Monthly Archives: October 2010

पत्नी ने रिश्वतखोर पति का भंडाफ़ोड़ किया..काश हर घर में हो..कितना सही..चिंतन..? [Fiesty wife exposes bribe – taking hubby]

    जी हाँ यह सच है, कल के मुंबई मिरर में “Fiesty wife exposes bribe – taking hubby” इस घटना का ब्यौरा दिया गया है। पूरी  खबर लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

    वाकई अगर पत्नी पति की रिश्वतखोरी को रोके, भारत देश से भ्रष्टाचार खत्म करने का यह सबसे आसान तरीका लगता है। इस मुद्दे पर नारीवादी संगठनों को आगे आना चाहिये और नारियों को जागरुक करना चाहिये।

    जिस घटना को पढ़कर यह मैं लिख रहा हूँ उस घटना में पत्नी रिश्वत के पैसे से घर नहीं चलाना चाहती थी, और उसने पति को समझाया कि सीमित वेतन में अच्छे से जी सकते हैं, तो यह गलत काम क्यों करना। पत्नी ने पति को समझाया कि उसके पापा भी सरकारी नौकरी में थे और कभी भी रिश्वत के लालच में नहीं आये। पर पति की समझ में न आया, और उसकी रिश्वत की भूख बड़ती ही जा रही थी, एक दिन पति दो लाख रुपये लेकर आया तो पत्नी ने हंगामा कर दिया कि वह इस रिश्वत की रकम को घर में नहीं रहने देगी, और पति के न मानने पर रिश्वत एवं भ्रष्टाचार संबंधी कागज लेकर पुलिस को दे दिये।

    प्रश्न अब यह है कि क्या पत्नी ने ठीक किया ? भ्रष्टाचारी पति का भंडाफ़ोड़ करके या उसे यह सब चुपचाप सहन कर लेना चाहिये था और भ्रष्ट धन से भौतिक सुख सुविधाओं का मजा लूटना चाहिये था ?

कुछ और नये चुटकले (Some more new jokes)

कुछ और नये चुटकले (Some more new jokes)

भीड़ में काफी देर से खड़ा अभिनेता ऑटोग्राफ देते-देते जब थक गया तो उसने एक लड़की की नोटबुक में गधे की फोटो बना कर लड़की की ओर बढ़ा दी।
लडकी (मुस्कुराकर)- मुझे आपका फोटो नहीं, ऑटोग्राफ चाहिए

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रमन की अपनी बीवी से जबर्दस्त लड़ाई हो गई। बीवी ने आव देखा न ताव… कसकर बेलन फेंककर मारा, जो रमन के सिर, हाथ से गुजरते हुए घुटने पर लगा और हड्डी चटक गई।
अस्पताल में प्लास्टर कराने के बाद जब उसे वार्ड में ले जाया गया, तो उसने देखा कि साथ वाले बेड पर जो मरीज लेटा है उसकी दोनों टाँगों पर प्लास्टर चढ़ा है। उसने पड़ोसी मरीज से धीरे से पूछा, ‘भाईसाहब, आपकी क्या दो बीवियाँ है?’

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छुट्टी के दिन तीन बच्चे बातें कर रहे थे।
पहले बच्चे ने कहा : मेरे पापा सबसे तेज दौड़ते हैं। वह तीर चला कर दौड़ते हैं, तो तीर से पहले निशाने तक पहुंच जाते हैं।
दूसरे ने कहा : यह तो कुछ भी नहीं। मेरे पापा राइफल की गोली चलाते हैं और उससे पहले टारगेट तक पहुंच जाते हैं।
तीसरे ने कहा : अरे! तुम दोनों तो जानते ही नहीं कि स्पीड क्या होती है? मेरे पापा सरकारी कर्मचारी हैं। उनकी छुट्टी शाम 6 बजे होती है और वे 4 बजे ही घर पहुंच जाते हैं

