नई सुबह का इंतजार है
जो मेरे जीवन को महका देगी
जो मेरे मन को लहका देगी
नई परिभाषा होगी
नयापन सा होगा
हिम्मत से सारोबार होगा
नवचेतन मन नये आयाम
नई पृथ्वी नई हवा
सब कुछ अलग होगा
और मैं भी कुछ नया सा !!!
नई सुबह का इंतजार है
जो मेरे जीवन को महका देगी
जो मेरे मन को लहका देगी
नई परिभाषा होगी
नयापन सा होगा
हिम्मत से सारोबार होगा
नवचेतन मन नये आयाम
नई पृथ्वी नई हवा
सब कुछ अलग होगा
और मैं भी कुछ नया सा !!!
आज शाम को हमारे घर में एक नया मेहमान आया है, बिटिया आई है, मेरे छोटे भाई शलभ को आज बिटिया की प्राप्ति हुई, बहु दिल्ली में ही थी और भाई शाम की फ़्लाईट पकड़ कर दिल्ली पहुँचा है।
कितना रोमांचकारी पल होता है पिता बनने का, उससे बात करने से ही पता चल रहा था, जब बिटिया इस दुनिया में आई तो हमारा भाई फ़्लाईट में था, तो हमने तुरंत एक एस.एम.एस. कर दिया … [Congrats Dad !! bitiya ghar me aayi hai, khushiya lai hai :)]
जब भाई के प्लेन दिल्ली में उतर गया तो जैसे ही मोबाईल खोला हमारा एस.एम.एस. मिलने से उसे पता चला और तब तक तो हम लगभग सभी अपने परिचितों को एस.एम.एस. या फ़ोन कर चुके थे।
घर पर बात हुई तो मम्मी बोली कि अब तो ताऊ बन गये हो, और घर में बिटिया आई है, अब घर में रक्षाबंधन का त्यौहार भी मना करेगा। हम खुशी के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। बहुत ही सुन्दरतम एहसास होता है घर में नये मेहमान आने का और वो भी प्यारी बिटिया रानी के आने का।
शाम को पार्क में घुमाने ले गये तो बेटेलाल की गप्प सुनिये –
हमारे स्कूल में रोज कराटॆ करवाते हैं और कराटे करवाते हुए २ किमी दौड़ते हैं।
मैंने पूछा और कराटॆ मॆं फ़र्स्ट कौन आता है, तो बोले “कराटे में नहीं दौड़ में, हमेशा मैं फ़र्स्ट आता हूँ, और हमारे सर इतना तेज दौड़ते हैं, तब भी मेरे पीछे रह जाते हैं”
“फ़िर दौड़ ४० किमी की हो जाती है और ४० किमी की दौड़ खत्म होते ही ७० किमी की हो जाती है, फ़िर नदी आ जाती है, तो सर कहते हैं कि उड़ के पार कर लो”
मैंने पूछा “उड़के !”
तो बेटेलाल बोले “हाँ सर कहते हैं कि दोनों हाथों को पंख बनाकर उड़ाते हैं, और पैर से किक मारते हैं, तो उड़ने लगते हैं”
आज से गपोड़ी किस्से शुरु किये हैं। जिससे बचपन के किस्से जो हम भूल जाते हैं, वो लिखित में हमेशा मेरी पास यादें बनकर मेरे पास और आपके पास रहें।
॓यह रुपये का नया रुप है क्या दिखाई देता है। हमने INR Font डाऊनलोड किया है। अगर यहाँ नहीं दिखाई दे तो चित्र लगा देते हैं।
सोचिये अगर कोई जेबकतरा आपकी जींस की जेब में आपका पर्स निकालने के लिये हाथ डालता है तो उसे 22o वोल्ट का बिजली का झटका लगता है, जी हाँ यह विशेष जींस तैयार की है वाराणसी के हाईस्कूल फ़ेल नौजवान ने, जो कि विज्ञान के सामान्य सिद्धांत पर आधारित है।
जींस को तैयार किया है श्याम चौरसिया ने जो कि वाराणसी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। यही नहीं वे कहते हैं कि अगर उनके अनुसार थोड़े से सुधार और किये जायें तो आपके सारे कपड़े ही “पॉवर-पैक” हो जायेंगे।
जिस भी कपड़े को “पॉवर-पैक” करना हो उसमें एक छोटी सी बैटरी से चलने वाली किट लगानी होगी।
श्याम चौरसिया का कहना है कि “जब मैंने यह तैयार की थी तो केवल जेबकतरों को ही ध्यान में रखा था, पर अगर इसे लड़्कियों की टी शर्ट और कपड़ों में भी लगा दें तो छेड़खानी के मामले रुक सकते हैं।”
अब अगर आपको लगता हो कि ये बैटरी से चलने वाला अविष्कार महँगा होगा, तो नहीं बिल्कुल नहीं केवल तीन सौ रुपये खर्च करने होंगे और अगर और उन्नत तकनीक चाहिये तो १०० रुपये ज्यादा खर्च करना होंगे।
बारबार मेरे स्वप्न में
वही नदी क्यों आती है
जो मुझे बुलाती है
कहती है कि आओ जैसे तुम पहले
मेरे पास आकर बैठते थे
वैसे ही पाँव डालकर बैठो,
अब तो तुम
समुंदर के पास हो
है बहुत विशाल
पर मुझे बताओ
कि कितनी बार उसने तुम्हें
अपने पास बैठने दिया
जैसे मैंने ??
शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है
नहीं तो सुनसान रात्रि के
शमशान की सन्नाटे की गूँज है
सन्नाटे की सांय सांय में
जीवन भी कहीं सो चुका है
शमशान जाने को समय है
पूरी जिंदगी मौत से डरते हैं
शमशान जाने से डरते हैं
पर एक दिन मौत के बाद
सबको वहीं उसी सन्नाटे में
जाना होता है,
जहाँ रात को सांय सांय
हवा अपना रुख बदलती है
जहाँ रात को उल्लू भी
डरते हैं,
जहाँ पेड़ों पर भी
नीरवता रहती है
मैं जाता हूँ तो मुझे
मेरे शब्द जीवित कर देते हैं
क्योंकि शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है।
रोज सुबह भागते हुए
दिन शुरु होता है,
पर सुबह तटस्थ रहती है,
सुबह अपनी ठंडी हवा,
पंछियों की चहचहाट,
मंदिर की घंटियाँ,
मेरे खिड़्की के जंगले से आती भीनी भीनी
फ़ूलों की खुश्बु,
सब कुछ तो ताजा होता है
फ़िर भी मेरी सुबह और दिन
भागते हुए शुरु होते हैं।
सिसकती खिड़्कियाँ
चिल्लाते दरवाजे
विलाप करते रोशनदान
चीखते हुए परदे
सब तुम्हारी याद दिलाते हैं
मेरे अतीत
तुम इतने भयानक क्यों थे !
कुछ है क्या मेरे लिये ?
या सब पहले ही खर्च हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या करने के लिये ?
या सब पहले ही हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या कहने के लिये ?
या सब पहले ही कह चुके हैं
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या सुनने के लिये ?
या सब पहले ही सुन चुके हैं
मेरे आने से से पहले,
हमेशा जिंदगी में सब कुछ,
मेरे आने से पहले ही क्यों हो जाता है,
और जो मैं करता हूँ, वह
बाद मैं सोचता हूँ क्या मैं इसे ऐसा कर सकता था ?
बस सोचता हूँ कि सब पहले ही क्यों हो चुका होता है
मेरे आने से पहले ?
हमने याद किया कि हमें आखिरी बार वर्णमाला कब याद थी, तो याद आया कि स्नातकोत्तर संस्कृत में हमने यह पढ़ा था, पर किसी कारणवश हम उपाधि नहीं ले पाये थे। फ़िर अपने मोबाईल पर वर्णमाला मिली, पर उस समय हमें वर्ग याद रहता था, फ़िर बाद में वर्ग भी भूल जाते थे।
और सुधिजन विद्वान बतायें कि क्या यह हिन्दी वर्णमाला पूर्ण है, क्योंकि आजकल कुछ नये शब्द इसमें जोड़े जा रहे हैं, जो कि मुझे पच नहीं रहे हैं।
जैसे कि – ड़, ढ़, श्र
आप बताईये क्या आपको हिन्दी वर्णमाला आती है ?