कर सकूँ तो थोड़ी देर अपना म्यूजिक सुनाकर फ़ोन काट दिया ऐसा पांच बार हुआ। अब मैं इस मामले को अपने तरीके से निपटाऊँगा।

अब मैं फ़ोन लगाता हूँ तो केवल यह टेप सुनने को मिलता है “हमारे सभी कस्टमर सर्विस एक्जिक्यूटिव अभी व्यस्त हैं आपकी काल हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है, कृप्या लाईन पर बने रहें”।

क्या कोई ब्लागर बंधु मुझे ऐसे मोबाईल हैंड्सेट के बारे में बता सकता है जिससे मैं बिना अपना सर्विस प्रोवाइडर बदले अच्छे ब्राऊजर वाला फ़ोन मिल जाये। क्योंकि जो काल की स्कीम सीडीएमए प्रोवाइडर देते हैं उतनी सस्ती काल जीएसएम वाले दे ही नहीं सकते।

कालजयी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना “हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयम प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती॥“

जब हम कालेज में पढ़्ते थे तब जयशंकर प्रसाद की यह प्रसिद्ध रचना बहुत ही अच्छा लगती थी और यह गीत हमारी मित्र मंडली में सबको बहुत पसंद था। चूँकि हम सब मतलब हमारा समूह स्टेज आर्टिस्ट थे, कला से जुड़े थे तो हमारे नाटकों में हम कोशिश करते थे कि हम इसी प्रकार का कोई गीत सम्मिलित करें।

फ़िर जब “चाणक्य” धारावाहिक छोटे पर्दे पर शुरु हुआ तो हमें नई लय के साथ यह गीत मिल गया जो कि आज भी मेरा मनपसंद है और मेरे बेटे का भी।

स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिये उठाने वाले इस गीत को सुनते ही आज भी रगों में खून तेज गति से दौड़ने लगता है। प्रस्तुत है रचना –

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयम प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती॥ कोरस
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो॥ कोरस
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकिर्ण दिव्य दाह सी, सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी॥ कोरस
अराति सैन्य सिंधु में सुबाड्वाग्नि से जलो, प्रवीर हो जयी बनो बढ़े चलो बढ़े चलो॥ कोरस

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शादी के पहले के प्यार भरे खत (Love Letters) फ़्री और लंबी मोबाईल काल्स में खो गये

जब मेरी शादी पक्की हुई थी, उस समय मोबाईल तो आ गये थे पर इनकमिंग पर भी चार्ज था और आऊटगोइंग बहुत महंगी थी। उस समय तो घर पर लेंडलाईन से भी आऊटगोइंग करने पर ज्यादा चार्ज था और आमदनी कम।

मेरी शादी पक्की होने के छ: महीने बाद हुई थी पर फ़ोन महंगा पड़ता था। खत का सहारा लेकर अपने दिल की बात एक दूसरे को पहुँचाते थे और उस समय ग्रीटिंग कार्ड को साथ में भेजने का फ़ैशन था। घंटों तक खत लिखते और फ़िर घंटों तक कार्ड गैलेरी में जाकर कार्ड चुनते और अपने दिलदार को भेजते। हम उनके खत का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते थे और वो हमारे खत का। खत में अपने दिल के प्यार से भर देते और अपने दिलदार के खत को गुलाब के फ़ूल के साथ और कुछ अच्छे ग्रीटिंग कार्ड साथ में भेज देते। फ़िर वे खत हम बारबार पढ़कर कुछ नया पढ़ने की कोशिश करते थे।

आज की मोबाईल पीढ़ी खत के मिठास के बारे में क्या जाने वो तो बस दिन रात मोबाईल पर चिपके रहते हैं, और पल पल की जानकारी एक दूसरे से बांटते रहते हैं कि क्या कर रहे हो, ओफ़िस कैसे जा रहे हो, क्या खा रहे हो, क्या पी रहे हो इत्यादि इत्यादि। इन लोगों के पास इन यादों को सहेजने का कोई तरीका मौजूद नहीं है और हमारे पास आज भी वो यादें हमारे साथ हैं, जिसे कभी कभी हम आज भी पढ़ लेते हैं।