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शरारती सार्थक को उसके तीन वकील दोस्तों के साथ पार्क में बैठकर जुआ खेलने के आरोप में गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया…
मजिस्ट्रेट ने पहले वकील से बयान देने के लिए कहा, तो वह बोला, “माई लॉर्ड, मैं उस दिन यहां था ही नहीं… मैं लखनऊ जाने वाली ट्रेन में था… सबूत के तौर पर यह देखिए मेरा रेल टिकट…”
दूसरे वकील की बारी आने पर वह बोला, “उस दिन मैं घर पर बुखार में पड़ा था… सबूत के तौर पर यह देखिए, डॉक्टर का सर्टिफिकेट…”
तीसरे वकील का जवाब था, “मैं तो उस वक्त चर्च में बैठा भगवान से बातें कर रहा था… गवाह के तौर पर मैं चर्च के पादरी को साथ लाया हूं…”
अंततः मजिस्ट्रेट ने सार्थक से पूछा, “अब तुम्हें क्या कहना है… क्या तुम भी जुआ नहीं खेल रहे थे…?”
शरारती सार्थक ने कुटिल मुस्कुराहट के साथ तपाक से कहा, “किसके साथ…?

गोराई खाड़ी स्थित पैगोड़ा की यात्रा.. (Pagoda at Gorai Creek).

    बहुत दिनों से पैगोड़ा आने की तीव्रतम इच्छा थी, परंतु बहुधा कारकों से आ नहीं पा रहे थे, पर कल हमने आखिरकार पैगोड़ा यात्रा का मन बना ही लिया। पैगोड़ा बोद्ध धर्म संबंधित स्थान है, जहाँ विपश्यना यानि कि ध्यान की शिक्षा भी दी जाती है। यह पैगोड़ा एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा पैगोड़ा है।

    यह पैगोड़ा गोराई खाड़ी में स्थित है, और बोरिवली इसका नजदीकी रेल्वे स्टेशन है। बोरिवली से बेस्ट की बस (४६१, ३०९, २२६, २९४) से सीधे गोराई आगार पहुँच सकते हैं, और वहाँ से पाँच मिनिट चलने पर गोराई खाड़ी पहुँचा जा सकता है। बोरिवली रेल्वे स्टेशन से शेयरिंग ऑटो भी उपलब्ध हैं। गोराई खाड़ी पहुँचने के बाद वहाँ फ़ेरी का टिकट ३५ रुपये प्रति व्यक्ति है, जो कि आने जाने का है।

    और अगर सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो मीरा – भईन्दर होकर एस्सेल वर्ल्ड आना होगा। जो कि थोड़ा लंबा रास्ता है। अब तो सुबह बोरिवली से एस्सेल वर्ल्ड की बेस्ट ने एक नई बस सेवा भी शुरु की है ७११ नंबर बस, जो कि सुबह ९ बजे बोरिवली स्टेशन से चलती है एस्सेल वर्ल्ड के लिये और फ़िर दिनभर वह गोराई बीच से पैगोड़ा के लिये चलती है, और शाम ७ बजे वापिस एस्सेल वर्ल्ड से बोरिवली स्टेशन आती है।

    पैगोड़ा, एस्सेल वर्ल्ड और वॉटर किंगडम तीनों आसपास हैं। हम फ़ेरी का टिकट लेने के बाद खाड़ी की ओर चल पड़े और वहाँ पर फ़ेरी की नाव चक्कर लगा रही थीं। बदबू भी आ रही थी, चारों ओर गंदगी का साम्राज्य था। पर पैगोड़ा जाने की उत्कंठा में सब भूगत रहे थे। पहली बार हमने देखा कि लोग अपनी मोटर साईकिल भी नाव में लेकर सवार हैं। नाव तक जाने में बहुत मजा आया, पहली बार हम खाड़ी के इस प्रकार के पुल पर चल रहे थे।

    इस फ़ैरी से पैगोड़ा के यात्री ही ज्यादा थे क्योंकि एस्सेल वर्ल्ड सुबह १० बजे से रात ८ बजे तक खुला रहता है, और दोपहर को जाने पर कोई पूरा नहीं घूम सकता है। पैगोड़ा पहुँचते पहुँचते मन अद्भुत तरीके शांत हो चुका था। शायद यह प्रकृति का चमत्कार है।

    पैगोड़ा में एक बड़ा हॉल बना हुआ है, जहाँ साधक विपश्यना करते हैं, मतलब साधना करते हैं ध्यान करते हैं। पर्यटकों के लिये अलग से कक्ष बनाया गया है जहाँ से वे हॉल के अंदर का दृश्य देख सकते हैं, जो कि काँच से बंद किया गया है, जिससे साधकों के ध्यान में खलल न पड़े। यहीं पर स्तंभ भी है, जैसा कि सारनाथ में है। यही पर भगवान बुद्ध की जीवनी पर एक चित्र प्रदर्शनी भी है, चित्रकार ने गजब के चित्र उकेरे हैं, क्या रंग संयोजन है।

    पैगोड़ा से बाहर निकलने के बाद हम पहुँच गये एस्सेल वर्ल्ड के प्रवेश द्वार पर, जहाँ कि टिकट खिड़की भी थी। वहाँ आकर्षित करने के लिये तरह तरह के पुतले थे जहाँ फ़ोटो खींचे।

और फ़िर वापिस फ़ैरी की ओर लौटते हुए, निकल पड़े घर की ओर..

