लगता है कि नवभारत टाइम्स ने न सुधरने की कसम खा रखी है या ये लोग हिन्दी को मजाक समझते हैं..

बहुत दिनों से नियमित ही मात्राओं की गलतियाँ, नवभारत टाइम्स में देखने को मिलती हैं पर लगातार दो दिन गलतियाँ मतलब नवभारत टाइम्स में ही कहीं कोई समस्या है, ये लोग हिन्दी को गंभीर रुप से नहीं लेते हैं और बिना प्रूफ़ रीडिंग के प्रिंट प्रोडक्शन में डाल देते हैं।
कल के नवभारत टाइम्स में मुख्य पृष्ठ में “राहुल की सादगी”

समाचार में “स्तिथि” लिखा है जब कि “स्थिति” होना चाहिये और आज भारत के क्रिकेट मैच जीतने पर मुख्य पृष्ठ पर फ़ोटो प्रकाशित किया है “विनिंग बोलिंग”, इसमें “आशिष नेहरा” लिखा है जबकि सही तरीके से पृष्ठ ९ खेल समाचार पर “आशीष नेहरा” लिखा गया है, एक बार नहीं कई बार लिखा गया है। अगर यह त्रुटि है तो इसके लिये जिम्मेदारी तय की जाना चाहिये। क्योंकि हिन्दी भाषियों के लिये मुंबई में और कोई विकल्प भी नहीं है।

हम तो दैनिक भास्कर, नईदुनिया और दैनिक जागरण का यहाँ आने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित करना इनके लिये मजबूरी नहीं वरन उनका पेशा है और हिन्दी के मानक का बहुत ध्यान रखते हैं।

9 thoughts on “लगता है कि नवभारत टाइम्स ने न सुधरने की कसम खा रखी है या ये लोग हिन्दी को मजाक समझते हैं..

  1. यदि यह मुंबई एडिशन है तो यह गलती इसलिये हो रही है क्योंकि नवभारत टाईम्स का मुंबई में कोई कम्पीटीटर नहीं हैं। रही बाकी शहरों की बात, तो वहां पर काफी हद तक हिंदी को सही ढंग से लिखने की कोशिश तो होती ही है।

  2. विवेक जी
    सादर वन्दे!
    ये गलती केवल नवभारत टाईम्स की ही नहीं बल्कि दैनिक जागरण में भी भरपूर मात्रा में देखने को मिलती है या यूँ कहिये लगभग सभी हिंदी दैनिकों में, इसका मुख्य कारण पैसा कमाना है क्योंकि इनका सारा ध्यान विज्ञापन में ही लगा रहता है हिंदी की किसको फिकर है.
    रत्नेश त्रिपाठी

  3. हिन्दी की समृद्धि के लिए भला कोई क्यों ध्यान देने लगा? अपनी समृद्धि, भले ही वह हिन्दी के माध्यम से हो, से फुरसत मिले तब ना।

  4. नई पीढ़ी को ललचाने के लिए इस तरह की सोच वाले कथित युवाओं को फ्यूजन हिंदी परोसी जाती है ताकि उन्हें वह अपना सा न्यूज़ पेपर लगे।

    इतनी सी बात यह कथित समाचार पत्र नहीं जानते कि नई पीढ़ी प्रिंट मीडिया की बजाये इंटरनेट को ज़्यादा तरजीह देती है जबकि समाचार पत्र एक तरह से पारिवारिक व्यक्ति पसंद करता है, जो ऐसी भाषा और नंगई के चलते अब दूर होते जा रहे हैं।

    आने वाले कल को ये न युवायों के रहेंगे ना पूर्व-युवाओं के

    बी एस पाबला

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *