Category Archives: मेरी लिखी रचनाएँ
समाज में आवारा हवाओं के रुख
में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।
नहीं आपको पता कैसे चलेगा”
पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।
नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
हवाओं का रुख बदलेगा
की दीवारें इन्हें रोकेंगी
साफ होंगी
हवाओं से घुटन खत्म होगी
बदलेंगी,
साँस ले पायेंगे ।
हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे”
की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।
प्रेम केवल जिस्मानी हो सकता है क्या दिल से नहीं ?
राज को पता न था कि नियती में उसके लिये क्या लिखा है और एक दिन सामने वाले घर में रहने वाली गुँजन से आँखें चार हुईं, ऐसे तो गुँजन बचपन से ही घर के सामने रहती है, पर आज जिस गुँजन को वह देख रहा था, उसकी आँखों में एक अलग ही बात थी, जैसे गुँजन की आँखें भँवरे की तरह राज के चारों और घूम रही हों और राज को गुँजन ही गुँजन अपने चारों और नजर आ रही थी, गुँजन का यूँ देखना, मुस्कराना उसे बहुत ही अजीब लग रहा था। गुँजन के जिस्म की तो छोड़ो कभी राज ने गुँजन की कदकाठी पर भी इतना ध्यान नहीं दिया था। और आज केवल राज को गुँजन की आँखों में वह राज दिख रहा था। बस पता नहीं कुछ होते हुए भी राज बैचेन हो गया था। उसके जिस्म का एक एक रोंया पुलकित हो उठा था। बस बात इतनी ही नहीं थी, अगर वह हिम्मत जुटाकर आगे बड़कर गुँजन को कुछ कहता तो उसे पता था कि उसके बुलडॉग जैसे 2 भाई उसकी अच्छी मरम्मत कर देंगे।
पतंगों का मौसम चल रहा था, आसमान में जहाँ देखो वहाँ रंगबिरंगी पतंगें आसमान में उड़ती हुई दिखतीं, राज को ऐसा लगता कि उसका भी एक अलग आसमान है उसके दिल में गुँजन ने रंगबिरंगे तारों से उसका आसमान अचानक ही रंगीन कर दिया है। राज और गुँजन दोनों अच्छे पतंगबाज हैं, वैसे तो प्रेम सब सिखा देता है, गुँजन का समय अब राज के इंतजार में छत पर कुछ ज्यादा ही कटने लगा था, और वह उतनी देर हवा के रुख का बदलने का इंतजार करती जब तक कि राज के घर की और पुरवाई न बहने लगे, जैसे ही पुरवाई राज के घर का रुख करती झट से गुँजन अपनी पतंग को हवा के रुख में बहा देती और राज के घर के ऊपर लगे डिश एँटीना में अपनी पतंग फँसाकर राज की खिड़की में ज्यादा से ज्यादा देर तक झांकने का प्रयत्न करती, ऐसी ही कुछ हालत राज की थी और उसे लगता कि गुँजन की पतंग बस उसकी डिश में ही उलझी रहे और गुँजन ऐसे ही मेरी तरफ देखती रहे। पता नहीं कबमें राज और गुँजन की उलझन डिश और पतंग जैसी होने लगी, दोनों ही आपस में यह उलझन महसूस कर रहे थे।
अब राज को गुँजन के बिना रहा न जाता और वैसा ही कुछ हाल गुँजन का था, आखिरकार राज ने गुँजन को वेलन्टाइन डे पर अपने दिल की बात इजहार करने की ठानी, एक कागज पर बड़े बड़े शब्दों में लिखा “मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ”, और यह कागज राज ने गुँजन की पतंग के साथ बाँध दिया और पतंग को डिश एँटीना से निकालकर छुट्टी दे दी। गुँजन ने फौरन ही पतंग को उतार कर वह संदेश पड़ा, पर फिर से उसने पतंग उड़ाई और राज ने अपनी छत पर वह पतंग पकड़ ली और उसमें गुँजन का संदेश था, मैं भी तुम्हें पसंद करने लगी हूँ, राज ने पतंग के डोर में एक पतंग और बाँधकर छुट्टी दे दी । और प्रेम के खुले आसमान में स्वतंत्र होकर वह दोनों पतंग एक डोरी से बँधी उड़ने लगीं।