फ़ैरी की ओर फ़ैरी की ओर दीवार पर विज्ञापन फ़ैरी के सहयात्री फ़ैरी से बाहर का एक दृश्य लौटती हुई फ़ैरी से पैगोड़ा का दृश्य

    बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, और एक बात आज हमने बहुत दिनों बाद तादाद में केकड़े भी देखे जो कि गोराई खाड़ी में थे।

भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे …

पिछली पोस्ट आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई .. से आगे…

    रोज के ६० पंजीयन करवाये जाते हैं इस भूपंजीयन कार्यालय द्वारा और बताया गया कि हर पंजीयन पर लगभग १५०० रुपयों की रिश्वत होती है। और जो दलाल होता है उसकी कमाई रोज की १० हजार से १५ हजार तक होती है, भूपंजीयन (सहदुय्यम अधिकारी) की कुर्सी ५०-६० लाख रुपये में बिकती है क्योंकि हर माह यहाँ लाखों की कमाई होती है, यह १५०० रुपये की रिश्वत तो केवल मकान मालिक और किरायेदार के करारनामे पर है, अगर कोई नये फ़्लेट या पुराने फ़्लेट के लिये जा रहा है तो उसकी रिश्वत की राशि बहुत ज्यादा होती है।

    उस कार्यालय में जाकर इतनी घिन आ रही थी कि कहाँ हम इस भ्रष्टाचार की नदी में आकर सन गये हैं, और नहाकर तरबतर हो चुके हैं। अपने आप पर गुस्सा भी था कि इस भ्रष्टाचार को हम धता भी नहीं बता पा रहे थे, मजबूरी में भ्रष्टाचार का साथ दे रहे थे, पर इस भ्रष्टाचार के बिना हमारा काम बिल्कुल नहीं होता यह तो हमें हमारे दलाल ने पहले ही बता दिया था, “खुद जियो और दूसरे को भी जीने दो” याने कि “खुद खाओ और दूसरे को भी खाने दो”

    क्या सरकार हमारी अंधी है या जो भ्रष्टाचार निरोधक अमले बना रखे हैं वो केवल औपचारिकताएँ पूरी करने के लिये बनाये गये हैं। हमारी कोर्ट भी संज्ञान नहीं लेती हैं, क्या इतनी मिलीभगत है, क्या हमारा पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में लिप्त है, कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक भ्रष्टाचार के मामले को संज्ञान में लेते हुए कहा था कि सरकार को भ्रष्टाचार को कानूनन लागू कर देना चाहिये और किस काम का कितना पैसा खर्च होगा उसका भाव तय कर देना चाहिये। पर हमारे सरकारी कुंभकर्ण और रावण कभी नहीं जाग सकते।

    अब बताईये जिन लोगों को यहाँ जनता की सेवा के लिये बैठाया गया है वही लोग अपना काम करने की जनता से रिश्वत लेते हैं, और जनता भी दे देती है, क्या करे जनता भी, सब मिलीभगत है।

    भ्रष्टाचारी रुपी रावण कब हमारे भारत देश से विदा होगा, कब हम इस रावण को जलायेंगे, कब रावण को हर वर्ष जलाना छोड़ देंगे, इस रावण को जड़ से ही मिटा देंगे। कब….. बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है… पता नहीं हमारे भारतवासी कब हराम की कमाई छोड़ेंगे… जिस दिन यह संकल्प हर भारतवासी ने ले लिया उस दिन भारत में रामराज्य स्थापित हो जायेगा। दशहरे पर असत्य पर सत्य की विजय के साथ सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएँ।

आज भ्रष्टाचार की नदी में नहाकर आये हैं.. आप ने कभी डुबकी लगाई ..

आज हम सुबह अपने मकान के दलाल के साथ पंजीयक कार्यालय गये थे, जहाँ हमारे मकान मालिक भी थे, यहाँ मुंबई में ११ महीने का किराये का करारनामा होता है जो कि पंजीयन कार्यालय से पंजीकृत भी होना चाहिये। यह पूर्णतया: कानूनी कार्यवाही होती है।

जब हम पंजीयक कार्यालय पहुँचे तो वहाँ लिखा था तहसिलदार भूमापन बोरिवली कार्यालय, और भी ४-५ कुछ और नाम लिखे थे, जो कि हमें याद नहीं है, वहीं पास में झंडे को फ़हराने के लिये लोहे का पाईप भी लगा था, वह देखकर मन में आया कि मुंबई महानगरी में सरकारी कार्यालय में इतने सारे भ्रष्टाचारी लोगों के बीच में अपने तिरंगे को फ़हराने का क्या काम, इसलिये इस लोहे के डंडे को यहाँ होना ही नहीं चाहिये। मन में यह बात लिये हम पहले माले पर चल दिये।

जहाँ हमारे मकान के दलाल ने पहले से ही सब “सैटिंग” की हुई थी, हमारा १२ बजे का नंबर लिया हुआ था, हम पहुँचे १२.४५ बजे पर अगले ने फ़िर “सैटिंग” की फ़टाफ़ट और हमारी फ़ाईल नीचे से ऊपर करवाई और बस हम पंजीयन अधिकारी के कार्यालय में पहुँच गये। मुख्य कुर्सी पर एक महिला काबिज थी जो कि बहुत ही महंगी सी साड़ी पहनी हुई बैठी थीं, और चेहरा बिल्कुल रुखा कि कहीं कोई फ़ोकट में काम न करवा ले।

जहाँ बैठने के लिये दो कुर्सियाँ और एक स्टूल था, स्टूल पर पहले मकान मालिक को बैठाया गया और उनके कुछ हस्ताक्षर वगैरह लिये गये फ़िर “वैब कैम” से फ़ोटो खींचे गये और उल्टे हाथ का अंगूठे का स्कैनिंग किया गया। इसके बाद हमारा नंबर आया और यही सब हमारे साथ किया गया, इसी बीच पंजीयन कार्यालय के दलाल द्वारा एक हस्ताक्षर लिया गया। हमने अपने दलाल पर भरोसा करके उसपर हस्ताक्षर कर दिये (इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था)

फ़िर हम उस कक्ष के बाहर आये और वहाँ फ़िर वही दलाल कुछ कागज लाया और हमसे और मकान मालिक से हस्ताक्षर करवाये। हमने अपने अगले ११ महीने के चैक मकान मालिक को सुपुर्द किये और बस अगले ११ महीने के लिये हमारा पंजीयन हो गया, हम केवल १० मिनिट में स्वतंत्र हो गये।

कार्यालय में हमने दो चीजें पढ़ी थीं कि पंजीकरण के लिये नंबर ऑनलाईन किये जा सकते हैं, और ईस्टाम्प। हम हमारे मकान मालिक के साथ बात कर रहे थे कि अगर सभी चीज ऑनलाईन कर दी जाये तभी भ्रष्टाचार का खात्मा संभव है, नहीं तो हम और आप तो कुछ भी नहीं कर सकते इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ़।

कार्यालय से बाहर निकलते ही हमने अपने दलाल से प्रश्न किया कि अगर बिना भ्रष्टाचार के पंजीयन करवाना हो तो कितना समय लग जाता है। हमारे दलाल का जबाब था कि “हो ही नहीं सकता।” वहीं पर एक अस्थायी पटिये पर बैठे हुए बंदे ने कहा कि अंकल जी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। वह भी शायद दलाल ही था। हमने कहा कि वहाँ तो लिखा है कि ऑनलाईन नंबर और ईस्टाम्प सरकार ने शुरु किया है। तो दोनों ठहाके मारकर हँसने लगे और बोले नंबर तो अगले एक महीने का शुरु के दो दिन में ही दर्ज हो जाते हैं, तो हम बोले फ़िर आपको कैसे ऐसे नंबर मिल जाता है, वे बोले पैसे में बहुत ताकत है, और वही ताकत यह सब करवाती है।

जारी…

नवभारत टाईम्स में हिन्दी की हिंग्लिश… आज तो हद्द ही कर दी..

नवभारत टाईम्स ही क्या बहुत सारे हिन्दी समाचार पत्र अपने व्यवसाय और पाठकों के कंधे पर बंदूक रखते हुए जबरदस्त हिंग्लिश का उपयोग कर रहे हैं। पहले भी कई बार इस बारे में लिख चुका हूँ, हिंग्लिश और वर्तनियों की गल्तियाँ क्या हिन्दी अखबार में क्षम्य हैं।

मैं क्या कोई भी हिन्दी भाषी कभी क्षमा नहीं कर सकता। सभी को दुख ही होगा।

आज तो इस अखबार ने बिल्कुल ही हद्द कर दी, आज के अखबार के एक पन्ने पर “Money Management” में एक लेख छपा है, देखिये –

एनपीएस में निवेश के लिये दो विकल्प हैं। पहला एक्टिव व दूसरा ऑटो अप्रोच, जिसमें कि PFRDA द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद मैनेजमेंट कंपनियां जैसे LIC,SBI,ICICI,KOTAK,RELIANCE,UTI  व IDFC हैं। एक्टिव अप्रोच में निचेशक इक्विटी (E), डेट (G) या बैलेन्स फ़ंड (C ) में प्रपोशन करने का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है। इन्वेस्टर अपनी पूरी पेंशन वैल्थ G असैट क्लास में भी इन्वेस्ट कर सकता है। हां, अधिकतम 50% ही E में इन्वेस्ट किया जा सकता है। जिनकी मीडियम रिस्क और रिटर्न वाली अप्रोच है वे इन तीनों का कॉम्बिनेशन चुन सकते हैं। वे, जिन्हें पेंशन फ़ंड चुनने में परेशानी महसूस होती है वे ऑटो च्वॉइस इन्वेस्टमेंट ऑप्शन चुन सकते हैं।…

अब मुझे तो लिखते भी नहीं बन रहा है, इतनी हिंग्लिश है, अब बताईये क्या यह लेख किसी हिन्दी लेखक ने लिखा है या फ़िर किसी सामान्य आदमी ने, क्या इस तरह के लेखक ही समाचार पत्र समूह को चला रहे हैं।

द्वारा अप्रूव पेंशन फ़ंड में इन्वेस्ट किया जा सकता है। इस समय साथ पेंशन फ़ंद

क्या हिन्दी अखबार पढ़ना बंद कर देना चाहिये.. समझ ही नहीं आता है कि हिन्दी है या हिंग्लिश.. असल हिन्दी क्या खत्म हो जायेगी.. ?

अभी कुछ दिनों पहले एक चिट्ठे पर किसी अखबार के बारे में पढ़ा था कि पूरी खबर ही लगभग हिंग्लिश में थी, शायद कविता वाचक्नवी जी ने लिखा था, अच्छॆ से याद नहीं है। अभी  लगातार नवभारत टाईम्स में भी यही हो रहा है।
मसलन कुछ मुख्य समाचार देखिये –
१. इंडिया का गोल्डन रेकॉर्ड
२. विमान की इमरजेंसी लैंडिंग
३. पानी सप्लाई दुरुस्त करने में जुटे रिटायर्ड इंजिनियर
४. गेम्स क्लोजिंग सेरेमनी में म्यूजिक, मस्ती और नया एंथम
 
अब कुछ अंदर के पन्नों की खबरें –
१. सलमान पर इनकम टैक्स चोरी का आरोप (अपीलेट आदेश को हाईकोर्ट की चुनौती)
२. साइलेंस जिन के नियमों पर पुलिस लेगी फ़ैसला
३. कॉर्पोरेट्स को मिलेगी इंजिनियरिंग कॉलेज खोलने की इजाजत (’सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस’ के जरिए स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की उम्मीद)
४. बच्चों को अपना कल्चर बताना है।
अब अगर यही हाल रहा तो पता नहीं हमारी नई पीढ़ी हिन्दी समझ भी पायेगी या नहीं, क्या हिन्दी के अच्छे पत्रकारों का टोटा पड़ गया है, अगर ऐसा ही है तो हिन्दी चिट्ठाकारों को खबरें बनाने के लिये ले लेना चाहिये। कम से कम अच्छी हिन्दी तो पढ़ने को मिलेगी और चिट्ठाकारों के लिये नया आमदनी का जरिया भी, जो भी चिट्ठाकार समाचार पत्र समूह में पैठ रखते हैं, उन्हें यह जानकारी अपने प्रबंधन को देनी चाहिये। महत्वपूर्ण है हिन्दी को आमजन तक असल हिन्दी के रुप में पहुँचाना।

मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… बेस्ट के ड्राईवर का गुस्सा.. बाबा..

