Yearly Archives: 2018

पाचन क्रिया को खत्म करने वाली चार चीजें

आपकी खाने की आदत, सोने की आदत और पानी पीने की आदत यह सब आपकी पाचन क्रिया से सीधे संबंधित हैं, तो इन पर ध्यान रखिये और इनको ठीक करिये।

जितना हम समझते हैं पाचन क्रिया इतनी आसान नहीं है। हम लोग अधिकतर पाचन क्रिया को यह कहकर अनदेखा कर देते हैं कि यह तो यह तो ज्यादा वजन के कारण हो रहा है या फिर हमारे कम वजन के कारण हो रहा है। दरअसल पाचन क्रिया हमारी आदतों से सीधे संबंधित है कि हम अपने शरीर को कैसे रखते हैं। Continue reading पाचन क्रिया को खत्म करने वाली चार चीजें

अपनी उम्र बढ़ने से रोकने के उपाय

उम्र बढ़ती जाती है और यह जीवन चक्र का निश्चित क्रम है। लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि हम अपनी उम्र के साथ बढ़ते हुए कैसे कम से कम दवाइयों और डॉक्टरी सुख सुविधाओं को लेते हुए आगे बढ़ें। हममें से अधिकतर लोग स्वास्थ्य बीमा में बहुत सा पैसा खर्च करते हैं, लेकिन हममें से ऐसे कितने लोग हैं जो स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए पैसा खर्च करते हैं। हम लोगों ने यह मान लिया है और यह समझ लिया है कि उम्र बढ़ने के साथ में बीमारियाँ और दर्द आते जायेंगे। तो यहाँ हम बात करेंगे कि किस प्रकार से अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और जब उम्र बढ़ती है तो अपने जीवन चक्र में क्या क्या ध्यान रखें। ऐसे ही अपनी उम्र बढ़ने से रोकने के उपाय पर हम बात करते हैं। Continue reading अपनी उम्र बढ़ने से रोकने के उपाय

असहज परिस्थितियों को कैसे संभालें How to manage the bad situations

सत्य यही है कि दुनिया में कोई भी सर्वगुण संपन्न नहीं है और यह भी उतना ही सत्य है कि हर कोई कभी ना कभी कोई ना कोई गलती करता ही है। और मजा तो तब आता है जब आप किसी ऑफिस में काम करते हो और इसी प्रकार की किसी परिस्थिति से आप कम से कम एक बार या एक से अधिक बार रोज ही रूबरू होते हैं। Continue reading असहज परिस्थितियों को कैसे संभालें How to manage the bad situations

क्या मैं रिस्क याने कि जोखिम लूँ !!

पूरे ब्लॉग में जोखिम को रिस्क (Risk) ही पढ़ें, आजकल सभी लोग रिस्क शब्द को समझते ही हैं।

पूरा जीवन ही आजकल केलकुलेटेड रिस्क है और किसी भी समय किसी असफलता वाले काम में सफलता भी मिल सकती है तो आपको ऐसा क्या रोकता है कि आप रिस्क नहीं लेना चाहते। Continue reading क्या मैं रिस्क याने कि जोखिम लूँ !!

500 में से 499 नंबर वाह

आज बारहवीं कक्षा का परीक्षाफल आया और उसमें एक प्रतिभावान छात्र ने 500 में से 499 नंबर लाकर दिखाये। समाज को, परिवार को, दोस्तों को उस छात्र पर नाज होगा और होना ही चाहिये। यहाँ आज इस ब्लॉग में मेरा इस विषय पर लिखने का मकसद कुछ और है। हर वर्ष ऐसे कई प्रतिभावन छात्र होते हैं, जिनके पास बेहतरीन दिमाग होता है और वे अपने क्षैत्रों में अव्वल आते हैं। परंतु फिर भी भारत में से ये लोग जाते कहाँ है, जब बारहवीं में 499 नंबर आये हैं तो आगे भी परीक्षाओं में वे लोग बेहतर ही करेंगे, यह तो तय है। फिर ये सब लोग न वैज्ञानिक बने दिखाई देते हैं, न ही उद्यमी, जिससे भारत का नाम रोशन हो। Continue reading 500 में से 499 नंबर वाह

बारिश, अल्लू अर्जुन और फेसबुक ट्विटर

कल ऑफिस पहुँचे तो उसके बाद जो बारिश शुरू हुई, तो शाम को घर आने तक चलती ही रही। आने में तो हम रैनकोट पहनकर आये, परंतु फिर भी थोड़ा बहुत भीग लिये थे। घरपर निकलने के पहले ही फोन करके कह दिया था कि आज शाम को तो पकौड़ा पार्टी करेंगे, और बरसात का आनंद लेंगे। घर पहुँचे थोड़ा बहुत ट्रॉफिक था, पर 18 किमी बाईक से चलने में डेढ़ घंटा लगना मामुली बात है। कार से जाना नामुनकिन जैसा है, पहले तो दोगुना समय लगेगा और फिर पार्किंग नहीं मिलेगी, एक बार गये थे तो तीन घंटे जाने में लगे थे, पार्किंग नहीं मिली थी तो घर पर आकर वापिस से पार्किंग करनी पड़ी थी। जिसको बताया वो हँस हँसकर लोटपोट था कि तुमने कार से जाने की हिम्मत कैसे जुटाई। Continue reading बारिश, अल्लू अर्जुन और फेसबुक ट्विटर

जीवन एक अनंत यात्रा है – मेरी कविता

जीवन एक अनंत यात्रा है

जिसे हम खुद ही खोदकर

और कठिन करते जा रहे हैं

अपने अंदर खोदने की आदत

विलुप्त होती जी रही है

हर किसी नाकामी के लिये

आक्षेप लगाने के लिये

हम तत्पर होते हैं

यह गहनतम जंगल है

जिसमें आना तो आसान है

निकलना उतना ही कष्टकारी है

पीढ़ी दर पीढ़ी कठिनाईयों के दौर

खुद ही बढ़ाते जा रहे हैं

न सादगी रही

न संयम रहा

बस अतिरेक का दावानल है

गुस्से की ज्वाला है

जीवन अमूल्य है

जिसे हम बिसार चुके हैं।

मन का मैल काटने में लगा हूँ

कुछ दिनों पहले तक बहुत अजीब हालात से गुजर रहा था, बैचेनी रहती थी, पता नहीं कैसे कैसे ख्याल आते थे, पुरानी बातें बहुत परेशान करती थीं, कभी कुछ अच्छा याद नहीं आता था, हमेशा ही बुरा ही याद आता था। ऐसा नहीं कि जीवन में अच्छा हुआ ही नहीं, या बुरा भी नहीं हुआ, परंतु होता क्या है कि हम हमारी याददाश्त में अच्छी चीजें कम सँभालकर रखते हैं और बुरी यादें हमेशा ही ज्यादा सँभालकर रखते हैं। हमारे जीवन की यही सबसे बड़ी परेशानी और समस्या है। ऐसा होना ही हमें मानव की श्रैणी में खड़ा करता है, हमें कहीं न कहीं मानसिक स्तर पर मजबूत भी करता है और हमें चालाक बनने में मदद भी करता है। Continue reading मन का मैल काटने में लगा हूँ

पीने का पानी बचाओ Save Water

पानी को बनाया नहीं जा सकता, न पैदा किया जा सकता है क्योंकि पानी प्राकृतिक स्रोत है और हमें यह प्रकृति का वरदान है। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, धरती पर पीने के पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। पीने का पानी आने वाले कल में सोने से भी महँगा होगा, यह आने वाला कल का सोना है। यह भी हो सकता है कि आने वाले कल में इसकी ट्रेडिंग शुरू हो जाये, आने वाले कल में ज्यादा पानी पीना भी प्रतिष्ठा का प्रतीक बन जाये। हर इंसान को अपनी रोजमर्रा के कामों के लिये रोज कम से कम 20 लीटर पानी चाहिये।

पानी बचाना है (Save Water) तो पहल भी हमें ही करनी होगी, हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी, सब से पहले पीने के पानी को बचाना होगा। हम हमेशा ही पानी पीने के पहले पूरा गिलास पानी भरते हैं, और आधे से भी ज्यादा बार पूरा पानी नहीं पिया जाता है, वह बचा हुआ पीने का पानी बहा दिया जाता है। हमें सबसे पहले तो अपनी आदत में यह शुमार करना होगा कि हम पूरा गिलास पानी की जगह, आधा गिलास या उससे कम पानी लें, और पानी की जरूरत है तो वापिस लिया जा सकता है, परंतु एक बार पानी पीने के बाद यानि के झूठा होने के बाद बचा हुआ पानी बर्बाद ही होना है।

वैसे ही जब हम बाहर किसी भी रेस्टोरेंट या होटल में खाना खाने जाते हैं तो भी होटल को पानी का पूरा गिलास भर कर देने की जगह आधा या आधे से कम गिलास भरकर देना चाहिये, जिससे पानी की बहुत बचत हो सकती है, जैसे मैं कभी भी खाना खाते समय पानी नहीं पीता और अगर होटल फिर भी मेरे गिलास में पानी भर देता है तो मेरे खाना खाने के जाने के बाद वह पानी कोई और नहीं पियेगा, वह पानी बर्बाद हो जायेगा, होटल का वेटर उस पानी को फेंक देगा, बहा देगा। वैसे ही अगर आधा गिलास पानी दिया जायेगा ओर प्यास लगेगी या पानी की जरूरत होगी तो प्यासा कह ही देगा।

पानी बचाना यानि #CuttingPani आज हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिये, और हमें इसका जोरशोर से प्रचार भी करना है, और व्यक्तिगत स्तर पर भी भरपूर कोशिश करना है। अगर आप किसी को ऐसा करते हुए देखते हैं, तो टोकने से न चूकें, आपको टोकने से हम प्रकृति की धरोहर आने वाली पीढ़ी के लिये बचा सकते हैं, नहीं तो जितनी आसानी से हमें पीने का पानी उपलब्ध है, उन्हें नहीं होगा।

आप Livpure द्वारा चलायी जा रही मुहीम में इस याचिका को साईन करके भी जागरूकता फैला सकते हैं।

याचिका के लिये लिंक – https://www.change.org/p/cuttingpaani

हम भाड़ की जनरेशन और आज की ग्रिल की जनरेशन

हम अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं तो हमें भाड़ का महत्व पता है, और तभी भाड़ की बहुत सी कहावतें भी याद आती हैं। भाड़ में बहुत सी चीजें पकाई जाती हैं, जिन्हें हम खाने के काम में लेते हैं, और हमारे लिये वे ही व्यंजन था, जैसे भाड़ के चने, भाड़ के आलू। ये भी कहा जा सकता है कि ये गँवई शौक थे जो कि ठंड के मौसम में बड़े काम आते थे। हमारी जनरेशन और हमसे पहले वाली याने पिताजी, दादाजी वाली जनरेशन भाड़ की थी। जैसे भाड़ में पकने में समय लगता था, उसी के कारण शायद यह कहावत बनी होगी कि भाड़ में जाओ। जो भाड़ के कारीगर होते थे याने कि जो भाड़ में भूनते थे, वे कहलाते थे भड़बुजे, आजकल न भाड़ है न भड़बुजे।

एक कहावत और याद आती है एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, खैर इसका मतलब नि:संदेह ही यह रहा होगा कि एक अकेला व्यक्ति कभी क्रांति नहीं ला सकता है, क्योंकि एक अकेला क्या एक हजार चने भी होंगे तो वे भी भाड़ नहीं फोड़ पायेंगे। वैसे तो भाड़ में केवल चने ही नहीं और भी अनाज को पकाया जाता था, भाड़ के पके अनाज का स्वाद बिल्कुल अलग ही होता है, जो बिना चखे नहीं जाना जा सकता है।

वैसे ही आजकल की जनरेशन है जो केवल ग्रिल ही पसंद करती है, कोई चीज हो बस ग्रिल कर दो। परंतु समस्या यह है कि ग्रिल में अधिकतर माँस को ही पकाया जाता है या फिर आलू, पनीर। और कुछ ग्रिल हो नहीं सकता है, कोई और अनाज ग्रिल हो नहीं सकता, क्योंकि ग्रिल और भाड़ दोनों की बनावट ही अलग है, कार्य पद्धति भी बिल्कुल अलग है। यह तुरत फुरत वाला काम है।

भाड़ के लिये ज्यादा जगह चाहिये, पर ग्रिल तो एक तसले में भी बनाया जा सकता है। हमारी जनरेशन ने शायद धरती पर जितनी खाली जगह और प्राकृतिक स्त्रोत देखे हैं, उतने हमारी आने वाली जनरेशन नहीं देख पायेगी। इसी कारण से सारी चीजें सिकुड़ती जा रही हैं और समय की कमी के चलते सब फटाफट चीजें आ रही हैं।

ये ग्रिल की जनरेशन वाले भाड़ की मानसिकता को नहीं समझ पायेंगे और हम लोग भाड़ की जरनेशन वाले ग्रिल का जनरेशन की मानसिकता को नहीं समझ पायेंगे।