जितना खूबसूरत है प्यार, उतना ही गमगीन भी
मर्यादाओं को लांघना एक आम बात हो गई है, वहीं इन दोनों के बीच कुछ ऐसा था, जहाँ वे मर्यादाओं की सीमा में रहते और हाथों में हाथ लेकर घंटों तक सुनहरी दुनिया में खोये रहते ।
जीवन के प्रति नकारात्मक रुख
बेटी तू कितना भी विलाप कर ले, तुझे मरना ही होगा (नाटक)
माँ और उसकी कोख में पल रही बेटी के मध्य संवाद
आजतक बोल पाई और ना ही अब बोल पाऊँगी।
स्पर्श की संवेदनशीलता (BringBackTheTouch)
कला केशव के सामने फफक फफक कर रो रही थी, केशव धीमे धीमे कला के नजदीक गया और कला को अपनी बाँहों में भरकर गालों से गालों को सटाकर कह रहा था, बस कला मुझे समझ आ गया है कि मैं कहाँ गलत हूँ । अब आज से मेरा समय तुम्हारा हुआ, केशव के स्पर्श से कला का गुस्सा और अकेलापन क्षण भर में काफूर हो गया, स्पर्श के स्पंदन को कला और केशव दोनों ही महसूस कर रहे थे, कला और केशव दोनों ने आगे से अपना समय आपस में बिताने का निश्चय किया।
जंग .. मेरी कविता.. (विवेक रस्तोगी)
कठिनाईयाँ तो राह में बहुत हैं,
बस चलता चल,
राह के काँटों को देखकर हिम्मत हार दी,
तो आने वाली कौम से कोई तो
उस राह की कठिनाईयों पर चलेगा,
तो पहले हम ही क्यों नहीं,
आने वाली कौम के लिये
और बड़ी
उसी राह की
आगे वाली कठिनाईयाँ छोड़ें,
नहीं तो
वे इन कठिनाईयों को पार करते समय
सोचेंगे, कितने नकारा लोग थे
जो इन साधारण सी बाधाओं को पार
नहीं कर पाये
जो बाधाएँ आज कठिन लगती हैं
वे आने वाले समय में बहुत सरल हो जाती हैं
बेहतर है कि उनके सरल होने के पहले
उन कठिनाईयों से निपट लिया जाये
दिमाग और हौसलों में जंग न लगने देने का
इससे साधारण और कोई उपाय नहीं।
बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता
मुझे पता है तुम
खुद को गाँधीवादी बताते हो,
पूँजीवाद पर बहस करते हो,
समाजवाद को सहलाते हो,
तुम चाहते क्या हो,
यह तुम्हें भी नहीं पता है,
बस तुम्हें
बहस करना अच्छा लगता है ।
जब तक हृदय में प्रेम,
किंचित है तुम्हारे,
लेशमात्र संदेह नहीं है,
भावनाओं में तुम्हारे,
प्रेम खादी का कपड़ा नहीं,
प्रेम तो अगन है,
बस तुम्हें
प्रेम करना अच्छा लगता है ।
आध्यात्म के मीठे बोल,
संस्कारों से पगी सत्यता,
मंदिर के जैसी पवित्रता,
जीवन की मिठास,
जीवन में सरसता,
चरखे से काती हुई कपास,
बस तुम्हें
सत्य का रास्ता अच्छा लगता है।
प्रेमपत्र.. मेरी कविता
वे प्रेमपत्र जो हमने
एक दूसरे को लिखे थे
कितना प्यार उमड़ता था
उन पत्रों में
तुम्हारा एक एक शब्द
कान में लहरी जैसा गूँजता रहता था
पहला प्रेमपत्र तब तक पढ़ता था
जब तक नये शब्द ना आ जायें
तुम्हारे प्रेमपत्रों से
ऊर्जा, संबल और शक्ति मिलते थे
कई बातें और शब्द तो अभी भी
मानस पटल पर अंकित हैं
तुम मेरे जीवन में
आग बनकर आयीं
जीवन प्रेम का दावानल हो गया
आज भी तुम्हारी बातें, शब्द
मुझे उतने ही प्रिय हैं प्रिये
बस वक्त बदल गया है
मेरे प्रेमपत्र तुमने अभी भी
सँभाल कर रखे हैं
जिन्हें तुम आज भी पढ़ती हो
और अगर मैं गलती से पकड़ भी लेता हूँ
तो
वह शरमाना आँखें झुकाना
प्यारी सी लजाती हँसी
बेहद प्यारी लगती है
एक मैं हूँ
जो तुम्हारे प्रेमपत्र
पता नहीं कहाँ कब
आखिरी बार
रखे थे
पढ़े थे
पत्र भले ही मेरे पास ना हों
सारे शब्द आज भी
हृदय में अंकित हैं
एक निवेदन है
तुम फ़िर से प्रेमपत्र लिखो ना !!