     घर से आज ९.२५ पर निकल पाया तो लगा कि शायद अपनी बस आज छूट जायेगी, सोचा कि अब तो अगली बस ९.५० की ही मिलेगी, परंतु हाईवे पर पहुँचते ही अपनी तो बाँछें खिल गई, क्योंकि जबरदस्त ट्रॉफ़िक था, कोई गाड़ी अच्छे से किसी से टकरा गई थी। और तीन तीन बस ट्रॉफ़िक में फ़ँसी हुई थीं जिसमें सबसे पीछे वाली बस अपनी थी, फ़िर से ड्राईवर से मुस्कराहट का आदान प्रदान हुआ और उन्होंने आगे से ही चढ़ने का इशारा किया परंतु सभ्यता से हम बस के पीछे वाले दरवाजे से चढ़ लिये।

    बस में आज भीड़ कुछ कम थी, और ठीक ठाक तरीके से खड़े होने की जगह मिल गयी थी, पर थोड़ी देर में ही भीड़ का दबाब बड़ने लगा और जाने पहचाने चेहरे नजर आने लगे, अपना मोबाईल निकाला और निम्बज्ज में लॉगिन किया कि ट्विटर पर नया क्या है, गूगल चैट, याहू चैट और स्कायपी पर कितने और कौन कौन ऑनलाईन हैं, कुछ चैटिंग पर काम की बातें भी कर ली गईं, कुछ देर बाद ही हमें एक सीट मिल गई और हम इत्मिनान से मोबाईल पर ही इकोनोमिक्स टाईम्स पढ़ने लगे।

    बस में भीड़ का दबाब बड़ता ही जा रहा था, दो लाईन से तीन लाईन और एक चौथी लाईन आने जाने वालों की लगी थी, बिल्कुल पैक हो चुकी थी बस.. थोड़ी ही देर में स्टॉप आते जाते और बस यात्रियों को उतारकर और लेकर आगे बढ़ती रहती।

    बस एक स्टॉप पर से निकली और सिग्नल पर खड़ी हो गई, तो कुछ दो लोग पीछे से दौड़ते हुए आये और आगे वाले दरवाजे से चढ़ लिये, तो ड्राईवर बहुत नाराज हुआ, और इन दोनों पर चिल्लाने लगा बोला कि पीछे दरवाजे से चढ़ो, तो दो लोगों में से एक तो उतर गया पर एक आदमी उतरने को तैयार ही नहीं था, और वह गाली गलौच पर उतर आया, तब तक बस थोड़ा आगे निकल चुकी थी, तो बस ड्राईवर ने बस उधर ही रोकी और बस का इंजिन बंद कर दिया और बोला कि जब तक ये आदमी नहीं उतरेगा तब तक बस आगे नहीं जायेगी, ऊफ़्फ़ ये तो उस आदमी ने हद्द ही कर दी बोला कि नहीं उतरुँगा, तब बस में से सभी लोग उस आदमी के लिये चिल्लाने लगे और कुछ टपोरियों वाली भाषा में ही शुरु हो गये। कुछ लोग कहने लगे “लेट हो रहा है”, “गर्मी बहुत हो रही है”, तो इतने में एक लड़की का कमेंट आया कि मुंबई में सारी बसें ए.सी. होनी चाहिये, यहाँ इतनी सड़ी गर्मी होती है। आखिरकार वह आदमी उतरा और बस ड्राईवर ने बस इंजिन चालू किया तब जाकर राहत महसूस हुई।

    रोज ही ऐसा कोई न कोई वाकया हो जाता है। कि बस.. लिखना तो बहुत कुछ है पर बस अब ओर नहीं…

मेरी वो किताबें … मेरी कविता.. विवेक रस्तोगी

पुरानी किताब

मेरी वो किताबें

जिनकी धूल कभी मैंने झाड़ी थी

उनपर आज फ़िर

धूल की परतें जमीं है

उन परतों में अपनी अकर्मण्यता ढूँढ़ता हूँ

उन परतों में दबा हुआ समय देखता हूँ

जमे हुए रिश्ते पढ़ने की कोशिश करता हूँ

और मेरे छूने पर

उस परत के टूटे हुए कणों को देखते हुए

फ़िर नया करने में जुट जाता हूँ ।