परीक्षा में असफल होना भी ठीक है

अभी दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम आ चुके हैं और जिन बच्चों के 99% या उससे ज्यादा हैं, हम उनके परीक्षा परिणामों पर उत्सव भी मना चुके हैं। उनकी सफलता के लिए उनको बधाई का हक तो है ही, पर ऐसे बहुत सारे बच्चे भी हैं जो इतने नंबर नहीं ला सके और कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें उम्मीद से कम नंबर मिले, और कुछ बच्चे परीक्षा में असफल भी हुए हैं। परीक्षा परिणाम कुछ भी रहा हो, परंतु यह समय है अपने दिमाग को शांत और स्थिर रखने का और आगे बढ़ने के लिए तैयार होने का।

कक्षा दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम वाकई एक छात्र की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं। लेकिन कम नंबर आने पर भी कोई दुनिया खत्म नहीं हो जाने वाली है। परिणाम कुछ भी रहा हो अब समय है बहादुरी से आगे बढ़ने का।

आजकल बच्चों में बहुत ज्यादा विषाद, तनाव, अवसाद, आत्मविश्वास में कमी देखने को मिलती है, कुछ भी किसी भी प्रकार की असफलता पर आत्महत्या के बारे में सोचना शुरु कर देना बहुत आम बात हो गई है। जैसे-जैसे प्रतियोगिता बढ़ती जा रही है और प्रतियोगी अपने नंबर अच्छे करते जा रहे हैं, मतलब कुछ लोग अच्छे नंबर पा रहे हैं और अच्छे नंबर आने की वजह से ही उन्हें बढ़िया महाविद्यालय में भी प्रवेश मिलता है, जिनके नंबर अच्छे नहीं होते उन्हें अच्छे महाविद्यालय भी नहीं मिलते हैं।

अभिभावक कभी भी खुश नहीं हो सकते। उसका मुख्य कारण है कि जो उनकी चाहत है, उससे कम नंबर आना और यही तनाव की मुख्य वजह है और जब अभिभावक इस प्रकार की उम्मीद अपने बच्चों से लगाकर रखते हैं तो घर में झगड़ा बढ़ने लगता है, घर शांत नहीं होता घर अशांत हो जाता है।

हमें समझना होगा की डिग्री और कैरियर दोनों में अंतर है। अभिभावकों को बच्चों के दिमाग को समझना होगा। सारे अभिभावक अपने बच्चे को कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते हैं, क्योंकि उनका बच्चा कंप्यूटर गेम खेलते हुए आनंदित होता है।

सही बात तो यह है कि इन दिनों छात्रों को एक अनदेखे मानसिक दबाव से गुजरना पड़ रहा है, जो कि उनके खुद के दोस्तों या फिर परिवार के कारण है। जो बच्चे अच्छा कर रहे हैं यह कहना ठीक नहीं कि वह लोग तनाव में नहीं है, वे लोग ज्यादा तनाव और चिंता में हैं, क्योंकि उन्हें अपने अभिभावक, अपने शिक्षकों और अपने दोस्तों की उम्मीदों पर खरा उतरना है। अगर अच्छे नंबर नहीं आ रहे हैं तो अभिभावकों को और छात्रों को प्लान ‘बी’ पर काम करना चाहिए जो कि उन्हें अन्य विकल्प पर काम करने में मदद करें।

विद्यालयों में स्ट्रेस मैनेजमेंट और दिमाग की शांति के लिए प्रोग्राम करने चाहिए। यह समझना भी जरूरी है और भूलना नहीं चाहिए कि बहुत सारे अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक परेशानियों को नहीं समझते। ओर जो समझ भी पाते हैं तब तक काफी देरी हो चुकी होती है।

ऐसा लगता है कि नंबर स्कूल में या कॉलेज में बहुत बड़ा फर्क पैदा करते हैं, लेकिन अगर किसी की जिंदगी के बारे में देखा जाए, तो नंबरों का महत्व बहुत कम हो जाता है। अगर आप टॉपर्स को देखते हैं तो वह कभी भी अपने पैशन के अनुसार अपना कैरियर नहीं चुन पाते हैं, जिससे कि वे आगे जाकर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन कर पायें।

इस बारे में एक बार हमारी ब्लॉगर विभा रानी जी से बात हुई थी, तब उन्होंने बताया था कि उनके एक मित्र का लड़का फोटोग्राफी करना चाहता था, पर उनके अभिभावक फोटोग्राफी करने के विरुद्ध थे, बाद में मान गए और लड़के ने फोटोग्राफी प्रोफेशनल तरीके से सीखना शुरू करी और वह आज की तारीख में नामी फोटोग्राफर है। तो नंबर ही सब कुछ नहीं होता अगर आप बच्चे के पैशन को पहचान कर बच्चों को आगे बढ़ाते हैं, तो वह अपनी जिंदगी में बहुत कुछ हासिल कर सकता है और सफल हो सकता है।

इतना दबाव होने के कारण बहुत सारे बच्चे आत्मविश्वास खो बैठते हैं। भले ही वह टॉपर हो, या फिर सामान्य हो, या फिर असफल हो। मतलब कि जो फेल हो गए हैं, अभिभावकों का काम है कि वह उनकी समस्याओं को समझें और उनके साथ मिलकर उनके भविष्य निर्माण में सहयोग करें। अच्छे कॉलेजों में प्रवेश के लिए दौड़ जारी रहेगी। यह कभी रुकने वाली दौड़ नहीं है लेकिन हमेशा ध्यान रखें, अच्छे ग्रेड से पास होना ही सफलता का पैमाना नहीं है। अच्छे नंबर होंगे तो आपके जीवन में थोड़ा बहुत बदलाव करने में सक्षम होंगे, उससे ज्यादा और कुछ नहीं।

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